रजिया सुल्तान का इतिहास जीवन परिचय | Razia Sultan History in Hindi

रजिया सुल्तान का इतिहास जीवन परिचय Razia Sultan History in Hindi Biography: रजिया योग्य पिता की योग्य पुत्री थी.

इतिहासकार मिन्हाज के शब्दों में वह एक महान शासक, बुद्धिमती, न्यायप्रिय, उदार, विद्वानों की आश्रयदात्री, प्रजा शुभ चिंतक सैनिक गुणसम्पन्न तथा उस सभी श्लाघनीय गुणों से परिपूर्ण थी. जो एक शासक के लिए आवश्यक हैं.

Razia Sultan History in Hindi रजिया सुल्तान का इतिहास जीवन परिचय

रजिया सुल्तान का इतिहास जीवन परिचय | Razia Sultan History in Hindi

कौन थी रजिया सुल्तान (Who was Razia Sultan In Hindi)

रजिया सुल्तान मुस्लिम समुदाय की पहली ऐसी महिला थी जिन्होंने दिल्ली की राजगद्दी को संभाला था। यह स्वभाव से बहुत ही साहसी और निडर थी।

सुल्तान बनने के बाद इन्होंने काफी लड़ाइयां लड़ी और दिल्ली राज्य का विस्तार किया। इन्होंने कई एजुकेशनल इंस्टीट्यूट भी अपने राज्य में स्टार्ट करवाए थे।

पूरा नामरज़िया अल-दिन
शासनकाल1236 – 1240
जन्म1205 बदायूँ
राज्याभिषेक10 नवंबर, 1236
पिताशम्स-उद-दिन इल्तुतमिश
माताकुतुब बेगम
धर्मइस्लाम
राजवंशगुलाम वंश
कब्रचांदनी चौक, दिल्ली; कैथल, हरियाणा
निधन14 अक्टूबर, 1240 कैथल
उत्तरवर्तीमुईज़ुद्दीन बहरामशाह

रजिया सुल्तान का प्रारंभिक जीवन

भारत में बूदोन में शमसुद्दीन अल्तमस के खानदान में साल 1205 में रजिया सुल्तान पैदा हुई थी। रजिया सुल्तान के पैदा होने के बाद इनका नाम रजिया अल-दिन रखा गया था।रजिया सुल्तान के टोटल तीन भाई थे।

रजिया सुल्तान आगे चलकर के राज गद्दी पर विराजमान हुई थी और उन्होंने तकरीबन 1236 से लेकर साल 1240 तक दिल्ली के सुल्तान के कार्यभार को संभाला था।

एक महिला होने के नाते राजगद्दी को संभालना रजिया सुल्तान के लिए आसान नहीं था, क्योंकि इनके खिलाफ काफी गहरी साजिशे भी इनके राज्य में चालू हो गई थी।

रजिया सुल्तान के पिता जी कुतुबुद्दीन ऐबक के वहां पर एक सेवक के तौर पर दिल्ली में काम करते थे और बाद में कुतुबुद्दीन ऐबक के द्वारा रजिया सुल्तान के पिताजी को प्रांतीय गवर्नर बना दिया गया था।

कुतुबुद्दीन ऐबक के पुत्र अराम बक्श ने कुतुबुद्दीन ऐबक की मौत हो जाने के बाद दिल्ली की राजगद्दी को ग्रहण किया था परंतु इल्तुमस तुर्की की सहायता से दिल्ली का सुल्तान बनने में कामयाब हो गया।

इल्तुमश स्वभाव से एक उदार व्यक्तित्व वाला इंसान था और इसीलिए उसने अच्छी सैनिक ट्रेनिंग अपने सभी संतानों को दी और अपनी सभी संतानों को उसने मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग भी दिलवाई।

एक दिन रजिया सुल्तान के पिता शमसुद्दीन अल्तमश ने इस बात को नोटिस किया कि उसके जितने भी बेटे हैं, वह सभी राज्य के कार्यभार में कोई भी दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं और कोई भी बेटा राज्य की गद्दी संभालने के काबिल नहीं है,

वही उसकी बेटी रजिया सुल्तान सैनिक ट्रेनिंग भी ले रही है और मार्शल आर्ट भी सीख रही है। रजिया सुल्तान के गुणों को देखते हुए शमसुद्दीन अल्तमश ने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर रजिया सुल्तान की घोषणा की।

शमसुद्दीन अल्तमस के इस निर्णय से हर कोई आश्चर्यचकित हो गया। आपको बता दें कि, रजिया सुल्तान देखने में बहुत ही सुंदर थी, साथ ही वह सैनिक युद्ध में भी काफी पारंगत थी।

राजगद्दी के लिए रजिया सुल्तान की घोषणा होने के बाद भी दिल्ली की राजगद्दी को संभालना रजिया सुल्तान के लिए सरल नहीं था।

रज़िया सुल्तान के पिता इल्तुतमिश की मृत्यु 

साल 1236 में 30 अप्रैल के दिन रजिया सुल्तान के पिता शमसुद्दीन अल्तमस की मौत हो गई इनकी मौत के बाद घोषणा के अनुसार रजिया सुल्तान को ही राज गद्दी संभालनी थी परंतु मुस्लिम समुदाय में इस बात को लेकर काफी ज्यादा विरोध हो गया कि आखिर एक महिला सुल्तान के पद को कैसे संभाल सकती है।

मुस्लिम समुदाय के विरोध को देखते हुए रजिया सुल्तान के भाई रुखुद्दीन फिरूज़ ने राजगद्दी संभाली परंतु रुखुद्दीन फिरूज़ को राज्य का कामकाज चलाने का ज्यादा एक्सपीरियंस नहीं था।

इसके बाद शमसुद्दीन अल्तमश की पत्नी शाह तुरकान ने अपने कुछ इरादों के कारण सभी सरकारी काम को जिम्मेदारी के साथ संभाला। साल 1236 में ही 9 नवंबर को किसी अज्ञात व्यक्ति ने शाह तुर्कान और रुखुद्दीन फिरूज़ का खून कर दिया।

रजिया सुल्तान का दिल्ली का सुल्तान बनना 

साल 1236 में ही 10 नवंबर के दिन दिल्ली के सुल्तान के पद को रजिया सुल्तान ने ग्रहण किया। जिसके बाद उन्हें जलालत उद्दीन रजिया कहा जाने लगा।

राजगद्दी संभालने के बाद रजिया सुल्तान ने कई सिक्के बनवाया जिस पर महिलाओं का स्तंभ, समय की रानी, सुल्ताना रजिया और शमसुद्दीन अल्तमश की बेटी लिखा हुआ था।

रजिया सुल्तान ने अपनी सल्तनत को बढ़ाने के लिए कई लड़ाइयां लड़ी और काफी एरिया पर कब्जा किया।

भारत के मुस्लिम इतिहास में वह पहली स्त्री थी जो दिल्ली के सिंहासन पर बैठी और जिसने सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न राजतंत्र का सिद्धांत को अपनाया.

इल्तुतमिश ने प्रारम्भ से ही उसे राजकुमारों की भांति शिक्षा दी जाती थी. जब इल्तुतमिश ग्वालियर पर अभियान के लिए दिल्ली से चला तो शासन की देखभाल का कार्य वह रजिया को सौप दिया था,

जिसे उसने कुशलता के साथ पूरा किया. बाद में सुल्तान ने उसे अपना उत्तराधिकारी भी घोषित कर दिया और तुर्क सरदारों ने उस समय उसका समर्थन भी किया था.

परन्तु बाद में तुर्क सरदारों के अहम ने एक स्त्री के आगे शीश झुकाना स्वीकार नहीं किया और रूक्नुद्दीन को सुल्तान बना दिया. परन्तु रजिया ने सर्वसाधारण और युवा तुर्क अधिकारियों के सहयोग से सिंहासन प्राप्त कर लिया.

रजिया सुल्तान द्वारा अमीरों के विद्रोह का दमन

इल्तुतमिश की मृत्यु से लेकर बलबन के सिंहासन तक दिल्ली सल्तनत का इतिहास सर्वोच्च सत्ता को ह्स्ताग्त करने के लिए ताज और अमीरों में आपसी संघर्ष की कहानी हैं. इल्तुतमिश ने रजिया को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था. अमीरों ने रकनुदीन को सुल्तान बना दिया.

जब रूकनुद्दीन भोग विलास में डूब गया और तुर्कान के अत्याचार बढने लगे तो प्रांतीय सूबेदारों ने संगठित होकर उसे सुल्तान पद से हटाने का निश्चय किया.

और अपनी सेनाओं के साथ दिल्ली की तरफ कूंच भी कर दिया था. परन्तु इसी बीच जनसहयोग से अमीरों और प्रांतीय सूबेदारों की सहमती से वह सुल्तान बना.

यह बात अमीरों के लिए एक गंभीर चुनौती थी क्योकि नयें सुल्तान का चयन करना वे अपना अधिकार समझते थे. चूँकि रजिया के चयन में उनकी सम्मति की उपेक्षा की गई थी. अतः वे रजिया को सुल्तान मानने के लिए तैयार नही थे.

उन्होंने सेना सहित दिल्ली की तरफ कुंच जारी रखा. वजीर निजामुलमुल्क जुनैदी ने भी रजिया के विरुद्ध विद्रोही सरदारों का साथ दिया, इस प्रकार सुल्ताना बनते ही रजिया को अमीरों के विद्रोह का सामना करना पड़ा.

बदायूँ मुल्तान हांसी और लाहौर के सूबेदारों ने दिल्ली के समीप ही अपना शिविर लगा दिया. परन्तु रजिया भी साहसी युवती थी और इस बात से परिचित थी कि सुल्तान पद की रक्षा तलवार के बल पर ही की जा सकती हैं. अतः उसने राजधानी के बाहर निकल कर शत्रु से मुकाबला करने का निश्चय किया.

प्रारम्भिक धावों से जब अपेक्षाकृत सफलता नहीं मिली तो रजिया ने कूटनीति का सहारा लिया, उसे सूबेदारों की पारस्परिक फूट की जानकारी मिल चुकी थी.

अतः उसने बदायूँ के सूबेदार मलिक इजाउद्दीन मुहम्मद सालारी और मुल्तान के सूबेदार इज्जुद्दीन कबीर खां एयाज को अपनी तरफ मिला दिया और विद्रोही शिविर में यह प्रचार करवाया कि बहुत शक्तिशाली अमीर रजिया के पक्ष में चले गये हैं.

परिणामस्वरूप बहुत से विद्रोही शिविर से भागने लगे. इसी समय रजिया ने विद्रोहियों पर जोरदार आक्रमण किया, भागते हुए सैनिकों का पीछा करके उन्हें मौत के घाट दिया.

लाहौर के सूबेदार मलिक अलाउद्दीन जानी भी मारा गया. वजीर जुनैदी सिरमूर की पहाडियों की तरफ भाग गया. इस प्रकार विद्रोह को कुचल दिया गया.

अमीरों और ताज के मध्य लड़े गये इस संघर्ष में रजिया ने उनकी संगठित शक्ति को परास्त करके अपने चयन का औचित्य सिद्ध कर दिया. इससे उसकी सत्ता की धाक जम गई और सर्वसाधारण में उनकी लोकप्रियता बढ़ गई.

नवीन नियुक्तियाँ

अमीरों के विद्रोह को कुचलने के बाद रजिया ने प्रशासनिक पदों पर नवीन नियुक्तियाँ करने का निश्चय किया. उसका मुख्य शासन व्यवस्था को तुर्क अधिकारियों के एकाधिकार से मुक्त करना तथा उनकी शक्ति को नियंत्रित करने की दृष्टि से गैर तुर्कों को प्रशासन के महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त करना था.

तदनुसार ख्वाजा मुहाजबुद्दीन को वजीर, मलिक सेफुद्दीन ऐबक बहतू को सेना का अध्यक्ष, मलिक इज्जुद्दीन कबीर खां एयाज को लाहौर का सूबेदार, इख्तियाररुद्दीन अल्तूनिया को भटिंडा का सूबेदार एतिगीन को अमीर ऐ हाजिब और मलिक जमालुद्दीन याकूत को अमीर ऐ आखूर पद पर नियुक्त किया गया.

कुछ दिनों बाद जब सेनाध्यक्ष की मृत्यु हो गई तो उसके स्थान पर मलिक कुतुबुद्दीन हसनगोरी को नायाब ऐ लश्कर पद पर नियुक्त किया गया.

रजिया के समय की मुख्य घटनाएं

करमत तथा मुजाहिदों का विद्रोह – सुल्ताना बनने के कुछ महीनों बाद ही रजिया को करमत तथा मुजाहिदों के विद्रोह का सामना करना पड़ा. नूरुद्दिन नामक एक तुर्क के उकसाने पर गुजरात, सिंध, दिल्ली के पड़ौस और और गंगा यमुना के दोआब में बसे इन सम्प्रदायों के अनुयायी भारी संख्या में दिल्ली के आसपास एकत्रित होने लगे.

अपने नेता की प्रेरणा से उन लोगों ने दिल्ली सिहांसन को इस्लाम के कट्टरपंथियों से छिनने का निश्चय किया. शुक्रवार तारीख 6 रजब 634 हिजरी के दिन करमाती लोगों ने शस्त्रों से सज्जित होकर दो अलग दिशाओं से दिल्ली की जामा मस्जिद पर आक्रमण कर दिया.

उनका विश्वास था कि सुल्ताना रजिया भी वहां होगी करमातियों ने मस्जिद में उपस्थित मुसलमानों को मौत के घाट उतारना शुरू कर दिया. जिससे भारी कोलाहल मच गया. रजिया ने तत्काल सेना की सहायता से विद्रोह को कुचल दिया.

सैकड़ो करमतियों को मौत के घाट उतार दिया और बाक़ी ऊँचे करमतियों को सख्त सजा दी गई. मिनहाज ने लिखा हैं कि ईश्वर की कृपा से उसे यश मिला. इसने रजिया की स्थिति और सुद्रढ़ हो गई.

रणथम्भौर का पतन

इल्तुतमिश की मृत्यु और रूकनुद्दीन की अकर्मण्यता से उत्पन्न महान अव्यवस्था का लाभ उठाकर चौहान राजपूतों ने रणथम्भौर के दुर्ग को घेर लिया. तुर्क सेना दुर्ग में घिर गई. रजिया सुल्तान ने रणथम्भौर में फंसी तुर्क सेना की सहायता के लिए एक सेना भेज दी.

परन्तु इस सेना को सुझाव दिया गया था कि यदि स्थिति बिगड़ जाए तो दुर्ग को खाली कर दिया जाए और सैनिकों को सुरक्षित लौटा दिया जाए.

तदनुसार तुर्कों ने रणथम्भौर दुर्ग खाली कर दिया और चौहानों ने उस पर अधिकार जमा लिया. रजिया की इस कार्यवाही से बहुत से तुर्क अमीर असंतुष्ट हो गये.

ग्वालियर के दुर्ग की रक्षा का विषय- 

ग्वालियर का दुर्ग रक्षक जियाउद्दीन अली सल्तनत के भूतपूर्व वजीर जुनैदी का रिश्तेदार था. रजिया को जब यह जानकारी मिली कि अब वह उनके विरुद्ध तोड़ जोड़ में लगा हुआ हैं तो उसने बरन के सूबेदार को उसके विरुद्ध अभियान करने का आदेश दिया.

बरन के सूबेदार ने उसको बंदी बनाकर दिल्ली भिजवा दिया. परन्तु वह दिल्ली पहुचने से पहले ही लापता हो गया.

रजिया के विरोधी अमीरों को यह विश्वास हो गया कि सुल्ताना रजिया के इस संकेत पर उसकी हत्या कर दी गई हैं और रजिया अपने विरोधियों का सफाया करने वाली हैं. इस समय नरवर के शासक यजवपाल ने ग्वालियर पर आक्रमण कर दिया.

दुर्ग रक्षक तुर्क सेना अधिक दिनों तक आक्रमण का सामना न कर सकी. रजिया ने सहायता भेजने के स्थान पर ग्वालियर के दुर्ग को खाली करा दिया. इससे तुर्क अमीर और भी असंतुष्ट हो गये और उन्हें ऐसा प्रतीत होने लगा कि सल्तनत छिन्न भिन्न हो जाएगी.

सीमान्त समस्या-

सल्तनत के पश्चिमी सीमान्त पर मंगोलों के निरंतर आक्रमण शुरू हो गये थे. इस क्षेत्र पर अभी तक जलालुद्दीन मंगबरनी के प्रतिनिधि हसन करलुग का अधिकार हो गया था.

मंगोलों के विरुद्ध उसने रजिया से सहायता की अपील की. इल्तुतमिश की नीति का पालन करते हुए रजिया ने सहायता देने से इंकार कर दिया. परन्तु तुर्क अमीरों ने उसे सुल्ताना की सैनिक निर्बलता का प्रतीक माना.

रज़िया सुल्तान की मृत्यु 

रजिया सुल्तान की हत्या साल 1240 में 14 अक्टूबर के दिन दिल्ली से भागते समय जट लोगों ने कर दी।

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