साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय दोहा अर्थ | Sai Itna Dijiye Meaning In Hindi

Sai Itna Dijiye Meaning In Hindi : कबीर दास जी भारत के महान संत एवं समाज सुधारक रहे है, उन्होंने कई दोहे, सवैये लिखे साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय दोहा काफी लोकप्रचलित हैं.

जीवन में संतोष के महत्व को बताने वाले इस दोहे का अर्थ और व्याख्या यहाँ सरल भाषा में बता रहे हैं. चलिए जानते है संत कबीर इस दोहे के माध्यम से ईश्वर से क्या और किसकी याचना करते हैं.

Sai Itna Dijiye Meaning In Hindi

Sai Itna Dijiye Meaning In Hindi

ऊपर उल्लेखित भावार्थ का दोहा और उसका अर्थ व्याख्या, भजन किस प्रकार है इसे कठिन शब्दों के सरल अर्थ के साथ यहाँ समझाने का प्रयत्न किया गया हैं.

साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय॥
Sai Itna Dijiye, Jaa Me Kutum Samay
Mai Bhi Bhukha Na Rahu, Sadhu Bhi Bhukha  Na Jaye.

अर्थ

संत कबीर दास इस दोहे के माध्यम से ईश्वर से प्रार्थना करते है कि हे ईश्वर मुझे उतना ही धन, अन्न, जल प्रदान कीजिए जिससे अपना पेट भर सकू अपना गुजारा कर सकू तथा कोई साधू भूखा न जाय इसका आशय यह है कि मेरे द्वार आने वाला मेहमान को भी भोजन करा सकू.

कठिन शब्दार्थ

  • साईं – ईश्वर, प्रभु, भगवान, परमात्मा (निराकार ईश्वर)
  • कुटुंब- परिवार, सम्बन्धित, रिश्तेदार
  • साधू – मेहमान, आगन्तुक, भिखारी.

दोहा अर्थ व्याख्या

आज के संसार में संतोष का कोई स्थान नहीं रह गया हैं, प्रत्येक व्यक्ति अधिक से अधिक कमाने, सम्पत्ति अर्जित करने की दौड़ में लगा हैं.

चाहे भले ही उसके पास अपार सम्पति दौलत हो वह कभी अपने मन को तसल्ली नहीं दे पाता हैं. इस कारण वह अमीर होने के बावजूद भी दिल का गरीब बनकर भागदौड में लगा रहता हैं.

कबीर जी के इस दोहे में निहित संदेश को हम अपने जीवन में अपनाकर संतोष एवं सुख की प्राप्ति कर सकते हैं. यदि सभी लोग इस मंत्र को अपने जीवन में अपना ले तो निश्चय ही भ्रष्टाचार, कालाबाजारी, धोखाधड़ी, लूट, चोरी आदि समस्याएं स्वतः ही समाप्त हो जाएगी.

कबीर दास कौन थे?

हिंदी साहित्य में सबसे महिमामंडित व्यक्तियों की सूची में कबीरदास का नाम आता है। इनके जन्म के बारे में अनेक प्रकार की बातें लोगों के मुंह से सुनी जाती है। कुछ लोग के अनुसार काशी में रहने वाली एक विधवा पंडिताईन के गर्भ से कबीरदास का जन्म हुआ था। 

हालांकि विधवा ब्राह्मणी के द्वारा नवजात बच्चे को लहरतारा ताल के पास फेंक दिया गया था। इसके पश्चात नीमा और नीरू नाम के पति पत्नी को कबीर दास जी पानी में बहते हुए मिले थे और उन्होंने ही इन्हें अपने घर लाया और उनका लालन-पालन करके इन्हें बड़ा किया। नीमा और नीरू जाति से जुलाहा थे।

कबीरदास के जन्म को लेकर कबीरपंथीओ की मान्यता

कबीर पंथ को मानने वाले लोगों के अनुसार कबीर दास जी की उत्पत्ति बनारस में लहरतारा तालाब में पैदा हुए कमल के मनोहर फुल के ऊपर बालक के तौर पर हुई थी।

कुछ लोग यह भी कहते हैं कि कबीर दास जन्म से मुसलमान ही थे और जब यह बड़े हुए तब इनकी मुलाकात स्वामी रामानंद से हुई और इन्होंने मुसलमान मजहब को छोड़ दिया और उसके पश्चात हिंदू धर्म को स्वीकार कर लिया और हिंदू धर्म के ज्ञान को बढ़ाने का काम किया।

कहानी के अनुसार स्वामी रामानंद जी गंगा नदी पर स्नान करने के लिए जा रहे थे और तभी कबीरदास सामने से आ रहे थे और तभी कबीर दास का पैर फिसला और वह स्वामी रामानंद के पैर पर गिर पड़े और उनके मुंह से तुरंत ही राम-राम निकल गया।

इसी प्रकार से कबीर ने राम नाम को ही दीक्षा मंत्र मान लिया और स्वामी रामानंद जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया।

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