Sanskrit Proverbs With Meaning Sanskrit Suktiyan संस्कृत सूक्ति हिंदी अर्थ के साथ: संस्कृत साहित्य जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी, व्यवहार तथा नीति का ज्ञान कराने वाले सुंदर वचनों (sanskrit thought) से भरा पड़ा हैं.
गहन भावों को अल्प शब्दों sanskrit sayings में कहना हमारे कवियों की परम्परा रही हैं. आज के sanskrit shlok में छात्रों के लिए बेहद प्रेरणास्पद कुछ महत्वपूर्ण सूक्तियों (sanskrit proverbs quotes) को संकलित किया गया हैं.
संस्कृत सूक्ति हिंदी अर्थ के साथ Sanskrit Proverbs With Meaning
Popular Sanskrit Proverbs सूक्तयः (सूक्तियां)
1. Sanskrit Proverbs: सत्य वद धर्म चर
संस्कृत अर्थ– त्वं सर्वदा अपि सत्यवचनानि एव वद, सर्वदा एव धर्मानुसारम आचरण कुरु.
हिंदी अर्थ– तुम हमेशा सत्य वचन ही बोलो, हमेशा धर्म के अनुसार ही आचरण करों.
2. Sanskrit Proverbs: वद वाक्य शुभं सदा
संस्कृत अर्थ-त्वं सर्वदा एव शुभकर प्रीतिकरं कर्ण प्रियं च वाक्यं वद
हिंदी अर्थ– तुम हमेशा ही शुभ, प्रिय एवं श्रेष्ठ वाक्य बोलो.
3. Sanskrit Proverbs: नहि सत्यात् परं धनं
संस्कृत अर्थ– सर्वश्रेष्ठ धनम सत्यम एव अस्ति, अस्मिन संसारे सत्यात् श्रेष्ठं धनं किमपि नास्ति
हिंदी अर्थ– सर्वप्रथम धन सत्य ही हैं. इस संसार में सत्य से श्रेष्ठ कुछ भी नहीं हैं. अतः हमे हमेशा सत्य का ही पालन करना चाहिए.
4. Sanskrit Proverbs: हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः
संस्कृत अर्थ– यद्वचन हितकरम अस्ति कर्णप्रियं चापि अस्ति. ताद्रश वचनं एकत्र न मिलति. अर्थात यद्वचं हितकर भवति प्रायः तद्वचं मनः प्रियं न भवति. अतः हितकर वचनं सर्वदापि ग्राह्यम अस्ति. तत्र मनोहरस्य अपेक्षा न करणीया.
हिंदी अर्थ– जो वचन हितकारी हैं और कानों को सुनने में प्रिय भी है. वैसा वचन अर्थात जिसमें दोनों ही गुण हो मिलना कठिन हैं. क्योंकि प्रायः जो वचन हितकारी होता हैं वह वचन मन को प्रिय लगने वाला नहीं होता हैं.
तथा मन को प्रिय लगने वाला वचन ही हमेशा हितकारी नहीं होता हैं. इसलिए हितकारी वचन ही हमेशा ग्रहण करना चाहिए, मन को प्रिय लगे ऐसी अपेक्षा नहीं करनी चाहिए.
5. Sanskrit Proverbs: कीर्तिः यस्य सः जीवति
संस्कृत अर्थ– यः मनुष्यः उतमानि कार्याणि कृत्वा यशः अर्जितवान तस्य एव जीवनम् सार्थकम अस्ति. यस्य यशः नास्ति तथ्य जीवनम मृत्युसमः एव अस्ति. अतः सत्कार्यनी कुर्वन्तः वयं यशः अर्जेयम.
हिंदी अर्थ– जो मनुष्य श्रेष्ठ कार्यों को करके यश कमाता हैं उसी का जीवन सार्थक हैं. जिसका यश नहीं हैं, उसका जीवन मृत्यु के समान ही हैं. इसलिए हमें सत्कार्य करते हुए यश को ही अर्जित करना चाहिए.
6. Sanskrit Proverbs: सिंघाड़े शक्तिः कलौ युगे
संस्कृत अर्थ– इदं युगं कलियुगम अस्ति. अस्मिन कलियुगे सघटने एव शक्ति भवति. संघटिता जनाः सर्वे कार्य साधयन्ति, असंघटीता न. अतः वयं संघटिता: भवेम.
हिंदी अर्थ– यह युग कलियुग हैं. इस कलियुग में संगठन में ही शक्ति हैं. संगठित लोग सभी कार्य सिद्ध कर लेते हैं असंगठित नहीं. इसलिए हम सबको संगठित होना चाहिए.
7. Sanskrit Proverbs: संतोष परम् सुखम
संस्कृत भावार्थ– सर्वोत्तमं सुखं संतोष: एव अस्ति. एतत सुखं यस्य समीपे भवति स: सर्वदा सुखी भवति. अतः वयं संतुष्टा भवाम.
हिंदी भावार्थ– सबसे श्रेष्ठ सुख संतोष सुख ही हैं वह सुख जिसके पास होता हैं. वह हमेशा सुखी रहता हैं. असंतुष्ट व्यक्ति धन धान्य आदि से सम्पन्न होने पर भी दुखी रहता हैं. इसलिए हमारे पास जो कुछ भी हैं अथवा हमारे प्रयास करने से जो कुछ प्राप्त हुआ हैं. उसमें संतुष्ट रहना चाहिए.
8. Sanskrit Proverbs: शरीरमाध्यम खलु धर्मसाधनम्
संस्कृत भावार्थ– यदि वयं धर्मानुसरम आचरण कृत्वा पुण्यानि अर्ज्यितुम इच्छाम: तर्हि प्रथर्म शरीरस्य रक्षणं आवश्यकम. शरीरेण विना वयं धर्माचरणेन पुण्यार्जन कथं करिष्यामः
हिंदी भावार्थ– यदि हम धर्म के अनुसार आचरण करके पुण्य अर्जित करना चाहते हैं तो सबसे पहले हमे शरीर की रक्षा करनी चाहिए, क्योकि यदि हमारा शरीर स्वस्थ हैं तो हम सभी कार्य कर सकते हैं. शरीर के बिना हम धर्म का आचरण करके पुण्य अर्जित नहीं कर सकते हैं.
9. Sanskrit Proverbs: जलदुरूपयोग: महत्पापम
संस्कृत भावार्थ– जलस्य दुरुपयोगं कृत्वा तस्य नाशः जीवनस्य एव नाशः अस्ति, अतः एतत महदपापम एव अस्ति.
हिंदी भावार्थ– जल ही जीवन हैं जल का दुरूपयोग करके उसका नाश अर्थात जीवन का ही नाश करना हैं. इसलिए जल का दुरूपयोग करना महापाप ही हैं. हमें जल का संरक्षण करना चाहिए.
10. Sanskrit Proverbs: अमृतमेव गवां क्षीरम
संस्कृत भावार्थ– गवां दुग्धम अमृततुल्यं अस्ति, यतोहि अन्येषां प्राणिनां दुग्धस्य अपेक्षया बहुगुणयुक्तं स्वास्थ्यवर्धक च भवति.
हिंदी भावार्थ– गायों का दूध अमृत के समान हैं. क्योकि अन्य प्राणियों के दूध की अपेक्षा गाय का दूध बहुत से गुणों से युक्त और स्वास्थ्यवर्धक होता हैं.
11. Sanskrit Proverbs: उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्
संस्कृत भावार्थ– उदारचिंतनशीला: जना: समस्ता प्रथ्वी स्वकुटुम्ब समानाम एव चिन्तयतीती ते अन्येषु भेदं न गन्यान्ति
हिंदी भावार्थ– उदार चरित्र वाले लोग सम्पूर्ण पृथ्वी को अपने परिवार के समान मानते हैं. वे दूसरों में भेदभाव नहीं करते हैं. सभी को अपना मानकर सद्भावपूर्ण आचरण करते हैं.
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Sanskrit Mein Suktiyan: नमस्कार साथियों विलुप्त होती जा रही रही हमारी धरोहर संस्कृत की सूक्ति और उद्धरण आज के समय में बड़े महत्व के हैं.
हमने इस लेख के जरिये आपके साथ Sanskrit Ki Suktiyan का यह विस्तृत कलेक्शन तैयार किया हैं. हम उम्मीद करते हैं आपको उपर दी गई Top Ten Sanskrit Suktiyan भी पसंद आई होगी.
संस्कृत सूक्ति हिंदी अर्थ के साथ
1.उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथै:
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:
अर्थ: काम करने से ही कार्यों की सिद्धि होती हैं. केवल मनोरथ से नहीं, सोते हुए सिंह के मुख में कोई मृग प्रवेश नहीं करता हैं.
2. आलस्यं हि मनुष्याणा शरीरस्थो महान रिपु:
अर्थ: शरीर में स्थित आलस्य ही मनुष्यों का सबसे बड़ा शत्रु हैं.
3. गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति|
अर्थ: गुणों को जानने वालों के लिए ही गुण गुण होते हैं.
4. गुणा सर्वत्र पूज्यते|
अर्थ: गुणों की सभी जगह पूजा होती हैं.
5. साहित्य- संगीत- कलाविहीन:, साक्षातपशु: पुच्छविषाणहीन:
अर्थ: साहित्य, संगीत और कला से रहित व्यक्ति, पूंछ और सींगो से हीन साक्षात पशु होता हैं.
6. लुब्धस्य प्रणश्यति यश:
अर्थ: लोभी की कीर्ति नष्ट हो जाती हैं.
7. पुण्ये: यशो लभते
अर्थ: पुण्यों से ही यश की प्राप्ति होती हैं.
8. सन्त: समसज्जनदुर्जनानां वच: श्रुत्वा मधुरसूक्तरसं सर्जन्ति|
अर्थ: सज्जन और दुर्जनों की समयवाणी को सुनकर संत व्यक्ति मधुर सूक्तियों का सृजन करते हैं.
9. स्त्रियां रोचमानायां सर्वं तद रोचते कुलम|
अर्थ: स्त्री की सुन्दरता ही परिवार की सुन्दरता हैं.
10. शरीरमाद्यम खलु धर्मसाधनम|
अर्थ: शरीर धर्म का प्राथमिक साधन हैं.
11. न रत्नमन्विष्यति मृगयते हि तत्
अर्थ: रत्न ढूंढता नहीं खोजा जाता हैं.
12. प्रियेषु सौभाग्यफला हि चारुता
अर्थ: प्रिय व्यक्ति को सुंदर लगना सौभाग्य का फल हैं.
13. पुराणमित्येव न साधु सर्वम
अर्थ: कोई बात पुरानी मात्र होने से सही नहीं होती
14. रिक्त: सर्वों भवति हि लघु: पूर्णता गौरवाय
अर्थ: रिक्त व्यक्ति लघु होता हैं, पूर्णता गौरव के लिए होती हैं.
15. सत्येन धार्यते पृथ्वी सत्येन तपते रवि:
सत्येन वाति वायुश्च सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितं
अर्थ: सत्य से ही पृथ्वी धारण करती हैं, सत्य से ही सूर्य तपता हैं, सत्य से ही वायु बहती हैं, सब कुछ सत्य में ही प्रतिष्ठित हैं.
16. बहुरत्ना वसुंधरा
अर्थ: यह पृथ्वी अनेक रत्नों से युक्त हैं.
17. धनधान्यप्रयोगेषु विद्याया: संग्रहेषु च
आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्ज: सुखी भवेत्
अर्थ: धन धान्य के प्रयोग में विद्या के संग्रह में भोजन में तथा व्यवहार में लज्जा से दूर रहने वाला व्यक्ति हमेशा सुखी रहता हैं.
18. विभूषणं मौनमपंडितानाम
अर्थ: अपंडितों का चुप रहना ही आभूषण हैं.
19. मूर्खों हि शोभते तावद् यावत् किंचिन्न भाषते
अर्थ: मूर्ख तभी तक सुशोभित होता है, जब तक कि वह कुछ नहीं बोलता
20. शव: कार्यमद्य कुर्वीत पूर्वाह्ने चापराहिणकम
अर्थ: कल के कार्य को आज करे तथा शाम के कार्य को सुबह करें.
21. सत्यं बुर्यात प्रियं ब्रूयात, न ब्रूयात सत्यमप्रियम्
अर्थ: सत्य बोलना चाहिए, प्रिय बोलना चाहिए. कभी भी अप्रिय सत्य नहीं बोलना चाहिए.
22. मित्रेण कलहं कृत्वा न कदापि सुखी जन:
अर्थ: मित्र के साथ कलह करके कोई व्यक्ति कभी भी सुखी नहीं हो सकता.
23. अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्
अर्थ: यह मेरा हैं यह तुम्हारा हैं. ऐसा चिन्तन तो संकीर्ण बुद्धि वालों का हैं. उदार चरित वालों के लिए तो पूरी पृथ्वी ही परिवार की तरह हैं.
24. विद्याधनं सर्वधनप्रधानम
अर्थ: विद्याधन सभी धनों में श्रेष्ठ धन हैं.
25. विद्याविहीन: पशु:
अर्थ: विद्या से विहीन व्यक्ति पशु ही होता हैं.
26. वाग्भूषण भूषणम
अर्थ: वाणी का भूषण ही सबसे श्रेष्ठ भूषण हैं.
27. सत्यमेव जयते नानृतम
अर्थ: सत्य की ही जीत होती हैं, झूठ की नहीं.
28. न हि सत्यात् परो धर्म:
अर्थ: सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं हैं.
29. तस्मात् प्रियं हि वक्तव्यं वचने का दरिद्रता
अर्थ: हमेशा प्रिय ही बोलना चाहिए, बोलने में किस बात की गरीबी
30. नमन्ति फलिनो वृक्षा: नमन्ति गुणिनों: जना:
शुष्कवृक्षाश्च मुर्खाश्च न नमन्ति कदाचन |
अर्थ: फलों वाले वृक्ष ही झुकते हैं तथा गुणों से युक्त व्यक्ति ही झुकते हैं, सूखे पेड़ और मुर्ख व्यक्ति कभी नहीं झुकते.
31. अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलम ||
अर्थ: वृद्धों की नित्य सेवा करने वाले तथा उनका अभिवादन करने वाले के आयु, विद्या, यश और बल ये चारों बढ़ते हैं.
32. काव्यशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमताम
व्यसनेन च मूर्खाणा निद्रया कलहेन वा
अर्थ: बुद्धिमान लोगों का समय काव्यशास्त्र की बातों में गुजरता हैं. जबकि मुर्ख व्यक्तियों का समय व्यसन, निद्रा या कलह में गुजरता हैं.
33. आत्मदुर्व्यवहारस्य फलं भवति दुःखदम
तस्मात् सदव्यवहर्तव्य मानवेन सुखैषीणा
अर्थ: अपने दुर्व्यवहार का फल भी दुखदायी होता हैं. अतः सुख प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को हमेशा अच्छा व्यवहार करना चाहिए.
34. व्यवहारेण मित्राणि जायन्ते रिपवस्तथा
अर्थ: व्यवहार से ही मित्र और शत्रु बनते हैं.
35. स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते
अर्थ: राजा अपने देश में ही पूजा जाता हैं, जबकि विद्वान् सभी जगह पूजा जाता हैं.
36. हस्तस्य भूषणम् दानं सत्यं कण्ठस्य भूषणम्
श्रोत्रस्य भूषणम् शास्त्रं भूषणै; कि प्रयोजनम्
अर्थ: हाथ का आभूषण दान हैं, कंठ का आभूषण सत्य बोलना हैं तथा कानों का आभूषण शास्त्र हैं, अन्य आभूषणों से क्या?
37. सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद दुःखभाग्भवेत
अर्थ: सभी सुखी होवें, सभी निरोगी होवें तथा सभी का कल्याण हो, किसी को भी दुःख की प्राप्ति नहीं हो.
38. वृतं यत्नेन संरक्षेद वितमेति च याति च
अक्षीणो वित्त: क्षीणों वृत्ततस्तु हतोहत: ||
अर्थ: प्रयास करके अपने आचरण की रक्षा करनी चाहिए. धन तो आता हैं एवं चला जाता है. धन चले जाने पर तो कुछ भी नष्ट नहीं होता. आचरण से हीन व्यक्ति वास्तव में मर ही जाता हैं.
39. आत्मन: प्रतिकूलानि परेषा न समाचरेत्
अर्थ: स्वयं के प्रतिकूल कभी दूसरों के साथ आचरित न करें.
40. परोपकाराय सतां विभूतय:
अर्थ: सज्जन परोपकार के लिए ही होते हैं.
41. परोपकार: पुण्याय पापाय परपीड़नम
अर्थ: परोपकार पुण्य तथा परपीड़न पाप देने वाला होता हैं.
42. गुणेष्वेव हि कर्तव्यं प्रयत्न: पुरुषै: सदा
अर्थ: मनुष्य को हमेशा गुणों में ही प्रयत्न करना चाहिए.
43. संसर्गजा: दोषगुणा: भवन्ति
अर्थ: संसर्ग से ही दोष और गुण उत्पन्न होते हैं.
44. क्रोधो हि शत्रु: प्रथमो नराणाम
अर्थ: मनुष्यों का प्रथम शत्रु क्रोध ही हैं.
45. संपतौ च विपतौ च महतामेकरूपता
अर्थ: बड़े लोग सम्पति और विपत्ति दोनों में समान रहते हैं.
46. अर्धो घटो घोषमुपैति नूनम्
अर्थ: आधा घड़ा आवाज करता हैं.
47. अहिंसा परमो धर्म:
अर्थ: अहिंसा सबसे श्रेष्ठ धर्म हैं.
48. आज्ञा गुरूणाम अविचारणीया
अर्थ: गुरुजनों की आज्ञा बिना विचारे मान लेनी चाहिए.
49. ज्ञानं भार: क्रियां विना
अर्थ: क्रिया के बिना ज्ञान भारस्वरूप हैं.
50. बुद्धिर्यस्य बलं तस्य, निर्बुद्धेस्तु कुतो बलम
अर्थ: जिसके पास बुद्धि हैं, उसके के पास बल हैं. बुद्धिहीन के लिए तो कोई बल नहीं.
51. संघे शक्ति: कलौ युगे
अर्थ: कलियुग में संघ में ही शक्ति हैं.
52. महाजनो येन गत: स पन्था:
अर्थ: जिस मार्ग से बड़े लोग चले, वो ही अच्छा मार्ग हैं.
53. सर्वे गुणा: कांचनमाश्रयन्ति
अर्थ: सारे गुण धन को आश्रित करके ही होते हैं.
54. जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसि
अर्थ: माता और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं.
55. धर्मो रक्षति रक्षित:
अर्थ: बचाया हुआ धर्म ही रक्षा करता हैं.
56. यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता:
अर्थ: जहाँ नारियो की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं.
57. पयः पानं भुजंगाना केवलं विषवर्धनम
अर्थ: सापों को दूध पिलाना, जहर बढ़ाना ही हैं.
58. छिद्रेष्वनर्था: बहुली भवन्ति
अर्थ: छेदों में अनेक अनर्थ होते हैं.
59. हितं मनोहारि च दुर्लभं वच:
अर्थ: हितकारी एवं मनोहारी वचन काफी दुर्लभ हैं.
60. न निश्चितार्थद विरमन्ति धीरा:
अर्थ: धैर्यशील व्यक्ति अपने प्रयोजन से दूर नहीं होते
61. कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति
अर्थ: कुपुत्र हो सकता हैं, लेकिन कुमाता कहीं पर भी नहीं होती
62. क्षीणा नरा निष्करुणा भवन्ति
अर्थ: कमजोर व्यक्ति ही दयाहीन होते हैं.
63. दुर्बलस्य बलं राजा
अर्थ: दुर्बल का बल राजा होता हैं.
64. न हि ज्ञानेन सद्रश पवित्रमिह वर्तते
अर्थ: इस संसार में ज्ञान से ज्यादा पवित्र कुछ नहीं हैं.
65. सत्संगति: हि कथय किम न करोति पुंसाम
अर्थ: सत्संगति से मनुष्यों का क्या काम नहीं हो सकता.
Top 100+ One Liner Sanskrit Proverbs Shlokas With Hindi Meaning
हेलो साथियों देवभाषा संस्कृत के प्रति आपकी जिज्ञासा को हमारा नमन्. आज हम संस्कृत सूक्तय (सूक्ति) का विस्तृत भंडार लेकर आए हैं.
इससे पूर्व इन्टरनेट पर इस तरह की सूक्तियां किसी के द्वारा प्रकाशित नहीं की गई हैं. हम अपने पाठकों के ज्ञान वर्धन के लिए विभिन्न स्रोतों से इन सूक्तियों का भंडार तैयार किया हैं, हमें आशा हैं आपकों ये आर्टिकल बहुत पसंद आएगा.
महत्वपूर्ण अनमोल संस्कृत भाषा में सुविचार तथा वेदों की सूक्तियाँ संग्रह सुधा हिंदी सूक्ति वाक्य Sukti in Sanskrit
66. अकुलीनोअपि शास्त्रज्ञो दैवतेरपि पूज्यते (हितोपदेश)
अर्थ: नीच कुल वाला भी शास्त्र जानता हो तो देवताओं द्वारा भी पूजा जाता हैं.
67. अक्षरशून्यो हि अन्धो भवति (ज्ञान/विद्या पर सूक्ति)
अर्थ: निरक्षर (मूर्ख) अँधा होता हैं.
68. अगाधजलसंचारी रोहित: नैव गर्वित:
अर्थ: अगाध जल में तैरने वाली रोहू मछली घमंड नहीं करती
69. अंगार: शतधौतेन मलिंत्व न मुन्चति
अर्थ: कोयला सैंकड़ों बार धोने पर भी मलिनता नहीं छोड़ता.
70. अंगीकृत सुकृतिन: परिपालयन्ति
अर्थ: पुण्यात्मा जिस बात को स्वीकार करते है, उसे निभाते हैं.
71. अजीर्ण हि अमृतं वारि, जीर्ण वारि बलप्रदम
अर्थ: अजीर्ण में जल अमृत के समान होता हैं और भोजन के पचने पर बल देता हैं.
72. अज्ञता कस्य नामेह नोपहासायजायते
अर्थ: मुर्खता पर किसे हंसी नहीं आती
73. अज्ञातकुलशीलस्य वासो न देय:
अर्थ: जिस का कुल और शील मालूम नहीं हो उसके घर नहीं टिकना चाहिए.
74. अनभ्यासे विषं शास्त्रम्
अर्थ: अभ्यास न करने पर शास्त्र विष के तुल्य हैं.
75. अभ्याससारिणी विद्या
अर्थ: विद्या अभ्यास से आती हैं.
76. अर्द्धों घटो घोषमुपैति नूनम्
अर्थ: घडा आधा भरा हो तो अवश्य छलकता हैं.
77. अल्पानामपि वस्तूनां संहति: कार्यसाधिका
अर्थ: छोटे लोगों का एकजुट होना भी काम साध लेता हैं.
78. अविद्याजीवनं शून्यम्
अर्थ: बिना विद्या के जीवन शून्य हैं.
79. असाधुं साधुना जयेत्
अर्थ: असाधु को साधुता दिखलाकर अपने वंश में करें, दुष्ट को सज्जनता से जीते
80. आत्मवत् सर्वभूतेषु य: पश्यति स: पण्डितः
अर्थ: जो अपनी तरह सब प्राणियों में देखता है, वही पंडिता हैं.
81. आत्मन: प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्
अर्थ: जो अपने प्रतिकूल हो, वैसा आचरण दूसरों के प्रति न करें.
82. आहारो हि मनुष्याणां जन्मना सह जायते
अर्थ: आहार मनुष्यों के जन्म के साथ ही पैदा हो जाता हैं.
83. एको हि दोषों गुणसन्निपाते निमज्जतीदो: किरणेष्विवाक:
अर्थ: गुणों के समूह में एक दोष उसी प्रकार छिप जाता है जैसे चन्द्रमा की किरणों में उसका कलंक
84. कर्मणो गहना गति:
अर्थ: काम की गति कठिन हैं.
85. कलौ वेदान्तिनो भांति फाल्गुने बालका: इव
अर्थ: फाल्गुन में बालको के समान कलि युग में वेदांती सुशोभित होते हैं.
86. कष्टाद्पि कष्टतरं परगृहवास: परानं च
अर्थ: कष्ट से भी बड़ा कष्ट दुसरे के घर में निवास करने एवं दूसरे का अन्न खाना हैं.
87. कालस्य कुटिला गति:
अर्थ: काल की गति टेडी होती हैं.
88. कालो न यातो वयमेव याता: (समय पर सूक्ति)
अर्थ: समय नहीं बीता, हम ही बीत गये
89. कुरूपता शीलतया विराजते कुवस्त्रता शुभ्रतया विराजते
अर्थ: कुरूपता सदाचरण से सुशोभित होती हैं, फटा वस्त्र उज्ज्वलता से सुंदर लगता हैं.
90. कोअतिभार: समर्थानाम
अर्थ: समर्थ जनों के लिए क्या अधिक भार हैं.
91. क्रोध: पापस्य कारणम्
अर्थ: क्रोध पाप का कारण होता हैं.
92. क्षमा तुल्यं तपो नास्ति
अर्थ: क्षमा के बराबर तप नहीं हैं.
93. क्षारं पिबति पयोधेर्वर्षत्यम्भोधरो मधुरम्बु:
अर्थ: बादल समुद्र का खारा पानी पीते हैं पर मीठा पानी बरसाते हैं.
94. गतानुगतिको लोको न लोक: पारमार्थिक:
अर्थ: लोग अंधपरम्परा पर चलने वाले होते हैं असलियत पर नहीं जाते
95. गतेअपि वयसे ग्राहा विद्या सर्वात्मना बुधै:
अर्थ: बूढा हो जाने पर भी विद्या सब भांति उपार्जना करता रहे.
96. गुणा: पूजास्थानं गुणिषु न च लिंग न च वयः
अर्थ: गुणियों में गुण ही पूजा का कारण है न कि लिंग या आयु
97. घृतकुम्भ समा नारी तप्तांगारसम: पुमान्
अर्थ: स्त्री घी के घड़े के समान है और पुरुष तपे अंगार के समान
98. चक्रवत परिवर्तन्ते दुखानि च सुखानि च
अर्थ: सुख और दुःख चक्र के समान परिवर्तनशील हैं.
99. चौराणामनृतं बलम
अर्थ: चौरों के लिए झूठ ही बल हैं.
100. चौरे गते न किंमु सावधानम?
अर्थ: चोर जब चोरी कर चले गये तो फिर सावधानी से क्या?
101. जपतो नास्ति पातकम
अर्थ: जप करते हुए को पाप नहीं लगता.
102. जातस्य हि धुर्वो मृत्यु:
अर्थ: जो पैदा हुआ हैं अवश्य मरेगा
103. जमाता दसवां ग्रह:
अर्थ: दामाद दसवां ग्रह हैं.
104. जीवो जीवस्य भोजनम्
अर्थ: जीव, जीव का भोजन हैं.
105. ज्ञानेन हीना: पशुभि: समाना:
अर्थ: ज्ञान से रहित पशुओं के समान हैं.
106. झटिति पराशयवेदिनो हि विज्ञा:
अर्थ: विज्ञ जन जल्दी ही दूसरे का आशय जान लेते हैं.
107. तथा चतुर्भि: पुरुष: परीक्ष्यते श्रुतेन शीलेन कुलेन कर्मणा
अर्थ: आदमी चार बातों से परखा जाता हैं विद्या, शील, कुल और काम से
108. तस्करस्य कुतो धर्म:
अर्थ: चोर का धर्म क्या?
109. तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णा:
अर्थ: तृष्णा बूढी नहीं होती, हम ही बूढ़े होते हैं.
110. त्यजेत क्रोधमुखी भार्याम
अर्थ: क्रोधी पत्नी का त्याग करना चाहिए.
111. दंतभंगो हि नागानां श्लाघ्यो गिरिविदारणे
अर्थ: पहाड़ के तोड़ने में हाथी के दांत का टूट जाना भी तारीफ़ की बात हैं.
112. दरिद्रता धीरतया विराज्रते
अर्थ: दरिद्रता धीरता से शोभित होती हैं.
113. दुष्टजनं दूरतः प्रणमेत
अर्थ: दुष्ट आदमी को दूर से ही प्रणाम करना चाहिए.
114. दैवस्य विचित्रा गति:
अर्थ: भाग की गति विचित्र हैं.
115. धिक् कलत्रम अपुत्रकम
अर्थ: ऐसी भार्या किस काम की जो बाँझ हो.
116. न कूपखननं युक्तं प्रदीप्ते वाहीना गृहे
अर्थ: घर में जब आग लग गई तब कुआ खोदना कैसा?
117.न स क्रोधसमो रिपु:
अर्थ: क्रोध के समान शत्रु नहीं हैं.
118. न च धर्मों दयापर
अर्थ: दया से बढ़कर धर्म नहीं.
119. न च विद्यासमो बन्धु:
अर्थ: विद्या के समान बन्धु नहीं.
120. न च ज्ञानात परं चक्षु:
अर्थ: ज्ञान से बढ़कर कोई नेत्र नहीं हैं.
121. न ज्ञानेन विना मोक्षं
अर्थ: ज्ञान के बिना मोक्ष नहीं
122. न धर्मात परं मित्रम्
अर्थ: धर्म के समान मित्र नहीं
123. न भूतो न भविष्यति
अर्थ: न हुआ न होगा.
124. नराणाम नापितो धूर्त:
अर्थ: मनुष्यों में नाई धूर्त होता हैं.
125. न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धा:
अर्थ: वह सभी नहीं जहाँ वृद्धजन न हो
126. नहि दुष्करमस्तीहं किंचिदध्यवसार्यिनाम
अर्थ: प्रयत्न करने वाले के लिए कोई बात दुष्कर नहीं हैं.
127. नास्तिको धर्मनिंदक:
अर्थ: धर्म की निंदा करने वाला नास्तिक होता हैं.
128. नास्तिको वेदनिंदक
अर्थ: वेदों की निंदा करने वाला नास्तिक हैं.
129. नीचैर्गच्छतयुपरि च दशा चक्रनेमिक्रमेण
अर्थ: मनुष्य के जीवन की दशा वैसी ही ऊँची नीची हुआ करती है जैसा रथ का पहिया कभी ऊँचा कभी नीचा होता रहता हैं.
130. परदु: खेनापि दुखिता: विरला:
अर्थ: जो दूसरे के दुःख से दुखी होते है ऐसे विरले ही होते हैं.
131. परोपकाराय सतां विभूतय:
अर्थ: सज्जनों की सम्पति परोपकार के लिए हैं.
132. परोपकारार्थमिदं शरीरम
अर्थ: यह शरीर दूसरे के उपकार के लिए हैं.
133. पात्रत्वात धनमाप्नोति
अर्थ: योग्यता से ही धन की प्राप्ति होती हैं.
134. पुत्रोत्सवे माद्यति को न हर्षात
अर्थ: पुत्र के जन्मोत्सव में कौन आनन्द में मतवाला नहीं होता.
135. प्रतिभातश्च पश्यन्ति सर्वं प्रज्ञावंत: धिया
अर्थ: बुद्धिमान अपनी सूक्ष्मबुद्धि के बल से सब बाते देख लेते हैं.
136. प्रमाणम परमं श्रुति:
अर्थ: वेद सबसे बढकर प्रमाण हैं.
137. प्राणव्ययेनापि कृतोपकारा: खला: परं वैरमिवोद्वहन्ति
अर्थ: खल के साथ कितना भी उपकार करो यहाँ तक कि उसके लिए अपना प्राण तक दे डालो तब भी वैर ही करेगा.
138. प्राणेभ्योपि हि वीराणां प्रिया शत्रुप्रतिक्रिया
अर्थ: वीरों को प्रण से अधिक प्यार शत्रु से बदला चुकाना हैं.
139. प्राप्ते तु षोडशे वर्षे गर्द्भ्यूप्यप्सरायते
अर्थ: 16 वर्ष के होने पर तो गधी भी अपने आप को अप्सरा समझती हैं.
140. प्राप्तकालो न जीवति
अर्थ: जिसका समय आ पंहुचा है वह नहीं जीता
141. प्रायो गच्छति यत्र भाग्यरहितस्तत्रैव यान्त्यापद:
अर्थ: बहुधा भाग्यहीन जहाँ आते हैं, विपत्तियाँ भी वहां आ जाती हैं.
142. फलं भाग्यानुसारत:
अर्थ: फल भाग्य के अनुसार मिलता हैं.
143. बलं मूर्खस्य मौनत्वम
अर्थ: चुप रहना मुर्ख के लिए बल हैं.
144. बुद्धि: कर्मानुसारिणी
अर्थ: बुद्धि कर्म के अनुसार होती हैं जैसा कर्म करोगे वैसी ही बुद्धि होगी.
145. बुभुक्षित: किम न करोति पापम
अर्थ: भूखा मरता हुआ कौन सा पाप नहीं करता
146. भवितव्यता बलवती
अर्थ: होनहार बलवान हैं.
147. भार्यामित्रं गृहेषु च
अर्थ: घर में मित्र भार्या होती हैं.
148. भुजंग एव जानाति भुजंग चरणौ सखे
अर्थ: सांप के पाँव को सांप ही जानता हैं.
149. मद्यपा: किं न जल्पन्ति
अर्थ: शराबी क्या नहीं बकते
150. मधुरापि हि मुर्छ्यते विषवृक्षसमाश्रिता वल्ली
अर्थ: विष के पेड़ पर चढ़ी लता भी मूर्छित करने वाली हो जाती हैं.
151. मनस्वी कार्यार्थी न गण्यति दुःख न सुखम
अर्थ: मनस्वी और जो अपना काम साधना चाहते है वे दुःख सुख को कुछ नहीं गिनते
152. मनोअनुवृत्ति प्रभो: कुर्यात्
अर्थ: मालिक के मन के अनुसार चले