Sant Lal das Ji Biography In Hindi: संत लालदास जी का जीवन परिचय, राजस्थान के प्रमुख संत और सम्प्रदाय में Sant Lal das Ji और उनके लालदासी सम्प्रदाय का नाम प्रमुखता से लिया जाता हैं.
इस सम्प्रदाय के प्रवर्तक लालदास का जन्म 1540 ई में अलवर जिले के धौलीदूब गाँव में हुआ था. इनके पिता का नाम चांदमल और माता का नाम समदा था ये जाति से मेव थे, और निर्धन जाति में जन्म लेने के कारण इनका बचपन लकड़ियाँ बेचते हुए बीता.
संत लालदास जी का जीवन परिचय | Sant Lal das Ji Biography In Hindi
पूरा नाम | लालदास |
जन्म स्थान | मेवात (अलवर) के धोलीदूब गांव में |
जन्म दिनांक | 1504 श्रावन कृष्ण पंचमी |
पिता | चांदमल |
गुरु | फकीर गदन चिशती |
जाति | मेव |
पंथ | लालदासी सम्प्रदाय |
प्रमुख ग्रंथ | लाल दास को चेतावनी |
निधन | 1648 में 108 की आयु में |
समाधि स्थल | शेरपुर |
मेला | अश्विन एकादशी व माघ पूर्णिमा |
आरंभिक जीवन
लोकसंत लालदास जी का जन्म 1540 ई में अलवर जिले के धौलीदूब में हुआ था. इनके बारे में अधिकतर विवरण उनके शिष्य भक्त डूगरसी के लिखे काव्य से मिलता हैं. इनके जन्म के प्रमाण के विषय में भक्त डूंगरसी ने इस प्रकार लिखा हैं.
भरत खण्ड तहँ उत्तम ठाँव , धोलीदूब नाना को गाँव।।
संवत पन्द्रह सौ सत्तानवे , लाल लियो अवतार।। 1
इनकी माता का नाम समदा और पिता का नाम चाँदमल बताया जाता हैं. यह भी मान्यता है कि लालदास जी ने अपने जन्म के समय ही माँ समदा से बाते करनी शुरू कर दी थी, उनके इस व्यवहार को देखकर ही एक अवतार पुरुष के रूप में इन्हें देखा जाने लगा.
मेव जाति में जन्मे लालदास जी का परिवार बेहद गरीब थे, आजीविका निर्वहन के लिए अलवर शहर में लकड़ियाँ बेचकर गुजारा करना पड़ता था.
व्यक्तिगत जीवन
संत लालदास जी विवाहित और गृहस्थ संत थे, इनकी पत्नी का नाम भोगरी था. लोग इन्हें माई भोगरी के नाम से बुलाते थे. इनके एक बेटा पहाड़ा और बेटी सरुपा होने का उल्लेख भी मिलता हैं. कालान्तर में ये दोनों संताने ईश्वर भक्ति की राह पर चलने लगी.
लालदास जी का जीवन कई मायनों में संत कबीर की तरह स्पष्टवादी और फक्कड़ जीवन था. इन्होने पैदल भारत भ्रमण किया और इसी यात्रा के दौरान 1705 में इनका देहावसान हो गया. भरतपुर के नंगला गाँव में बनी इसकी समाधि लालदासी मत के अनुयायियों के लिए पवित्र स्थान माना जाता हैं.
संत के रूप में लालदास जी
ये मुगल सम्राट अकबर और दादू के समकालीन थे. इन्हें तिजारा के मुस्लिम फकीर गदन चिश्ती ने दीक्षा दी. ये मुस्लिम होते हुए भी मुस्लिम धार्मिक पद्धतियों को नहीं मानते थे.
फलतः इन पर काफिरत्व के आरोप लगाए गये. और शासन द्वारा इन्हें उत्पीडित किया गया. जिससे उन्हें एक से दूसरे स्थान पर जाना पड़ा.
संत लालदास जी ने हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों की अच्छाइयों को अपनाकर लोगो को उपदेश दिए. इनका मानना था कि ईश्वर व अल्लाह एक है.
जो दूसरों को कष्ट पहुचाता है, स्वयं उसका जीवन कष्टमय हो जाता है. लालदास जी गृहस्थ संत थे. इनकी पत्नी का नाम मोगरी था. जिससे दो पुत्र और एक पुत्री प्राप्त हुए.
इन्होने अपने जीवन के अंतिम दिन नंगला गाँव में बिताएं, जो वर्तमान में भरतपुर जिले में हैं. रामगढ़ के पास शेरपुर गाँव में इन्हें समाधि दी गई. मेव मुसलमान लालदास जी को पीर मानते है.
इनके समाधि स्थल पर आश्विन मास की एकादशी व माघ पूर्णिमा को मेला भरता हैं. लाल दास ने आदर्श साधु उसे कहा है जो स्वयं अपनी जीविका चलाए, दूसरों पर आश्रित न रहे.
लालजी साधु ऐसा चाहिए, धन कमाकर खाय
हिरदे हर की चाकरी, पर घर कभू न जाय
लालदासी सम्प्रदाय
संत लालदास ने भी कबीर, दादू जैसे निर्गुण संतों के समान एक निराकार, सर्वव्यापक, सत्य स्वरूप राम की अनन्य भक्ति करने, सत्य का आचरण करने तथा सरल एवं पवित्र जीवन जीने पर जोर दिया. लाल दास के अनुयायी रीती रिवाज, रहन सहन और आचार विचार से हिन्दुओं के अधिक निकट हैं.
ये राम नाम के जप तथा कीर्तन को अधिक प्राथमिकता देते हैं. ये अपने ब्रह्मा को राम कहते हैं. लालदासी सम्प्रदाय के अनुयायी मेव जाति की कन्या के साथ ही विवाह करते है.
इस सम्प्रदाय की दीक्षा लेने वाला व्यक्ति निरंकारी होना चाहिए, उसे सम्पति से मोह नहीं होना चाहिए. लालदासी सम्प्रदाय में दीक्षा लेने वाले को गधे पर काला मुहं करके उल्टा बिठाया जाता हैं. उसकी पीठ पर तुम्बी बाँध दी जाती हैं.
ताकि वह हिल डुल न सके. इसके बाद उसे गाँव की गलियों में घुमाया जाता हैं. ताकि उसमें लेशमात्र भी अभिमान का भाव न हो. इसके बाद उसे मीठी वाणी बोलने के लिए शरबत पिलाया जाता हैं. लालदास की चेतावनियाँ इनका मुख्य काव्य ग्रंथ हैं.