संत रामानंद जी का इतिहास जीवन परिचय Sant Ramanand Ji Biography History In Hindi रामानन्दाचार्य भक्ति आंदोलन के क्षेत्र में उत्तर एवं दक्षिण भारत के बिच में एक एक कड़ी तथा सेतु के समान थे.
ये उत्तरी भारत के भक्ति आंदोलन के प्रवर्तक माने जाते हैं. इन्होने भक्ति के द्वारा जन जन को नया मार्ग दिखाया.
रामानंद जी का इतिहास Sant Ramanand History In Hindi
जन्म | 1299 ई. में |
जन्म स्थान | प्रयागराज |
पिता का नाम | पुण्य सदन शर्मा |
माता का नाम | सुशीला देवी |
मृत्यु | 1411ई. |
गुरु | राघवानंदन |
संप्रदाय | रामावत संप्रदाय (रामानंदी संप्रदाय )व श्री संप्रदाय |
कार्य क्षेत्र | बनारस |
आराध्य | राम |
योगदान | कुरीतियों को दूर करना जाति-पाति छुआछूत ऊंच-नीच |
प्रसिद्ध शिष्य | रैदास, कबीर |
प्रारंभिक शिक्षा | काशी श्रीमठ |
कृत ग्रंथ | श्री वैष्णवमताब्ज ओर श्रीरामार्चन पद्धति |
संप्रदाय की प्रवति | सगुण व निर्गुण भक्ति |
संत रामानंद जी ने एकेश्वरवाद पर जोर देकर राम की भक्ति पर बल दिया. जाति भेद का विरोध करते हुए सामाजिक समानता पर बल दिया. रामानन्द जी ने संस्कृत की बजाय बोलचाल की भाषा में उपदेश दिए, जिससे जन साहित्य का विकास हुआ.
रामानंद के शिष्यों में सभी जातियों के लोग थे, जिनमें रैदास. बीर, धन्ना तथा पीपा आदि प्रमुख थे. संत रामानंद जी का इतिहास व जीवन परिचय में एक नजर इस महान समाज सुधारक की जीवनी पर.
आरंभिक जीवन
स्वामी रामानंद जी को एक अन्य नाम स्वामी रामानन्दाचार्य के रूप में भी जाना जाता हैं. इनके जन्म वर्ष तथा जन्म स्थान के बारे में कोई प्रमाणिक जानकारी नही मिलती हैं. माना जाता हैं कि 1236 के आस-पास इनका जन्म हुआ था. इनके पिता का नाम पुण्यसदन तथा माँ का नाम सुशीला देवी था.
शुरूआती काल में हीं उन्होंने कई प्रकार के अलौकिक चमत्कार दर्शाने शुरू किए. बचपन से ही आध्यात्म विचारों वाले उनके माता-पिता ने बालक रामानंद जी को विधिवत शिक्षा पाने के लिए काशी के स्वामी राधवानंद की श्रीमठ भेज दिया.
इसी मठ में शिक्षा प्राप्त करते हुए उन्होंने वेद, पुराणों और अन्य धर्मग्रंथों का सूक्ष्मता से अध्ययन किया तथा प्रकाण्ड विद्वान बन गए. पंच गंगा घाट के निकट स्थित श्रीमठ में रहने के दौरान ही रामानन्दाचार्य ने कठोर तपस्या की.
उनके जन्म अवधि को लेकर तरह तरह की मान्यताएं प्रचलित है मगर अधिकतर विद्वानों का मानना हैं कि इनका जन्म 1300 ईस्वी के आस पास हुआ था.
राम की सगुण भक्ति को समाज के सभी वर्गों तक पहुचाने का कार्य संत रामानंद जी द्वारा किया गया. इनके बारे में एक सूक्ति द्वविड़ भक्ति उपजौ-लायो रामानंद प्रचलित हैं.
जिसका अर्थ हैं उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन को फैलाने का श्रेय संत रामानंद जी को ही जाता हैं. इन्होने उस समय समाज में प्रचलित रुढियों, अंधविश्वासों तथा कुप्रथाओं का विरोध कर समाज में समानता स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया.
संत रामानंद जी की देन
- इन्होने ग्याहरवी बाहरवी सदी के दौरान अपने विचारों एवं कार्यों से एक नवीन युग की अवधारणा रखी, इन्होने ज्ञान मार्ग की अपेक्षा ईश्वरीय कृपा को मोक्ष के अधिक आवश्यक माना.
- रामानंद जी ने ईश्वर को सगुण मानते हुए भक्ति मार्ग पर बल दिया तथा भक्ति को सभी के लिए उपलब्ध करवाया.
- इनके शिष्यों में सभी जातियों के लोग थे. इन्होने भक्ति पर को वैदिक परम्परा से जोड़ा तथा भक्ति पर आधारित जन आंदोलन तथा वेद आधारित उच्च जातीय आंदोलन के बिच सेतु का काम किया.
- इन्होने विशिष्टाद्वैत दर्शन का प्रतिपादन कर शंकराचार्य के अद्वैतवाद का खंडन किया. रामानंद के अनुसार ईश्वर जीव तथा जगत तीनों सत्य हैं तथा तीनों में विशिष्ट संबंध हैं.
स्वामी रामानंद की शिष्य परंपरा
इनका जन्म इलाहबाद के ब्राह्मण परिवार में हुआ था. रामानंद जी के गुरु का नाम राधवानन्द बताया जाता हैं, उन्ही की श्रीमठ में स्वामी जी ने शिक्षा प्राप्त की थी. कठोर तपस्या तथा विभिन्न धार्मिक ग्रंथों के गहन अध्ययन से प्रसिद्ध विद्वान बने.
सगुण तथा निर्गुण दोनों भक्ति धारा इनकी छत्र छाया में पनपी इनके 12 शिष्य हुए, जो निम्न हैं अनंतानंद, भावानंद, पीपा, सेन, धन्ना, नाभा दास, नरहर्यानंद, सुखानंद, कबीर, रैदास, सुरसरी, पदमावती.
इनके द्वारा स्थापित रामानंद सम्प्रदाय या रामावत संप्रदाय भारत के सबसे बड़े वैष्णवी मत के रूप में जाना जाता हैं, जिनकी वर्तमान में 36 उपशाखाएँ हैं. इस मत के भक्त संत, संत बैरागी के नाम से जाने जाते हैं.
इनकी मुख्य मठ, श्रीमठ ही हैं इसके अतिरिक्त अन्य मठे वाराणसी, हरिद्वार, अयोध्या सहित सम्पूर्ण भारत में फैली हुई हैं. लगभग 112 वर्ष की आयु में वर्ष 1411 ई. में रामानन्द का निधन हो गया.
भक्ति-यात्रा
संत रामानंद ने भक्ति मार्ग को जन जन तक पहुचाने के लिए भारत भर की यात्राएं की. वे उड़ीसा के पुरी और दक्षिण के कई धर्म स्थानों तक भी गये एवं रामभक्ति का प्रचार- प्रचार किया।
पूर्व में इन्हें स्वामी रामानुज का शिष्य माना जाता था मगर श्री सम्प्रदाय का आचार्य होने के उपरांत इन्होने अपनी भक्ति यात्रा की पद्धति में राम और सीता को अहम स्थान दिया,
सीताराम को ही अपना आराध्य बनाया. रामभक्ति की भक्ति धारा को हिमालय के तपो स्थल से उतारकर संत रामानंद ने गरीब और वंचित के द्वार तक पहुंचाया, यह भक्ति धारा के ऐसे सोपान थे जिनमें भक्ति और साधना को नया आयाम प्रदान किया गया.
रामानन्द जी की पवित्र चरण पादुकाए आज काशी स्थित श्रीमठ में रखी हुई हैं, जो रामानंद सम्प्रदाय में आस्था रखने वालों की श्रद्धा का केन्द्र है. इन्होंने जन जन तक भक्ति संदेश को पहुचाने के लिए संस्कृत के साथ पर स्थानीय भाषाओं को वरीयता दी.
संत रामानंद की रचनाएं
इनके द्वारा रचित पुस्तकों की संख्या आठ बताई जाती हैं, जिनमें 6 किताबे हिंदी भाषा में तथा 2 संस्कृत में लिखी गई थी. जगदगुरु रामानन्दाचार्य ने आनन्दभाष्य नाम से प्रस्थानत्रयी पर एक सुंदर भाष्य भी लिखा हैं.
पुस्तक नाम | भाषा |
वैष्णवमताब्ज भास्कर: | संस्कृत |
श्रीरामार्चनपद्धतिः | संस्कृत |
रामरक्षास्तोत्र | हिंदी |
सिद्धान्तपटल | हिंदी |
ज्ञानलीला | हिंदी |
ज्ञानतिलक | हिंदी |
योगचिन्तामणि | हिंदी |
सतनामी पन्थ | हिंदी |
संत रामानंद जी की मृत्यु
रामानन्द जी के जन्म दिवस के अनुसार मृत्यु की तिथि के बारे में भी कोई स्पष्ट विवरण प्राप्त नहीं होता हैं, इस कारण अलग अलग स्रोतों पर अलग तिथि देखने में आती हैं. अगत्स्य संहिता में इनकी मृत्यु का वर्ष 1410 ई बताया गया हैं.
अगर 1299 अथवा 1300 ई में इनके जन्म के मत को मान लिया जाए तो यह तिथि काफी नजदीक मालूम पडती हैं. इस तिथि के अनुसार स्वामी जी ने 111 वर्ष का जीवन जिया.
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