संतोष यादव की जीवनी Santosh Yadav Biography In Hindi

संतोष यादव की जीवनी Santosh Yadav Biography In Hindi: माउंट एवरेस्ट दुनियां का सबसे ऊँचा स्थान हैं, जहाँ की दुर्गम चढ़ाई के बारे में सोचकर भी डर लगता हैं.

क्योंकि एवरेस्ट पर चढ़ना खतरों से खाली नहीं होता हैं. जहाँ जान जोखिम में डालकर कदम कदम चलना पड़ता हैं.

ऐसे मुकाम तक अब तक दुनियां के तकरीबन 2 हजार 3 सौ लोग इस पर्वत शिखर में जा चुके है जिनमे से 250 से अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी.

भारत की कई महिलाएं एवरेस्ट की चढ़ाई कर चुकी हैं. जिनमे बछेंद्री पाल, मालावत पूर्णा तथा अनुपुर्णा सिन्हा तथा संतोष यादव का नाम प्रमुखता से लिया जाता हैं.

Santosh Yadav Biography In Hindi | संतोष यादव की जीवनी

संतोष यादव की जीवनी Santosh Yadav Biography In Hindi

जन्म परिचय


दो बार विश्व की सबसे ऊँची चोटी की चढ़ाई करने वाली संतोष यादव का जन्म 1969 में हरियाणा के एक गाँव जोनियावास में हुआ, जो रेवाड़ी जिले का एक छोटा सा गाँव हैं.

एक ऐसे समाज में जन्मी बेटी जहाँ बेटियां का जन्म शुभ नहीं माना जाता था. बालिका शिक्षा न के बराबर रही यहाँ तक की उन्हें कई तरह के सामाजिक बन्धनों के चलते घर की चारदीवारी में ही कैद होकर रहना पड़ता था.

संतोष के पिता का नाम सूबेदार रामसिंह यादव एवं माँ का नाम चमेली देवी था. इन्होंने आर्ट्स विषय में कॉलेज की शिक्षा जयपुर से की.

जयपुर से बीए करने के बाद उन्होंने अपने सपने को साकार करने के लिए पर्वतारोही की बुनियादी शिक्षा लेना का निश्चय किया तथा 1986 को काशी के एक संस्थान में प्रशिक्षण लेना आरम्भ किया.

करियर


परीक्षण में उच्च ग्रेड प्राप्त करने के बाद संतोष ने पर्वतारोही को अपना करियर चुना तथा इसकी शुरुआत वर्ष 1989 से की.

इस साल नौ अलग अलग देशों के अंतरराष्ट्रीय पर्वतारोहण कैंप में इन्होने भाग लिया, इस दल में कुल 31 पुरुष थे, जबकि अकेली भारतीय महिला संतोष यादव थी.

6600 मीटर ऊंचे व्हाइट पर्वत शिखर की चढ़ाई में इन्होने शिखर पर तिरंगा फहराने वाली प्रथम भारतीय महिला होने के गौरव को प्राप्त कर लिया.

जीवन की बाधाएं


हर किसी के जीवन में विपत्तियों का छाया रहता है, जो आसानी से किसी इंसान को सफलता की ओर नहीं जाने देती हैं. ऐसा कुछ संतोष यादव के जीवन में भी रहा.

जब वह जयपुर के कस्तूरबा हॉस्टल में रहा करती थी तो अक्सर कमरे की खिड़की से लोगों को वहां की पहाड़ी पर चढ़ते देखा करती थी.

रोजाना यह द्रश्य देखकर उसकी इच्छा और बलवंती हो गई. इसी नजारे ने उन्हें खर्च को कम कर पैसे बचाकर  उत्तर काशी स्थित नेहरू पर्वतारोहण इंस्टीट्यूट में दाखिला लेने की प्रेरणा मिली.

अपने पिताजी से इन्होने यह कार्य करते वक्त अनुमति नहीं मांगी, जब उन्होंने एडमिशन ले लिया तो एक पत्र के जरिये अपने पिताजी से माफ़ी मांगकर सारी बात बताई.

संतोष यादव ने भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी भी की. वर्तमान में ये इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस में अपनी सेवाएं दे रही हैं.

संतोष यादव जब 14 साल की थी तो उसके परिवार वाले उसकी शादी करवाना चाहते थे. उन्होंने परिवारों वालों को अपनी पढ़ाई पूरी होने तक ऐसा न करने के लिए मना लिया था.

12 मई, सन् 1992 को संतोष ने दूसरी बार एवरेस्ट की चढ़ाई की, इस बार उनके साथ हेड कॉंस्टेबल सांगे शेरपा और हेड कॉंस्टेबल वेंगचुक शेरपा भी थे. अपने दूसरे अभियान में संतोष ने एवरेस्ट पर तक़रीबन 2 घंटे तक समय बिताया.

सम्मान


संतोष ने बताया कि हिमालय की सबसे ऊँची चोटी एवरेस्ट पर चढ़ाई के 14 रास्ते हैं. जिनमें से संतोष ने सबसे मुश्किल रूठ को चुना था.

जिस पर से अभी तक कोई भी पर्वतारोही नहीं जा पाया था. भारत के दसवें राष्ट्रपति के. आर. नारायणन ने भारत की इस बेटी को अपने साहसपूर्ण कार्य के लिए वर्ष 2000 में पदम श्री पुरस्कार देकर सम्मानित किया.

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आशा करता हूँ दोस्तों आपकों Santosh Yadav Biography In Hindi की संघर्ष पूर्ण जीवन कहानी अच्छी लगी होगी.

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