शाकंभरी देवी का इतिहास एवं मंदिर की जानकारी | Shakumbhari Devi History In Hindi

शाकंभरी देवी का इतिहास Shakumbhari Devi History In Hindi: माँ दुर्गा का एक अन्य रूप शाकंभरी देवी हैं, राजस्थान तथा उत्तरप्रदेश में यह लोकदेवी के रूप मे प्रसिद्ध हैं।

शाकंभरी देवी का मुख्य मंदिर राजस्थान के सीकर जिले के उदयपुर वाटी मे स्थित हैं, जों सकराय मां के रूप मे विख्यात हैं इसके अतिरिक्त दो अन्य मुख्य मंदिर क्रमश उत्तरप्रदेश के सहारनपुर पास एव तीसरा जयपुर की साँभर तहसील में हैं।

शाकंभरी देवी का इतिहास Shakumbhari Devi History In Hindi

शाकंभरी देवी मेला

एक वर्ष में दो बार, हिंदू कैलेंडर के अश्विन और चैत्र महीने (नवरात्र के दिनों के दौरान), साथ ही होली के समय, प्रसिद्ध शाकंभरी देवी मेला का आयोजन किया जाता है।

यह इन मेले के दौरान, विशेष रूप से, सड़कों सहारनपुर से मंदिर तक उचित रूप से बनाए रखा जाता है ताकि भक्तों के लिए आसान यात्रा की सुविधा मिल सके।

शाकंभरी देवी के भक्त पहले भुरा-देव मंदिर जाते हैं जो मंदिर से लगभग एक किलोमीटर पहले स्थित है और फिर देवी के मंदिर दर्शन करने को जाता है।

इस मंदिर की लोकप्रियता दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है और इन दिनों “दर्शन” के लिए इस मंदिर में दूर और नजदीक के कई भक्त इस मंदिर में जाते हैं। इस प्रसिद्ध दौरान मेलों , लाखों भक्त माँ के दर्शन के लिए आते हैं। 

शाकुम्भरा देवी के प्रति भक्तों की श्रद्धा एवं भक्ति का सरगम इस मेले में देखा जा सकता हैं। शाकंभरी देवी पर वर्ष 2000 में एक हिन्दी फिल्म भी बनाई जा चुकी हैं। 

शाकंभरी देवी का इतिहास

एक समय प्रथवी पर लगातार 100 वर्षों तक पानी की वर्षा ही नही हुई। इस कारण चारों ओर हाहाकार मच गया। सभी जीव भूख और प्यास से व्याकुल होकर मरने लगे।

उस समय मुनियों ने मिलकर देवी भगवती की उपासना की। तब जगदंबा ने शाकंभरी नाम से स्त्री रूप मे अवतार लिया और उनकी क्रपा से जल की वर्षा हुई जिससे प्रथ्वी के समस्त जीवों को जीवनदान हुआ।

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार सैकड़ों वर्षों तक यहाँ जल एवं भोजन का अभाव था। बरसात न होने के कारण पेड़ पौधे सूखकर धरा वीरान हो चुकी थी।

देवी ने लोगों की इस समस्या के समाधान के लिए शाकाहारी भोजन कर तप किया। उनकी तप शक्ति से वहाँ पर बारिश होने लगी तथा फिर से पेड़ पौधे उग आए।

इस चमत्कार को देखने के लिए कुछ साधु संत आए, जिन्हें देवी ने शाकाहारी भोजन कराया इस कारण इनका नाम शाकम्भरी देवी पड़ गया।

इतिहास मे शाकम्भरी पीठ का महत्व

माँ शाकम्भरी देवी को कई अन्य रूपों में पूजा जाता है जैसे वैष्णो देवी, चामुंडा, कांगड़ा वाली, ज्वाला, चिंतपूर्णी , कामाख्या, शिवालिक पर्वत वासिनी, चंडी, बाला सुंदरी, मनसा, नैना और शताक्षी देवी आदि.

भारत में देवी की अनेक पीठ है जहाँ इनके विशाल मन्दिर बने हुए है तथा भक्त श्रद्धा से यहाँ आते हैं मगर देवी की एकमात्र शक्तिपीठ है जो कि सहारनपुर में स्थित हैं. यह भारत के सबसे अधिक भक्तों द्वारा देखा जाने वाला मन्दिर हैं.

इस शक्तिपीठ के बारे में इतिहास में कहा जाता हैं आचार्य चाणक्य और उनके परम शिष्य चन्द्रगुप्त ने भी कुछ समय यहाँ बिताया था, मौर्यकाल में यह पीठ स्रुघ्न देश के अंतर्गत आती थी.

इस शक्तिपीठ के कई ऐतिहासिक साक्ष्य भी प्राप्त हुए है जिनमें कई प्राचीन मंदिर और मूर्तियाँ शामिल हैं. आठवीं सदी पूर्व का एकमुखी शिवलिंग भी यहाँ के अवशेषों में से एक हैं. यहाँ आदि शंकराचार्य जी के आगमन का भी विवरण मिलता हैं.

उनका आश्रम भी यहाँ बना हुआ हैं, इन्होने ही यहाँ रहते हुए देवी की मूर्ति के दाई तरफ भीमा व भ्रामरी देवी की तथा बाई तरफ शताक्षी देवियों की मूर्तियों की स्थापना की थी.

इतिहास में यह भी दर्ज है कि माता शाकम्भरी की यह पीठ महाभारत काल के दौरान घने जंगलों में लुप्त हो गई थी. मानव आबादी से दूर होने के चलते सम्भवत लोग यहाँ का रास्ता भूल गये थे.

कालान्तर में नैन गूजर नामक एक अंधे व्यक्ति ने इस मंदिर को खोज लिया था, जो कि स्वयं राह भटक गया और देवी ने उन्हें दर्शन देकर अपना परिचय दिया था, तब से यह मंदिर पुनः लोगों के परिचय में आया.

शाकंभरी देवी के अन्य मंदिर

सकराय धाम राजस्थान : देवी की मुख्य शक्तिपीठ सहारनपुर यूपी में अवस्थित हैं, शेष दो मुख्य मन्दिर राजस्थान में हैं. जिनमें एक सकराय धाम हैं जो कि अरावली की पहाड़ियों में सीकर जिले में स्थित हैं.

सैकड़ो वर्ष पूर्व स्थापित इस मन्दिर में ब्राह्मणी और माँ रुद्रानी की प्रतिमाएं विराजमान हैं. सिद्ध पीठ होने के कारण यह मंदिर देशभर में भक्तो के बीच लोकप्रिय हैं.

सांभर धाम: शाकम्भरी देवी का यह तीसरा प्रमुख धाम हैं जो जयपुर के पास स्थित साम्भर झील में एक पहाड़ी पर अवस्थित हैं. पृथ्वीराज चौहान के समय इस मन्दिर का निर्माण करवाया गया था.

यह पीठ करीब ढाई हजार वर्ष प्राचीन मानी जाती हैं मगर यहाँ के मन्दिर का निर्माण सातवीं या आठवीं सदी में हुआ था. मान्यता है कि शाकम्भरी देवी की कृपा से यहाँ की भूमि चांदी उपजने लगी मगर चांदी को लेकर लोगों में लड़ाई झगड़े बढ़ने लगे तो देवी ने इसे नमक में बदल दिया. आज यहाँ देश की खारे पानी की झील साम्भर हैं.

अन्य मंदिर: शाकंभरी देवी माता के देशभर में कुछ अन्य लोकप्रिय मंदिर भी हैं. जिनमें उत्तराखंड में त्रियुगीनारायण, नागेवाडा, कटक, हरिद्वार, कुरालसी, शाहबाद और कांधला के लोकप्रिय मंदिर हैं. कर्नाटक राज्य के बागलकोट जिले में स्थित माँ बनशंकरी देवी का मन्दिर है जिन्हें शाकंभरी देवी का ही एक रूप माना जाता हैं.

चौहान वंश की कुलदेवी

शुरू से ही चौहान वंश की कुलदेवी शाकम्भरी माता रही है हालांकि इस बारे में कोई वर्णन नहीं मिलता है कि कब से यह परम्परा चली हैं. मगर इस राजवंश ने अपनी शुरुआत के साथ ही देवी की पूजा आरम्भ कर दी थी.

चौहानों के सांभर राज्य से आदि शक्ति की पूजा अर्चना के प्रमाण तो अवश्य मिलते हैं. नाडोल के चौहान राजा राव लक्ष्मण जी ने माँ शाकम्भरी की आराधना की फलस्वरूप उनकी समस्त आशाएं पूर्ण होती चली गई,

राव लक्ष्मण ने इन्हें माँ आशापुरा कहकर सम्बोधित किया. तभी से माँ शाकम्भरी को आशापुरा देवी के नाम से भी जानते हैं.

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उम्मीद करता हूँ दोस्तों शाकंभरी देवी का इतिहास Shakumbhari Devi History In Hindi का यह आर्टिकल आपको पसंद आया होगा. अगर आपको देवी के बारे में दी जानकारी पसंद आई हो तो अपने फ्रेड्स के साथ इस लेख को अवश्य शेयर करें.

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