शोषण के विरुद्ध अधिकार | Right Against Exploitation In Hindi

शोषण के विरुद्ध अधिकार | Right Against Exploitation In Hindi: जब बात शोषण की आती है तो यह शब्द चित परिचित लगता हैं. भारत में सदियों तक शासकों, सामंतों तथा ताकतवर लोगों द्वारा कमजोर तथा निर्बल लोगों के साथ शोषण किया जाता रहा हैं.

शोषण के विरुद्ध अधिकार के रूप में देश के सभी नागरिकों को बिना किसी भेद के सभी को अधिकार हमारा संविधान देता हैं. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 तथा 34 में शोषण के विरुद्ध अधिकार को विस्तार से समझाया गया हैं.

शोषण के विरुद्ध अधिकार | Right Against Exploitation In Hindi

शोषण के विरुद्ध अधिकार | Right Against Exploitation In Hindi

स्वतंत्र भारत के प्रत्येक नागरिक को जानना चाहिए कि उनके अधिकार क्या क्या है तथा वो इसका किस तरह उपयोग कर सकते हैं. भारत के संविधान में नागरिकों के लिए 6 मौलिक अधिकार तथा 11 मूल कर्तव्य दिए गये हैं.

हरिजनों, खेतिहर श्रमिकों और स्त्रियों को सदियों से प्रताड़ित किया जाता रहा हैं. शोषण के विरुद्ध अधिकार अब उनका इस शोषण से लड़ने का मजबूत हथियार है चलिए जानते है कि यह अधिकार क्या हैं.

शोषण के विरुद्ध अधिकार क्या है (What Is Right Against Exploitation)

संविधान के अनुच्छेद 23 व 24 के द्वारा सभी नागरिकों को शोषण के विरुद्ध अधिकार प्रदान कर शोषण की सभी स्थितियों को समाप्त करने का प्रयास किया गया हैं.

मानव के क्रय विक्रय व बेगार पर रोक अनुच्छेद 23– इस अनुच्छेद द्वारा बेगार तथा इसी प्रकार जबरदस्ती करवाएं हुए श्रम का निषेध किया गया हैं.

हमारे देश में सदियों से किसी न किसी रूप में दासता की प्रथा विद्यमान थी. जिसमें खेतिहर श्रमिकों, बंधुआ मजदूरों, स्त्रियों व बच्चों से बेगार करवाकर उनका शोषण किया जाता था.

संविधान में मानवीय शोषण के इन सभी रूपों को कानून के अनुसार दंडनीय घोषित किया गया हैं. फिर भी राज्य हित में सरकार द्वारा व्यक्ति को अनिवार्य श्रम की योजना लागू की जा सकती हैं. लेकिन ऐसा करते समय नागरिकों के बीच धर्म, मूलवंश, जाति वर्ण या सामाजिक स्तर के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता.

बालश्रम का निषेध (अनुच्छेद 24)– इसके अनुसार 14 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों को कारखानों, खानों अथवा जोखिम वाले काम पर नियुक्त नहीं किया जा सकता हैं.

शोषण के विरुद्ध अधिकार का उद्देश्य

समाज में समानता तथा शोषण मुक्त समाज की स्थापना एवं वास्तविक सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना के लिए भारत के संविधान में जुलाई 1975 को बंधक मजदूरी प्रथा को समाप्त कर इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया गया था.

1997 में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को जारी आदेश में बाल श्रम को कानूनी निषेध करने तथा इसकी पालना के लिए कठोर कानून बनाने का आदेश दिया था.

पिछले कुछ दशकों से शोषण को समाप्त करने की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम माननीय सर्वोच्च न्यायालय एवं भारतीय संसद द्वारा उठाए गये हैं. जिसके द्वारा समाज में सभी की भागीदारी तथा कल्याण सुनिश्चित हो सके.

अनुच्छेद 23 (मानव दुर व्यापार एवं बाल श्रम का निषेध)

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 के द्वारा मानव तस्करी और बाल मजदूरी को गैर कानूनी बनाया गया हैं. इस बाल शोषण एवं उत्पीड़न व बच्चों की खरीद फरोख्त उनके साथ अमानवीय कार्य, बेगार और दास प्रथा देवदासी प्रथा को भी अवैधानिक बना दिया गया हैं.

हमारा संविधान सभी बच्चों को सुरक्षित भविष्य और जीवन के मूलभूत अधिकार देकर अपराधियों के लिए दंड के प्रावधान करता हैं. कानूनी रूप से जबरन मजदूरी को भी गैर कानूनी बनाकर दंड विधान किया गया हैं.

इसमें बच्चों को बिना मजदूरी के काम करवाना भी शामिल हैं. इस आर्टिकल को विस्तार देने के लिए तीन और अधिनियम भारतीय संसद द्वारा पारित कर अधिक प्रभावी बनाया गया हैं इनमें अनैतिक व्यापार अधिनियम 1956, बंधुआ मजदूरी 1976 और समान पारिश्रमिक एक्ट 1976 शामिल हैं.

इन कानूनों के जरिये भारत के प्रत्येक नागरिक को अपनी रूचि के अनुसार व्यवसाय चुनने का अधिकार मिलता हैं. साथ ही उन्हें अन्य समकक्ष योग्यता के लोगों के वेतन दिए जाने की कानूनी गारंटी दी गई हैं.

मजदूरों को अपने संगठन जैसे ट्रेड यूनियन आदि बनाने व उनसे जुड़ने का अधिकार दिया गया हैं. आर्टिकल 23 के एक अन्य उपबंध में राज्य व समाज के हित में किसी श्रम योजना के नियोजन हेतु सेवाएं देने वाले नागरिकों को काम के बदले धन देने के लिए सरकार को बाध्य नहीं किया जा सकता हैं.

अनुच्छेद 24 (कारखानों में बाल श्रम आदि पर निषेध)

संविधान का अनुच्छेद 24 सभी 14 वर्ष से कम आयु के बच्चे बच्चियों को किसी भी तरह के श्रम कार्य में लगाएं जाने को प्रतिबंधित करता हैं.

इसमें बच्चों के स्वास्थ्य के जोखिम से जुड़े सारे कार्य शामिल हैं, इस तरह बाल श्रम को निषेध करने वाला यह अनुच्छेद संयुक्त राष्ट्र संघ के बाल संरक्षण के सिद्धांतों की वकालत करता हैं.

इसे अधिक प्रभावी और स्पष्ट बनाने के लिए बाल श्रम अधिनियम 1986, किशोर श्रम अधिनियम 1986 तथा 2016 में इसका संशोधित स्वरूप लागू हैं.

इन कानूनों का उल्लंघन किये जाने की स्थिति 6 माह से 2 वर्ष तक की कैद या 20 हज़ार से 50 हज़ार तक का जुर्माना लगाकर दंडित किये जाने का प्रावधान हैं.

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