Sri Chaitanya Mahaprabhu Death Biography History Story In Hindi | चैतन्य महाप्रभु का जीवन परिचय: भक्त संतों में बंगाल के चैतन्य महाप्रभु प्रमुख संत माने जाते हैं. चैतन्य महाप्रभु का जन्म वर्ष 1486 की फाल्गुन पूर्णिमा के दिन बंगाल के मायापुर गाँव में हुआ था.
महाप्रभु की मृत्यु 46 वर्ष की आयु में 1534 ई. में उड़ीसा के पुरी शहर में हुई, जो भगवान जगन्नाथ जी का मुख्य धाम हैं. चैतन्य जीवन परिचय में आपकों इनके जीवन इतिहास के बारे में संक्षिप्त स्टोरी बता रहे हैं.
Chaitanya Mahaprabhu Biography Hindi चैतन्य महाप्रभु की जीवनी
नाम | Sri Chaitanya Mahaprabhu |
जन्म | 1486 ई |
जन्मस्थान | मायापुर, बंगाल |
पिता | जगन्नाथ मिश्र |
माता | शचि देवी |
कार्य | समाज सुधारक, भक्त कवि |
मृत्यु (Death) | 1534 ई.पुरी उड़ीसा |
श्री चैतन्य प्रभु (1486-1533) गौरांग महाप्रभु के नाम से भी जाने जाते हैं. इनका वास्तविक नाम विश्वम्भर था. इन्होने कृष्ण भक्ति का प्रचार किया. ये जातीय भेदभावों तथा पशुबलि, मदिरा पान आदि के विरोधी थे. नृत्य संगीत इनकी भक्ति का विशिष्ट पक्ष था.
इन्होने कीर्तन द्वारा ईश्वर भक्ति का प्रारम्भ किया. इनका अधिकांश समय गया तथा पुरी में बिता. इन्होने वृन्दावन में राधा कृष्ण की भक्ति को आध्यात्मिक रूप दिया तथा वृन्दावन को तीर्थस्थल के रूप में विकसित किया.
वृन्दावन की यात्रा से लौटते समय इन्होने इलाहबाद में वल्लभाचार्य से भेट की. 1533 ई में पुरी में इनकी मृत्यु (Death) हो गई. चैतन्य महाप्रभु को बंगाल में आधुनिक वैष्णववाद जिसे गौड़ीय वैष्णव धर्म कहा जाता हैं, का संस्थापक माना जाता हैं.
भारत में मध्यकाल में शुरू हुए भक्ति आंदोलन को बंगाल तथा पूर्वी भारत में ले जाने का श्रेय श्री चैतन्य महाप्रभु को ही जाता हैं. चैतन्य कृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे. इनके अनुसार यदि कोई व्यक्ति कृष्ण की उपासना करता हैं और गुरु की सेवा करता हैं तो माया के जाल से मुक्त हो जाता हैं.
तथा वह प्राणी ईश्वर से एकाकार हो जाता हैं. चैतन्य ने कर्मकांड की निंदा की. उन्होंने बताया कि व्यक्ति भक्ति में लीन होकर संकुचित भावना से मुक्त हो जाता हैं.
महाप्रभु की भक्ति भावना से जनता बहुत प्रेरित हुई, इनके बारे में कहा जाता हैं कि पुरी के सम्राट भी चैतन्य जी के परम शिष्य थे. तथा बंगाल राज्य के एक मंत्री भी अपनी नौकरी छोड़कर प्रभु की शरण में आकर शिष्य जीवन जीने लगे.
सभी वर्गों के लोगो रोगियों, दलितों की चैतन्य महाप्रभु ने निष्भाव से सेवा की, आजीवन इन्होने हिन्दू मुस्लिम एकता के लिए कर्म किया.
लोगों को जाति धर्म की संकीर्ण मानसिकता से बाहर लाकर मानव धर्म निभाने की शिक्षा महाप्रभु ने दी. इनके अतिरिक्त इन्होने लेखन का कार्य भी किया.
शिक्षाष्टक पुस्तक (book) की रचना चैतन्य महाप्रभु ने संस्कृत में की, जो आज भी उपलब्ध हैं इनकी कई रचनाएं आज के समय में नही हैं. प्रभु सबसे अधिक नारद जी से प्रभावित थे. उन्ही की टेक पर वे हमेशा नारायण नारायण जप किया करते थे.
चैतन्य की ईश्वर पुरी से मुलाकात
जब चैतन्य के पिता की मृत्यु हो गई थी तो उनके पिता की मृत्यु के बाद चैतन्य ने निश्चय किया कि वह अपने पिताजी को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए प्राचीन शहर का दौरा करेंगे और इसी शहर के भ्रमण के दौरान जब वह गया में निवास कर रहे थे तब उनकी मुलाकात ईश्वर पूरी नामक तेजस्वी और विद्वान व्यक्ति से हुई। वही ईश्वर पुरी आगे जाकर चैतन्य के गुरु भी बने थे।
प्राचीन शहर का दौरा कर लेने के बाद जब चैतन्य गृहनगर पहुंचे तब चैतन्य एक स्थानीय वैष्णव बन गए थे। कुछ समय तक वैष्णव लोगों के साथ रहने के बाद चैतन्य ने बंगाल छोड़ दिया। चैतन्य ने केशव भारती को अपने बाद अपनी पदवी दे दी और खुद सन्यास ग्रहण कर लिया।
चैतन्य का यह मानना था कि सत्य की प्राप्ति के लिए और ईश्वर की खोज के लिए सभी चीजों को त्यागना अति आवश्यक है। अंतिम सत्य अर्थात मोक्ष की प्राप्ति के लिए सभी सन्यासी अलग-अलग नियमों का पालन करते हैं लेकिन चैतन्य भक्ति योग को मोक्ष प्राप्ति की सबसे बड़ी कुंजी बताते हैं।
भक्ति योग का अभ्यास करने के लिए चैतन्य ने लगातार भगवान कृष्ण के नाम का जाप किया था। भगवान कृष्ण के नाम के निरंतर जाप से भक्ति योग पूरी तरह से सफल हुआ था उन्होंने इस योग साधना के बारे में अपने अनुयायियों को भी बताया जिसके कारण उनके जाने के बाद उनके अनुयायियों ने इस भक्ति योग का ज्ञान लोगों को दिया है।
चैतन्य महाप्रभु की शिक्षा
8 श्लोकों वाली 16वी सदी की प्रार्थना व चैतन्य महाप्रभु की शिक्षा दीक्षा का केवल एक ही रिकॉर्डिंग उपलब्ध है। चैतन्य महाप्रभु की शिक्षा सिक्सकास्टम में रिकॉर्ड की गई है।
महाप्रभु ने इस रिकॉर्डिंग में ना सिर्फ वैष्णववाद के बारे में बताया है बल्कि कृष्ण जी के गौरवपूर्ण कहानियों व उनके विचारों को भी लोगों के सामने प्रस्तुत किया है।
इस रिकॉर्डिंग में चैतन्य महाप्रभु की शिक्षा 10 बिंदुओं में विभाजित की गई है साथ ही साथ इसमें कृष्ण जी के गौरव पूर्ण ज्ञान का भी उल्लेख देखने को मिलता है।
चैतन्य महाप्रभु की भारत यात्रा-
भक्ति योग के बारे में ज्ञान अर्जित करने के बाद महाप्रभु ने भक्ति योग के बारे में सभी लोगों को बताना शुरू कर दिया था और इसी के कारण वह जगह-जगह जाकर भक्ति योग के बारे में लोगों को बता रहे थे और उसका प्रचार प्रसार कर रहे थे।
चैतन्य ने भक्ति योग का प्रचार प्रसार करने के दौरान भारत की यात्रा की थी। चैतन्य महाप्रभु के भारत यात्रा करने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह था कि चैतन्य भगवान कृष्ण की भूमि वृंदावन जाकर कृष्ण जी से संबंधित सभी सुंदर जगहों का दर्शन करना चाहते थे।
कई लोगों का यह भी मानना है कि इस भारत यात्रा के दौरान चैतन्य महाप्रभु ने 7 मंदिरों के बारे में भी पता लगाया था और उनके बाद इस मंदिरों की देखभाल वैष्णव धर्म के अनुयायियों द्वारा की गई।
कई वर्षों तक भारत की यात्रा करने के पश्चात अंत में चैतन्य महाप्रभु उड़ीसा में जाकर बस गए थे। और उड़ीसा में ही उन्होंने अपने जीवन के अंतिम 24 वर्ष बिताए थे।
सामाजिक कार्य
चैतन्य ने भक्ति योग का ज्ञान संपूर्ण भारत को दिया लेकिन जब वह वृंदावन पहुंचे तब उन्होंने देखा कि वृंदावन की विधवाओं को ना सिर्फ तिरस्कृत किया जाता है बल्कि उन्हें आम लोगों की तरह जीवन यापन करने का भी अधिकार नहीं है।
उनकी इस हीन दशा को देखते हुए चैतन्य महाप्रभु ऐसी विधवा औरतों को समाज और संसार का त्याग करते हुए ब्रह्मचर्य धारण करने व भगवान कृष्ण की भक्ति करते हुए मोक्ष की प्राप्ति करने के लिए प्रेरित करते हैं।
मृत्यु
चैतन्य की मृत्यु के विषय में विभिन्न लोगों के अलग-अलग मत है। कुछ लोग इस बात पर विश्वास करते हैं कि चैतन्य महाप्रभु की किसी ने हत्या कर दी थी तो वहीं कुछ लोगों का यह मानना है कि चैतन्य महाप्रभु रहस्यमई तरीके से इस दुनिया को छोड़ कर गए थे।
लेकिन शोधकर्ताओं और इतिहासकारों का यह मानना है कि चैतन्य महाप्रभु को मिर्गी का दौरा पड़ता था और इस विषय में उनके पास कई सारे साक्ष्य भी मौजूद है। इतिहासकारों के अनुसार चैतन्य महाप्रभु की मृत्यु 14 जून 1534 में मिर्गी के दौरे पड़ने से हुई।
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