माँ नर्मदा की कहानी Story Of Narmada River In Hindi: नमस्कार दोस्तों आज हम माँ नर्मदा की कहानी स्टोरी आत्म कथा ऑटोबायोग्राफी हिस्ट्री निबंध आदि यहाँ बता रहे हैं.
देश की तीसरी बड़ी एवं मध्यप्रदेश की जीवन रेखा कही जाने वाली नर्मदा नदी को रेवा भी कहा जाता हैं, इन्हें गंगा की तरह पवित्र मानकर पूजा की जाती हैं.
माँ नर्मदा की कहानी | Story Of Narmada River In Hindi
प्रिय पाठकों,
मैं नर्मदा हूँ और आज मैं स्वयं आपकों खुद से जुड़े सामान्य ज्ञान याद करवाने आई हूँ,
मेरा जन्म माघ शुक्ल सप्तमी को अमरकंटक पर्वतमाला की गोद में स्थित नर्मदा कुंड में हुआ था. मेरा जन्मदिन प्रतिवर्ष नर्मदा जयंती के रूप में मनाया जाता हैं. जो इस वर्ष 12 फरवरी को मनाया गया था.
वैसे मेरा प्रचलित नाम तो नर्मदा ही है लेकिन जैसे आप सभी को घर में प्यार से गुड़िया, छोटू, मुन्नू इत्यादि नामों से बुलाया जाता हैं ठीक वैसे ही मुझे माँ नर्मदा, मैकल, सुता, रेवा, शंकरी, नमोदास, सोमादेवी इत्यादि नामों से पुकारा जाता हैं.
मैं अमरकंटक की पहाडियों से निकलकर ख़ुशी से झूमते हुए कुछ ही दूरी पर दो जलप्रपात बनाती हूँ पहला दुग्ध धारा और दूसरा कपिल धारा.
मैं अपने ननिहाल जिले अनुपपुर से बहते हुए डिंडोरी फिर मंडला और जबलपुर पहुँचती हूँ. तत्पश्चात जबलपुर के भेडाघाट में बेहद आकर्षक धुआंधार नामक जलप्रपात बनाती हूँ, जो पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं.
आप सभी ने कभी न कभी भेडा घाट से संगमरमर की मूर्तियाँ जरुर ली होगी. जबलपुर में ही मेरे बहाव से बिजली बनाने के लिए बरगी बाँध भी बनाया गया हैं.
जो आज का भारत है उसे यह स्वरूप पाने में सदियों की तपस्या लगी हैं. आज जहाँ हिमगिरी है वहां कभी टेथिस सागर हुआ करता था, एक भूकम्प के झटके ने उसे हिमालय में बदल दिया.
उसी भांति जहाँ आज मेरा मार्ग है वह अरब सागर का एक भाग था उस समय के दरियाई घोड़ा दरियाई भैंसा, राइनोसरस तथा मानव के अस्थि पंजर भी मेरे तट पर हुई खोज में पाए गये हैं.
मेरे इतिहास की कहानी आपकों बताऊँ तो मेरी आयु माँ गंगाजी से भी अधिक हैं. भागीरथ जी गंगा लाए उससे पहले से मैं हूँ जब हिमालय नहीं था तब भी मैं थी, विन्धय उस दौर में मेरा साक्षी रहा हैं.
मेरी प्राचीनता के प्रमाण हड़प्पा जैसे स्थलों की खुदाई में तो नहीं मिले जो पांच हजार पुरानी सभ्यता थी मगर भीमबेटका और होशंगाबाद जैसी बीस हजार वर्ष प्राचीन सभ्यताओं के चित्र मेरे तट पर मिले हैं.
हमारे भारत की संस्कृति मूल रूप से अरण्य संस्कृति कही जाती हैं. मेरा अतीत भी इसी में बीता घने जगलों के बीच मैं उत्तरा पथ और दक्षिणावर्त की सीमारेखा के रूप में बनी रही.
साधू संत तथा ऋषियों के आश्रम मेरे अर्थात नर्मदा नदी के तट पर ही रहे हैं. मार्कण्डेय, भृगु, कपिल, जमदग्नि जैसे बड़े तपस्वियों ने मेरी धरा की पावनता को अधिक निर्मल किया.
इन्ही ऋषियों ने मेरे स्वभाव पर अलग अलग नाम दिए. किसी ने मुझे रेवा कहा जिसका आशय होता है कूदना फांदना सम्भवतः उन्होंने मुझे चट्टानों या ढलानों में इसी रूप में देखा होगा.
एक अन्य ऋषि महात्मा ने मुझे नर्मदा कहकर पुकारा. नर्मदा शब्द का आशय होता है नर्म अथवा आनन्द. महर्षि के विचार से मैं प्राणियों के दिल में आनन्द देने वाली नदी हुई.
सम्भवतः आज भी सभी भारतीय मुझे इसी गुण के चलते नर्मदा मैया कहकर संबोधित करते हैं. वैदिक धर्म के ग्रंथों में मुझे गंगा से अधिक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया.
स्कन्द पुराण का सम्पूर्ण रेवा खंड तो मुझे ही समर्पित किया गया हैं. पुराणों में कहा गया है कि इंसान जो पुण्य गंगाजी के स्नान में पाता है वह मेरे दर्शन भर से प्राप्त हो जाता हैं.
मेरा अधिकतर बहाव मध्यप्रदेश में ही हैं. भारत देश की अधिकतर नदियाँ पूर्व की तरफ बहती हैं जबकि मेरा बहाव पश्चिम दिशा की ओर हैं. मेरे और सोन की पौराणिक कथा तो आपकों याद ही होगी.
जब मेरा और सोन का विवाह निश्चित हो चूका था तो सोन मेरी बजाय दासी जुहिला से मोहित हो गया. प्रेम की बेवफाई से क्रुद्ध होकर विवाह न करने का प्रण लेकर मैं पश्चिम की ओर चल दी तथा सोन मेरी उल्टी दिशा में चला गया.
मेरे भक्तो ने तब से मुझे चिरकुमारी का नया नाम दिया. मैं संसार की इकलौती वो भाग्यशाली नदी है जिसकी सभी पूजा करते है, दर्शन कर स्नान करते है तथा इससे बढ़कर मेरी परिक्रमा करते हैं.
भक्ति में लीन सच्चे साधक तमाम समस्याएं झेलकर भी नंगे पांव भीख मांगते हुए मेरी परिक्रमा करते हैं विधानुसार इस कठिन परिक्रमा को करने में भक्तों को तीन वर्ष तीन माह व 13 दिन लग जाते हैं.
नर्मदा नदी का इतिहास और कहानी History of Narmada River in Hindi
भारतीय संस्कृति में नदी, पर्वत, पेड़ इन सभी के साथ गहरा जुड़ाव रहा हैं. प्रकृति के इन आयामों के साथ हमारे जीवन के साथ आध्यात्मिक सम्बन्ध रहे हैं.
अगर बात करे नदियों की तो कई नदियों मसलन गंगा, यमुना, सरस्वती और नर्मदा को माँ मानकर उनकी पूजा की जाती रही हैं. नदियों के सम्बन्ध में यह मान्यता रही है कि इनके जल स्पर्श भर से मानव पाप एवं दोष मुक्त हो जाता हैं.
नर्मदा कौन थी?
भारत के दो राज्यों गुजरात और मध्यप्रदेश के जनजीवन का आधार रही नर्मदा नदी को माँ के तुल्य मानकर इसकी पूजा की जाती हैं. मध्य भारत में पूर्व से पश्चिम की ओर बहकर जाने वाली इस नदी को पवित्र नदी के रूप में मान्यता प्राप्त हैं.
नर्मदा जी के विषय में मान्यता है कि इनके जल में नहाने से व्यक्ति कष्ट मुक्त हो जाता हैं. जो इंसान जीवन में एक बार नर्मदा जी के दर्शन कर लेता है उनके सारे दुःख दर्दों का नाश हो जाता हैं.
इन दावों के पीछे सच्चाई क्या हैं कोई नहीं जानता, मगर यह जन आस्था है तथा इसका बड़ा लाभ इस नदी को स्वच्छ रखने में मिला हैं. बात करें नर्मदा के प्रवाह तन्त्र की तो इसकी उत्पत्ति अमरकंटक की पहाड़ियों से होती है.
भारत की पौराणिक नदियों में से एक नर्मदा के बारे में यह धारणा है कि इसके कण कण में शिव वास करते हैं. इसी के फलस्वरूप यह देखने मिलता है कि इसके उद्गम से समुद्र में मिलने तक की रेंज में हजारों की संख्या में धार्मिक महत्व के तीर्थ स्थान बने हुए हैं.
लोक परम्परा में एक ओर जहाँ इसे माँ मानकर पालनहार माना है तो दूसरी तरफ सुखदायी व कष्टहारक भी मानते है. ऐसी मान्यता है कि जो इंसान नित्य नर्मदा का स्मरण करता है उन्हें कभी सर्प दंश नहीं होता हैं.
नर्मदा का नामकरण और कहानी
प्रचलित मान्यताओं के अनुसार जब भगवान भोलेनाथ अमरकंटक पर्वत के एक तालाब के निकट तपस्या में लीन थे उस समय उनके शरीर से निकले पसीने ने एक नदी का रूप ले लिया.
जब शिवजी की तपस्या पूर्ण हुई तब माँ नर्मदा ने दर्शन देकर शिवजी और माँ पार्वती को अपनी अलौकिक शक्तियों से परिचित करवाया.
तपस्या में लीन शिवजी को धूप से बचाकर सेवा करने वाली नर्मदा जी के विषय में जानकर शिव गौरी को बड़ी प्रसन्नता हुई और भोलेनाथ ने प्रसन्न मन से उनको नर्मदा नाम से पुकारा.
अगर हम शब्द व्युत्पत्ति और इसके अर्थ को जाने तो यह नाम दो शब्दों नरम और दा से मिलकर बना हैं जिसका आशय होता है सुख देने वाली.
यदि हम नर्मदा नदी के इतिहास और पौराणिक कहानियों का विवेचन करें इसके अलग अलग प्रसंग और दावे मिलते हैं. चूँकि ये अमरकंटक पर्वत श्रंखला के मैकाल शिखर से निकलती है इस कारण इन्हें मैकाल कन्या नाम से भी जानते हैं.
इस बारे में स्कन्द पुराण के रेवा खंड में पौराणिक सन्दर्भ उपलब्ध हैं. इन ग्रंथों में नर्मदा को रूद्र कन्या कहकर भी सम्बोधित किया, तथा इसकी उत्पति शिवलिंग से मानी हैं. साथ ही इन्हें गंगा जी से भी अधिक पवित्र कहा गया हैं.
मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले के पास ही स्थित अमरकंटक की पर्वत शिखा से नर्मदा नदी के सफर की शुरुआत होती हैं. कपिलधारा, दूध धारा, मांधाता, शूल पाड़ी, शुक्लतीर्थ, भेड़ाघाट, भरौच जैसे हजारों तीर्थों से होते हुए करीब 1310 चलने के बाद नर्मदा खम्भात की खाड़ी में जाकर विश्राम पाती हैं. हिन्दू धर्म में नर्मदा की परिक्रमा को पुण्यकारी माना गया हैं.
पितरों को मोक्ष देने वाली नर्मदा को पितरों की पुत्री भी कहा जाता हैं. अपने उद्गम स्थल से प्रस्थान करने के पश्चात जबलपुर के पास भेड़ाघाट में एक सुंदर जल प्रपात बनाती हैं.
भगवान शिव के साथ प्रत्यक्ष जुडी होने के कारण माँ नर्मदाजी के प्रति भक्तों की अगाध श्रद्धा के दर्शन देखने को मिलते हैं.
माता नर्मदा की कथा
ऐसा कहा जाता है कि नर्मदा राजा मेखल की बेटी थी. युवावस्था में इनका विवाह सोनभद्र के साथ तय किया जाता हैं. किवदंती के अनुसार विवाह से पूर्व नर्मदा एक बार अपने पति को देखना चाहती थी.
इस प्रयोजन हेतु उन्होंने अपनी कुछ सखी सहेलियों को बुलाया तथा अपनी इच्छा जाहिर की. उनकी एक सखी जिनका नाम जुहिया था को राजकुमार के पास संदेश देकर भेजा तथा राजकुमारी से मिलने का प्रस्ताव भिजवाया गया.
वक्त बीतता गया मगर जुहिया की कोई खैर खबर नहीं थी, नर्मदा को उनकी चिंता सताने लगी. अतः वह स्वयं अपनी सहेली की खोज पड़ताल में निकल पड़ी.
आखिर उसने दोनों (सोनभद्र और जुहिया) को एक साथ पाया, यह नजारा देखकर राजकुमारी क्रोधित हुई और आजीवन विवाह न करने का प्रण लेकर वापिस लौट आई.
इसी कहानी को लेकर आज भी माना जाता है कि उन्होंने आजीवन विवाह नहीं किया तथा कुँवारी रही.
यह भी पढ़े
उम्मीद करता हूँ दोस्तों Story Of Narmada River In Hindi का यह लेख आपकों पसंद आया होगा. नर्मदा नदी की शोर्ट कहानी आपकों पसंद आई हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ भी जरुर शेयर करें.