छात्र असंतोष पर निबंध | Student Dissatisfaction Essay In Hindi

छात्र असंतोष पर निबंध | Student Dissatisfaction Essay In Hindi समय समय पर देश के किसी न किसी राज्य में छात्र सड़कों पर आंदोलन करते नजर आते हैं रेलें रोकने हड़ताले आदि आम बात हो चुकी हैं.

इन वर्षों में रेलवे एनटीपीसी और रीट छात्रों का प्रदर्शन महीनों तक चला था. सरकार द्वारा अपारदर्शी तरीके से भर्तियो के आयोजन, पेपर लिक के जरिये छात्रों के भविष्य के साथ खेला जाने पर उनके असंतोष का इस रूप में हर बार कहीं न कही प्रदर्शित होता रहता हैं.

छात्र असंतोष पर निबंध | Student Dissatisfaction Essay In Hindi

छात्र असंतोष पर निबंध | Student Dissatisfaction Essay In Hindi

छात्रों में असन्तोष के कारण क्या हैं और निवारण क्या हैं 300 शब्दों में निबंध

छात्र असंतोष का आशय हैं छात्रों का वर्तमान शिक्षा एवं शिक्षा प्रणाली से असंतुष्ट होना. छात्रों को यह असंतुष्टि किसी पाठ्य क्रम को लेकर हो सकती हैं. किसी कोर्स को लेकर हो सकती हैं. अथवा परीक्षा के मापदंड को लेकर हो सकती हैं.

हम कई बार देखते हैं की एक छात्र को उसके पसंदीदा पाठ्यक्रम अथवा संस्थान में प्रवेश नहीं मिल पाने के कारण भी उसमें असंतोष की भावना घर कर लेती हैं. 

ऐसे में राजकीय उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश न मिलने की स्थिति में छात्रों को विवश होकर निजी शिक्षण संस्थानों में प्रवेश लेना पड़ता हैं.

छात्र असंतोष क्या है– निजी शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए छात्रों से अधिक राशि वसूली जाती हैं. सम्पन्न परिवारों के बच्चे तो अधिक शुल्क देकर निजी शिक्षण संस्थानों में मनपसन्द पाठ्यक्रम में प्रवेश पाने में सफल रहते हैं,

किन्तु निर्धन छात्रों के सामने धन के आभाव में पढ़ाई छोड़ने या पारम्परिक सस्ते पाठ्यक्रमों में प्रवेश के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं बचता. 

इस स्थिति  में उनके  भीतर स्वा भा विक रूप से शिक्षा के प्रति असंतोष की भावना जागृत हो जाती हैं. और वह सम्पूर्ण शिक्षा तंत्र को कोसने लगता हैं.

एक छात्र में इस तरह के असंतोष के उपजने से दूसरे छात्र उसका समर्थन करने लगते हैं. यह अवस्था बड़ी विकट होती हैं. बहर हाल सूचना प्रोद्योगिकी के इस उन्नत युग में भी व्यावसायिक शिक्षा की अपेक्षित व्यवस्था अब तक भारत में नहीं हो पाई हैं. पारम्परिक शिक्षा प्राप्त कर उच्च उपाधि धारण करने के बावजूद अधिकतर छात्र किसी विशेष काम लायक नहीं रहते हैं.

इसके कारण शिक्षित बेरोजगारी की स्थिति उत्पन्न हो जाती हैं. भारत में हर वर्ष लगभग पांच लाख से अधिक छात्र अभियांत्रिकी एवं प्रोद्योगिकी की शिक्षा प्राप्त करते हैं.

इनमें से अधिकतर योग्य अभियंता नहीं होते. इसलिए उनको डिग्री के अनुरूप नौकरी नहीं मिल पाती. इस स्थिति में छात्रों का असंतुष्ट होना स्वाभाविक ही हैं.

छात्र असंतोष निबंध 500 शब्द

निजी संस्थानों में विद्यार्थियों को दाखिला देने के बदले में तगड़ी फीस ली जाती है। ऐसी अवस्था में आर्थिक रूप से मजबूत बच्चे तो अपनी फीस भर लेते हैं परंतु जिन बच्चों की आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं होती है,

वह पैसे के अभाव में या तो पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर होते हैं या फिर पारंपरिक सस्ते सिलेबस वाले कोर्स में एडमिशन लेने के लिए मजबूर होते हैं। ऐसी स्तिथि में उनके अंदर शिक्षा के प्रति असंतोष की भावना पैदा हो जाती है और वह पूरे एजुकेशन सिस्टम को कोसने लगते हैं।

एक विद्यार्थी में इस प्रकार का असंतोष पैदा होने के कारण दूसरे विद्यार्थी भी उसका सपोर्ट करने लगते हैं और ऐसी अवस्था काफी विकराल होती है। फिलहाल टेक्नोलॉजी के इस आधुनिक जमाने में व्यावसायिक शिक्षा की अपेक्षित सिस्टम व्यवस्था अब तक इंडिया में नहीं हो पाई है।

पारंपरिक एजुकेशन प्राप्त करके उचित डिग्री हासिल करने के बावजूद भी अधिकतर विद्यार्थी कोई खास काम करने लायक नहीं होते हैं जिसके कारण पढ़ने के बावजूद विद्यार्थियों को रोजगार नहीं मिलता है और बेरोजगारी की स्थिति पैदा होती है।

हमारे इंडिया में हर साल तकरीबन 5,00000 विद्यार्थी इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त करते हैं परंतु इसके बावजूद इनमें से अधिकतर विद्यार्थी योग्य इंजीनियर नहीं होते हैं। इसीलिए ऐसे विद्यार्थियों को नौकरी प्राप्त नहीं हो पाती है‌

एजुकेशन के निजीकरण होने के कारण हाई क्वालिटी की एजुकेशन देने वाले कई इंस्टिट्यूट ओपन हो चुके है परंतु इसके बावजूद इन संस्थानों में विद्यार्थियों का भारी मात्रा में शोषण किया जाता है क्योंकि यहां पर एजुकेशन के लिए आवश्यक साधन नहीं होते हैं और जब छात्र के द्वारा उनका विरोध किया जाता है, तब इंस्टिट्यूट उन्हें एडमिशन कैंसिल करने की धमकी देता है।

प्राइवेट इंस्टिट्यूट को जो लोग चलाते हैं उनकी पहुंच ऊपर तक होती है। इसलिए ऐसे लोगों की शिकायत करने का भी कोई रिजल्ट सामने नहीं आता है। ऐसे में विद्यार्थियों के पास अपनी किस्मत को कोसने के अलावा अन्य कोई भी रास्ता नहीं बचता है।

राजकीय इंस्टीट्यूट में भी टीचर और कर्मचारियों की मनमानी का खामियाजा विद्यार्थियों को ही भुगतना पड़ता है। टीचर और इंस्टिट्यूट के कर्मचारी अपनी बात को मनवाने के लिए हड़ताल कर देते हैं जिससे विद्यार्थियों की एजुकेशन प्रभावित होती है.

विद्यार्थियों का समय भी खराब होता है। इसके अलावा जब विद्यार्थी विरोध करते हैं तो उन्हें फेल करने की धमकी भी दी जाती है जिसकी वजह से भी छात्रों में असंतोष पैदा होता है।

इस प्रकार ज्यादा फीस, बेरोजगारी का डर, शिक्षा का अनुरूप नहीं होना, प्राइवेट इंस्टिट्यूट का अधिक होना, एजुकेशन सिस्टम खराब होना, इंस्टिट्यूट में हड़ताल होना इत्यादि भी इंडिया में विद्यार्थियों के मन में असंतोष पैदा करते हैं।

किसी भी देश का भविष्य विद्यार्थी ही होते हैं। इसीलिए विद्यार्थियों का विशेष ध्यान गवर्नमेंट को रखना चाहिए और उनके साथ किसी भी प्रकार की नाइंसाफी/ खिलवाड़ ना हो इसका ध्यान भी गवर्नमेंट के साथ ही साथ आम लोगों और एजुकेशन देने वाले इंस्टिट्यूट को रखना चाहिए, ताकि विद्यार्थीयो के मन में असंतोष पैदा ना हो और वह अपनी पढ़ाई पूरी करके देश की उन्नति में अपना योगदान दे सकें।

“Chatra Asantosh-Karan aur Samadhan” छात्र असंतोष कारण और समाधान

शिक्षा के निजीकरण के कारण उच्च शिक्षा प्रदान करने वाली शिक्षण संस्थाओं की बाढ़ तो आ गई हैं. किन्तु इन संस्थानों में छात्रों का अत्यधिक शोषण होता हैं.

यहाँ शिक्षा के लिए पर्याप्त संसाधनों का अभाव होता हैं. छात्रों द्वारा विरोध किये जाने पर उन्हें संस्थान से निकाले जाने की धमकी दी जाती हैं.

शिक्षण संस्थानों को चलाने वाले व्यवसायियों की पहुच ऊपर तक होती हैं. इसलिए उनकी शिकायत का भी कोई परिणाम नहीं निकलता हैं. अतः छात्रों के पास कुंठित होकर अपनी किस्मत कोसने के आलावा कोई और रास्ता शेष नहीं बचता

राजकीय शिक्षण संस्थानों में भी शिक्षकों एवं कर्मचारियों की मनमानी का खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ता हैं. शिक्षक एवं शिक्षण संस्थान के कर्मचारी अपनी बात मनवाने के लिए हड़ताल पर चले जाते हैं.

इससे शिक्षा तो बाधित होती ही हैं, छात्रों का बहुमूल्य समय भी नष्ट होता हैं. विरोध या बहिष्कार करने की स्थिति में उन्हें अनुतीर्ण करने की धमकी दी जाती हैं. उच्च शिक्षण संस्थानों में ऐसी स्थिति छात्र असंतोष का कारण बनती हैं.

शिक्षा जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया हैं इसलिए समाज एवं देश के हित के लिए उसके उद्देश्य का निर्धारण आवश्यक है. चूँकि समाज एवं देश में समय के अनुसार परिवर्तन होते रहते हैं.

इसलिए शिक्षा के उद्देश्यों में भी समय के अनुसार परिवर्तन होते हैं. उदहारण के लिए वैदिक काल में वेदमन्त्रों की शिक्षा को पर्याप्त कहा जाता था, किन्तु वर्तमान काल में मनुष्य के विकास के लिए व्यावसायिक शिक्षा पर जोर दिया जाना चाहिए.

यदपि पिछले कुछ वर्षों में देश में व्यावसायिक शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति देखने को मिली हैं, किन्तु यह अभी तक पर्याप्त नहीं हैं. इस कारण अधिकतर छात्र पारम्परिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए बाध्य हैं.

ये पाठ्यक्रम वर्तमान समय की मांग के अनुरूप नहीं हैं. इसलिए ऐसे पाठ्यक्रमों से उच्च शिक्षा प्राप्त छात्रों के सामने भविष्य में रोजगार प्राप्त करने की समस्या खड़ी रहती हैं. इसलिए उनका ऐसी शिक्षा व्यवस्था से विश्वास उठना स्वाभाविक हैं.

कुछ स्वार्थी राजनितिक दल छात्रों को अपने साथ मिलाकर अपना उल्लू सीधा करने में लगे रहते हैं. इसलिए वे शिक्षण संस्थानों में राजनीती को बढ़ावा देते हैं.

इसके कारण देश के कुछ प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान राजनीति के अखाड़े का रूप लेते जा रहे हैं ऐसी स्थिति में छात्रों की पढ़ाई बाधित तो होती ही हैं, इस स्थिति के कारण छात्रों के शिक्षा के प्रति असंतोष की भावना भी उत्पन्न होती हैं.

छात्र अशांति/ छात्र असंतोष के कारण: इस तरह बेरोजगारी का डर,  पारम्परिक  शिक्षा का वर्तमान स मय के  अनुरूप  न  होना, व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने वाली शिक्षण संस्थानों का अभाव, शिक्षण संस्थानों को राजनीति का केंद्र बनाया जाना,शिक्षकों एवं कर्मचारियों का कर्तव्यों से विमुख होना निजी शिक्षण संस्थानों की मनमानी इत्यादि भारत में छात्र असंतोष के कारण हैं.

छात्र ही देश के भविष्य होते हैं, यदि उनका भला न हो पाया, यदि वे बेरोजगारी का दंश झेल रहे हो, यदि उनके साथ नाइंसाफी हो रही हो, यदि उनके भविष्य से खिलवाड़ हो रहा, तो देश का भला कैसे हो सकता हैं.

निसंदेह इसके कारण देश की आर्थिक ही नहीं सामाजिक एवं राजनीतिक प्रगति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. इसलिए समय रहते हुए इस समस्या का समाधान करना जरुरी हैं.

छात्र असंतोष को दूर करने के लिए सबसे पहले देश की शिक्षा व्यवस्था में सुधार कर इसे वर्तमान समय के अनुकूल करना होगा , इसके लिए व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने वाले शिक्षण संस्थानों की स्थापना पर्याप्त संख्या में करनी होगी. 

इसके    अलावा राजनीति को शिक्षा से दूर ही रखना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि इन संस्थाओं में शिक्षक एवं कर्मचारी अपनी मन मानी से छात्रों का भविष्य चौपट न कर पाए.

इसके अलावा ऐसी निजी शिक्षण संस्थाएं जहाँ छात्रों एवं अभिभावकों का अत्यधिक शोषण हो रहा हो, वहां उचित कार्यवाही करते हुए उन्हें शोषण से बचाया जाए.

इसके लिए शिक्षकों को उनके कर्तव्यों का अहसास कराना होगा. इन सबके अतिरिक्त छात्रो को रचनात्मक कार्यो की ओर मोड़कर भी छात्र असंतोष को काफी हद तक कम किया जा सकता हैं.

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