सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीशों की नियुक्ति पद से हटाना सर्वोच्च अदालत की सरंचना व क्षेत्राधिकार | Supreme Court Of India Details In Hindi : सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया suprim kort सर्वोच्च अदालत के इस लेख में आज हम जानेगे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश की नियुक्ति कैसे होती है. सुप्रीम कोर्ट कहाँ स्थित है स्थापना, अधिकार कार्य शक्तिया तथा भारतीय न्याय व्यवस्था की सरंचना क्या है तथा उनका क्षेत्राधिकार क्या हैं. यह इस निबंध में विस्तार से समझेगे.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीशों की नियुक्ति पद से हटाना सर्वोच्च अदालत की सरंचना व क्षेत्राधिकार
Supreme Court Of India In Hindi Essay on Supreme Court of India in hindi सर्वोच्च न्यायालय इन हिंदी: भारत का सर्वोच्च न्यायालय वास्तव में विश्व के सबसे शक्तिशाली न्यायालयों में से एक हैं. 1950 से ही न्यायपालिका ने संविधान की व्याख्या और सुरक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं. अधिकारों की सुरक्षा के लिए न्यायपालिका बहुत ही महत्वपूर्ण हैं. हर समाज में व्यक्तियों के बीच, समूहों के बीच और व्यक्ति समूह तथा सरकार के बीच विवाद उठते हैं.
इन सभी विवादों को कानून के शासन के सिद्धांत के आधार पर एक स्वतंत्र संस्था द्वारा हल किया जाना चाहिए. कानून के शासन का भाव यह है कि धनी और गरीब स्त्री और पुरुष तथा अगड़े और पिछड़े सभी लोगों पर एक समान कानून लागू हो. न्यायपालिका की प्रमुख भूमिका यह है कि वह कानून के शासन की रक्षा और कानून की सर्वोच्चता को सुनिश्चित करे.
न्यायपालिका व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करती हैं. विवादों का कानून के अनुसार हल करती हैं. और सुनिश्चित करती हैं कि लोकतंत्र की जगह किसी एक व्यक्ति या समूह की तानाशाही न ले ले. इसके लिए जरुरी है कि न्यायपालिका किसी भी राजनीतिक दवाब से मुक्त हो.
भारत के सर्वोच्च न्यायालय की जानकारी
supreme court established in india: न्यायपालिका को स्वतंत्रता कैसे दी जा सकती है और उसे सुरक्षित कैसे बनाया जा सकता हैं. भारतीय संविधान में अनेक उपायों के द्वारा न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित की हैं. न्यायधीशों की नियुक्तियों के मामलों ए विधायिका को सम्मिलित नहीं किया गया हैं. इससे यह सुनिश्चित किया गया कि इन नियुक्तियों में दलगत राजनीति की कोई भूमिका नहीं रहे.
न्यायधीश के रूप में नियुक्त होने के लिए किसी व्यक्ति को वकालात का अनुभव या कानून का विशेयज्ञ होना चाहिए. उस व्यक्ति के राजनीतिक विचार या निष्ठाएं उसकी नियुक्ति का आधार नहीं बनना चाहिए. न्यायधीशों का कार्यकाल निश्चित होता हैं. वे सेनानिवृत होने तक पद पर बने रहते हैं. केवल अपवाद स्वरूप विशेष परिस्थितियों में ही न्यायधीशों को हटाया जा सकता हैं.
इसके अलावा उनके कार्यकाल को कम नहीं किया जा सकता. कार्यकाल की सुरक्षा के कारण न्यायधीश बिना भय या भेदभाव के अपना काम कर पाते हैं. संविधान में न्यायधीशों को हटाने के लिए बहुत कठिन प्रक्रिया निश्चित की गई हैं. संविधान निर्माताओं का मानना था कि हटाने की प्रक्रिया कठिन हो, तो न्यायपालिका के सदस्यों का पद सुरक्षित रहेगा.
न्यायपालिका विधायिका या कार्यपालिका पर वित्तीय रूप से निर्भर नहीं हैं. संविधान के अनुसार न्यायधीशों के वेतन और भत्तें के लिए विधायिका की स्वीकृति नहीं ली जाएगी. न्यायधीशों के कार्यों और निर्णयों की व्यक्तिगत आलोचना नहीं की जा सकती. अगर कोई न्यायालय की अवमानना का दोषी पाया जाता हैं, तो न्यायपालिका उसे दंडित करने का अधिकार हैं.
माना जाता है कि इस अधिकार से न्यायधीशों को सुरक्षा मिलेगी और कोई उनकी नाजायज आलोचना नहीं कर सकेगा. संसद न्यायधीशों के आचरण पर केवल तभी चर्चा कर सकती हैं जब वह उनके विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव पर विचार कर रही हो. इससे न्यायपालिका आलोचना के भय से मुक्त होकर स्वतंत्र रूप से निर्णय करती हैं.
न्यायधीशों की नियुक्ति (Appointment Of Judges)
सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के अन्य न्यायधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायधीश की सलाह से करता है इसका अर्थ यह हुआ है कि नियुक्तियों के सम्बन्ध में वास्तविक शक्ति मंत्रिपरिषद के पास हैं. 1982 से 1998 के बीच यह विषय बार बार सर्वोच्च न्यायालय के सामने आया.
शुरू में न्यायालय का विचार था कि मुख्य न्यायधीश की भूमिका पूरी तरह से सलाहकार की हैं. लेकिन बाद में न्यायालय ने माना कि मुख्य न्यायधीश की सलाह राष्ट्रपति को जरुर माननी चाहिए. आखिरकार सर्वोच्च न्यायलय ने एक नई व्यवस्था की. इसके अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश अन्य चार विरिष्ठतम न्यायधीशों की सलाह से कुछ नाम प्रसारित करेगा और इसी में से राष्ट्रपति नियुक्तियाँ करेगा. इसे कोलेजियम व्यवस्था कहते हैं.
इस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय ने नियुक्तियों की सिफारिश के सम्बन्ध में सामूहिकता का सिद्धांत स्थापित किया. इसी कारण आजकल नियुक्तियों के सम्बन्ध में सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीशों के समूह का ज्यादा प्रभाव हैं. इस तरह न्यायपालिका की नियुक्ति में सर्वोच्च न्यायालय और मन्त्रिपरिषद महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में नियुक्ति की नई प्रणाली को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त करना- सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में संविधान के 99 वें संशोधन द्वारा लाए गये राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को असंवैधानिक करार देते हुए इसे निरस्त कर दिया और उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए पुरानी कोलेजियम प्रणाली को बहाल कर दिया.
सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से केंद्र सरकार और सर्वोच्च न्यायालय के मध्य टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गई हैं. वर्तमान सरकार न्यायधीशों की जवाबदेहता और अधिक पारदर्शिता की व्यवस्था के अंतर्गत नियुक्ति की नई व्यवस्था लानी चाहती थी. ताकि नियुक्तियों में भाई भतीजावाद की प्रवृत्ति को रोका जा सके. इस प्रयोजनार्थ केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में न्यायधीशों की नियुक्ति की.
कोलेजियम प्रणाली में बदलाव लाने के लिए 13 अप्रैल 2015 को राष्ट्रीय नियुक्ति आयोग अधिनियम 2014 और 99 वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 2014 को अधिसूचित किया. ध्यातव्य है कि इन दोनों अधिनियमों से सम्बन्धित दो विधेयक क्रमशः राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक 2014 और 121 वाँ संविधान संशोधन विधेयक 2014 लोकसभा में 13 अगस्त 2014 को और राज्यसभा में 14 अगस्त 2014 को सर्वसम्मति से पारित हो गये थे.
संविधान के अनुच्छेद 368 (2) के तहत निर्धारित से आधे से अधिक राज्य विधानसभाओं के अनुमोदन मिलने के बाद 31 दिसम्बर 2014 को राष्ट्रपति ने इन दोनों विधेयकों को मंजूरी प्रदान की. राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद 121 वाँ संविधान संशोधन विधेयक 2014, 99 वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 2014 के रूप में और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक 2014 राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति अधिनियम 2014 के रूप में 31 दिसम्बर 2014 को ही राजपत्र में प्रकाशित किया गया था. केंद्र सरकार ने 13 अप्रैल 2015 को इन अधिनियमों के प्रभावी होने की तिथि निर्धारित कर दी थी.
इस अनुच्छेद के अनुसार राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के नाम से ज्ञात एक आयोग होगा, जिसका अध्यक्ष भारत का मुख्य न्यायाधीश होगा. इसके अलावा सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायधीश, केन्द्रीय विधि और न्यायमंत्री तथा दो प्रबुद्ध/ विख्यात व्यक्ति इसके सदस्य होंगे.
इस प्रकार यह आयोग छः सदस्यीय होगा. उल्लेखनीय है कि दो प्रबुद्ध/ विख्यात व्यक्तियों का चयन प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायमूर्ति और लोकसभा में विपक्ष के नेता या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता से मिलकर बनने वाली समिति द्वारा किया जाएगा. इन दो प्रबुद्ध/ विख्यात व्यक्तियों में एक व्यक्ति का अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्गों, अल्प संख्यकों के व्यक्तियों या महिलाओं में से नाम निर्दिष्ट किये जाएगे. उल्लेखनीय है कि उपर्युक्त संवैधानिक संशोधन को सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने निरस्त कर दिया हैं.
न्यायाधीशों को पद से हटाना (Remove Of Judges)
सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को उनके पद से हटाना काफी कठिन हैं. कदाचार साबित होने अथवा अयोग्यता की दशा में ही उन्हें पद से हटाया जा सकता हैं. न्यायाधीश के विरुद्ध आरोपों पर संसद के एक विशेष बहुमत की स्वीकृति जरुरी होती हैं. स्पष्ट है कि न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया अत्यंत कठिन है और जब तक संसद के सदस्यों में आम सहमति न हो तब तक किसी न्यायाधीशों को हटाया नही जा सकता.
यह भी गौरतलब है कि जहाँ उनकी नियुक्ति में कार्यपालिका की महत्वपूर्ण भूमिका है वहीँ उनको हटाने की शक्ति विधायिका के पास हैं. इसके द्वारा सुनिश्चित किया गया हैं. कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता बची रहे और शक्ति संतुलन भी बना रहे. अब तक संसद के पास किसी न्यायाधीश को हटाने का केवल एक प्रस्ताव विचार के लिए आया हैं. इस मामले में हालांकि दो तिहाई सदस्यों ने प्रस्ताव के पक्ष में मत दिया, लेकिन न्यायाधीश को हटाया नहीं जा सका क्योंकि प्रस्ताव पर सदन की कुल सदस्य संख्या का बहुमत प्राप्त न हो सका.
न्यायपालिका की सरंचना (Structure Of Judiciary)
भारतीय संविधान एकीकृत न्यायिक व्यवस्था की स्थापना करता हैं. इसका अर्थ यह है कि विश्व के अन्य संघीय देशों के विपरीत भारत में अलग से प्रांतीय स्तर के न्यायालय नहीं हैं. भारत में न्यायपालिका की सरंचना पिरामिड की तरह है जिसमें सबसे ऊपर सर्वोच्च न्यायालय फिर उच्च न्यायालय तथा सबसे नीचे जिला अधीनस्थ न्यायालय हैं. नीचे के न्यायालय अपने ऊपर के न्यायलयों की देखरेख में काम करते हैं.
भारत का सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court Of India)
- इसके फैसले सभी अदालतों को मानने होते हैं.
- यह उच्च के न्यायधीशों का तबादला कर सकता हैं.
- यह किसी अदालत का मुकदमा अपने पास मंगवा सकता हैं.
- यह किसी एक उच्च न्यायालय में चल रहे मुकदमे को दूसरे उच्च न्यायालय में भिजवा सकता हैं.
उच्च न्यायालय (High Court)
- निचली अदालतों के फैसले पर की गई अपील की सुनवाई कर सकता हैं.
- मौलिक अधिकारों को बहाल करने के लिए रिट जारी कर सकता हैं.
- राज्य के क्षेत्राधिकार में आने वाले मुकदमें का निपटारा कर सकता हैं.
- अपने अधीनस्थ अदालतों का पर्यवेक्षण और नियंत्रण करता हैं.
जिला न्यायालय (District Courts)
- जिले में दायर मुकदमों की सुनवाई करता हैं,
- निचली अदालतों के फैसले पर की गई अपील की सुनवाई करती हैं
- गम्भीर किस्म के अपराधिक मामलों पर फैसला देती हैं.
अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts)
- फौजदारी और दीवानी किस्म के मुकदमों पर विचार करती हैं.
सर्वोच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार (Jurisdiction Of The Supreme Court)
भारत का सर्वोच्च न्यायालय विश्व के शक्तिशाली न्यायालयों में से एक हैं लेकिन वह संविधान द्वारा तय सीमा के अंदर ही काम करता हैं. सर्वोच्च न्यायालय के कार्य और उत्तरदायित्व संविधान में दर्ज हैं. सर्वोच्च न्यायालय को कुछ विशेष क्षेत्राधिकार प्राप्त हैं.
मौलिक क्षेत्राधिकार (Basic Jurisdiction)
मौलिक क्षेत्राधिकार का अर्थ है कि कुछ मुकदमों की सुनवाई सीधे सर्वोच्च न्यायालय कर सकता हैं. ऐसे मुकदमो में पहले निचली अदालतों में सुनवाई जरुरी नहीं. संघीय सम्बन्धों से जुड़े मुकदमें सीधे सर्वोच्च न्यायालय में जाते हैं. सर्वोच्च न्यायालय का मौलिक क्षेत्राधिकार उसे संघीय मामलों से सम्बन्धित सभी विवादों में एक अम्पायर या निर्णायक की भूमिका देता हैं.
किसी भी संघीय व्यवस्था में केंद्र और राज्यों के बीच तथा विभिन्न राज्यों में परस्पर कानूनी विवादों का उठाना स्वाभाविक हैं. इन विवादों को हल करने की जिम्मेदारी सर्वोच्च न्यायालय की हैं. इसे मौलिक क्षेत्राधिकार इसलिए कहते हैं कि क्योंकि इन मामलों को केवल सर्वोच्च न्यायालय ही हल कर सकता हैं. इनकी सुनवाई न तो उच्च न्यायालय और न ही अधीनस्थ न्यायालयों में हो सकती हैं. अपने इस अधिकार का प्रयोग कर सर्वोच्च न्यायालय न केवल विवादों को सुलझाता है बल्कि संविधान में दी गई संघ और राज्य सरकारों की शक्तियों की व्याख्या भी करता हैं.
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- संसद के कार्य एवं शक्तियों का वर्णन
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आशा करता हूँ दोस्तों आपकों सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीशों की नियुक्ति के बारे में दी गई जानकारी पसंद आई होगी. यदि आपकों Supreme Court Of India Details In Hindi पसंद आया हो तो अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करे.