सूरदास के पद | Surdas Ke Pad In Hindi On Krishna Childhood

सूरदास के पद | Surdas Ke Pad In Hindi On Krishna Childhood– लेख के शीर्षक सूरदास के पद में सुर की विभिन्न रचनाओं से लिए गये बालक कृष्ण की बाल-लीलाओ पर आधारित हैं |

सूरसागर के पद अर्थ सहित class 8 विनय, बाल वर्णन और भ्रमर गीत के पद यहाँ पर संकलित हैं | कवि सूर ने स्वय को दीन-हीन मानते हुए विनय और दास्य भावों में अपने आराध्य श्रीकृष्ण की बाल क्रियाओ का सुन्दर चित्रण किया हैं |

माँ यशोदा के पुत्र प्रेम और इन पदों के दुसरे भाग में गोपियों के उद्दव के साथ किये गये. वार्तालाप के भाग को यहाँ दिया जा रहा हैं.

सूरदास के पद (Surdas Ke Pad In Hindi On Krishna Childhood)

सूरदास के पद | Surdas Ke Pad In Hindi On Krishna Childhood

सूरदास पद (1)

मेरे मन अनतकहा सुख पावे ?
जैसे उड़ी जहाज कौ फिरि जहाज पर आवै ||
कमल नैन कई छाड़ी महातम और देव को धियावे |
परम गंग कौ छाड़ी पियासो दुरमतिकूप खनावै ||
जिहि मधुकर अंबुज रस चख्यो, क्यों करील फल पावै |
सूरदास प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै ||

सूरदास पद (2)

अविगत गति कछु कहत न आवै |
ज्यो गूंगे मीठे फल कौ रस , अन्तरगत ही भावै ||
परम स्वाद सबहु जु निरंतर. अमिष तोष उपजावै |
मन बाणी कौ अगम अगोचर, सो जाने जो पावै ||
रूप रेख गुण जाति जुगुति बिनु निरालब मन चक्रित धावै |
सब विधि अगम विचारही तातै, सूर सगुण लीला पद पावै ||

 सूरदास पद (3)

छाडी मन हरी विमुखन कौ संग |
जाके संग कुबुद्दी उपजे परत भजन में भंग ||
कहा भयो पय, पान कराये विष नहि तजत भुजंग |
काग्ही कहा कपूर खवाए, स्वान न्ह्वाए गंग ||
खर को कहा अरगजा लेपन मरकट भूषण अंग |
गज को कहा न्ह्वाये सरिता बहुरि धरै गहि छंग ||
पाहन पतित बान नहि भेदत रीतो करत निषंग |
सूरदास खल कारीकामरि चढ़े न दूजा रंग ||

सूरदास पद (4)

अब के राखि लेहु भगवान् |
हो अनाथ बैठ्यो द्रुम डारिया, पारधि साधेबान ||
ताके डर तै भज्यो चहत है उपर ढूक्यो सचान |
दुहू भांति दुःख भयो आनी यह, कौन उबारे प्रान ?
सुमिरत ही अहि डस्यो पारधी , सर छुट्यो संधान |
सूरदास सर लग्यो सचाननहि, जय जय कृपा निधान ||

कृष्ण बाल लीला पद (Surdas Pad )

(1) सूरदास पद

मैया, मै तो चंद- खिलौना लैहौ |
जैहौ लौटि धरनि पर आवहि , तेरी गौद न एहो ||
सुरभि को पय-पान न करिहौ , बेनी सिर न गुहैहौ |
हवे हौ पूत नंद बाबा कौ, तेरौ सुत न कहै हौ ||
आगे आऊ, बात सुन मेरी, बलदेवहि न जनैहौ |
हँसि समुझावति,कहती जसोमति, नई दुल्हनियाँ देहौ ||
तेरी सौं, मेरी सुनि मैया, आवहि वियाहन जैहौ |
सूरदास हवै कुटिल बराती, गीत सुमंगल गैहौ ||

(2) सूरदास पद

जब हरि मुरली अधर धरी
गृह-व्यौहार तजे आरज-पथ चलत न संककरी ||
पद-रिपु पट अंटक्यौ न स्म्हारती, उलट न पलट खरी |
सिब-सुत वाहन आइ मिलें हैं, मन-चित-बुद्दि हरी ||
दूरि गए कीर, कपोत, मधुप,पिक, सारंग सुधिबिसरी |
उडूपति विद्रुम बिम्ब खिसाने, दामिनि अधिक डरी ||
मिलि हैं स्यामहिं हंस-सुता-तट, आनन्द-उमंग भरी |
सूर स्याम कौ मिली परस्पर, प्रेम प्रवाह ढरी ||

(3) सूरदास पद

गए श्याम ग्वालिनी घर सुनै |
माखन खाई, डारि सब गोरस, बासन फोरि किए सब चुने ||
बड़ों माट इक बहुत दिननि कौ, ताहि करयौ दस टूक |
सोवत लरिकनी छिरकि मही सौं हँसत चले दै कूक ||
आइ गई ग्वालिनी तीही औसर, निकसत हरि धरि पाए |
देखे घर बासन सब फूटे, दूध दही धरकाएं ||
दोउ भुज धरि गाढे, करि लीन्हे, गईं महरि के आगै |
सूरदास अब बसै कौन्हा,पति रहि हैं ब्रज त्यागै ||

भ्रमरगीत (सूरदास के पद)

(1) सूरदास पद

आयौ घोष बड़ों व्यौपारी |
लादि खेप गन ज्ञान-जोग की ब्रज में आय उतारी ||
फाटक दे कर हाटक मागंत भौरे निपट सुधारी |
धुर ही तें खोटो खायो हैं लये फिरत सर भारी ||
इनके कहे कौन डह्कावे ऐसी कौन अजानी |
अपनों दूध छाडि को पीवै खार कूप को पानी ||
ऊधो जाहु सवार यहाँ तें वेगि गहरू जनि लावौ |
मुंह मांग्यो पैहौ सूरज प्रभु साहुहि आणी दिखावों ||

(2) सूरदास पद

ऊधो ! कोकिल कूजत कानन |
तुम हमको उपदेश करत हौ भस्म लगावन आनन ||
औरों सब तजि,सिंगी लै-लै टेरन चढ़न पखान्न |
पै नित आनी पपीहा के मिस मदन हति निज बानन |
हम तौ निपट अहिरि बाबरी जोग दीजिए ज्ञाननी ||
कहा कथत मामी के आगे जानत नानी नानन |
सुंदरस्याम मनोहर मूरति भावति नीके गानन |
सूर मुकुति कैसे पुजति हैं वा मुरली की तानन ||

(3) सूरदास पद

ऊधो ! जाहु तुम्हें हम जाने |
स्याम तुम्हें हाँ नाहि पठाएं तुम हो बिच भुलाने ||
ब्रजवासिन जों जोग कहत हौ, बातहू कहन न जाने |
बढ़ लागै न विवेक तुम्हारों ऐसे नये अयाने ||
ह्म्सो कही लई सो सहिकै जिय गुनि लेहु अपाने |
कहँ अबला कहँ दसा दिगंबर संमुख करो पहिचाने ||
साँच कहौ तुमको अपनी सौ बिझति बात निदाने |
सूर स्याम जब तुम्हें पठाए तब नेकहु मुसुकाने ||

(4) सूरदास पद

ऊधो! भली करि अब आए |
विधि-कुलाल कीने कांचे घट ते तुम आणि पकाएँ ||
रंग दियो हो कान्ह सांवरे, अंग अंग चित्र बनाएं |
गलन न पाएँ नयन-नीर ते अवधि अटा जो छाए ||
ब्रज करि अंवाँ,जोग करि ईंधन सुरति-अगिनि सुलगाएँ |
फूँक उसास, विरह परजारनि,दरसन आस फिराए ||
भए संपूरण भरे प्रेम-जल, छुवन न काहू पाए |
राजकाज तें गए सूर सुनि , नंदननन्दन कर लाए ||

(5) सूरदास पद

ऊधो! मोहि ब्रज बिसरत नाहीं |
हंससुता की सुन्दरीं कगरी अरु कुंजन की छाही ||
वै सुरभि, वै बच्छ दोहनी, खारिक दुहावन जाहि |
ग्वालबाल सब करत कुलाहल नाचत गहि गहि बाहीं ||
यह मथुरा कंचन की नगरी मनी मुकताहल जाहि |
तबही सुरति आवति वाँ सुख की जिय उमगत तनु नाहि ||
अनगन भांति करी बहु लीला जसुदा नंद निबाही |
सूरदास प्रभु रहे मौन हंवे, यह कहि कहि पछिताही ||

सूरसागर के पद अर्थ सहित class 8

बूझत श्याम कौन तू गोरी
कहाँ रहति, काकी है बेटी,
देखि नहीं कहूँ ब्रज खोरी
काहे को हम ब्रज तन आवति
खेलति रहति आपनी पौरी
सुनत रहति स्रवननि नंद ढोटा,
करत फिरत माखन दही चोरी
सूरदास प्रभु रसिक सिरोमनि,
बातनि भुरइ राधिका भोरी

सूरदास के पद – Surdas Ke Pad Class 8

मैया, कबहिं बढ़ैगी चोटी?
किती बार मोहिं दूध पियत भई, यह अजहूँ है छोटी।
तू जो कहति बल बेनी ज्यौं, ह्वै है लाँबी मोटी।
काढ़त गुहत न्हवावत जैहै, नागिनी सू भुइँ लोटी।
काँचौ दूध पियावत पचि पचि, देति न माखन रोटी।
सूरज चिरजीवौ दौ भैया, हरि हलधर की जोटी।


तेरैं लाल मेरौ माखन खायौ।
दुपहर दिवस जानि घर सूनो ढ़ूँढ़ि ढँढ़ोरि आपही आयौ।
खोलि किवारि, पैठि मंदिर मैं, दूध दही सब सखनि खवायौ।
ऊखल चढ़ि, सींके कौ लीन्हौ, अनभावत भुइँ मैं ढ़रकायौ।
दिन प्रति हानि होति गोरस की, यह ढ़ोटा कौनैं ढ़ँग लायौ।
सूर स्याम कौं हटकि न राखै तैं ही पूत अनोखौ जायौ।

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आशा करते हैं दोस्तों सूरदास के पद में दिए गये Surdas Ke Pad In Hindi On Krishna Childhood आपकों पसंद आए होंगे.

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