Thaka Haraa Sochta Man Sochta Man | Hindi Kavita
थका हारा सोचता मन सोचता मन
उलझती ही जा रही है एक उलझन
अँधेरे में अँधेरे से कब तलक लड़ते रहे
सामने जो दिख रहा है, वह सच्चाई भी कहे
भीड़ अन्धो की खड़ी खुश रेवड़ी खाती
अँधेरे के इशारे पर नाचती गाती
थका हाँसा सोचता मन सोचता मन
भूख प्यासी कानाफूसी दे उठी दस्तक
अँधा बन जा झुका दे तम द्वार पर मस्तक
रेवड़ी की बाट में तू रेवड़ी बन जा
तिमिर के दरबार में दरबान सा तन जा
थका हारा, उठा गर्दन जूझता मन
दूर उलझन | दूर उलझन | दूर उलझन
चल खड़ा हो पैर में यदि लग गई ठोकर
खड़ा हो संघर्ष में फिर रोशनी होकर
मृत्यु भी वरदान है संघर्ष के प्यारे
सत्य के संघर्ष में क्यों रोशनी हारे
देखते ही देखते तम तोड़ता है दम
और सूरज की तरह हम ठोकते है खम