उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम | Consumer Protection Act In Hindi

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम Consumer Protection Act In Hindi भारत में उपभोक्ताओं के साथ धोखाघड़ी, ठगी आम बात है.

भारत सरकार ने उपभोक्ताओं को इस प्रकार के शोषण से बचाने के लिये उपभोक्ता संरक्षण एक्ट 1986 बनाया है. 

उपभोक्ता जागरूकता के इस कानून के अनुसार कोई भी ग्राहक उपभोक्ता अदालत में अपनी शिकायत दर्ज करवा सकता है. अदालत उस उपभोक्ता को राहत प्रदान करेगी.

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम Consumer Protection Act In Hindi

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम | Consumer Protection Act In Hindi

इस कानून की मदद लेने से पूर्व दुकानदार अथवा उस व्यापारी से इस सम्बन्ध में बात कर लेनी चाहिए, कि वो अमुक विषय पर आपके गलत व्यवहार के चलते उपभोक्ता अदालत में जा रहा है.

ऐसा इसलिए क्योंकि कई बार कानून के भय से गुनेहगार व्यापारी अपनी गलती मान, कर नुकसान की भरपाई भी कर देते है.

उपभोक्ता कौन है, किसे कहते है. (who is the consumer meaning and definition)

जब कोई व्यक्ति अपने उपयोग के लिए कोई वस्तु अथवा सेवा खरीदता है, तो वह उपभोक्ता कहलाता है. वह वस्तु एवं सेवा का प्रत्यक्ष एवं अंतिम उपभोग करने वाला व्यक्ति होता होई. जैसे आप चोकलेट खरीद कर खाते है, तो क्या आप एक उपभोक्ता कहलाएगे.

इसी प्रकार आप टैक्सी किराए पर लेकर स्कुल पहुचते है. रामू अपने बच्चों के लिए बाजार से मिठाई खरीदता है. सोनू अपने छोटे भाई के लिए निजी चिकित्सालय में इलाज करवाता है. ये सब उपभोक्ता उदाहरण (Consumer example) है.

उपभोक्ता का शोषण (consumer rights exploitation, consumer behaviour)

उपभोक्ता का शोषण कई प्रकार से किया जाता है. खराब या घटिया वस्तु देना, मात्रा या तौल में वस्तु कम देना, अवधि पार वस्तु देना, निर्धारित ब्रांड की वस्तु के स्थान पर अन्य ब्रांड की या नकली वस्तु देना, विक्रेता द्वारा निर्धारित मूल्य से अधिक कीमत वसूलना,

वस्तु का बताएं गये मानकों पर खरा न उतरना, गारटी की अवधि में वस्तु खराब हो जाने पर गारंटी की शर्तों के अनुसार उसे नही बदलना अथवा वारंटी की अवधि में उसमें सुधार नही काटना, घटिया सेवा देना, समय पर सेवा नही देना या भुगतान प्राप्त करने के बावजूद सेवा नही देना आदि तरीकों से उपभोक्ताओं का शोषण किये जाने की घटनाएं होती रहती है.

खरीददारी के समय रखी जाने वाली सावधानियाँ (consumer awareness in hindi)

उपभोक्ता का दायित्व (duty) है, कि शोषण से बचने के लिए खरीददारी करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखे.

  1. खरीदे हुए माल या वांछित सेवा के भुगतान का बिल अथवा रसीद और गारंटी/वारंटी कार्ड अवश्य लेना चाहिए. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज कराते समय यह रसीद या कार्ड प्रस्तुत करना आवश्यक होता है.
  2. सामान पर उसका नाम, मात्रा, बैच नंबर, उत्पादन एवं अवधि समाप्ति तिथि, कीमत कर सहित/रहित तथा निर्माता का पूरा नाम व पता अच्छी तरह जांच कर खरीद्ना चाहिए.
  3. वस्तु की गुणवत्ता को प्रमाणित करने वाले आई एस आई ISI, एगमार्क, FPO आदि मानक चिह्नों को देखकर खरीद्ना चाहिए.
  4. सावधानी रखनी चाहिए कि नापने तथा तोलने के लिए प्रयुक्त प्रमाणीकृत बाट या माप का ही प्रयोग किया गया है.
  5. वस्तु की पैकिंग का वजन वस्तु के वजन में शामिल नही होना चाहिए.
  6. आजकल विक्रेता आकर्षक विज्ञापनों के माध्यम से अपनी वस्तुओं के गुणों को बढ़ा चढ़ाकर दिखाते है. उपभोक्ता इन से भ्रमित होता है तथा कम गुणवता वाली वस्तु भी खरीद लेते है. अतः उपभोक्ता को विज्ञापनों से भ्रमित नही होना चाहिए. बहुत अच्छी तरह से देख परख के बाद ही वस्तु लेनी चाहिए.

उपभोक्ता शिकायत कहां करें ? (consumer complaint procedure in india)

उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा एवं उनकों शोषण से बचाने के लिए सरकार के द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 बनाया गया है. इस कानून के अनुसार उपभोक्ताओं की शिकायत की सुनवाई के लिए उपभोक्ता न्यायालयों का गठन किया गया है.

बीस लाख रूपये तक की शिकायत जिला उपभोक्ता मंच में, बीस लाख से अधिक और एक करोड़ तक की राशि से सम्बन्धित विवाद राज्य उपभोक्ता आयोग में और एक करोड़ रूपये से अधिक राशि से संबंधित शिकायत राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में की जा सकती है.

इस राशि की सीमा में समय समय पर परिवर्तन हो सकता है. उपभोक्ता प्रत्येक स्तर पर 30 दिन की अवधि में न्याय के लिए ऊपरी अदालत में अपील कर सकता है. सभी सावधानियों के उपरान्त भी यदि उपभोक्ता द्वारा खरीदी गई वस्तु या सेवा में दोष पाया जाता है.

और समझाने के बाद भी विक्रेता या सेवा प्रदाता गलती नही सुधारता है, तो उपभोक्ता न्यायालय में शिकायत अवश्य करनी चाहिए. सभी जिला मुख्यालयों पर जिला उपभोक्ता मंच स्थापित किये गये है. अतः हमे जागरूक रहकार उनका लाभ उठाना चाहिए.

उपभोक्ता शिकायत कैसे करे ? (How to make consumer complaint)

उपभोक्ता सादे कागज पर 4-5 प्रतियों में शिकायत लिखकर डाक से, किसी प्रतिनिधि द्वारा या स्वयं उपभोक्ता न्यायालय में प्रस्तुत होकर अपनी शिकायत दर्ज करवा सकता है. इसका 100 रूपये शुल्क होता है. वस्तु या सेवा में दोष होने पर दो वर्ष की अवधि में शिकायत दर्ज कराना जरुरी होता है.

शिकायत में उपभोक्ता का नाम, पता, विक्रेता पक्ष का नाम व पता, शिकायत का विवरण एवं शिकायत कर्ता जो चाहता है, उसका पूरा विवरण होना चाहिए. साथ ही बिल/रसीद आदि भी साथ होना चाहिए.

उपभोक्ता को उपलब्ध राहत (Relief to Common Man Under Consumer Protection Act, 1986)

शिकायत कर्ता को न्यायालय अथवा आयोग जो राहत दिलवा सकता है, उनमें से कुछ निम्नलिखित है.

  1. विवादास्पद सामान में सुधार करवाना.
  2. उस सामान के स्थान पर वैसा ही नया सामान दिलवाना.
  3. उपभोक्ता को होने वाली हानि या क्षति की क्षतिपूर्ति दिलाना.
  4. उपभोक्ता को हर्जाना/ खर्चा दिलवाना.

नया उपभोक्ता संरक्षण कानून, 2019

भारत में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 अब 20 जुलाई 2020 से देशभर में लागू हो गया हैं. पुराने अधिनियम की तुलना में यह कानून उपभोक्ताओं को सशक्त बनाकर पहले के मुकाबले तीव्रता से कार्यवाही करेगा.

अधिनियम में उपभोक्ता को पुनः परिभाषित किया गया हैं. इस कानून के अनुसार उपभोक्ता वह है जो कोई वस्तु या सेवा प्राप्त करता हैं. इसमें उस व्यक्ति को शामिल नहीं किया गया है जो कर्मिशयल उद्देश्य से वस्तु या सेवा प्राप्त करता हैं.

नयें कानून में झूठे या भ्रामक प्रचार करने पर उत्पादक को 10 लाख तक का जुर्माना लगाने का प्रवाधान किया किया गया हैं. इसकी पुनरावृत्ति पर जुर्माना 50 लाख अथवा उत्पादक को 2 वर्ष की कारावास हो सकती हैं.

उपभोक्ता एक्ट में विक्रेता या उत्पादक को अपने उत्पाद की पूर्ण जिम्मेदारी दी गई हैं. इस स्थिति में खराब वस्तु या नुक्सान की स्थिति में वह मुआवजे का देय होगा. साथ ही केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण CCPA का गठन किया जाएगा.

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