साम्प्रदायिकता का अर्थ क्या है परिभाषा उद्देश्य कारण दुष्परिणाम सुझाव | What Is Communalism Meaning In Hindi

What Is Communalism Meaning In Hindi साम्प्रदायिकता का अर्थ क्या है सांप्रदायिकता से क्या अभिप्राय है.

Communalism Meaning & Definition जब एक धार्मिक सांस्कृतिक एवं भाषाई समूह या समुदाय समझ बुझकर अपने को अलग वर्ग मानकर धार्मिक सांस्कृतिक भेदों के आधार पर राजनीतिक मांगों को राष्ट्रीय एवं सामाजिक हितों से अधिक प्राथमिकता देता हैं. उसे साम्प्रदायिकता कहा जा सकता हैं.

साम्प्रदायिकता का अर्थ What Is Communalism Meaning In Hindi

साम्प्रदायिकता का अर्थ क्या है परिभाषा उद्देश्य कारण दुष्परिणाम सुझाव | What Is Communalism Meaning In Hindi

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सांप्रदायिकता के अंतर्गत वे सभी भावनाएं व क्रियाकलाप आ जाते हैं. जिनमें धर्म एवं भाषा के आधार पर किसी समूह विशेष के हितों पर बल दिया जाए,

उन हितों को राष्ट्रीय हितों से भी अधिक प्राथमिकता दी जाए तथा उस समूह में पृथकता की भावना उत्पन्न की जाये या उसको प्रोत्साहित किया जाए.

विसेंट स्मिथ के अनुसार एक साम्प्रदायिक व्यक्ति वह है जो कि प्रत्येक धार्मिक एवं भाषाई समूह को एक ऐसी पृथक सामाजिक तथा राजनीतिक इकाई मानता हैं.

जिसके हित अन्य समूह से पृथक होते हैं और उनके विरोधी भी हो सकते हैं. ऐसे ही व्यक्तियों या व्यक्ति समूह की विचारधारा को सम्प्रदायवाद या साम्प्रदायिक कहा जाएगा.

साम्प्रदायिक संगठनों का उद्देश्य (Objective Of Communal Organisations)

शासकों के ऊपर दवाब डालकर अपने सदस्यों के लिए अधिक सत्ता, प्रतिष्ठा तथा राजनीतिक अधिकार प्राप्त करना होता हैं.

ऐसे समूह राष्ट्रीय एवं सामाजिक हितों के ऊपर अपने हितों को अपने प्राथमिकता देते हैं जिससे समाज में फूट पैदा होती हैं.

साम्प्रदायिकता का उदय (Orgin Of Communalism In Hindi)

भारत में साम्प्रदायिकता की समस्या ब्रिटिश शासन की समकालीन हैं. ब्रिटिश सरकार ने फूट डालो और राज करो की नीति अपनाई ताकि हिन्दू मुसलमान लड़ते रहे तथा वे अपना शासन आराम से चलाते रहे.

भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के निर्माण एवं विकास में जितना हाथ अंग्रेजों की कुटनीतिक चाल का हाथ रहा उतना ही हिन्दुओं एवं मुसलमानों के बीच राजनीतिक संघर्षों का भी.

विभिन्न वर्गों की सत्ता की महत्वकांक्षा के कारण भारतीय राजनीति में कांग्रेस मुस्लिम लीग के बीच ब्रिटिश सरकार मदारी की भूमिका अदा करने लगी.

मेहता और पटवर्द्धन अंग्रेजी शासकों ने अपने आपकों हिन्दू मुसलमानों के मध्य में खड़ा करके ऐसे साम्प्रदायिक त्रिभुज की रचना का निश्चय किया जिसके आधार बिंदु स्वयं रहे.

ब्रिटिश सरकार की नीतियों के कारण भारत में साम्प्रदायिकता बढ़ती रही. कभी उन्होंने हिन्दुओं को राजी करने के लिए मुसलमानों की उपेक्षा की तो फिर हिन्दुओं के विकास एवं आधुनिकीकरण के कारण मुसलमानों को विशेष रियासतें देकर राजी करने का प्रयास किया.

1905 में लार्ड कर्जन ने साम्प्रदायिक आधार पर बंगाल का विभाजन कर दिया. भारतीय मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा के नाम पर 1906 में आल इंडिया मुस्लिम लीग की शुरुआत हुई.

साम्प्रदायिक निर्वाचन पद्धति की शुरुआत कर ब्रिटिश सरकार ने इस समस्या को ओर अधिक बढ़ाया. 1940 में जिन्ना द्विराष्ट्र सिद्धांत का प्रतिपादन किया और अंत में 1947 में साम्प्रदायिकता के आधार पर भारत का विभाजन हुआ.

साम्प्रदायिक समस्या के कारण (Causes Of Problem Of Communalism)

स्वतंत्रता से पूर्व को अंग्रेजों ने इस समस्या को बनाये रखा लेकिन स्वतंत्रता के बाद भी साम्प्रदायिक समस्या भारतीय राजनीति की एक समस्या बनी हुई हैं इसके निम्न कारण हैं.

विभाजन की कटु स्मृतियां

मुस्लिम लीग की सीधी कार्यवाही ने साम्प्रदायिक वैमनस्य को चरम पर पंहुचा दिया था. स्वतंत्रता के साथ ही देश का विभाजन हुआ. देश के विभिन्न भागों में हिंसा भड़क उठी.

लाखों लोग विस्थापित हुए विभाजन में जो क्षेत्र पाकिस्तान में आये वहां से लाखों लोगों को अपना घर बार, सम्पति सब कुछ छोड़ कर भागना पड़ा.

कई लोगों की हत्याएं हुई, महिलाओं एवं लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार हुआ, परिवार बिछुड़ गये, बच्चे अनाथ हो गये. इसकी प्रतिक्रिया भारतीय क्षेत्रों में भी कही कही देखने को मिली.

अपनों का अपनों के सामने इस प्रकार कत्लेआम देखना लोगों की स्मृतियों से बना रहा. इस मानसिकता के कारण अब भी छोटी सी घटना होती हैं. वह बड़ा रूप ले लेती हैं. घटना से प्रभावित लोगों के परिवार आज भी उस भयावह घटनाओं को भूला नहीं पाये हैं.

राजनीतिक दलों द्वारा निहित स्वार्थों के लिए पृथक्करण की भावना पनपाना

स्वतंत्रता प्राप्ति व विभाजन के पूर्व व पश्चात भारत में कई राजनीतिक दलों व संगठनों का गठन धार्मिक आधार पर हुआ हैं. इसमें जमाएत ए इस्लाम, आल इंडिया मुजलिस ए इतेहादल मुस्लीमिन, आल इंडिया मुस्लिम लीग व विद्यार्थी संगठन प्रमुख हैं.

दुर्भाग्यवश इन संगठनों ने अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए धार्मिक आधार पर राजनीति करना आरम्भ कर दिया. जिससे एक वर्ग विशेष में अलगाववाद की प्रवृत्ति विकसित हुई हैं.

इसके अतिरिक्त इन संगठनों ने अन्य अलगाववादी गतिविधियों में लिप्त होकर देश की एकता और अखंडता को गम्भीर चुनौती दी हैं. वर्तमान समय में सभी वर्गों को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़े रखना अत्यंत महत्वपूर्ण हैं.

मुसलमानों का आर्थिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ापन

ब्रिटिश शासन काल से ही मुसलमान शैक्षणिक एवं आर्थिक दृष्टि से पिछड़े रहे. नौकरी, व्यापार एवं उद्योग धंधों में उनकी स्थिति सुधर नहीं पाई. मुस्लिम समाज का आधुनिकीकरण नहीं हो पाया.

इससे उनमें असंतोष बढ़ा जिसका फायदा राजनीतिक महत्वकांक्षा से युक्त लोगों ने उठाया. उन्होंने मुस्लिम समाज में विकास करने के बजाय असंतोष को ओर अधिक बढाने का प्रयास किया.

अब तक जो नेता एवं पार्टिया मुस्लिम राजनीति के केंद्र में रही, उन्होंने मुसलमानों को अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए उन्होंने प्रतिगामी मुद्दों के दायरे से बाहर निकलने ही नहीं दिया.

बच्चों में लोकतांत्रिक मूल्यों को विकसित करके उन्हें शिक्षा एवं आधुनिकता से जोड़ना आज की महत्ती आवश्यकता हैं.

पाकिस्तानी प्रचार और षडयंत्र

पाकिस्तानी मिडिया भी हिन्दू मुस्लिम तनाव को बढ़ा चढ़ा कर मुसलमानों के विरुद्ध योजनाबद्ध षड्यंत्र की तरह प्रचार करती हैं. अशिक्षित ही नहीं शिक्षित मुसलमान भी उनके बहकावे में आकर पाकिस्तान को अपना हितैषी मान बैठता हैं.

1981 से 93 के बीच पाकिस्तान ने हिन्दुओं एवं सिक्खों के बीच साम्प्रदायिक वैमनस्य को पैदा करने एवं बनाये रखने का हर संभव प्रयास किया.

मार्च 1993 की बम्बई बम विस्फोट की घटनाएं पाकिस्तानी षड्यंत्र का परिणाम थी जिसका उद्देश्य हिन्दुओं मुसलमानों में खूनी संघर्ष पैदा करना था. पाकिस्तानी कश्मीर में भारतीय सेनाओं को मुसलमानों पर अत्याचारों के लिए प्रचारित करता हैं.

सरकार की उदासीनता

सरकार एवं प्रशासन की उदासीनता एवं लापरवाही के कारण भी कई बार साम्प्रदायिक दंगे विशाल रूप से भड़क जाते हैं. छोटी सी घटना बड़ा रूप ले लेती हैं.

दलीय राजनीति गुटीय राजनीति और चुनावी राजनीति

साम्प्रदायिकता की समस्या के लिए राजनीतिक दलों की संकुचित दलीय हितों की राजनीति भी जिम्मेदार हैं. कई राजनितिक दल अपने स्वार्थ के लिए साम्प्रदायिक वैमनस्य को बढ़ाने का प्रयास करते हैं.

1950 से लेकर अब तक जितने भी दंगे हुए उनमें से अनेक का परोक्ष कारण दलीय और गुटीय राजनीति रही व पत्रकार निखिल चक्रवर्ती कहते है कि ये दंगे अपने स्वार्थ के लिए राजनीतिज्ञों द्वारा करवायें जाते हैं.

तुष्टीकरण की राजनीति

सरकारों द्वारा वर्ग विशेष के वोटो के लिए उनकी उचित अनुचित मांगों को मान लेना, उन्हें विशेष रियायते व विशेषाधिकार देने के कारण अन्य सम्प्रदायों में इर्ष्या की भावना पैदा होना स्वाभाविक हैं.

ऐसी गतिविधि विभिन्न सम्प्रदायों में आपसी तनाव पैदा करती हैं. जिनकों तुष्टीकरण के कारण विशेष रियायते दी जाती हैं वे वर्ग फिर उनको अपना अधिकार मान लेते हैं जिससे दूसरे वर्गो में असंतोष पैदा होता है.

वोट बैंक की राजनीति

कुछ राजनीतिक दल किसी वर्ग विशेष को अपना वोट बैंक बनाने हेतु उसके सभी सही गलत कदमों का समर्थन करते हैं तो प्रतिक्रिया स्वरूप दूसरे राजनीतिक दल दूसरे वर्गों को समर्थन देते हैं इस प्रकार तनाव को बढ़ावा मिलता हैं.

वोट बैंक की राजनीति के कारण जब वर्ग विशेष को अन्य की उपेक्षा कुछ विशेष दर्जा दिया जाता हैं तो समाज में तनाव पैदा होना स्वाभाविक हैं.

विदेशी धन

तेल की आय से सम्पन्न खाड़ी देशों से मुस्लिम संगठनों को तथा यूरोपीय देशों से ईसाई संगठनों को भारी मात्रा में धन प्राप्त होता हैं.

तथा यह धन उनके शैक्षिक, आर्थिक विकास में खर्च न होकर साम्प्रदायिकता फैलाने, धर्म परिवर्तन पर खर्च किया जाता हैं तमिलनाडु के हरिजन वर्ग को इस प्रकार धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित करना ऐसी ही एक कदम है. ये परिस्थितियों साम्प्रदायिक तनाव पैदा करती हैं.

साम्प्रदायिकता के दुष्परिणाम (Repercussions Of Communalism)

साम्प्रदायिकता के कारण ना सिर्फ राष्ट्रीय एकता अखंडता को खतरा पैदा हुआ हैं. बल्कि विकास की प्रक्रिया भी अवरुद्ध हुई हैं.

साम्प्रदायिकता के कारण देश के टुकड़े हुए जो आज भी अखंडता के लिए खतरा बनी हुई है. साम्प्रदायिक समस्या के कारण देश को कई दुष्परिणाम भोगने पड़े.

आपसी द्वेष– साम्प्रदायिकता के कारण समाज में फूट पड़ गई, आपसी द्वेष एवं अविश्वास पैदा हुआ. समाज में आपसी समरसता का वातावरण नहीं रहा,

जिसके कारण छोटी सी घटना भयंकर साम्प्रदायिकता का रूप ले लेती हैं. समाज में शांति व्यवस्था एवं भाईचारे की भावना खत्म हो जाती हैं. एवं विविधता में एकता का भाव खत्म हो जाता हैं.

आर्थिक हानि– साम्प्रदायिकता दंगे भड़कने पर भयंकर विनाश होता हैं. गाड़ियाँ बाजार जला दी जाती हैं एवं राष्ट्रीय सम्पति को नष्ट कर दिया जाता हैं. दंगों के कारण कर्फ्यू वगैरह के कारण कई दिनों तक बाजार बंद रहते हैं.

जिसके कारण आर्थिक नुक्सान के साथ दैनिक मजदूरी पर गुजारा करने वाले लोगों की सामने भुखमरी की नौबत आ जाती हैं.

आतंकी बुरहान की मौत के बाद कश्मीर के बाजार महीनों तक बंद रहे. जम्मू कश्मीर की आर्थिक हालात का एक प्रमुख कारण साम्प्रदायिकता समस्या भी हैं. आर्थिक विकास शांति एवं व्यवस्था में ही हो सकता हैं अशांति एवं अव्यवस्था में नहीं.

प्राण हानि– साम्प्रदायिक दंगों में सैकड़ों लोग मारे जाते हैं तथा हजारों घर उजड़ दिए जाते हैं. रांची, श्रीनगर, वाराणसी, अलीगढ़, हैदराबाद, मेरठ, बम्बई आदि के दंगे इसका उदहारण हैं. जिनमें मरने वालों के अलावा हजारों अपंग व अपाहिज हो गये.

राजनीतिक अस्थिरता– साम्प्रदायिक समस्या के कारण ऐसी राजनीतिक समस्याएं पैदा हो जाती हैं जिससे सरकारों की स्थिरता प्रभावित होती हैं.

अस्थायी सरकार स्थायी विकास के कार्य नहीं कर पाती. वह सदा अपने अस्तित्व को बनाये रखने हेतु प्रयत्नशील होती हैं. जिससे विकास कार्यों में पर्याप्त ध्यान नहीं दे पाती. फलस्वरूप देश के विकास की गति अवरुद्ध होती हैं.

राष्ट्रीय एकता में बाधा- साम्प्रदायिकता राष्ट्रीय एवं भाईचारे की भावना नष्ट करती हैं. समाज में फूट पैदा कर सामाजिक समरसता को खत्म करती हैं.

देश के नागरिकों में जितनी एकता की भावना होगी राष्ट्र उतना ही शक्तिशाली होगा. फूट राष्ट्र एवं समाज को कमजोर बनाती हैं.

राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा– भारत एक बहु संप्रदायी देश हैं इसमें अनेक सम्प्रदायों के लोग निवास करते हैं. देश में शान्ति एवं व्यवस्था के साथ विकास के लिए सबकों मिल जुल कर रहना आवश्यक हैं. लेकिन उग्र साम्प्रदायिक भावनाएं एकता को पनपने ही नहीं देती.

औद्योगिक एवं व्यवसायिक विकास में बाधा– देश का औद्योगिक और व्यापारिक विकास शान्ति एवं सुव्यवस्था में ही हो सकता हैं. अशांति एवं हिंसा के वातावरण में कोई पूंजीपति धन नहीं लगाएगा.

इस प्रकार साम्प्रदायिक अशांति देश का औद्योगिक एवं व्यापारिक अवरुद्ध कर देती हैं. विकास शान्ति एवं सुव्यवस्था में ही हो सकता हैं. पंजाब में पैदा इसी प्रकार की अशांति ने पंजाब को आर्थिक विकास के पथ पर कई वर्ष पीछे कर दिया था.

साम्प्रदायिकता को दूर करने के सुझाव (Suggestion To Remove Communalism)

साम्प्रदायिकता देश के लिए ही नहीं सम्पूर्ण मानवता के लिए एक गम्भीर अभिशाप हैं. देश को इससे बहुत कुछ भुगतना पड़ा हैं. देश की एकता एवं अखंडता पर खतरा हैं, प्रगति एवं विकास में बाधक हैं.

इसीलिए साम्प्रदायिकता को दूर किया जाना चाहिए, साम्प्रदायिकता को दूर करने के लिए निम्न निम्न सुझाव दिए जा सकते हैं.

  • सरकार को सदैव ही इस बात का ध्यान में रखना चाहिए कि उसके द्वारा ऐसा कोई कार्य नहीं किया जाएँ, जिससे साम्प्रदायिकता को प्रोत्साहन मिले. समानता के सम्बन्ध में आदर्शों की बाते करने की बजाय उसे व्यवहारिक रूप में क्रियान्वित करने का प्रयास किया जाना चाहिए.
  • शिक्षा में शास्वत नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों को शामिल किया जाना चाहिए. भारत एक धर्म निरपेक्ष राज्य हैं. लेकिन शाश्वत नैतिक जीवन मूल्यों की शिक्षा तो सबके लिए अनिवार्य होनी चाहिए. धर्म विशेष की शिक्षा की जगह देश भक्ति एवं राष्ट्रीयता की भावना पैदा करने वाली शिक्षा होनी चाहिए.
  • धर्म के आधार पर किसी धार्मिक वर्ग के लिए कोई विशेष रियायतें या सुविधाएं न दी जाए जिससे अन्य धर्मों के लोगों में इर्ष्या भावना पैदा हो. धर्म एवं जाति के आधार पर इस तरह का भेदभाव आपसी तनाव पैदा करता है जिससे बंधुत्व की भावना खत्म होती हैं.
  • तुष्टीकरण की नीति का परित्याग कर सरकार को सबके लिए समान आचार संहिता का निर्माण करना चाहिए. कानून एवं नियम देश एवं समाज की आवश्यकता एवं परिस्थिति के अनुसार बनते हैं. जब देश की आवश्यकता एवं परिस्थिति एक समान है तो कानून भी सबके लिए समान होने चाहिए. अलग अलग वर्गों एवं सम्प्रदायों के लिए अलग अलग कानून देश में अलगाव की भावना पैदा करते हैं. जाति, धर्म, भाषा एवं सम्प्रदाय के आधार पर कानूनी भेदभाव नहीं होना चाहिए.
  • अल्प संख्यकों के मन में सुरक्षा का भाव पैदा हो सरकार ऐसी व्यवस्था करे लेकिन उनका वोट बैंक बनाने हेतु विशेषाधिकार देना अन्य वर्गों में असंतोष को जन्म देता हैं. जिससे सरकार एवं राजनीतिक दलों को बचना चाहिए.
  • साम्प्रदायिकता का एक सबसे बड़ा कारण चुनावी राजनीति हैं. राजनीतिक दल चुनावों फायदा उठाने हेतु साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देते हैं. इस पर कड़ा प्रतिबंध होना चाहिए. किसी भी दल को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से चुनाव प्रसार में धर्म का सहारा लेने से रोकने हेतु दृढ़ व सुनिश्चित नियमों का निर्माण व क्रियान्वयन अतिआवश्यक हैं.
  • समय समय पर साम्प्रदायिकता के आधार पर प्रतिनिधित्व की मांगों को दृढ़ता से ठुकराना होगा. नागरिकों में एक राष्ट्र की भावना पैदा करनी होगी.
  • सरकार को अपनी भाषा नीति ठीक करनी चाहिए, हिंदी सम्पूर्ण देश की सम्पर्क भाषा बन सके इसके लिए राजनीति से ऊपर उठकर प्रयत्न किया जाना चाहिए.
  • शिक्षा से दृष्टिकोण उदार बनता है तथा व्यक्ति का मानसिक विकास होता हैं. अशिक्षित व्यक्ति धर्म का संकीर्ण एवं अपने स्वार्थ में प्रयोग करने वालों के बहकावे में अधिक आ जाते हैं.
  • सर्वधर्म समभाव को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम आयोजित किये जाने चाहिए, साहित्य एवं मिडिया द्वारा ऐसे कार्यक्रम आयोजित किये जाने चाहिए. जिससे लोगों को एक दूसरे के धर्म की जानकारी मिले धार्मिक सहिष्णुता पैदा हो.
  • धर्म के आधार पर राजनीतिक दलों का गठन न हो तथा धार्मिक संगठनों को राजनीति में भाग लेने पर प्रतिबंध हो, साम्प्रदायिक संगठनों पर पूर्ण प्रतिबंध हो.

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आशा करते है साम्प्रदायिकता का अर्थ क्या है का यह लेख आपकों अच्छा लगा होगा. यदि आपकों What Is Communalism Meaning In Hindi में दी गई जानकारी पसंद आई हो तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करे.

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