भाषावाद क्या है समस्या और समाधान What Is Lingualism In Hindi In India : भारत में तकरीबन 1650 बोलिया तथा 50 से अधिक भाषाएँ बोली व समझी जाती हैं.
भाषावाद wikipedia भारत के कई प्रांतों तथा क्षेत्रों को भाषाई आधार पर जाने जाते हैं. जैसे पंजाबी, गुजराती, मराठी, तमिल, बंगाली, उड़िया, तमिल आदि. भाषावाद भारत की पहचान भी है और अधिकता के चलते यह समस्या भी है आज हम जानेगे कि भाषावाद का अर्थ परिभाषा निबंध जानेगे.
भाषावाद क्या है समस्या और समाधान What Is Lingualism In Hindi
हमारे संविधान के अनुच्छेद 343 में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि भारत संघ की राजभाषा हिंदी होगी. हिंदी के अधिकाधिक प्रयोग व क्षेत्रीय भाषाओं की स्थिति पर सुझाव देने हेतु राष्ट्रपति द्वारा भाषा आयोग के गठन का भी प्रावधान हैं.
यह आयोग देश की औद्योगिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक उन्नति का और लोक सेवाओं के सम्बन्ध में अहिन्दी भाषी क्षेत्रों के व्यक्तियों की उचित मांगों पर भी विचार करेगा. इसके साथ ही संविधान राज्य के विधानमंडलों को भी यह अधिकार प्रदान करता है.
कि वे उस राज्य में राजकीय प्रयोजन हेतु हिंदी या उस राज्य की क्षेत्रीय भाषा को स्वीकार कर सकेगा. परस्पर सहमति से यह व्यवस्था दो या अधिक राज्य भी स्वीकार कर सकते हैं. इस प्रक्रिया में भाषायी अल्प संख्यकों के अधिकारों की पूर्ण रक्षा के भी स्पष्ट प्रावधान हैं.
पृष्ठभूमि (Background)
संविधान में इन्ही व्यवस्थाओं को क्रियान्वित करने हेतु 1955 में पहला राजभाषा आयोग प्रो बी जे खरे की अध्यक्षता में गठित किया गया.
1967 में राजभाषा संशोधन अधिनियम द्वारा त्रिभाषा फौर्मुला लागू करने का सुझाव आया. इसके तहत सरकारी सेवाओं में पत्राचार के साथ साथ प्रतियोगी परीक्षाएं हिंदी अंग्रेजी व अन्य प्रादेशिक भाषा में ली जाएगी.
हिंदी का निरंतर विकास भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा होगा. इन स्पष्ट प्रावधानों के होते हुए भी हमारे देश में हिंदी भाषा के विकास में बाधाएं निरंतर बनी हुई हैं. भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन एवं दक्षिण के कुछ राज्यों में हिंदी विरोधी आंदोलन विचारणीय मुद्दे रहे हैं.
भाषा के आधार पर नयें राज्यों के निर्माण की मांग में ही भाषावाद की संकीर्णता निहित हैं. किसी क्षेत्रीय भाषा का विकास हो इसमें अन्य नागरिकों कोई आपत्ति नहीं हो सकती किन्तु क्षेत्रीय भाषा के विकास में हिंदी को बाधक मानना व उसका हिंसक तरीकों से विरोध राष्ट्रीय अस्मिता के लिए ठीक नहीं हैं.
हिंदी साम्राज्यवाद का असुरक्षा भाव समाप्त कर अहिंदी भाषी क्षेत्रों में विश्वास स्थापित करना देश की प्राथमिकता हो, जिससे त्रिभाषा फार्मूला व्यावहारिक रूप धारण कर सकें.
पारिवारिक एवं क्षेत्रीय भाषाएँ कभी भी राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं ले सकती व न ही इन्हें देश की राजभाषा से कोई चुनौती महसूस होनी चाहिए. भाषायी विविधताएँ तो समाज का एक लक्षण भर हैं जहाँ शारीरिक भिन्नताओं के समान ही जुबानी भिन्नताएं पनप सके.
ऐसा माहौल उत्पन्न हो, भाषायी आधार पर आंदोलन कुछ स्वयंभू नेताओं के अस्तित्व अनुरक्षण के व्यायाम है, आम नागरिकों को यह समझना और समझाना आवश्यक है. शासन का भी यह दायित्व बनता है कि वे संसाधनों रोजगार के अवसरों का समान वितरण बिना किसी भाषायी भेदभाव के करे.
सर्वत्र कानून का शासन हो, न कि भाषायी बहुसंख्यक की स्वेच्छाकारिता का शासन. हमारे राज्य में भी राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता दिलवाने हेतु शान्तिपूर्वक आंदोलन किये जा रहे हैं.
भाषावाद की समस्या के समाधान के उपाय (Measures To Resolve The Problem Of Lingualism)
भाषा के आधार पर उग्र आंदोलन राष्ट्रीय एकता व अखंडता के लिए एक चुनौती हैं. इनके शान्तिपूर्वक हल निकालने चाहिए, कुछ उपाय ये भी हो सकते हैं.
- परस्पर समझाइश व प्रेरित करना बहुसंख्यक हिंदी भाषा भाषियों का दायित्व बनता है कि अहिंदी भाषी राज्यों को समझाइश द्वारा प्रेरित करे कि हिंदी किसी भी रूप में प्रादेशिक भाषा के लिए चुनौती नहीं बल्कि सहायक हैं.
- हिंदी का प्रचार प्रसार सुनियोजित तरीके से सभी को विश्वास में लेकर किया जाए.
- भाषायी आदान प्रदान हेतु सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक गतिविधियों का विस्तार किया जाए.
- पर्यटन को बढ़ावा देकर हिंदी की आवश्यकता को व्यवहारिक बनाया जाए.
- त्रिभाषा फार्मूला व्यवस्थित रूप में केंद्र व राज्यों के स्तर पर सुचारू रूप से लागू किया जाए.
- प्रादेशिक भाषाएँ भी हिंदी के प्रसार के लिए सहायक हो सकती हैं. उसी दिशा में उनका विस्तार किया जाए.
- राजनीतिक संकीर्णताऐ समाप्त कर राष्ट्रीय हित में भाषावाद की समस्या का हल ढूंढा जाए.
- आंग्ल भाषा की प्रशासनिक प्रयोजनार्थ एवं अनुवाद की सीमाओं तक ही उपयोग हो.
- भाषाएँ सम्प्रेष्ण का माध्यम हैं यह भाव देशवासियों के मन में जगाना होगा.
भारत की भाषाएँ
हमारा भारत बहु विविधताओं से भरा देश हैं, जहाँ भाषा भी एक आयाम हैं. भारत के कई बड़े राज्यों का निर्माण भी वहां के आमजन की भाषा के आधार पर किया था. संवैधानिक रूप से देश में 22 भाषाओं को राजभाषा का दर्जा प्राप्त हैं.
वहीँ अगर जनगणना 2011 के आंकड़ों को जाने तो हमारे देश में दस हजार से अधिक लोगों द्वारा बोले जाने वाली 121 भाषाएँ एवं बोलियाँ हैं. देश में करीब 32 करोड़ लोग ऐसे भी है जो दो या दो से अधिक भाषाएँ जानते हैं.
आज समूचे भारत में हिंदी को माध्यम भाषा के रूप में अन्य स्थानीय भाषाओं के साथ अपनाया जा रहा है.
यदि हम भाषावाद को एक समस्या समझे और इसके व्यवहारिक हल की तलाश करें तो देशभर की स्थानीय भाषाओं और बोलियों के संरक्षण के साथ ही हिंदी को राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देना होगा, तभी देशवासी राज्य और केंद्रीय स्तर पर हिंदी और अपनी स्थानीय भाषा में तालमेल बिठा सकते हैं.