मार्क्सवाद क्या है अर्थ सिद्धांत विशेषताएं नियम आलोचना व मार्क्स का परिचय – What Is Marxism In Hindi

मार्क्सवाद क्या है अर्थ सिद्धांत विशेषताएं नियम आलोचना मार्क्स का परिचय What Is Marxism In Hindi आज हम मार्कसिज्म अर्थात मार्क्सवाद विचारधारा का अर्थ क्या है कार्ल मार्क्स कौन थे.

मार्क्सवादी आलोचना विशेषता लेनिनवाद तथा मुख्य सिद्धांत नव मार्क्सवाद साहित्य उपागम तथा इस प्रणाली की आलोचना के निबंध को पढेगे.

मार्क्सवाद क्या है अर्थ सिद्धांत विशेषताएं – What Is Marxism In Hindi

मार्क्सवाद क्या है अर्थ सिद्धांत विशेषताएं नियम आलोचना व मार्क्स का परिचय - What Is Marxism In Hindi

What Is Marxism In Hindi (मार्क्सवाद क्या है विचारधारा का अर्थ व परिभाषा)

मार्क्स समाजवादी विचारधारा के प्रतिपादक या सामाजिक और राष्ट्रीय व्यवस्था में परिवर्तन की बात कहने वाला प्रथम विचारक नहीं हैं.

मार्क्स से पहले ब्रिटेन और फ्रांस के विचारकों ने समाजवादी विचार व्यक्त किये जा चुके थे. फ्रांस में नायेल बावेफ़, सेंट साइमन चाल्र्स फोरियर व लुई ब्लांक तथा इंग्लैंड में जॉन डी सिलमेंडी डॉ हॉल, थाम्पसन और रोबर्ट ओवन थे.

ये विचारक पूंजीवादी व्यवस्था में विद्यमान धन की विषमता, स्वतंत्र प्रतियोगिता और आर्थिक क्षेत्र में राज्य की नीति के कटु आलोचक थे. लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि विषमता किन कारणों से उत्पन्न होती हैं. तथा न ही विषमता निवारण का घटना चक्र प्रस्तुत किया.

मार्क्स ने सर्वप्रथम वैज्ञानिक समाजवाद का प्रतिपादन कर समाजवाद की स्थापना हेतु विश्लेषण पर आधारित एक व्यवहारिक योजना प्रस्तुत की.

मार्क्सवाद का अभिप्राय (Meaning Of Marxism In Hindi)

मार्क्स शब्द पर ध्यान देने से साधारणतया यह प्रतीत होता है कि मार्क्सवाद वह विचारधारा हैं. जिसका आधार मार्क्स के विचार हैं. इस संबंध में वास्तविकता यह नहीं है. 19वीं शताब्दी में जर्मनी में कार्ल मार्क्स और फेडरिक एंजिल्स नाम के दो महान विचारक हुए थे.

इन दोनों ने मिलकर दर्शन, इतिहास, समाजशास्त्र विज्ञान, अर्थशास्त्र की विविध समस्याओं पर अत्यंत गम्भीर व विशद रूप से विवेचन करते हुए सभी समस्याओं के सम्बन्ध में एक सुनिश्चित विचारधारा और एक नवीन दृष्टिकोण विश्व के सामने रखा तथा इसी दृष्टिकोण के विचारधारा को विश्व में मार्क्सवाद के नाम से जाना जाता हैं.

इस विचारधारा में एंजिल्स का योगदान भी महत्वपूर्ण रहा. इसमें वैज्ञानिक व दार्शनिक पहलु का चिंतन मुख्यतः एंजिल्स ने तथा राजनीतिक पहलु का चिंतन मुख्यतः मार्क्स ने किया. इस प्रकार से मार्क्सवाद समाज का एक रूप हैं. इसका प्रमुख प्रतिपादक जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स हैं.

उसने ऐतिहासिक अध्ययन के आधार पर समाजवाद का प्रतिपादन किया हैं. अतः उसे वैज्ञानिक समाजवादी कहा जाता हैं. मार्क्स के अतिरिक्त एंजिल्स, लेनिन, स्टालिन, काट्सी, रोजा लक्सबर्ग, डाह्सकी, माओ, ग्राम्शी, जार्ज ल्यूकाज आदि इस विचारधारा के प्रमुख मार्क्सवादी हैं.

कार्ल मार्क्स का जीवन परिचय (Karl Marx The Life Story)

क्रांतिकारी तथा वैज्ञानिक समाजवाद के प्रवर्तक कार्ल मार्क्स का जन्म 1818 ई में एक यहूदी परिवार में हुआ था. इनके पिता हेनरीक मार्क्स जो पेशे से वकील थे.

कार्ल जब छोटा बालक था तो इसके पिता ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया. इन्होने बर्लिन विश्वविद्यालय में अध्ययन किया तथा यहाँ पे मार्क्स का परिचय हींगल के द्वंदात्मक दर्शन से हुआ.

मार्क्स विश्वविद्यालय का शिक्षक बनना चाहता था. लेकिन नास्तिक विचारों के कारण ऐसा नहीं हो सका. 1841 ई में मार्क्स ने जेना विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की व 1843 में २५ वर्ष की आयु में जैनी से विवाह हुआ तथा 14 मार्च 18-83 ई में मार्क्स का लंदन में देहांत हो गया इनकी फेडरिक एंजिल्ज से मित्रता इतिहास प्रसिद्ध हैं.

मार्क्स के दर्शन के स्रोत (Sources Of Marxism Hindi Main)

एबेंस्टीन के अनुसार अपनी स्वयं की कष्टपूर्ण और लम्बी खोज में मार्क्स को अपना दर्शन किसी विचारक से बना बनाया तैयार नहीं मिला वरन उसने उसे विभिन्न स्रोतों से एकत्र किया. गैटल ने लिखा है मार्क्सवाद का मुख्य आधार ऐतिहासिक भौतिकवाद और वर्ग संघर्ष का सिद्धांत हैं.

इन दोनों का हीगल के दर्शन से निकट सम्बन्ध हैं. दूसरे यह मार्क्स के अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत पर निर्भर हैं. जिसका आधार इंग्लैंड का अर्थशास्त्र हैं. तीसरे इसमें फ़्रांसिसी क्रांति व फ़्रांसिसी समाजवाद के तत्व भी सम्मिलित हैं इनसे उसने क्रांति के द्वारा प्रगति का सिद्धांत और राज्य के विलीन होने की धारणा ग्रहण की.

  • जर्मन विद्वानों का प्रभाव- मार्क्स ने समाज के विकास के लिए हीगल की द्वंदात्मक पद्धति को अपनाया उन्होंने युवा हीगलवादी फायरबाख से भौतिकवाद का विचार लिया.
  • ब्रिटिश अर्थशास्त्रियो का चिंतन– मार्क्स ने ब्रिटिश अर्थशास्त्रियों एडम स्मिथ रिकार्डों आदि से श्रम के मुख्य सिद्धांत को अपनाया इसी श्रम के मुख्य सिद्धांत के आधार पर उन्होंने अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत प्रतिपादित किया.
  • फ्रेंच समाजवादियों का चिंतन- फ्रांस में सेंटसाइमन, चार्ल्स फोरियर आदि चिंतकों ने समाजवाद का प्रतिपादन किया था. उसका स्वरूप यदपि काल्पनिक था तथापि वह अपने चरित्र से क्रांतिकारी था उत्पादन के साधनों पर स्वामित्व का सिद्धांत श्रमिकों का उत्पादन और उनका शोषण करने वाले वर्गों का विनाश का सिद्धांत और वर्ग विहीन समाज की स्थापना का विचार आदि मार्क्स ने फ्रांसीसी चिंतन से प्राप्त किया.
  • सामाजिक आर्थिक परिस्थतियाँ– तत्कालीन पूंजीवाद समाज के शोषणवादी चरित्र ने भी मार्क्स को क्रांतिकारी विचार प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित किया था.

संक्षेप में मार्क्स ने चाहे ईंटों को बहुत से स्थान से एकत्र किया हो परन्तु उसने साम्यवाद का जो विशाल भवन बनाया वह सर्वथा मौलिक हैं. उसने सर्वहारा वर्ग को तार्किकता देकर महान गति व शक्ति प्रदान की. उसने समाजवाद (साम्यवाद) को वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान किया.

इसी कारण उसे वैज्ञानिक समाजवाद का जनक भी कहते हैं. इसका वैज्ञानिक समाजवाद द्वंदात्मक भौतिकवाद इतिहास की भौतिकतावादी व्याख्या, वर्ग संघर्ष का सिद्धांत व अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत इन चार स्तम्भों पर आधारित हैं.

मार्क्सवाद की प्रमुख रचनाएं (Works Of Marx)

  • द पावर्टी ऑफ फिलोसोफी
  • द इकोनॉमिक एंड फिलोसोफिकल मेन्यूस्क्रिप्ट
  • द कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो
  • क्लास स्ट्रगल इन फ्रांस
  • द क्रिटिक ऑफ पोलिटिकल इकोनोमी
  • वेल्यू प्राइस एंड फोफिट
  • दास कैपिटल
  • द सिविल वॉर
  • द गोथा प्रोग्राम
  • एंजिल्स के साथ मिलकर द होली फैमिली, जर्मन आइडियोलॉजी
  • द कम्युनिस्ट मैनिफैस्टों, पुस्तकें लिखी

मार्क्स की रचनाओं से सम्बन्धित कुछ तथ्य 

  • दास केपिटल में मार्क्स ने मूल आर्थिक नियमों का विश्लेषण
  • दास केपिटल का पूरा नाम- Contribution To The Critique Of Political Economy
  • प्रुदों ने the philosophy Of Poverty नामक पुस्तक लिखी,जिसके जवाब में मार्क्स ने Poverty of philosophy नामक रचना लिखी इसमें मार्क्स ने वर्ग की सकारात्मक परिभाषा दी.
  • the civil war in france में राज्य पर विचार दिया तथा इन्होंने The Communist Manifesto में विचारों में संशोधित किया.
  • The german ldeology में द्वंदात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत दिया.
  • टेलर ने मार्क्स की रचना the mommunist manifesto को बाइबिल या कुरान की भांति पवित्र कहा.

मार्क्स के प्रमुख विचार अथवा मार्क्सवाद की मूल मान्यताएं (ideas Of Marks & Foundation Of Marxism In Hindi)

  • द्वंदात्मक भौतिकवाद
  • इतिहास की भौतिकवादी या आर्थिक व्याख्या
  • वर्ग संघर्ष का सिद्धांत
  • अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत
  • मार्क्स का राज्य सिद्धांत
  • प्रजातंत्र, धर्म व राष्ट्र के सम्बन्ध में धारणा
  • मार्क्सवादी पद्धति कार्यक्रम

परन्तु मार्क्सवाद को जानने के तीन आधार हैं

  1. उत्पादन प्रणाली
  2. उत्पादन के साधन
  3. उत्पादन सम्बन्ध

उत्पादन प्रणाली से दो बातों का संकेत मिलता हैं.

  • उत्पादन के तरीके या तकनीकी स्वरूप क्या है जैसे की क्या वह हस्तशिल्प, कृषकीय या औद्योगिक तरीके से होता हैं.
  • उत्पादन किस तरह की समाज व्यवस्था के अंतर्गत होता हैं अर्थात क्या वह दास प्रथा वाली सामग्री पूंजीवादी या समाजवादी व्यवस्था के अंतर्गत सम्पन्न होता हैं. उत्पादन की शक्तियों से भी दों बातों का संकेत मिलता हैं.
  • उत्पादन के साधन उपकरण यंत्र इत्यादि क्या है
  • श्रम शक्ति अर्थात उत्पादन करने वाले मनुष्यों का ज्ञान अनुभव निपुणता और क्षमताओं का स्तर क्या हैं. उत्पादन सम्बन्धों से तात्पर्य है कि मनुष्य किन सम्बन्धों में बंध जाते है. ये सम्बन्ध इस बात पर निर्भर है कि कौनसा वर्ग उत्पादन के साधनों का स्वामी है और इसलिए प्रभुत्वशाली वर्ग है और कौनसा वर्ग इनसे वंचित होने के कारण पदाधीन वर्ग की स्थिति में हैं.

द्वंदात्मक भौतिकवाद (Dialectical materialism)

द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत मार्क्स के सम्पूर्ण चिंतन का मूलाधार हैं. यह सिद्धांत भौतिकवाद की मान्यताओं को द्वंदात्मक पद्धति के साथ मिलकर सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या कर देने का प्रयत्न करता हैं.

इस सिद्धांत के प्रतिपादन में मार्क्स के द्वन्द्वात्मक का विचार हीगल की द्वंदात्मक पद्धति से ग्रहण किया और भौतिकवाद का दृष्टिकोण फायरबाख से.

द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद में दो शब्द है इनमें प्रथम शब्द द्वंदात्मक उस प्रक्रिया को स्पष्ट करता हैं जिसके अनुसार सृष्टि का विकास हो रहा हैं. और दूसरा शब्द भौतिकवाद सृष्टि के मूल तत्व को सूचित करता है.

द्वंदात्मक प्रक्रिया (Dislectical Process)

मार्क्स के विचार द्वंदात्मक पद्धति पर आधारित हैं. हीगल यह मानकर चलता है कि समाज की प्रगति प्रत्यक्ष न होकर एक टेड़े मेढे तरीके से हुई है जिसके तीन अंग है वाद प्रतिवाद और संवाद मार्क्स की पद्धति का आधार हीगल का यही द्वंदात्मक दर्शन हैं.

मार्क्स तथा उसके अनुयायियों ने द्वंदात्मक प्रक्रिया को गेहूं के पौधे के उदाहरण से समझाया गया हैं गेहूं का दाना वाद हैं.

भूमि में बो देने के बाद जब पौधा निकलता है तो दूसरा चरण प्रतिवाद है. तीसरा चरण पौधे में बाली का आना इसके पकने पर गेहूं का दाना बनना तथा पौधे का सुखकर नष्ट होना यह तीसरा चरण संवाद हैं.

भौतिकवाद (Materialism)– जहाँ हीगल सृष्टि का मूल तत्व चेतना या विश्वात्मा को मानता है वहीँ मार्क्स सृष्टि का मूल तत्व जड़ को मानता हैं.

द्वंदात्मक भौतिकवाद की विशेषताएं (Characteristics Of Dialectical Materialism)

  • द्वन्द्ववाद के अनुसार विश्व स्वतंत्र है और असम्बन्ध वस्तुओं का ढेर या संग्रह मात्र नहीं है वरन समग्र इकाई है जिसकी समस्त वस्तुएं निर्भर हैं.
  • द्वन्द्ववाद के अनुसार प्रकृति अस्थिर, गतिशील और निरंतर परिवर्तनशील हैं.
  • द्वंदवाद के अनुसार वस्तुओं में विकास और परिवर्तन की प्रक्रिया सरल हैं.
  • वस्तुओं में गुणात्मक परिवर्तन धीरे धीरे न होकर शीघ्रता के साथ अचानक होते हैं.
  • वस्तुओं में गुणात्मक परिवर्तन क्यों होते हैं इसका उतर मार्क्स हीगल की विचारधारा के आधार पर ही देता हैं.
  • द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद प्राकृतिक जगत की आर्थिक तत्वों के आधार पर व्याख्या करता हैं और पदार्थ को समस्त विश्व की नियंत्रक शक्ति के रूप में

द्वन्द्वात्मक विकास के नियम (Principles Of Dialectical Of Evolution)

  • विपरीत की एकता और संघर्ष का नियम
  • परिणाम से गुण की ओर परिवर्तन- मात्रा में भारी परिवर्तन से गुण में भी परिवर्तन हो जाता है साथ ही साथ जल गर्म होकर भाप में परिवर्तित हो जाता हैं.
  • निषेध का निषेध नियम- इस प्रक्रिया में कोई तत्व अपने विरोधी तत्व से टकराकर अपनी आरम्भिक अवस्था में नहीं आता हैं अपितु उच्च अवस्था में पहुच जाता हैं. अतः वाद प्रतिवाद के संघर्ष के फलस्वरूप बना संवाद नहीं हैं. अपितु उच्च अवस्था का प्रतिनिधित्व करता हैं.

लोकतंत्र धर्म और राष्ट्रवाद के सम्बन्ध में मार्क्सवाद की धारणा (Marxist View Of Democracy Religion Nationalim)

मार्क्स, लोकतंत्र धर्म और राष्ट्रवाद तीनों को शोषित वर्ग के शोषण का साधन मानता है तथा धर्म को अफीम की संज्ञा देता हैं. जो श्रमिकों का शोषण करता है और मार्क्स कहता है कि मजदूरों का कोई देश नहीं होता हैं.

इसलिए वह विश्व के मजदूरों को एक ऐसा संदेश देता हैं इस प्रकार राष्ट्रवाद की अवधारणा को भी व्यर्थ बताता हैं. मार्क्सवादी कार्यक्रम के तीन चरण हैं.

  • पूंजीवादी व्यवस्था के विरुद्ध क्रांति
  • संक्रमण काल के लिए सर्वहारा वर्ग का अधिनायकत्व
  • राज्य विहीन व वर्ग विहीन समाज की स्थापना अर्थात पूर्ण साम्यवाद की स्थापना
  • साम्यवादी समाज तकनीकी दृष्टि से प्रगतिशील व उन्नत समाज होगा.

मार्क्सवाद की आलोचना (Criticism Of Marxism)

मार्क्सवादी सिद्धांत की कई विचारकों ने कटु आलोचना की हैं. उदारवादियों ने सर्वहारा की तानाशाही को सोवियत संघ के स्टालिनवादी शासन और चीन के माओवादी सर्वाधिकारवाद के परिपेक्ष्य में लोकतंत्र विरोधी तानाशाही माना हैं.

सरतोरी ने इसे फैंटम विकल्प की संज्ञा देते हुए कहा है कि वास्तव में सर्वहारा की तानाशाही सोवियत संघ में सर्वहारा पर तानाशाही थी. कार्लपापर ने मार्क्सवाद की तुलना एक ऐसे बंद समाज से की हैं.

जहाँ लोकतंत्र और स्वतंत्रता दोनों का ही अभाव रहता हैं. बर्नस्टीन ने अपनी पुस्तक विकासवादी समाज तथा काट्सकी ने अपनी पुस्तक सर्वहारा की तानाशाही में मार्क्सवाद के वर्ग संघर्ष क्रांति तथा सर्वहारा की तानाशाही के सिद्धांतों को शांतिपूर्ण एव सांविधानिक सुधारों के आधार पर अनुचित बताया हैं.

रोजा लक्जेम्बर्ग ने अपनी पुस्तक रुसी क्रांति में शासन पर जन नियंत्रण के अभाव और प्रेस की स्वतंत्रता के अभाव के कारण मार्क्सवाद की आलोचना की हैं.

वस्तुतः मार्क्सवाद के वर्ग संघर्ष का सिद्धांत समाज में निरंतर संघर्ष की बात करते हुए सभी प्रकार के सहयोग एवं समन्वय की संभावना को समाप्त कर देता हैं. ऐसे में सतत सामाजिक हिंसा और बाधा की स्थिति बनी रहती हैं.

मार्क्सवाद के अंतर्गत समाज के लिए आर्थिक आधार पर वर्ग विभाजन भी सत्य से परे हैं. वस्तुतः अन्य सामाजिक कारणों यथा धर्म, नस्ल, जाति, प्रजाति इत्यादि के आधार पर भी कई विभाजन और विभेद की स्थिति बनती हैं. इसलिए पदार्थ पर अधिक महत्व व्यर्थ हैं.

व्यवहार में मार्क्सवादी अनुभव अत्यधिक पीड़ादायक रहा हैं. सोवियत संघ, पूर्वी यूरोप, चीन, कम्बोडिया, क्यूबा, उत्तर कोरिया मार्क्सवादी हिंसा, लोकतंत्र के दमन तथा बाधित विकास के पर्याय के रूप में सामने आया हैं.

संक्षिप्त में निम्नलिखित बिन्दुओं से मार्क्सवाद की आलोचना की जा सकती हैं.

  • पूंजीपतियों में संघर्ष नही
  • श्रमिक वर्ग के लिए सुविधाएं
  • मार्क्स की भविष्य वाणी सफल नहीं हुई कि औद्योगिक तथा तकनीकी ज्ञान से सर्वहारा वर्ग के सदस्यों की संख्या में वृद्धि की हैं.
  • आर्थिक संकट की पुनरावृत्ति नहीं हुई हैं.
  • पूंजीवाद का पतन नहीं हुआ हैं.

मार्क्सवाद की आलोचना निम्न आधारों पर की जा सकती हैं

एलेक्जेंडर ग्रे के अनुसार निसंदेह मार्क्स ने अपने विचारों का निर्माण करने वाले तत्व अनेक स्रोतों से लिए हैं लेकिन उसने उन सबका प्रयोग एक ऐसी ईमारत निर्माण हेतु किया हैं जो स्वयं उसके अपने नमूने की हैं.

  • जड़ तत्व एवं चेतना तत्व को पूर्ण रूपेण अलग कर पाने में असमर्थ रहा हैं.
  • जड़ तत्व में स्वतः परिवर्तन संभव नहीं हैं,
  • इस सिद्धांत में मौलिकता का अभाव हैं.
  • मार्क्सवाद हिंसा व क्रांति को प्रोत्साहन देता हैं.
  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए घातक हैं. द्वंदात्मक भौतिकवाद व इतिहास की आर्थिक व्याख्या एकपक्षीय व काल्पनिक हैं.
  • राज्य की विलुप्त होने की धारणा काल्पनिक हैं.
  • मार्क्सवाद राज्य को शोषण का यंत्र मानता हैं जो अनुचित हैं.
  • लोकतंत्र, राष्ट्रवाद और धर्म के सम्बन्ध में मार्क्सवादी दृष्टिकोण अनुचित हैं.
  • मार्क्स का दो वर्गों का विचार अव्यवहारिक हैं.

राजनीतिक चिंतन में मार्क्सवाद का योगदान (Contribution of Marxism in Political Thinking)

राजनीतिक चिंतन में मार्क्सवाद का अतिमहत्वपूर्ण योगदान दिया. इसने विश्व को समझने का एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया.

  • मार्क्सवाद विभिन्न विचारधाराओं को आधार प्रदान करता हैं
  • उदारवाद को चुनौती
  • मार्क्सवाद समाजवाद की एक व्यवहारिक व वैज्ञानिक योजना प्रस्तुत करता हैं.
  • मार्क्सवाद ने श्रमिक वर्ग में एक नवीन जागृति उत्पन्न की.
  • मार्क्स समाज का यथार्थवादी चित्रण प्रस्तुत करता हैं.

निष्कर्ष (Conclusion)

मार्क्स द्वारा समाजवाद लाने का एक ठोस एवं सुसंगत कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया. जिसने विश्व में एक नई हलचल उत्पन्न कर दी. मार्क्स के विचारों को आधार बनाकर लेनिन ने 1917 ई में सोवियत संघ में साम्यवादी शासन की स्थापना कर मार्क्स के विचारों को व्यवहारिक आधार प्रदान किया गया.

इसी विचारधारा के आधार पर माओत्से तुंग ने चीन में क्रांति के माध्यम से 1949 ई साम्यवादी शासन की स्थापना की मार्क्सवाद के कारण पूंजीवाद ने अपने आप को सुधारने का प्रयास किया व लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा का उदय हुआ.

भारत में मार्क्सवाद (Marxism in India)

भारत में कार्ल मार्क्स के विचारों से प्रेरित हुए हुआ एक बड़ा समूह अलग अलग स्वरूपों में हैं, देश में बीसवीं सदी के दूसरे दशक में इस विचारधारा का स्वरूप देखने को मिला. आज की कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना साल 1925 में कानपूर में हुई थी वर्ष 1964 में इसका विभाजन हो गया और नई बनी पार्टी ने स्वयं को मार्क्सवादी कम्युनिस्ट कहना शुरू कर दिया.

भारतीय वामपंथी आंदोलन ने देश में ट्रेड यूनियनों के साथ काम करना शुरू हुआ, यह वह समय था जब सोवियत संघ का उदय हो रहा था. रूस की 1917 की क्रान्ति के बाद तेजी से युवा और मजदूर वर्ग इस क्रांति से प्रभावित हो रहे थे.

कई स्वतंत्रता सेनानी वामपंथ विचार धारा को मानने वाले थे. शुरू शुरू में कम्यूनिस्टो ने कांग्रेस के साथ रहकर ही काम शुरू किया. 1929-30 के दौरान जूट मजदूरों, रेलवे और बागान के मजदूरों तथा कपड़ा मिल में काम करने वाले मजदूरों को लामबंद करने में कम्यूनिस्टो का बड़ा योगदान था.

वर्ष 1934 आते आते जेपी, नरेंद्र देव और मीनू मसानी ने सोशलिस्ट पार्टी की शुरुआत की जो आगे चलकर कम्युनिस्ट पार्टी में सम्मिलित हो गई.

स्वतंत्रता आंदोलन में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भारतीय कम्युनिस्टो ने ब्रिटिश हुकुमत का समर्थन किया था आज भी इस विषय पर इनसे प्रश्न किये जाते है. 1952 के पहले लोकसभा चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी 16 सीट जीतकर दूसरी बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई.

सीपीआई ने 1957 के आम चुनावों में 27 और 1962 में 29 सीटों पर जीत हासिल की. इसने 1957 में ही केरल में सरकार बना ली थी, जो आज भी हैं. 1962 में चीन के साथ लड़े युद्ध में अधिकतर कम्यूनिस्टो ने चीन का समर्थन किया, बस यही सीपीआई के पतन की शुरुआत थी.

1964 में पार्टी का बंटवारा हो गया और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्‍सवादी) ने जन्म लिया. खासकर बंगाल और केरल में इसने बेहतरीन सफलता अर्जित की. 1977 के आम चुनावों में सीपीआई महज 7 सीट पर सिमटकर रह गई, आज भी कमोबेश इसी स्थिति में हैं.

यह भी पढ़े-

आशा करता हूँ दोस्तों आपकों What Is Marxism In Hindi का यह लेख अच्छा लगा होगा. यदि आपकों मार्क्सवाद क्या है अर्थ परिभाषा विचारधारा के गुण व दोष से जुडी जानकारी पसंद आई होगी.

इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करे. इससे जुड़ा आपका कोई सवाल या सुझाव हो तो कमेंट कर जरुर बताएं.

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *