नमस्कार साथियों स्वागत है, आपका. साथियों आपसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ. क्या आज हमारे समाज का स्तर वैसा ही बना हुआ है. जैसा पहले हुआ करता था. बेशक सभी का उत्तर होगा. नहीं.
आधुनिकता की बढती चकाचौंध में हम अपने मानवीय गुण और अपने स्वभाव और संस्कृति को भूलते जा रहे है. आज का युवा शिक्षित तो हो रहा है, मगर अपने संस्कार और शिष्टाचार में पिछड़ रहा है. क्या इसका जिम्मेदार केवल युवा ही है?
विश्वगुरु भारत जो कभी मातृदेवो भव:, पितृदेवो भव:, आचार्य देवो भव:, अतिथि देवो भव: जैसे स्लोगन और वसुधैव कुटुम्बकम का विचार गढ़ने वाला राष्ट्र आज अपनी ही संस्कृति और संस्कार को खो रहा है.
हर राष्ट्र का भविष्य उसकी युवा पीढ़ी निर्धारित करती है. पर उन युवाओ को वो गुण प्रदान करना तथा उनमे संस्कार और शिष्टाचार का ज्ञान भरने की जिम्मेदारी हमारी बनती है. एक बालक जब जन्म लेता है. या अपने बाल्यकाल में एक कोरे कागज़ की तरह साफ होता है.
उसमे ज्ञान का संचार करना. तथा उसके लिए उचित-अनुचित के पैमाने तय करना हमारी कर्तव्य बनता है. पर हम कोल्हू के बैल की भांति मेहनत करने में विश्वास करते है, मगर अपने भविष्य को समय देने में कभी विश्वास नही करते है. यहीं कारण है, आज समाज का स्तर आदर और शिष्टाचार जैसे दुर्लभ गुण गायब प्रतीत होते है.
कोरे कागज में हम अपने अच्छे व्यवहार और उचित ज्ञान भरने से पहले ही बालक को सोशल मीडिया के भेंट चढ़ा देते है. जो उसे अपना पाठ पढ़ा देता है. साथियों हम यह नहीं कह रहे है, कि सोशल मीडिया गलत चीज है, पर आज लोग अपने चंद व्यूज की लालचा में जो मानवीय मूल्यों का दहन कर रहे है, वो एक बालक के लिए भला कहाँ तक उचित होगा.
स्वार्थ की अंधी दौड़ में छूटती सहानुभूति
उत्तेजक बातें, भडकाउ बयान और अश्लीलता का बढ़ता ग्राफ एक बालक में कट्टरता और जहर भरने में कदाचित नहीं चुकते. बालक को बुजुर्गो द्वारा यदि ज्ञानवर्धक कहानियो और देशभक्त सेनानियों की कहानिया सुनाकर देशभक्ति की भावना भरने तथा उसे सत्यवादी वीरो की दस्ता बताकर उनमे मूल्यों का विकास करना हमारा दायित्व है.
आज हमारे युवाओ के लिए सोशल मीडिया के एक्टर हीरो बने हुए है. उन्हें रियल हीरोज भगत सिंह, विवेकानंद, सूरजमल, महाराणा प्रताप, लक्ष्मीबाई और भगवान् राम, कृष्ण जैसे अवतारों की कहानिया सुनाकर उनमे संस्कार और अच्छे विचार के भाव भरें.
सोशल मीडिया के सेलेब्रिटी अपनी पहुँच का फायदा उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे है. चंद पैसो के लालच में युवाओ को अंधकार के खाई में झोंक रहे है. आज के गुटकाछाप हीरो कोरे पन्नो को बहुत भाते है. इससे बचाना अपना कर्तव्य है.
एक बालक जो अपने दादा-दादी, माता-पिता के शरण स्पर्श करता है, तथा बड़ो का आदर करता है, वो झलकियाँ आज गायब सी दिखती है. शिक्षा के साथ ही संस्कार शालीनता भी उतनी ही जरुरी भाग है.
घटते जीवन के मूल्यों और संस्कारो का दोषारोपण केवल युवाओ और बुजुर्गो पर करना कदापि उचित नहीं होगा. इसे हमारी शिक्षा प्रणाली में प्रभावित करती है. हमारी शिक्षा व्यवस्था में जहाँ प्रारम्भिक शिक्षा में एक विद्यार्थी को शिक्षा-संस्कार देने की बजाय उन पर विषयवस्तु का ज्ञान थोपा जा रहा है.
बेशक इस व्यवस्था से शिक्षा के स्तर में सुधार दिखा है, पर वो शिक्षा क्या काम की. जो बड़ो का आदर करना न सिखाए. बुनियादी शिक्षा में बदलाव कर शिक्षा के साथ उसमे संस्कार अच्छे आचरण और उचित व्यवहार का ज्ञान दिया जाए.
केवल किताबी ज्ञान तक एक बालक को सिमित न रखकर उसे शिष्टाचार से जोड़ा जाए. उसमे देशभक्ति की भावना का विकास किया जाए. खेलकूद को शिक्षा प्रणाली में शामिल किया जाए. इस प्रकार हम राह भटक रहे समाज को उचित राह पर ला सकते है…|