महाराणा प्रताप का इतिहास की जानकारी | Maharana Pratap History In Hindi: वो आजादी का रखवाला महाराणा प्रताप ही थे जिन्होंने अपनी मायड धरा मेवाड़ की स्वतंत्रता की खातिर जीवनभर संघर्ष करते रहे, मगर कभी मुगलों की गुलामी को स्वीकार नही किया.
राजस्थान के महान सपूतों में महाराणा प्रताप का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है. राजीय एशो आराम की बजाय जंगल में भूखे प्यासे भटकने वाले महाराणा प्रताप अपने और मेवाड़ धरा के स्वाभिमान के रखवाले थे. इनका पूरा नाम महाराणा प्रताप सिंह था.
Maharana Pratap History In Hindi
राणा प्रताप का इतिहास की जानकारी (Brif History)
इतिहास बिंदु | महाराणा प्रताप इतिहास |
पिता | राणा उदयसिंह |
माता | जैवन्ता बाई सोनगरा |
पत्नी | अजब दे |
जन्म | 9 मई 1540 |
मृत्यु | 29 जनवरी 1597 |
पुत्र | अमर सिंह |
घोड़ा | चेतक |
समाधि | चावंड |
Story Biography Jivani History Of Maharana Pratap In Hindi: महाराणा प्रताप का इतिहास, जीवन परिचय, जीवनी, कहानी, फोटो, वीडियो, जयंती, मेवाड़ का इतिहास जानने के लिए हमे यह पूरा लेख पढ़ना पड़ेगा.
अनूठी आन बान और शान वाला या राजस्थान प्रान्त शक्ति, भक्ति और अनुरक्ति की त्रिवेणी माना जाता हैं. यहाँ का इतिहास और शौर्य एवं औदार्य के लिए विश्वविख्यात हैं.
ऐसी देशभक्ति और वीरता से कुटकुट भरी मेवाड़ धरा पर स्वतन्त्रता प्रेमी और महान नायक महाराणा प्रताप का जन्म भूमि रही हैं. इस प्रदेश में जान तथा प्राण से बढ़कर प्रण की शाश्वत परम्परा रही हैं.
राजस्थान की इसी तपोभूमि कुछ ऐसी विशेषताएं रही हैं, जो अन्यत्र दुर्लभ हैं. यहाँ के वीरो ने धरती, धर्म, स्त्री और असहायों की रक्षार्थ मरने को मंगल माना, यहाँ की विरागनाओ ने अपनी कंचन जैसी काया का मोह त्यागते हुए अपने हाथों अपना शीश काटकर अपने पतियों का प्रण पालन किया हैं.
यहाँ के संतो ने जन जन की जड़ता को दूर करते हुए मानव धर्म की अलख जगाई हैं.
महाराणा प्रताप का इतिहास
महाराणा प्रताप (प्रताप सिंह) का जन्म मेवाड़ के कुम्भलगढ़ किले में 9 मई 1540 हिन्दू कैलेडर के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष तृतीया) को हुआ था. यह किला उदयपुर शहर से 85 किलोमीटर दूर है. वे अपने पिता के सबसे बड़े पुत्र थे.
उनकी माँ महारानी जसवंताबाई थी. उनके पिता उदयपुर शहर के संस्थापक महाराजा उदयसिंह थे. प्रताप सिंह बचपन से ही बहुत बहादुर और साहसी थे. पूरा राज दरबार और मेवाड़ राज्य की जनता उनकी कुशलता और बहादुरी पर गर्व किया करती थी.
28 फरवरी 1572 ई में महाराणा उदयसिंह की मृत्यु हो गई और उसी दिन महाराणा प्रताप का 32 वर्ष की आयु में गोगुन्दा में राज्यारोहण हुआ था.
बहुत ही कम समय में इन्होने घुड़सवारी, अस्त्र-शस्त्र विद्या में श्रेष्ठता हासिल कर ली. मात्र सत्रह वर्ष की आयु में ही महाराणा प्रताप की शादी अजबदे पंवार नामक सुकन्या से हो गई, जो प्रताप की पहली पत्नी थी. वर्ष 1559 में इन्हें अमरसिंह के रूप में पुत्र धन की प्राप्ति हुई.
1567 में जब प्रताप मात्र 27 साल के थे उस समय अकबर की मुग़ल सेना ने चित्तोड़ पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया. किला छीन जाने से प्रताप सिंह अपने पूरे परिवार सहित कुम्भलगढ़ से गोगुन्दा आ बसे.
उसी समय प्रताप ने मुगलों से लोहा लेने की ठान ली थी, मगर बड़े लोगों द्वारा स्थति को पक्ष में न देखकर महाराणा प्रताप को युद्ध करने से रोका.
महाराणा प्रताप का बचपन
सोलह सत्रह वर्ष की अल्पायु में महाराणा प्रताप सैनिक अभियानों में जाने लगे. वागड़ के सांवलदास व उनके भाई कर्मसी चौहान को सोम नदी के किनारे युद्ध में परास्त किया. छप्पन क्षेत्र के राठौड़ो व गौड़वाड़ क्षेत्र को भी परास्त कर अपने अधीन कर लिया.
महाराणा प्रताप की वीरता की सर्वत्र प्रशंशा होने लगी. उसी समय महाराणा प्रताप का विवाह राव मामरख पंवार की पुत्री अजबदे महाराणा प्रताप की पत्नी (वाइफ, जीवनसाथी) बनी.
उसी समय महाराणा प्रताप ने देश की वर्तमान राजनितिक स्थति के बारे में जानकारी प्राप्त करना शुरू कर दिया. भविष्य को ध्यान में रखते हुए महाराणा प्रताप ने अपने मित्रो का चयन कर, उन्हें प्रशिक्षित करना शुरू कर दिया. 16 मार्च 1559 में महाराणा प्रताप को अजबदे की कोख से अमरसिंह नामक पुत्र की प्राप्ति हुई.
भारत में उस समय अकबर अपने सम्राज्य का विस्तार करने में लगा हुआ था. सम्पूर्ण राजपुताना उसके समक्ष झुक गया था. केवल एक मेवाड़ अडिग था. अकबर का मेवाड़ पर आक्रमण प्रतीक्षित था.
भविष्य में सघर्ष की योजना बनने लगी. महाराणा प्रताप अपने विश्वस्त मित्रों भामाशाह, ताराचंद, झाला मानसिंह आदि वीरो के साथ विजय स्तम्भ की तलहटी में सम्पूर्ण परिस्थतियो में विचार करते, मेवाड़ सुरक्षा की योजना बनाते.
इसी दौरान आपसी मन मुटाव के कारण महाराणा प्रताप का छोटा भाई शक्तिसिंह नाराज होकर अकबर के पास चला गया.
अकबर के मेवाड़ आक्रमण की योजना पर वह चित्तोड़ लौट आया तथा समाचार दिया, युद्ध परिषद केनिर्णय के कारण महाराणा उदयसिंह सपरिवार उदयपुर चले गये.
महाराणा प्रताप को भी मन मसोस कर साथ जाना पड़ा. पीछे कमान जयमल राठौड़ एवं पत्ता चुण्डावत को सौपी गईं. अक्टूबर 1567 में अकबर ने चितोड़ पर आक्रमण कर दिया.
राणा प्रताप की हाइट, लम्बाई वजन व तथ्य
महाराणा प्रताप की ऊंचाई | 7 फीट 5 इंच |
प्रताप के भाला का वजन | 80 किलो |
कवच का वजन | 72 किलो |
जूते का वजन | 5 किलो प्रत्येक जूता |
दो तलवारों का वजन | 25 किलो प्रत्येक |
प्रताप से जुडी एक किवदन्ती हैं, कि उनका वार इतना घातक होता था, कि दुश्मन सहित उनके घोड़े हाथी को चीरकर दो फाड़ कर देते थे.
मानसिंह के साथ हल्दीघाटी वॉर में प्रताप बहलोल खां के वार के के प्रतिकार में उसे घोड़े समेत फाड़कर दो कर देते हैं. यह प्रताप की असीम शक्ति एवं युद्ध कौशल का अद्वित्य नजारा था.
महाराणा प्रताप का राजतिलक
सन 1572 में मेवाड़ के शासक व प्रताप के पिता उदयसिंह का निधन हो गया था. अब उनके उतराधिकारी के रूप में जगमाल को राजगद्दी पर बिठाया गया.
जो महाराणा प्रताप की तुलना में किसी भी लिहाज से इस पद के योग्य नही थे. इस बात से पूरा राजदरबार, परामर्श दाता व मंत्री भी सहमत थे.
अत: महाराणा प्रताप को राज गद्दी पर बिठाने के लिए शाही दरबारियों व बड़े कुलीन व्यक्तियों ने जिद ठान ली. सभी के इस स्वर में विरोध के कारण जगमाल को राजगद्दी से उतारकर गोगुन्दा में ही महाराणा प्रताप का राजतिलक कर उन्हें मेवाड़ का अगला शासक नियुक्त किया गया.
यह शासन महाराणा प्रताप के लिए काँटों का मुकुट था, किन्तु स्वतंत्रता प्रेमी प्रताप ने इसे सहर्ष स्वीकार किया. वे तनिक भी विचलित नही हुए. प्रताप ने कुम्भलगढ़ और गोगुन्दा को केंद्र बनाकर समस्त मेवाड़ राज्य को स्वतंत्र कराने की दृढ प्रतिज्ञा की.
जनमानस को स्वतंत्रता एवं संस्कृति की रक्षा के लिए प्रेरित किया. जनजाति वर्ग को संगठित कर उन्हें अपनी सेना का अंग बनाया. कुम्भलगढ़ से लगे गोडवाड़ भूभाग और अरावली की घाटियों में सैनिक व्यवस्था की. सिरोही व गुजरात से लगी सीमा व्यवस्था को संगठित किया.
प्रताप और अकबर के मध्य युद्ध
जिस समय राणा प्रताप ने मेवाड़ की सता सम्भाली उस समय दिल्ली सल्तनत पर मुगलों का अधिकार था. अकबर ने अपने युद्ध पराक्रम से उत्तरी भारत के सभी राज्यों समेत राजपूताने पर भी अधिकार जमा लिया था. अपने धर्मप्रचार व हिन्दू धर्म विरोधी नीतियों के चलते प्रताप और अकबर के बिच शुरू से ही कटुतापूर्ण व्यवहार रहे.
महाराणा प्रताप ने कभी भी अकबर को भारत का शासक नही माना, कई संधियों और समझौतों के प्रयासों के बावजूद अकबर प्रताप के साथ समझोता नही कर पाया. इसलिए अकबर ने मेवाड़ पर हमला करने के लिए सेनापति मानसिंह के नेतृत्व में एक विशाल सेना भेजी.
मानसिंह एक विशाल सेना लेकर चित्तोड़ की तरफ रवाना हुआ, इस बाद का पता महाराणा को पूर्व में लग चूका था. अतः महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी के दर्रे पर मुग़ल सेना का इन्तजार किया. गोगुन्दा तक पहुचने का यह एकमात्र रास्ता था. इस कारण प्रताप को यकीन था. शाही सेना इसी रास्ते से आएगी.
18 जून 1576 को भारतीय इतिहास का सबसे एतिहासिक युद्ध जिन्हें हल्दीघाटी का युद्ध कहा जाता है लड़ा गया. संख्या बल में कम होने के उपरान्त भी महाराणा प्रताप की सेना बहादुरी से लड़ी.
इस युद्ध में महाराणा प्रताप का प्रिय घोड़ा चेतक घायल हो गया, प्रताप के मैदान छोड़ने के कारण राजपूत सेना का मनोबल गिर गया और परिणामस्वरूप हार का सामना करना पड़ा.
महाराणा प्रताप ने मंत्री भामाशाह की आर्थिक मदद से विशाल सेना का निर्माण किया. कुछ ही समय में महाराणा ने शाही सेना को चितोड़ से भगाकर मेवाड़ को स्वतंत्र करवा लिया.
महाराणा प्रताप की मृत्यु कैसे व कब हुई
एक शिकार की घटना में शरीर पर अधिक चोटे लगने के कारण प्रताप बीमार पड़ गये. 29 जनवरी 1597 को 57 साल की आयु में महाराणा प्रताप का देहांत चावंड में हो गया था. महाराणा के देहवसान (मृत्यु) की खबर सुनकर सवर्त्र शोक की लहर फ़ैल गईं.
सम्पूर्ण मेवाड़ में सामान्य जन से लेकर प्रमुख लोग चावंड में एकत्रित हो गये. युवराज अमरसिंह ने विधि विधान के साथ चावंड से तीन किमी दूर बड़ोली के तालाब पर प्रताप का दाह संस्कार किया.
प्रताप की सुप्रसिद्ध जीवनी व इतिहास को उदयपुर के प्रताप गौरव केंद्र में सहेजकर रखा गया है. जहाँ रोजाना हजारों की संख्या में लोग आकर एक महान महापुरुष की जीवनगाथा को निशुल्क पढ़ते है.
महाराणा प्रताप का व्यक्तित्व
महाराणा प्रताप श्रेष्ठ योद्धा और सच्चे जननायक थे. सभी धर्मों के लोग मातृभूमि की स्वाधीनता के संघर्ष में प्रताप के साथ थे. प्रताप ने अपने व्यक्तित्व से मेवाड़ के प्रत्येक व्यक्ति को मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए सब कुछ न्यौछावर करने वाला यौद्धा बना दिया.
इससे महाराणा प्रताप जनमानस के प्रातः स्मरणीय बन गये. अपने देश की स्वतंत्रता और सार्वभौमिकता के लिए सतत संघर्ष और विविध क्षेत्र में योगदान उन्हें महान सिद्ध करता हैं.
युद्धों में दिवंगत वीरों के उत्तराधिकारियों को प्रताप पिता की तरह स्नेह दिया और उनके पुनर्वास के लिए अपूर्व प्रयास कर मानवाधिकारों के संरक्षण का आदर्श स्थापित किया.
नारी सुरक्षा और संरक्षण के लिए प्रताप ने कई प्रयास किए. उनके प्रयासों की बदौलत मेवाड़ को भविष्य में जौहर जैसी त्रासदी नही झेलनी पड़ी.
प्रताप ने कैद की गई मुगल स्त्रियों को सुरक्षित लौटाकर नारी सम्मान का पाठ पठाया. अकाल दर अकाल जूझने वाली प्रजा और शासकों के लिए जल बचत और कम खर्च में जलाशय बनाने की तकनीक दी.
यही नही पर्यावरण सुरक्षा को प्रत्येक शासक और नागरिक के कर्तव्य के रूप में परिभाषित किया. प्रताप का योगदान उनकी वैश्विक दृष्टि का परिचायक था. इसी ध्येय से प्रताप ने विश्वविल्ल्भ नाम से वृक्ष आयुर्विज्ञान ग्रंथ की रचना करवाई.
संस्कारी जीवन ही सबकों अपेक्षित होता हैं, प्रताप ने इस उद्देश्य से व्यवहार आदर्श जैसा ग्रंथ लिखवाया. विद्वानों और दूरदर्शी लोगो को संरक्षण दिया.
इनमें संस्कृत विद्वान पंडित चक्रपाणी मिश्र प्रमुख थे. प्रताप के संरक्षण में लिखी गई राज्याभिषेक पद्धति भारतीय शासकों के लिए आदर्श बनी. मेवाड़ और गुजरात के शासकों सहित मराठा शासक भी अपना अभिषेक इसी पद्धति से करवाने लगे.
महाराणा प्रताप और चेतक का इतिहास
गीतों में राणा प्रताप को नीले घोड़े की सवारी वाला बताया जाता हैं, चेतक ही इनकों वों स्वामिभक्त घोडा था. जिसनें प्रताप का मरते दम तक साथ दिया. हल्दीघाटी के युद्ध में पूरी तरह घायल हो जाने के बाद भी तीन पैर पर दोडकर चेतक ने प्रताप को सुरक्षित स्थान पर पहुचाया था.
यह ईरानी नस्ल का विख्यात अश्व था, जो गुजरात के भीमोरा गाँव से राणा प्रताप लाए थे. एक काठियावाड़ घोड़े व्यापारी चेतक, त्राटक और अटक इन तीन नस्ल के घोड़ों को लेकर आए मेवाड़ आए थे.
घोड़ों की शक्ति परखने के बाद त्राटक घोडा प्रताप के छोटे भाई शक्ति को दे दिया तथा स्वयं चेतक को प्रताप ने अपना साथी चुन लिया.
मानसिंह से युद्ध लड़ते समय उनके हाथी के पैर में लगी तलवार से चेतक का पिछला पैर पूरी तरह जख्मी हो गया था. तदोपरान्त वह प्रताप को रणभूमि से लेकर चित्तोड़ की ओर चल पड़ा,
एक बरसाती नाले पर से छलांग लगाते वक्त वह उस नाले में गिर गया, जहाँ उसकी मृत्यु हो गई. प्रताप ने चेतक को इसी स्थान पर समाधि देकर वहां पर स्मारक बनाया, जो आज भी चित्तोड़ में चेतक स्मारक के रूप में जाना जाता हैं.
प्रताप की कई वीरता की कहानियों में चेतक का अपना स्थान हैं. चेतक की फुर्ती के कारण ही प्रताप ने कई युद्धों को सहजता से जीता. प्रताप अपने चेतक से पुत्र की भांति प्रेम करते थे.
महाराणा प्रताप का इतिहास में योगदान
राणा प्रताप ने संगीत, मूर्तिकला और चित्रकला को संरक्षण दिया. अपने दरबार में निसारुद्दीन जैसे चित्रकार से छह राग और छतीस रागिनियों के ध्यान चित्र बनवाकर चावंड चित्र शैली को जन्म दिया. रागमाला श्रंखला के ये चित्र अन्य कई क्षेत्रों के चित्रकारों के लिए भी अनुकरणीय हैं. यह कला भारतीय चित्रकला की निधि हैं.
प्रताप ने देश की सम्रद्धि को बनाए रखने के लिए धातुओं की खदानों की सुरक्षा की ओर प्रमुखता से ध्यान दिया. सभी धर्मों का आदर प्रताप के व्यक्तित्व की निराली विशेषता थी.
जनजाति के मुख्याओं ने प्रताप के नेतृत्व में अपूर्व विश्वास किया. उदयपुर के निकट हरिहर जैसे मंदिर उनके काल के शैव और वैष्णव धर्म की एकता को दिखाता हैं.
इस प्रकार राष्ट्रप्रेम, सर्वधर्म सद्भाव, सहिष्णुता, करुणा, स्वाधीनता के लिए युद्ध, नीतिगत आदर्शों की पालना, मानवाधिकारों की सुरक्षा, नारी सम्मान, पर्यावरण और जल संरक्षण एवं सर्वसामान्य को आदर जैसे मूल्य तथा साहित्य व संस्कृति के प्रति सम्मान उनकी महानता के उज्ज्वल परिचायक हैं.
महाराणा प्रताप की समाधि जन जन को इस विराट चरित्र नायक के किर्तिमय जीवन और आदर्शों की प्रेरणा देती रहेगी. राणा प्रताप के बारे में कहा गया हैं कि.
पग पग भम्या, धरा छोड़ राख्यों धर्म.
महाराणा मेवाड़, हिरदे, बस्या हिन्द रे.
महाराणा प्रताप Hindi Book
मेवाड़ी धरा के सपूत प्रताप के स्वाभिमान और राष्ट्र भक्ति के गुण सदियों तक गाए जाएगे. देशभर की स्कूलों के पाठ्यक्रम में प्रताप की गौरव गाथा का वर्णन अवश्य देखने को मिलता हैं. इन पर कई लेखकों ने किताबे भी लिखी हैं जिनकी सूची हम यहाँ बता रहे हैं.
पुस्तक नाम | लेखक |
महाराणा प्रताप | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला |
Maharana Pratap: The Invincible Warrior | रीमा हूजा |
Maharana Pratap – महाराणा प्रताप | भवानी सिंह राणा |
Maharana Pratap | राजेन्द्र शंकर भट्ट |
Maharana Pratap Indias Warrior King | ए के गाँधी |
Bharat Ka Veer Yoddha | सुशील कपूर |
Maharana Pratap | अजय कुमार |
हल्दीघाटी का युद्ध और महाराणा प्रताप | मोहनलाल गुप्ता |
Pratap: Mewar’s Rebel King | बृष्टि बंदोपाध्याय |
If Maharana pratap doesn’t play a role in war so our country was a Mughals country but Maharana pratap is one god we have to save the Rajasthan and India