1857 का स्वतंत्रता संग्राम कारण महत्व परिणाम और सफलता के कारण Indian Freedom Struggle In Hindi: भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध तीव्र असंतोष बढ़ता जा रहा था.
अंग्रेजो की सम्राज्यवादी निति और आर्थिक शोषण ने इस असंतोष को और तीव्र कर दिया. सन 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम इसी तीव्र असंतोष का परिणाम था.
ब्रिटिश विद्वानों ने इसे सैनिक विद्रोह या गदर कहा, लेकिन यह उचित नही है. वीर सावरकर ने इसे भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा है. अंग्रेजों को पहली बार भारतीयों के संगठित विरोध का सामना करना पड़ा.
1857 का स्वतंत्रता संग्राम कारण महत्व परिणाम और सफलता के कारण
Freedom Fighters In Hindi:- राष्ट्रवाद की भावना से प्रेरित होकर लम्बे समय तक भारतीयों ने भारत को स्वतंत्र कराने के लिए राष्ट्रीय आंदोलन चलाया.
क्रांतिकारियों के बलिदान, महात्मा गांधी के अहिंसात्मक आंदोलन एवं स्वतंत्रता सैनानियों के प्रयासों से भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ.
भारत का स्वतंत्र कराने में क्रांतिकारी भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव, चन्द्रशेखर आजाद, चापेकर बन्धु, अशफाक उल्लाह खान, रामप्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्र लाहड़ी, खुदीराम बोस, प्रफुल्लचंद्र, वासुदेव बलवंत फड़के, वीर सावरकर, सुभाषचंद्र बोस, लाला लाजपतराय, विपिनचंद्र पाल, बालगंगाधर तिलक, गोपालकृष्ण गोखले, अरविन्द घोष,पंडित जवाहरलाल नेहरु, सरदार वल्लभभाई पटेल आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
1857 का स्वतंत्रता संग्राम कारण (1857 Cause Of Freedom Struggle In Hindi)
प्रशासनिक एवं राजनीतिक कारण -: अपनी साम्राज्यवादी महत्वकांक्षा की पूर्ति के लिए लार्ड वैलेजली ने देशी रियासतों यथा झांसी, नागपुर, सतारा, अवध को अंग्रेजी सम्राज्य में मिला दिया.
भारतीय जमीदारों की भूमि छीन ली. मुगल सम्राट बहादुरशाह से अपमानजनक व्यवहार करके मुसलमानों को नाराज कर दिया. उच्च सेवाओं में भारतीयों को नियुक्ति नही दी गई. अंग्रेजो की न्याय व्यवस्था से भी भारतीय संतुष्ट नही थे.
सामाजिक कारण (Social Reasons):- अंग्रेज भारतीयों को घ्रणा की दृष्टि से देखते थे. भारतीय परम्पराओं और रीती रिवाजों की भी उपेक्षा की. भारतीयों के साथ भेदभाव की निति अपनाई.
भारतीयों के लिए रेल में प्रथम श्रेणी यात्रा की अनुमति नही थी. काले गोरो का भेद किया जाता था. पाश्चात्य सभ्यता भारतीयों पर लादने की चेष्टा की थी. सामाजिक दृष्टि से वे अपने आप को श्रेष्ट मानते थे.
आगरा के एक मजिस्ट्रेड की टिप्पणी से अंग्रेजो की मानसिकता झलकती है. उसने कहा था कि ”प्रत्येक भारतीय को चाहे उसका पद कोई भी हो, उसे विवश किया जाना चाहिए कि सड़क पर चलने वाले प्रत्येक अंग्रेज को सलाम करे”.
यदि भारतीय घोड़े या गाड़ी पर सवार हो तो नीचे उतारकर तब तक खड़ा रहना चाहिए जब तक कि अंग्रेज वहां से निकल न जाए. अंग्रेजो ने सन 1856 में पैतृक सम्पति कानून के अनुसार उतराधिकार कानून में यह परिवर्तन कर दिया था
कि यदि कोई हिन्दू ईसाई धर्म स्वीकार कर लेगा तो उसे पैतृक सम्पति से वंचित नही किया जाएगा.पूर्व में प्रावधान था कि यदि कोई धर्म परिवर्तन कर लेता है तो उसे पैतृक धन सम्पति से वंचित किया जा सकता है.
अंग्रेजो की इस कार्यवाही से भारतीयों में असंतोष जाग्रत हुआ. अंग्रेजो द्वारा भारत में किये गये सामाजिक सुधार और आधुनिकीकरण के नाम पर रेल, डाक तार विभाग में किये काम में भी भारतीयों ने अपनी सभ्यता और संस्कृति पर आक्रमण माना.
धार्मिक कारण (Religious Reasons Indian Freedom Struggle):- अंग्रेजो का एक छदम उद्देश्य था, भारत में अपने धर्म का प्रचार करना. हाउस ऑफ कॉमन्स में ईस्ट इंडिया कंपनी के अध्यक्ष मैगल्स द्वारा दिए गये आख्यान में स्पष्ट कहा गया था
कि देवयोग से भारत का विस्तृत साम्राज्य अंग्रेजों को मिला ताकि अपने मजहब की पताका भारत के एक छोर से दूसरे छोर तक फहरा सके. 1813 ई. के चार्टर एक्ट द्वारा अपने मजहब प्रचारकों को भारत में रहने एवं अपने मत का प्रचार करने की स्वीकृति मिल गई थी.
जो मतांतरण कर लेता था उसे अन्य सुविधाओं के साथ राजकीय सेवा का भी अवसर मिलता था. सेना में भी पादरियों की नियुक्ति होने लगी. अंग्रेजो के प्रति भारत में यह धार्मिक असंतोष भी 1857 के आंदोलन का कारण बना.
सैनिक कारण:- सनः 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत सैनिक असंतोष के रूप में हुई थी. भारतीय सैनिको के प्रति वेतन, भत्ते, पदोन्नति व व्यवहार में भेदभाव किया जाता था.
भारतीय सैनिकों को 9 रुपया मासिक दिया जाता था, जबकि अंग्रेज सैनिकों को 60 या 70 रूपये दिए जाते थे.थोड़ी सी गलती होने पर बंदूक के नट से मारा जाता था और ठोकर मारी जाती थी.
भारतीय सैनिकों की संख्या अंग्रेजों से तीन गुनी थी. उनको यह अहसास था कि अंग्रेजो का राज्य हमारे बल पर ही चल रहा है. इससे भी उन्हें अंग्रेजों के प्रति शस्त्र उठाने को प्रोत्साहन मिला.
क्रीमिया युद्ध में अंग्रेजों की हार से भी भारतीय सैनिकों को प्रेरणा मिली. भारतीय सैनिकों के भत्तें को भी समाप्त कर दिया गया.
द्वितय वर्मा युद्ध के समय भारतीय सैनिकों को समुद्र पार भेजा गया तो उन्होंने इसका विरोध किया क्योकि उस समय हिन्दू धर्म में समुद्री यात्रा को हिन्दू धर्म के विरुद्ध माना जाता था. सन 1857 के पूर्व भी कई सैनिक विद्रोह हो चुके थे.
आर्थिक कारण: अंग्रेजों की भारत के प्रति आर्थिक शोषण की निति से भारतीयों में तीव्र आक्रोश था. ब्रिटेन का उद्देश्य भारतीय उपनिवेश से अधिक से अधिक पूंजी एकत्र करना था. उन्होंने भारत की आत्मनिर्भर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नष्ट भ्रष्ट कर दिया. अंग्रेज अमीर और भारतीय गरीब होते चले गये.
अंग्रेजों ने अत्यधिक लगान लगा दिया. किसानों और जमीदारों का उत्पीड़न किया.अकाल के समय भी किसानों और जमीदारों का शोषण किया.
अकाल के समय भी किसानों की सहायता नही की गई. इससे भारतीयों में असंतोष बढ़ता गया. जो आगे चलकर पहले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम 1857 के रूप में परिणित हुआ.
तात्कालिक कारण:सैनिको को पुरानी राइफलों के स्थान पर नई एनफील्ड राइफल दी गई जिसके कारतूस के उपरी भाग को मुंह से काटना पड़ता था. जनवरी 1857 में यह बात फ़ैल गई कि कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी लगी हुई है.
अंग्रेजों के इस कार्य को भारतीय सैनिकों ने धर्म विरोधी माना. 29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी में मंगल पांडे ने चर्बी वाले कारतूस मुंह से काटने से मना कर दिया तथा उसने अंग्रेज अधिकारी की हत्या भी कर दी.
मंगल पांडे को 8 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी गई. इससे सैनिक भड़क गये और अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का बिगुल बजा दिया. मेरठ से शुरू हुए 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का प्रसार दिल्ली, कानपुर, बिहार, राजस्थान, दक्षिण भारत आदि स्थानों तक हो गया.
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख सेनानी (Freedom Fighters Of 1857)
भारतीयों ने इस संगठित विरोध ने अंग्रेजों की जड़े हिलाकर रख दी. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, कानपुर के नानासाहब, तांत्या टोपे व अजीमुल्ला, बिहार से कुँवरसिंह, दक्षिण भारत से रंगाजी बापू, गुप्ते तथा मेवाड़ के सामंतों ने क्रांतिकारियों का साथ दिया.
आहुवा के ठाकुर खुशालसिंह ने सैनिक सहायता प्रदान की. सलुम्बर के रावत केसरीसिंह ने आहुवा के ठाकुर खुशालसिंह को अपने यहाँ शरण दी थी. कोठारिया के ठाकुर जोधसिंह ने ब्रिटिश अधिकारी की सम्पति लुटली तथा निमजी चारण को भी संरक्षण दिया.
1857 की क्रांति के असफलता के कारण (Causes of Failure of Revolt of 1857)
भारतीयों में इस संगठित और सामूहिक विरोध से अंग्रेज घबरा गये थे. क्रांतिकारियों ने प्रारम्भ में अंग्रेजों को कई स्थानों पर पराजित किया.
लेकिन अपने विशाल सैनिक शक्ति तथा यहाँ की रियासतों के शासकों की सहानुभूति के बल पर भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का दमन कर दिया. अन्य भी कई कारण थे, जो 1857 की क्रांति में सफलता के बाधक बने.
- निश्चित योजना के अभाव के कारण क्रांतिकारी आपस में संर्पक में नही आ सके थे.
- क्रांतिकारियों के पास अंग्रेजों की तुलना में परम्परागत सैनिक शक्ति व सिमित साधन थे.
- देशी रियासतों का क्रांतिकारियों को सहयोग नही मिला.
- क्रांति की शुरुआत निर्धारित योजनानुसार 31 मई 1857 को होनी थी लेकिन कुछ घटनाक्रम ऐसा हुआ कि क्रांति 10 मई से ही शुरू हो गई.
- लार्ड कैनिंग की कूटनीति से देशी रियासतों को अपने पक्ष में कर लिया और क्रांतिकारियों पर नियंत्रण करने में सफलता प्राप्त कर ली.
1857 के स्वतंत्रता संग्राम का महत्व एवं परिणाम (Importance And Results Revolt Of 1857 In India)
सनः1857 के स्वतंत्रता संग्राम में यदपि सफलता नही मिली लेकिन अंग्रेजों को प्रशासनिक निति में परिवर्तन और सेना के पुनर्गठन के लिए विवश होना पड़ा. इस महान क्रांति के फलस्वरूप निम्न परिणाम निकल कर आए.
- ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन को समाप्त करके भारत सरकार का प्रशासन सीधे ब्रिटिश सरकार के अधिन हो गया.
- सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से भविष्य में भारत के राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरणा मिली.
- देशी रियासतों के साथ अंग्रेजो की निति में परिवर्तन आया. महारानी ने अपनी घोषणा में देशी राज्यों को उनके अधिकार, सम्मान व गौरव दिलाने की बात कही लेकिन उनको दत्तक पुत्र गोद लेने की अनुमति नही दी गई.
- अंग्रेज समझ गये कि हिन्दू मुस्लिम एक रहे तो अंग्रेज अधिक समय तक शासन नही कर सकेगे. अतः उन्होंने फूट डालों व राज करो की निति अपनाई व हिन्दू मुस्लिम वैमनस्य को जन्म दिया.
- इस क्रांति के बाद अंग्रेजों ने सेना का पुनर्गठन किया. सेना में ब्रिटिश सैनिकों की संख्या बढ़ा दी और तोपखाना भारतीयों के पास नही रखा.
यदपि अंग्रेजो ने अपनी सैनिक शक्ति और कूटनीति के बल पर 1857 के इस “स्वतंत्रता संग्राम” दबा दिया लेकिन इस आंदोलन ने यह सिद्ध कर दिया की यदि भारतीय संगठित होकर नियोजित प्रयास करे तो अंग्रेजों को भारत से बाहर किया जा सकता है.
अंग्रेजों को भी यह अहसास हो गया था कि भारत में शासन करना है तो फूट डालों व राज करो की निति अपनानी होगी. इस प्रकार भारत में राष्ट्रीयता का विकास हुआ और अन्तः Indian Freedom Struggle के फलस्वरूप ही भारत स्वतंत्र हो पाया.
1857 Revolt In Rajasthan | राजस्थान में 1857 का स्वतंत्रता संग्राम
आऊवा के ठाकुर खुशालसिंह अंग्रेजो के घोर विरोधी थे. उन्होंने अपने अंग्रेज विरोधी संघर्ष से जोधपुर राज्य एवं अंग्रेजी सेना को बुरी तरह पराजित किया.
आऊवा के ठाकुर कुशालसिंह ने ब्रिटिश रेजिमेंट मैकमेसन का सिर धड़ से अलग कर दिया और और उसे आऊवा के लिए पर लटका दिया.
आऊवा के ठाकुर को मेवाड़ के सामंतों का जन समर्थन मिला था, लेकिन दूसरे ही वर्ष जोधपुर व अंग्रेजों की सेना ने ठाकुर खुशालसिंह पर आक्रमण कर दिया. किलेदार को रिश्वत देकर किले के दरवाजे खुलवा दिए एवं किले में प्रवेश कर गये.
28 मई 1857 को नसीराबाद के सैनिकों ने तोपखाने पर अधिकार कर लिया. खजाना लूट लिया, एक अंग्रेज अधिकारी के टुकड़े टुकड़े कर दिए.
अंग्रेज अधिकारी वहां से प्राण बचाकर भाग निकले. यहाँ से दिल्ली कूच कर गये. तभी नसीराबाद क्रांति के समाचार नीमच पहुचे. नीमच में सैनिक शस्त्रागारों को लूट लिया गया. अंग्रेज अधिकारी उदयपुर की ओर भाग गये.
महाराणा ने उन्हें महलों में शरण दी, कोटा में भी अंग्रेजों के विरुद्ध आमजन और राजकीय सेना द्वारा संघर्ष किया गया. कोटा के महाराव को भी अंग्रेजों के प्रति सहयोग की निति के कारण क्रांतिकारियों के कोपभाजन का शिकार बनना पड़ा.
राजस्थान में अंग्रेज विरोधी भावना जागृत करने में जयदयाल, मेहराब खां, रतनलाल व जियाराम की महत्वपूर्ण भूमिका रही. कोटा के सम्पूर्ण प्रशासन पर क्रांतिकारियों का अधिकार हो गया. कोटा में इस दौरान लगभग 5 वर्षो तक जन शासन रहा.
कोटा में पोलिटिकल एजेंट बर्टन था. कोटा के क्रांतिकारियों ने मेजर बर्टन और उनके दो पुत्रों को मौत के घाट उतार दिया. यहाँ के शासक को क्रांतिकारियों ने महल में कैद कर दिया. 6 माह तक कोटा में क्रांतिकारियों का कब्जा रहा.
टोंक और शाहपुरा में अंग्रेजी सैनिकों के लिए द्वार बंद कर दिए लेकिन सर्वमान्य नेता के अभाव में अंग्रेजों ने अपने सैनिक बल के आधार पर इन क्रांतियों का दमन कर दिया.
तांत्या टोपे ने राजस्थान के झालावाड़ पर अधिकार कर लिया. यहाँ के शस्त्र भंडार पर क्रांतिकारियों ने अधिकार कर लिया. राजस्थान में तांत्या टोपे के आगमन से क्रांतिकारियों में नया जोश आ गया.
सलूम्बर के रावते केसरीसिंह तथा कोठारिया के सामंत जोधसिंह ने तांत्या टोपे का पूरा सहयोग दिया. नरवर के शासक मानसिंह ने तांत्या टोपे को अंग्रेजों के हाथों पकड़वा दिया.
और 1859 में उसे फांसी दे दी गई, लेकिन फांसी देना सत्य नही है, क्रांति को कमजोर होता देखकर वह अज्ञातवास में चला गया था. इसके के साथ ही राजस्थान में राजस्थान में 1857 का स्वतंत्रता संग्राम समाप्त हो गया.
1857 से 1947 का इतिहास की घटनाएँ तिथि क्रम | History Of 1857 To 1947 In Hindi
1857 से 1947 का करीब 90 वर्षों के घटनाक्रम के बारे में जानेगे. भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से स्वतंत्रता प्राप्ति तक भारत के इतिहास की कई अहम घटनाएं घटी उन सभी को वर्षवार यहाँ जानेगे.
भारत के आधुनिक इतिहास में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 की लड़ाई से 15 अगस्त 1947 तक का पढ़ाया जाता हैं. इन 90 वर्षों के दौरान कई घटनाएं घटित हुई. जिनमें कम्पनी शासन से ब्रिटिश सरकार के हाथ में सत्ता, बंगाल विभाजन, मुस्लिम लीग का जन्म, कांग्रेस का उदय.
19 वीं सदी में महात्मा गांधी और उनके प्रमुख आंदोलन, जलियांवाला बाग़ हत्याकांड, चौरा चौरी काण्ड, गोलमेज सम्मेलन दिल्ली विधानसभा में बम और आजाद आदि सैकड़ों घटनाएं इतिहास में दर्ज हैं. कौनसी घटनाएं कब हुई इनका तिथिवार विवरण इस प्रकार हैं.
1857 | पहला भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, मुंबई मद्रास और कलकता में विश्वविध्यालयों की स्थापना. |
1858 | ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इण्डिया कंपनी से भारत का प्रशासन अपने हाथों में ले लिया, क्वीन विक्टोरिया की उद्घोषणा. |
1861 | भारतीय परिषद् अधिनियम , भारतीय सिविल सेवा और भारतीय दंड सहिता अधिनियम, टैगोर का जन्म. |
1865 | यूरोप में टेलीग्राफिक संचार शुरू हुआ. |
1869 | महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) का जन्म. |
1876-77 | दिल्ली दरबार, इंग्लैंड की रानी भारत की महारानी घोषित की गई. |
1883 | इल्बर्ट बिल (Albert Bill). |
1885 | भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस पार्टी (Congress Party) का जन्म. |
1892 | भारतीय परिषद् अधिनियम पारित किया. |
1905 | बंगाल का विभाजन |
1906 | मुस्लिम लीग (Muslim league) का गठन. |
1909 | मार्ले मिन्टों (Marley minto) सुधार. |
1911 | भारत की राजधानी को कलकता से दिल्ली में स्थान्तरित किया गया. बंगाल का विभाजन समाप्त हुआ. |
1914 | प्रथम विश्वयुद्ध शुरू. |
1916 | बनारस विश्विद्यालय की स्थापना, गृह राज लीग (होम रुल लीग), लखनऊ संधि. |
1917 | बिहार में चंपारण अभियान, भारत में जिम्मेदार सरकार की शुरुआत के बारे में मीटिंग की घोषणा. |
1918 | प्रथम विश्वयुद्ध का अंत. |
1919 | 6 अप्रैल रोलेट एक्ट के खिलाफ अखिल भारतीय हड़ताल. |
1919 | 13 अप्रैल को जलियावाला बाग़ हत्याकांड, भारत सरकार अधिनियम. |
1920 | अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविध्यालय की स्थापना, हंटर आयोग की रिपोर्ट, असहयोग आंदोलन की शुरुआत. |
1925 | कानपुर में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना. |
1927 | साइमन कमीशन. |
1928 | नेहरु रिपोर्ट. |
1929 | कांग्रेस ने भारत की पूर्ण स्वतंत्रता का लक्ष्य बनाया. |
1930 | 14 फरवरी, सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू. |
1930 | 12 मार्च दांडी मार्च, लन्दन में पहला गोलमेज सम्मेलन. |
1931 | गांधी-इरविन संधि, सविनय अवज्ञा आंदोलन निलंबित, द्वितीय गोलमेज सम्मेलन. |
1932 | सांम्प्रदायिक पुरस्कार. |
1935 | भारत सरकार अधिनियम. |
1938 | अखिल भारतीय किसान सभा. |
1939 | सुभाषचंद्र बोस भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के अध्यक्ष बने., |
1940 | मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान के प्रस्ताव को अपनाया. |
1941 | टैगोर को अपनाया. |
1942 | मार्च अप्रैल क्रिप्स मिशन का भारत दौरा. |
1942 | अगस्त, सितम्बर भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत. |
1945 | शिमला सम्मेलन. |
1946 | केबिनेट मिशन का भारत दौरा. |
1946 | मार्च जून में सविधान सभा के लिए चुनाव. |
1946 | 9 दिसम्बर को सविधान सभा की पहली बैठक दिल्ली में. |
1947 | 20 फरवरी को ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने 1948 से पहले भारत को सता हस्तांतरण करने की घोषणा की. |
1947 | 3 जून को लार्ड माउंट बेटन ने अगस्त 1947 में सता हस्तांतरण की घोषणा की. |
1947 | जुलाई अंग्रेजो द्वारा भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम पारित. |
1947 | 15 अगस्त के दिन भारत स्वतंत्र हुआ था. |