आज का निबंध भारत की विदेश नीति पर निबंध Essay on Foreign Policy Of India in Hindi पर दिया गया हैं. भारत की विदेश नीति क्या है.
इसके आधार स्तम्भ उद्देश्य निर्धारक तत्व विशेषताएं मूल्यांकन के बिन्दुओ पर दिया गया हैं. उम्मीद करते है सरल भाषा में दिया गया इंडियन फोरेन पालिसी का यह निबंध आपको पसंद आएगा.
भारत विदेश नीति पर निबंध Essay on Foreign Policy Of India in Hindi
भारत की वर्तमान विदेश नीति निबंध 300 शब्द
भारत का हाल ही के वर्षों में दूसरे देशों के साथ संबंध का अध्ययन करें तब हमें एक नए भारत की नईं विदेश नीति नजर आती है। भारत अभी भी विश्व शांति का प्रबल समर्थक देश है।
भारत आज विश्व के बाकी देशों के साथ आगे बढ़ने और अपने राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित रखते हुए अपनी सामरिक स्वायत्तता को बनाएं हुए है। भारत विश्व के सभी देशों के साथ संवाद को बनाए रखने के प्रयास में है और सभी देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत कर रही है।
वर्तमान में भारत अपने सामरिक हितों की पूर्ति के लिए अमेरिका और रूस दोनो को संतुलित रुप से साथ लेकर आगे बढ़ रहा है। भारत की वर्तमान विदेश नीति India First पर आधारित है।
भारत रूस यूक्रेन युद्ध में अपनी तटस्था रखकर इसका परिचय दे चुका है। अमरीका के दबाव बनाने के बावजूद भारत अपने पक्ष पर कायम है। भारत रूस से तेल भी आयत कर रहा है।
इस पर कई देशों ने भारत पर दबाव बनाकर तेल आयात नहीं करने को कहा। जब एक एक विदेशी पत्रकार ने भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से रूस से तेल खरीदने पर प्रश्र किया तो एस जयशंकर ने भारत का पक्ष बेबाकी से रखते हुए कहा कि भारत से कई गुना ज्यादा तेल यूरोपीय देश रूस से खरीद रहे है, और भारत रूस से तेल खरीदना जारी रखेगा।
भारत विश्व की ⅕ आबादी वाला देश है, जिसे बिना किसी भय के अपने राष्ट्रीय हित के फैंसले लेना का पूरा अधिकार है। जिस प्रकार विकसित देश अपने राष्ट्रीय हित को सर्वोपरी रखते हुए विदेश संबंधी फैसले लेती है, वही कार्य भारत भी कर रहा है।
भारत ने आज तक कभी भी किसी पर पहले युद्ध शुरू नही करने की नीति पर कायम है। भारत अपनी सैन्य ताकत को भी लगातार बढ़ा रहा है।
Long Essay on Foreign Policy Of India in Hindi
विश्व संबंधो के मामले में भारत की एक सुदीर्घ परम्परा रही है. प्राचीन भारतीय वांग्मय में भारतीय समाज ने सम्पूर्ण मानवता के समग्र विकास व हितों की रक्षा व प्रकृति प्रदत भेदों को नकारते हुए विश्व परिवार की अवधारणा को इस प्रकार स्वीकार किया है.
“अंय निज परोवेति गणना लघुचेतसाम
उदातचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्”
इसके पीछे भारतीय विदेश नीति का यह मन्तव्य रहा है कि हितों की टकराहट का रास्ता छोड़ सबके कल्याण व सबके सुख का मार्ग अपनाएँ-
“सर्वें भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत.”
कालान्तर में इन्ही श्रेष्ट जीवन मूल्यों के मार्ग पर चलकर भगवान् बुद्ध, महावीर स्वामी, सम्राट अशोक, विवेकानंद आदि ने मानवता का प्रचार किया.
अपनी स्वतंत्रता से लेकर आज तक भारत ने सदैव अन्य देशों के साथ मित्रता के सेतु बाधने का प्रयास किया है, भारत की विदेश नीति के इन्ही तत्वों के फलस्वरूप जिसे विश्व में आज बड़ा समर्थन हासिल है.
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी विभिन्न मंचो से भारत ने अपनी प्राथमिकताओं एवं आदर्शों को दोहराया है. अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर भारत ने प्रारम्भ से ही अपने स्पष्ट विचार रखे है.
भारत ने सदैव उन राष्ट्रों की स्वतंत्रता की अवधारणा तथा आत्म निर्णय के अधिकार का समर्थन किया है. साथ ही सहस्तित्व व सबके हित के लिए बने अंतर्राष्ट्रीय संगठनो को भी भारत ने समर्थन प्रदान किया है.
भारत ने साम्राज्यवाद के विरुद्ध अपने रुख को स्पष्ट किया है. इस प्रकार एक राष्ट्र के रूप में स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व ही भारत की विदेश निति तथा इनके उद्देश्य बेहद स्पष्ट थे. एक नजर भारत की विदेश नीति के तत्व, सिद्धांत, लक्ष्य एवं विशेषताएं पर.
भारत की विदेश नीति के उद्देश्य (indian foreign policy objectives and principles In Hindi)
भारत की विदेश नीति में मैत्री, शांति एवं समानता के सिद्धांतों को सर्वाधिक महत्व दिया गया है. भारत ने सभी के साथ सहयोग एवं सद्भाव रखते हुए सुद्रढ़ एवं सुस्पष्ट नीति का निरूपण किया है. भारत की विदेश नीति के तीन आधार स्तम्भ है- शान्ति, मित्रता और समानता.
विदेश नीति के उद्देश्यों में राष्ट्रीय हितों की पूर्ति सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व होता है. भारत सदैव से ही अपने राष्ट्रीय हितों के साथ समायोजित करता रहा है.
हमारे मानवतावादी श्रेष्ट आदर्श एवंम श्रेष्ट जीवन मूल्य विदेश नीति के दीर्घकालीन आधार बने है. इसी सुसंस्कृत विचार ने भारत की विदेश नीति को हर काल में निरन्तरता दी है.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 में वर्णित राज्य के नीति निदेशक तत्वों के अंतर्गत भारतीय विदेश नीति के मूल तत्वों का समावेश किया गया है. भारत की विदेश नीति के प्रमुख उद्देश्य निम्न है.-
- अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा व शांति के लिए प्रयत्न करना.
- अंतर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थ द्वारा सुलझाना.
- सभी राज्यों में परस्पर सम्मानपूर्ण सम्बन्ध बनाना.
- अंतर्राष्ट्रीय कानून में आस्था.
- सैनिक समझौतों व गुटबंदियों से अलग रहना.
- उपनिवेशवाद व सम्राज्यवाद का विरोध.
- रंगभेद का विरोध करना तथा अपनी स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत राष्ट्रों की सहायता करना.
- सभी देशों के साथ व्यापार, उद्योग, निवेश, प्रोद्योगिकी अंतरण को सक्रिय व सहज बनाना.
- अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के समक्ष आने वाली चुनौतियों के समाधान खोजने में सहयोग करना.
- दक्षिण एशिया में मैत्री और सहयोग के आधार पर अपनी स्थति मजबूत करना.
भारत की विदेश नीति के निर्धारक तत्व (Determining elements of Indian foreign policy In Hindi)
सनः 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत के समक्ष कुछ विशेष परिस्थतियाँ व चुनौतियाँ थी. अतः तात्कालिक विदेश नीति के निर्धारण में इन तत्वों का महत्वपूर्ण स्थान रहा.
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय समूचा विश्व दो विरोधी गुटों में विभाजित था. अतः भारत ने अपने आप को गुटों की राजनीती से अलग बनाए रखने का निश्चय किया. अपना आर्थिक व सर्वागीण विकास करना भारत की पहली प्राथमिकता थी.
इसके लिए उसे विश्व के सभी देशों के सहयोग की आवश्यकता थी. इसी परिद्रश्य ने गुट निरपेक्ष आंदोलन को नयी अवधारणा की भूमिका तैयार की थी.
अपनी प्रतिरक्षा व्यवस्था को सुद्रढ़ कर देश की एकता व अखंडता को बनाए रखना भी अत्यंत महत्वपूर्ण था.
भारत की विदेश नीति के निर्धारण में भौगोलिक तत्वों का अपना महत्व है. प्रादेशिक सुरक्षा किसी भी राष्ट्र का परम लक्ष्य होता है. एक ओर भारत पूर्व सोवियत संघ तथा साम्यवादी चीन जैसी ताकतों के समीप था.
दूसरी ओर उसका दक्षिणी पूर्वी तथा दक्षिणी पश्चिमी हिस्सा समुद्र से घीरा है. अपनी सुरक्षा शांति व मैत्री में ही भारत का हित निहित है.
भारत की विदेश नीति के निर्धारक में प्राचीन संस्कृति का प्रभाव रहा है. विश्व बन्धुत्व विश्व शांति व मानवतावाद अतीतकाल से हमारे प्रेरक मूल्य रहे है.
स्वतंत्रता संग्राम के तत्कालिक नेतृत्वकर्ताओं के विचार ने भी हमारी विदेश नीति को प्रभावित किया है.
भारत की विदेश नीति की मुख्य विशेषताएं (features of indian foreign policy in Hindi)
गुट निरपेक्षता (concept of non alignment movement)
परिस्थतिवश भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के समय समूचा विश्व दो गुटों में विभाजित था. एक का नेतृत्व पूंजीवादी अमेरिका कर रहा था तथा दूसरे का साम्यवादी सोवियत संघ रूस.
भारत ने अपने वैचारिक अधिष्ठान व हित के कारण दोनों गुटों के परस्पर संघर्ष से दूर रहने का निर्णय किया. गुटों की राजनीति से अलग रहकर अपने विकास पर ध्यान केन्द्रित करता रहा, जो आगे जाकर गुटनिरपेक्षता की नीति कहलाई.
यह नीति विश्व की विभिन्न समस्याओं पर स्वतंत्र व न्यायपूर्ण विचार प्रकट करती है. इस दर्ष्टि से यह एक सकारात्मक व रचनात्मक नीति है.
गुटनिरपेक्षता के अंतर्गत कोई भी राष्ट्र दोनों विचारों से राष्ट्रहित में मैत्रीपूर्ण व संतुलित सम्बन्ध रखकर अपने आर्थिक विकास के लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है. गुट निरपेक्षता किसी भी सैनिक गुट से सैनिक संधियों से असहमति रखती है.
दासता से मुक्त हुए भारत सहित सभी नव स्वतंत्र राष्ट्रों के लिए इस आंदोलन ने एक नवीन मार्ग प्रशस्त किया. इस नीति का अवलम्बन करके नव स्वतंत्र राष्ट्र अपने विकास के नये आयाम खोल पाए.
साथ ही अंतर्राष्ट्रीय विवादों में सही गलत के आधार पर निर्णय के लिए एक तीसरे मंच का आविर्भाव हुआ.
गुट निरपेक्षता को एक आंदोलन का रूप देने में प्रधानमंत्री पंडित नेहरु, युगोस्लाविया के मार्शल टीटो, मिस्र के राष्ट्रपति नासिर तथा इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्ण की व्यापक भूमिका रही. पांचवें एवं छठे दशक में इस आंदोलन ने एक व्यवस्थित रूप प्राप्त कर लिया.
सन 1961 में आयोजित बेलग्रेड शिखर सम्मेलन में शान्ति एवं निशस्त्रीकरण पर बल दिया गया. इसका सोहलवा शिखर सम्मेलन 2 अगस्त 2012 में ईरान की राजधानी तेहरान में सम्पन्न हुआ.
इसमे 120 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया, इसमे परमाणु निशस्त्रीकरण, मानवाधिकार व मानवीय मुद्दों पर व्यापक चर्चा हुई.
शीत युद्ध की समाप्ति तथा सोवियत संघ के विघटन के बाद गुट निरपेक्ष आंदोलन की उपयोगिता व प्रासंगिकता पर सवाल उठते रहे,
परन्तु यह कहा जा सकता है कि नवीन चुनौतियों व समस्याओं के समाधान के प्रयासों ने सन्गठन की प्रासंगिकता को बनाए रखा है.
इस आंदोलन ने नव उपनिवेशवाद, मानव अधिकार, पर्यावरण, आर्थिक व क्षेत्रीय सामाजिक जटिलताओं जैसे नवीन क्षेत्रों में अपना विस्तार करके अपनी महत्ता को सिद्ध कर दिया है.
भारत की विदेश नीति पंचशील सिद्धांत (India’s Foreign Policy Panchsheel Principle)
पंचशील गौतम बुद्ध द्वारा प्रतिपादित बौद्ध धर्म के पांच व्रतों का परिभाषिक शब्द है. पंचशील का अर्थ है आचरण के पांच सिद्धांत.
पंचशील को भारत की विदेश नीति के सन्दर्भ में सर्वप्रथम 29 अप्रैल 1954 को तिब्बत के सम्बन्ध में भारत और चीन के बिच हुए एक समझौते में प्रतिपादित किया एशिया के प्राय सभी देशों ने पंचशील के सिद्धांतो को अपनाया.
कालांतर में इस सिद्धांत को विश्व स्तरीय पहचान पत्र हुई, पंचशील के पांच सिद्धांत ये है.
- अनाक्रमण की नीति
- एक दूसरे की प्रादेशिक अखंडता और सर्वोच्च सता के प्रति सम्मान
- समानता और परस्पर लाभ
- एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना.
- शांतिपूर्ण सहस्तित्व
पंचशील के सिद्धांत नैतिक शक्ति के प्रतीक है. पंडित नेहरु ने एक बार कहा था यदि इन सिद्धांतो को सभी देश मान्यता दे दे तो आधुनिक अनेक समस्याओं का समाधान मिल जाएगा.
प्रारम्भ में पंचशील को विश्व में भारत की विदेश नीति की महान उपलब्धी माना जाता था परन्तु 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर यह सिद्ध कर दिया कि पंचशील एक भ्रान्ति है.
इस आक्रमण से भारत की विदेश नीति व वैश्विक प्रतिष्ठा को भारी अघात लगा. आलोचकों ने इसे भारत की कुटनीतिक पराजय माना.
पंचशील के सिद्धांतों में भारत का आज भी विश्वास है, लेकिन वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय वातावरण में वैचारिक व नैतिक प्रतिबद्धता के अभाव के चलते इसकी व्यापक सफलता के सिमित अवसर प्रतीत होते है.
शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व (peaceful coexistence meaning in hindi)
भारतीय दर्शन में सदैव वसुधैव कुटुम्बकम् का समर्थन किया है. इसका तात्पर्य विभिन्न धर्मों तथा सामाजिक व्यवस्थाओं वाले देशों के साथ शान्तिपूर्वक सह-अस्तित्व में बने रहना है.
शान्ति पूर्ण सह-अस्तित्व पंचशील सिद्धांतो का ही विस्तार है. भारत की विदेश नीति के माध्यम से परस्पर विरोधी विचारधाराओं वाले राष्ट्रों को मैत्रीपूर्वक रहने का संदेश दिया है.
भारत ने स्वयं भी अधिकाधिक मैत्री सन्धियाँ व व्यापारिक समझौते किये है. यह नीति रचनात्मक विकास की आधारशिला है. भारत प्रारम्भ से ही युद्ध का विरोधी एवंम शांति व उसके लिए आवश्यक निशस्त्रीकरण का समर्थक रहा है.
युद्ध की संभावनाएं बनने पर भारत ने अनेक बार मध्यस्थ की भूमिका निभाई है. वर्तमान में विश्व में कई देशों के पास आणविक शक्ति है.
अर्द्ध विकसित व पिछड़े राष्ट्रों के विकास हेतु शान्ति का वातावरण अनिवार्य है. वास्तव में शांतिपूर्ण सहास्तित्व अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को दृढ तथा कुशल व्यावहारिक आधार प्रदान कर सकता है.
साम्राज्यवाद तथा रंगभेद का विरोध (Protest against imperialism and apartheid)
भारत स्वयं साम्राज्यवाद का शिकार रहा है. इसके दुष्परिणामों को अनुभव कर चूका है. इसलिए सम्पूर्ण दुनियाँ में साम्राज्यवाद के किसी भी रूप का वह प्रबल विरोध करता है.
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत ने एशिया तथा अफ्रीका के उन सभी राष्ट्रों का समर्थन किया, जो अपनी स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत थे.
भारत सभी लोगों के लिए आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन करता है. तथा साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद को शोषण का साधन माना है. साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद का विरोध भारत की विदेश नीति के प्रारम्भिक आदर्शों में है.
जिसके माध्यम से प्रारम्भ से लेकर अब तक भारत ने शोषण के खिलाफ संघर्षशील राष्ट्रों का मनोबल बढ़ाने का कार्य किया है.
इसी प्रकार नस्लीय भेदभाव व रंगभेद का विरोध भारत की विदेश नीति की विशेषता रही है. भारत विश्व की सभी मानव नस्लों व प्रजातियों की समानता का पक्षधर है तथा नस्ल व रंग के आधार पर किये जाने वाले भेदभाव का प्रबल विरोध करता है.
प्रजातीय विभेद समानता की अवधारणा के प्रतिकूल है तथा अंतर्राष्ट्रीय वातावरण को दूषित करता है. नस्ल भेद के विरोध के स्वरूप ही भारत ने भूतकाल में दक्षिण अफ्रीका के साथ अपने कुटनीतिक सम्बन्ध विच्छेद कर लिया.
अमेरिका में नीग्रो और रोडेशिया के अफ़्रीकी लोगों का भी भारत ने खुलकर समर्थन किया. इस नस्लवाद व रंगभेद की नीति पर चलने वाले विभिन्न देशों के विरुद्ध कई प्रकार के प्रतिबंध लगाने में सहयोग किया. भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के माध्यम से भी अपनी मुखर नीति को मुखर स्वर प्रदान किया.
संयुक्त राष्ट्र संघ का समर्थन (india’s contribution to united nations)
भारत संयुक्त राष्ट्र संघ प्रारम्भिक सदस्य रहा है. तब से लेकर आज तक इस अंतर्राष्ट्रीय संस्था की नीति व कार्यों का समर्थन करता आ रहा है.
संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व शान्ति हेतु स्थापित अंतर्राष्ट्रीय संस्था है जो जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत है भारत ने हमेशा ही इसके आदेशों व अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की अनुपालना की है.
भारत पाक विवाद पर भी भारत ने तत्काल ही संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णयों की पालना की है. इससे भारत की इस संगठन के प्रति निष्ठा व प्रतिबद्धता सिद्ध हो जाती है. अनेक भारतीयों ने संयुक्त राष्ट्र संघ में उच्च पदों को सुशोभित कर अपने देश का गौरव बढ़ाया है.
आवश्यकता पड़ने पर भारत ने इसे अपनी शान्ति सेना भी प्रदान की है. वर्तमान में सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए प्रयत्नशील है.
भारत की विदेश नीति का मूल्यांकन | Evaluation Of indian Foreign Policy In Hindi
भारतीय विदेश नीति प्राय अपने राष्ट्रीय हितों की पूर्ति करने में समर्थ रही है. यह हमारी विदेश नीति की मुख्य विशेषता है. साथ ही इसने उच्च मानवीय मूल्यों पर आधारित होने के कारण इसे गौरवशाली भी माना जाता है.
हालांकि यदा कदा अपने सैनिक एवं आर्थिक हितों को लेकर भारतीय विदेश नीति आलोचना का शिकार रही है. कुछ विषयों को छोड़कर कहा जा सकता है.
कि विश्व के बदलते हुए परिद्रश्य व समय की मांग के अनुसार इसने अपने आप को परिवर्तित किया है. यही कारण है, कि इसमे निरन्तरता व गत्यात्मकता देखी जा सकती है.
भारत ने अपने आर्थिक पहलू को महत्व देना आरम्भ कर दिया है. व्यापार एवं वाणिज्य पर अपनी विदेश नीति को लेकर भारत गंभीर है.
भारत अमेरिका संबंधो में व्यापक सुधार की प्रक्रिया प्रारम्भ हो चुकी है. 2010 तथा पुनः 2015 में अमेरिकी राष्ट्रपति राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा से दोनों देशों के बिच बदलाव के संकेत दिखाई दिए है. वर्तमान में डोनाल्ड ट्रम्प एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी अच्छा तालमेल है.
दक्षिण एशिया तथा विकासशील देशों के नेतृत्व की भूमिका भी भारत की विदेश नीति में आए सकारात्मक बदलाव की तरफ ईशारा करती है. भारत के परमाणु परिक्षण ने अणुशक्ति पर पश्चिम देशों व चीन के एकाधिकार को तोड़ दिया है.
यह सिद्ध करता है कि एक तरफ भारत की विदेश नीति शांति और सद्भाव के प्रति वचनबद्ध है, तो दूसरी तरफ अपने हितों की पूर्ति करने में समर्थ एवं सक्षम है.
भारत की विदेश नीति ने उसकी सांस्कृतिक पहचान को भी विस्तार दिया है. भारतीय कला, भोजन, वेशभूषा, संस्कृति आदि को अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली है.
वस्तुतः विगत दो दशकों में भारत ने आर्थिक एवंम तकनिकी प्रगति की है. अपनी गत्यात्मक विदेश नीति के कारण ही आज भारत को नई वैश्विक भूमिका प्राप्त हुई है.
भारत की विदेश नीति अतीत से लेकर वर्तमान तक गौरवशाली परम्पराओं को अभिव्यक्त करती है. विश्व शांति, मैत्री, विश्व बन्धुत्व एवं सहयोग जैसे श्रेष्ट आदर्श इसके प्रमुख स्तम्भ आधार रहे है.
हमारी विदेश नीति का प्रमुख उद्देश्य अपने राष्ट्रीय हितों के साथ अंतर्राष्ट्रीय हितों का समायोजन करना है. भारत की विदेश नीति के प्रमुख निर्धारक तत्वों में तत्कालीन, भौगोलिक तत्व व विचारधारा का प्रभाव उल्लेखनीय है.
गुट निरपेक्षता भारत की विदेश नीति की एक प्रमुख विशेषता है. इसका तात्पर्य है कि तत्कालीन गुटों की राजनीती से आप को अलग रख कर अपने देश के विकास पर ध्यान देना.
भारत ने पंचशील के सिद्धांतो का प्रतिपादन किया जिसके अंतर्गत अनाक्रमण की नीति अपनाना, एक दूसरे की प्रादेशिक अखंडता का सम्मान, समानता, अहस्तक्षेप की नीति तथा शांतिपूर्ण सह अस्तित्व सम्मिलित है.
भारत रंग अथवा जाति प्रजाति के आधार पर भेदभाव करना समानता के अधिकार के प्रतिकूल मानता है. अतः भारत नस्लवाद व रंग भेद का विरोध करता है. ये indian foreign policy के मुख्य objectives & principles रहे है.
अंतर्राष्ट्रीय शांति व बन्धुत्व को बनाए रखने के लिए भारत अंतर्राष्ट्रीय संगठन संयुक्त राष्ट्र संघ का समर्थन करता है. विश्व के बदलते हुए परिद्रश्य एवं परमाणु निशस्त्रीकरण पर परमाणु संपन्न राष्ट्रों की भेदभावपूर्ण नीति से क्षुब्ध होकर भारत ने अपने परमाणु कार्यक्रम को नया रूप प्रदान किया है.
किसी भी देश की विदेश नीति तैयार करने वाले निर्माताओं का दूरदर्शी होना निहायत जरुरी हैं. देश के विदेश विभाग में एक नियोजन मंत्रालय होना चाहिए.
जो भविष्य की संभावनाओं के बारे में सटीक अनुमान और आंकलन करके देश की फोरेन पालिसी को उस दिशा की और ले जाने के लिए सुझाव दे सके. आने वाले समय का सही सही पूर्वानुमान लगा लेना ही एक सफल विदेश नीति का अहम लक्ष्य होता हैं.