अस्तित्व है, पर संवेदनाएं कहाँ?

नमस्कार साथियों आज में उस देश का नागरिक हूँ, जो गर्व से कहता है, मै भारतीय हूँ, मुझे भारतीय होने पर गर्व है. हम तथाकथित राष्ट्र भक्त और समाजसेवी बन चुके है. हम उस भारत में रहते है, जो कभी विश्व गुरु और विकसित भारत बनने का सपना देखता है, तो कहीं अपने अस्तित्व को ही खो देता हुआ प्रतीत होता है.

भारत जैसे बड़े भू-भाग में स्थित यह भूमि चीख-चीखकर अपना इतिहास अपने गौरव की दास्ताँ बयाँ करती करता है. यहाँ की भूमि ने हजारो योद्धाओं और पराक्रमी अवतारों को अवतरित किया है. पर आज की स्थिति अपने इतिहास के उलट प्रतीत होती है.

वह भारत जहाँ ऋषि मुनि ईमानदारी, सत्यनिष्ठ और सच्चाई का पाठ पढ़ाते थे. सत्यवादी राजा अपने वचनों पर अपने प्राणों की आहुति देने को भी तत्पर रहते थे. आज उसी भूमि पर हमें बेईमानी और साम्प्रदायिकता के नाम पर दंगे और आपसी मतभेद देखने को मिलता है.

आज हमारा भारत दुनिया में जनसंख्या के मामले के अभी दुसरे स्थान पर है, जो आने वाले कुछ ही सालो में चीन को पछाड़ कर सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश बन जायेगा. पर जैसे जैसे मानव बढ़ रहे है, वैसे वैसे मानवता क्षीण होती जा रही है.

देश में आज चरम सीमा पर भ्रष्टाचार, बेईमानी, धोखाधड़ी और अमानवीय घटनाए पहुँच चुकी है. यह अमानवीय घटनाए देश के भविष्य की छवि को गढ़ रही है. आज देश में बढती बेरोजगारी कई रोगो की जननी बन चुकी है.

प्रगति के पथ पर खोती मानवता

देश में शिक्षा व्यवस्था में सुधार देखने को मिला है, पर शिक्षित लोगो को अपनी योग्यता के अनुसार पद ही नहीं मिलता. राजनीती में तानाशाही और भ्रष्टाचार बढ़ रहा है. वही सरकारी एग्जाम में पेपर एग्जाम से पूर्व ही लीक हो रहे है.

इस प्रकार की व्यवस्था आज के युवा के साथ खिलवाड़ कर रही है. वे युवा जो अपना भविष्य निर्धारित करने के लिए रात दिन मेहनत करते है. अपना घर बार छोड़कर बाहर कड़ी मेहनत करने जाते है, पर रिजल्ट क्या मिलता है? निराशा. पेपर लीक हो गया.

हर सरकार अपनी चोरी पर पर्दा डालना चाहती है, कई बार सफल रहते है, तो कई बार दूध का दूध पानी का पानी हो जाता है. जब एग्जाम कराने की जिम्मेदारी का निर्वहन करने वाले पदाधिकारी भी इन घोतलो में साथ मिलते है, किसे जिम्मेदार बताया जाए?

यह मामले केवल शिक्षार्थियों के साथ ही घटित नहीं होते है. पैसो का बोलबाला देश के हर नागरिक को चपेट में लेता है. इससे बचाव के लिए आमजन का जागरूक होना पहली प्राथमिकता है. भ्रष्टाचार या बेईमानी से राष्ट्र उन्नति की राह पर न चल सकेगा.

राष्ट्र के मुख्य स्तम्भों में गिने जाना वाला लोकतंत्र तानाशाही की ओर बढ़ रहा है. वहीँ निष्पक्ष मीडिया पैसो का पक्षधर बना बैठा है. आमजन तक वास्तविक छवि पहुँच ही नही पाती है. प्रिंट मीडिया हो या सोशल मीडिया हर जगह पक्षपात अपने पैर पसार चूका है.

देश में धर्म के नाम पर तो कहीं जाति के नाम पर तो कहीं राजनीती के नाम पर हत्या होती रही है. कई बार चंद पैसो की लालचा में लोग एक दुसरे का गले काटने को आतुर नजर आते है. गुंडागर्दी बढती जा रही है. प्रशासन चुप्पी साध चूका है….||

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