मृत्युभोज पर निबंध मृत्युभोज भारत में सदियों से चली आ रही एक परम्परा है, जिसमें किसी पुरुष या महिला की मृत्यु के बाद उनके परिवार द्वारा समाज को भोज / सामूहिक भोजन करवाया जाता है। यह प्रथा समाज के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग स्वरूप में प्रचलित है और मुख्यतः मान्यताओं, रीति-रिवाजों तथा सामाजिक दबाव के चलते इसे समाप्त करना बहुत कठिन है। परंतु इस परंपरा से जुड़ी सामाजिक, आर्थिक और नैतिक चुनौतियाँ भी हैं, जो इस पर नये सिरे से सोचने की आवश्यकता को बढ़ाती हैं।
मृत्यु भोज का आयोजन करने के पीछे यह तर्क दिया जाता है कि यह भोज मृतक की आत्मा की शांति के लिए होता है। ऐसा मानते है कि इस सामूहिक भोज के माध्यम से लोग मृतक के प्रति अपनी भावनाओं प्रकट करते हैं और मृतक की आत्मा को शांति और पुण्य मिलता है। इसके अलावा, मृतक के परिवार को समाज का समर्थन और सहानुभूति भी प्रदर्शित की जाती है। परंतु धीरे-धीरे यह परंपरा एक सोशल प्रेशर और आडम्बर का पर्याय बन गई है, जहाँ लोग अपनी हैसियत से अधिक खर्च करने के लिए मजबूर होते हैं।
मृत्युभोज का सबसे बड़ा नकारात्मक प्रभाव आर्थिक बोझ के रूप में देखने को मिलता है। कई बार गरीब परिवार भी समाज के दबाव में आकर ऋण लेकर मृत्युभोज का आयोजन करते हैं, ऐसा करने से उनके परिवार के आर्थिक हालात और खराब हो जाते हैं। यह स्थिति विशेष रूप से ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में गंभीर होती है, जहाँ लोगों के पास कमाई के बहुत कम संसाधन होते हैं, लेकिन समाज की रीतियों को बनाए रखने के लिए उन्हें मृत्युभोज का आयोजन करना पड़ता है। इस प्रकार की परम्पराएं गरीबी और आर्थिक असमानता की खाई को और अधिक गहरा कर देती हैं।
इसके अलावा, मृत्युभोज में फिजूल रूप से भोजन की बर्बादी भी होती है। जिस भोजन को आवश्यक की मदद के लिए प्रयोग किया जा सकता है, वह केवल रीति-रिवाजों को निभाने के लिए बेकारचला जाता है। ऐसे समय में जब समाज में कई लोग भूख से मर रहे हैं, इस प्रकार की फिजूलखर्ची पर प्रश्न उठना वाजिब है।
आज के समय में कई लोग और सामाजिक संगठन इस परम्परा का प्रतिकार कर रहे हैं। उनका मानना है कि मृतक की आत्मा की शांति के लिए जरूरत नहीं कि परिवार पर आर्थिक जोर डाला जाए। इसके स्थान पर, यदि लोग मृतक के नाम पर समाज अच्छे कार्यों में सहयोग दें, जैसे गरीबों की मदद करना या शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में दान देना, तो यह अधिक सार्थक होगा।
अतः, मृत्युभोज एक पुरानी रीती और सामाजिक परम्परा है, जिसे आज के समय में बदलने की आवश्यकता है। समाज में जागरूकता लाकर इसे कम किया जा सकता है, ताकि आर्थिक बोझ से लोग मुक्त हों और समाज में सकारात्मक बदलाव लाया जा सके।