जातिवाद क्या है अर्थ हिंदी में | Casteism Meaning In Hindi: जाति एक सामाजिक संरचना है जो अति प्राचीन काल से ही भारत में प्रचलित हैं.
क्या है जातिवाद आधुनिक पश्चिमी राजनीतिक संस्थाओं के साथ लोकतंत्र स्वीकार करने के बावजूद जातिवाद समाप्त नहीं हुआ. वोट राजनीति ने जातिवाद को और ज्यादा बढ़ाया हैं.
जातिवाद अर्थ, परिभाषा और इतिहास Casteism Meaning, Definition and history in India in Hindi में आज इसे विस्तार से समझेगे.
जातिवाद क्या है हिंदी में Casteism Meaning In Hindi
Casteism meaning in Hindi – Meaning of Casteism in Hindi: अपनी जाति का संगठन कर उनके माध्यम से राजनीतिक वजूद बनाने का प्रयास किया गया हैं.
जातीय संगठनों की उचित, अनुचित मांगों का समर्थन कर उन्हें अपना वोट बैंक बनाने का प्रयास किया गया हैं, जिससे जातियों में आपसी वैमनस्य पैदा हुआ हैं.
इस प्रकार वोट राजनीति ने न केवल जातीय भावनाओं को भड़काने का प्रयास किया बल्कि आपसी जातीय तनाव भी पैदा किया हैं.
जाति और जातिवाद का स्वरूप (Nature Of Cast & Casteism Hindi Meaning)
भारत में जाति चीरकालीन सामाजिक व्यवस्था है प्राचीन समय की तत्कालीन परिस्थितियों में समाज के विभिन्न वर्गों को नियमित करने के लिए वर्ण व्यवस्था का उद्भव हुआ था.
जो कर्म व व्यवसाय के सिद्धांत पर आधारित थी. बहुजातीय विविधता पूर्ण समाज के व्यवस्थित समन्वय व नियमन के लिए वर्ण व्यवस्था तत्कालीन सामाजिक व राजनीतिक परिस्थितियों में अनु कूल मानी गई थी. कालान्तर में विभिन्न कारणों से यह व्यवस्था विकृत होकर जाति व्यवस्था में बदल गई.
इनमें कई प्रकार के दोष उत्पन्न हो जाने से यह भेदभाव पूर्ण व विखंडनकारी प्रवृति पहले जातिप्रथा और आधुनिक काल में जातिवाद के रूप में विकसित हुई जिसने भारत की एकता और अखंडता को गम्भीर चुनौती प्रदान की हैं.
अंग्रेजों ने इस स्थिति का लाभ उठाते हुए इस विभेदकारी सामाजिक व्यवस्था को अपने निहित स्वार्थों के लिए प्रयोग करना आरम्भ कर दिया.
उन्होंने इसका अपने औपनिवेशिक हित में फायदा उठाने का प्रयत्न किया, इसे और अधिक भड़काया. अंग्रेजों द्वारा दलित वर्गों के लिए भी पृथक निर्वाचन की व्यवस्था लागू करने की कोशिश की गई, जिसका गांधीजी ने विरोध किया.
जातिवाद क्या है
इसी मुद्दे पर गांधीजी एवं अम्बेडकर के बीच पूना पैक्ट हुआ. जिसमें इन वर्गों के उचित प्रतिनिधित्व की व्यवस्था सुनिश्चित करने हेतु स्थान आरक्षित करने की व्यवस्था स्वीकार की गई.
अम्बेडकर ने पृथक निर्वाचन का आग्रह छोड़ दिया. पृथक निर्वाचन का उद्देश्य हिन्दुओं में भी उच्च एवं निम्न जातियों में फूट पैदा करना था जिसकों राष्ट्रपिता महात्मा गांधी एव महान नेता आंबेडकर दोनों ने समझा.
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारतीय राजनीति का आधुनिक स्वरूप विकसित हुआ. ऐसा माना जाने लगा था कि देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित हो जाने के बाद जातिवाद स्वतः ही समाप्त हो जाएगा. किन्तु ऐसा नहीं हुआ.
इस धारणा के विपरीत स्वतंत्र भारत ने न केवल समाज में ही वरन राजनीति में भी उग्रवाद से प्रवेश कर लिया. स्वतंत्रता के बाद भी जातिवाद ने भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की.
के एन मेनन का निष्कर्ष सही है कि स्वतंत्रता के बाद भारत के राजनीतिक क्षेत्र में जाति का प्रभाव पहले की अपेक्षा बढ़ा हैं. मोरिस जोन्स कहते हैं कि जाति के लिए राजनीति का महत्व एवं राजनीति के लिए जाति का महत्व पहले की तुलना में बढ़ गया हैं.
स्वतंत्र भारत की राजनीति में सत्ता लोलुपता ने जातिवादी भावनाओं को और ज्यादा उभारने का प्रयास किया. वोट बैंक बनकर चुनाव जीत कर सत्ता पर कब्जा कर सत्ता सुख भोगने की राजनीतिक दलों एवं जन प्रतिनिधियों की आकांक्षा ने इसे सदा बढ़ावा दिया.
वर्तमान में जातिवाद ने न केवल यहाँ की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक प्रवृत्तियों को प्रभावित किया है, अपितु राजनीति को भी सर्वाधिक प्रभावित किया हैं.
परम्परागत भारतीय समाज में आधुनिक राजनीतिक संस्थाओं की स्थापना भारतीय राजनीति की एक अद्भुत विशेषता थी. लोकतंत्र के साथ इनकी स्थापना के साथ ही यह धारणा बनी थी कि धीरे धीरे जातिवाद का अंत हो जाएगा.
अपेक्षा के विपरीत समय के साथ पश्चिमी आधुनिक लोकतान्त्रिक राजनीतिक संस्थाओं की स्थापना के बावजूद जातिवाद अनवरत बढ़ता रहा.
जहाँ सामाजिक एवं धार्मिक क्षेत्र में जाति की शक्ति घटी हैं वहीँ राजनीतिक एवं प्रशासन पर इसके बढ़ते हुए प्रभाव को राजनीतिज्ञों, प्रशासनिक अधिकारियों एवं केंद्र एवं राज्य सरकार ने स्वीकार किया हैं.
राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए जातिवाद को हथियार के रूप में काम में लिया जाता हैं. भारत में राजनीतिक व्यवहार पर जातिवाद का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता हैं.
सत्ता प्राप्ति की जबरदस्त महत्वकांक्षा ने जाति के नकारात्मक प्रभावों के बावजूद उसे और ज्यादा भड़काने का प्रयास किया गया. जिससे यह सामाजिक एवं राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा बन गई हैं.
जातिवाद क्या है इसका अर्थ (casteism meaning in hindi)
जब एक वर्ग पुर्णतः आनुवांशिकता पर आधारित होता हैं तो उसे जाति कहते हैं. जाति एक ऐसा सामूहिक समूह होता है जो दूसरों से अपने को अलग मानता हैं. जिसकी अपनी अपनी विशेषता होती हैं.
अपनी परिधि में ही वैवाहिक सम्बन्ध करते हैं, जिसका कोई परम्परागत व्यवसाय होता हैं. जयप्रकाश नारायण के अनुसार भारत में जाति एक महत्वपूर्ण दल हैं.
जाति कई प्रकार से राजनीति में अपनी भूमिका अदा करती हैं. जातीय संगठन सरकारी निर्णयों को प्रभावित करते हैं. प्रत्याशियों का चयन, मतदान, मंत्रिमंडल में भागीदारी निश्चित होती हैं. जातीय संगठन दवाब समूह के रूप में कार्य करते हैं.
जातिवाद लोगों में एकता एवं सामूहिकता की भावना पैदा करते हैं. लोगों में राजनीतिक जागृति एवं सक्रियता पैदा करती हैं. खान पान, वेश भूषा, रहन सहन आदि में समानता पैदा करती हैं.
भार तीय राजनीति में जाति की भूमिका (Role Of Caste In Indian Politics)
जातिवाद क्या है: भारतीय राजनीति में जाति की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हैं. जयप्रकाश नारायण के अनुसार जाति भारत में एक अत्यधिक महत्वपूर्ण दल हैं.
के एन मेनन के अनुसार स्वतंत्रता के बाद भारत के राजनीतिक क्षेत्र में जाति प्रभाव पहले की अपेक्षा बढ़ा हैं. जाति भारतीय राजनीति में कई प्रकार की भूमि अदा करती हैं. भारतीय राजनीति में जाति की की भूमिका को निम्न रूप में देख सकते हैं.
निर्णय प्रक्रिया में जाति की भूमिका
भारत में जाति पर आधारित संगठन शासन की निर्णय प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं. अनुसूचित जाति एवं जनजाति के संगठन प्राप्त अपने आरक्षण अधिकार की समय सीमा बढ़ाना चाहती हैं.
जिन जातियों को आरक्षण प्राप्त नहीं हुआ, वे प्राप्त करने के लिए आंदोलन कर रहे हैं. कुछ अपने को आरक्षित जातियों की सूची में शामिल कराने हेतु प्रयत्नशील हैं.
अपनी मांगों को मनवाने हेतु वे विभिन्न प्रकार से शासन को प्रभावित करने का प्रयास करती हैं. जातीय संगठन अपने हितों के अनुसार निर्णय करने तथा अपने हितों के प्रतिकूल होने वाले निर्णयों को रोकने हेतु निर्णय प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं.
राजनीतिक दलों में जातिगत आधार पर प्रत्याशियों का निर्णय
राजनीतिक दल अपने प्रत्याशियों का चयन करते समय जातिगत समीकरण को ध्यान में रखकर निर्णय करता हैं. जिस क्षेत्र में जिस जाति का बाहुल्य हो, वहां उसी जाति का प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारने का प्रयास किया जाता हैं.
कई बार क्षेत्र विशेष में बाहुल्य युक्त उम्मीदवार दो दलों द्वारा चयन करने के बाद तीसरा दल क्षेत्र में दूसरे नम्बर पर आने वाली जाति के उम्मीदवार को उतारती हैं. ताकि पहले दो के वोट बंटने का फायदा तीसरे नम्बर को मिले.
राजनीतिक दल अपने आंतरिक संगठनात्मक चुनावों एवं नियुक्तियों में भी जातीय समीकरण का ध्यान रखती हैं. कांग्रेस सहित सभी राजनीतिक दलों में आंतरिक रूप से जातीय आधार पर कई गुट पाए जाते हैं जो शक्ति प्रतिस्पर्धा में लगे रहते हैं.
जातिगत आधार पर मतदान व्यवहार
भारत में मतदान व्यवहार में जातिगत भावना प्रबल रूप से होकर कार्य करती हैं. तथा सभी राजनीतिक दल अपने निहित राजनितिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए जातिवाद को भड़काने का प्रयास करते हैं.
भारत में पंचायतीराज संस्थाओं के चुनावों में जातिवाद सर्वाधिक प्रभावशाली रूप से हावी रहता हैं.
मंत्रि मंडलों के निर्माण में जातिगत प्रतिनिधित्व
सभी राजनीतिक दल जातीय समीकरण को अपने पक्ष में बनाए रखने हेतु बहुमत प्राप्त होने पर सरकारों के निर्माण के लिए मंत्रिमंडल का निर्माण करते समय भी जातीय संतुलन का विशेष ध्यान रखा जाता हैं.
संघ शासन से लेकर प्रान्त सरकार यहाँ तक कि स्थानीय शासन तक दायित्व प्रदान करते समय जातिगत लाभ हानि का ध्यान रखा जाता हैं. कई बार केंद्र एवं प्रान्त विशेष के मंत्रिमंडल में जाति विशेष के प्रतिनिधित्व को कम करने की आलोचना होती रहती हैं.
जातिगत दवाब समूह
जातीय संगठन राजनीतिक व्यवस्था पर दवाब समूह के रूप में कार्य करते हैं. अपने जातीय हितों के अनुसार निर्णय करने एवं जातीय हितों के विरुद्ध होने वाले निर्णयों को रोकने या बदलने हेतु सरकार पर दवाब डालते हैं.
आरक्षण से वंचित जातियों के संगठन आरक्षण व्यवस्था बनाए रखने के लिए निरंतर सरकार पर दवाब डालते रहते हैं. मेयर के अनुसार जातीय संगठन राजनीतिक महत्व के दवाब समूह के रूप में प्रवृत हुए हैं.
जाति एवं प्रशासन
भारत में प्रतिनिधि संस्थाओं के आलावा प्रशासन में भी जातिगत आरक्षण की व्यवस्था की गई हैं. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के अलावा अन्य पिछड़े वर्गों को भी 27 प्रतिशत आरक्षण किया गया हैं.
माना जाता है कि भारत में स्थानीय स्तर के प्रशासनिक अधिकारी निर्णय करते समय क्षेत्र की प्रधान एवं संगठित जातियों के नेताओं से प्रभावित हो जाते हैं.
जाति के आधार पर ही आरक्षण की मांग की जा रही हैं. वर्तमान में हरियाणा, गुजरात, राजस्थान में विभिन्न जातीय संगठन जाति के आधार पर आरक्षण की मांग कर रहे हैं.
राज्य राजनीति में जाति
अखिल भारतीय राजनीति के बजाय राज्य की राजनीति में जाति की ज्यादा सक्रिय भूमिका रहती हैं. बिहार, उत्तर प्रदेश, तमिल नाडु, केरल, आंध्रप्रदेश, राजस्थान आदि की राजनीति का विश्लेषण बिना जातिगत गणित के किया ही नहीं जा सकता. उत्तरप्रदेश एवं बिहार तो जातिगत राजनीति की मिसाल बन चुके हैं.
चुनाव प्रचार में जाति का सहारा
राजनीतिक दल एवं उम्मीदवार चुनाव प्रसार में जाति का खुलकर प्रयोग करते हैं. चुनावों के समय जातीय समीकरण बैठाए जाते हैं.
प्रत्येक राजनैतिक दल क्षेत्र विशेष में जिस जाति का बाहुल्य हैं उसमें उसी जाति के बड़े नेता को चुनाव प्रचार में भेजने का प्रयत्न करते हैं.
जाति के आधार पर राजनीतिक अभिजनों का उदय
जो लोक जातीय संगठनों में उच्च पदों पर पहुच गये हैं वे ही राजनीति में भी अच्छे स्थान प्राप्त करने में सफल हुए. ऐसे लोग राजनीती में चाहे खुलकर जातिवाद का सहारा न ले फिर भी ये अपनी पृष्ठ भूमि को नहीं भूलते. वे अपनी जातीय हितों की प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में पैरवी करते हैं.
जाति गत राजनीति की विशेषताएं (Characteristics Of Caste Based Politics)
भारत में जाति गत राजनीति में निम्न विशेषताएं देखने को मिलती हैं.
- जातीय संघों अथवा संगठनों ने जातिगत राजनीतिक महत्वकांक्षा को बढ़ाया हैं. जातीय नेतृत्व जातीय हितों के मुद्दों को उठाकर जाति में अपना समर्थन बढ़ाकर राजनीतिक लाभ उठाते हैं.
- शिक्षा, शहरीकरण, औद्योगिकीकरण तथा लोकतंत्रीय व्यवस्था के बावजूद जातिवाद की भावना एवं एकीकरण को बल मिला हैं.
- क्षेत्र विशेष में कोई जाति विशेष राजनीतिक रूप से ज्यादा प्रभावशाली एवं शक्तिशाली होती हैं.
- जाति एवं राजनीति के सम्बन्ध गतिशील होते हैं. सदा एक जैसे नहीं रहते
- जाति के राजनीतिकरण के साथ साथ स्थानीय स्तर पर राजनीति का जातीयकरण भी हो रहा हैं.
जातिवाद क्या है इसका सकारात्मक प्रभाव (Positive Impact)
जातिवाद ने राजनीति में सकारात्मक प्रभाव भी डाले हैं. भारतीय राजनीति में जातिवाद के निम्न सकारात्मक प्रभाव दिखाई देते हैं.
- जाति एवं राजनीति के सम्बन्ध में लोगों को एक सूत्र में बांधने का काम किया हैं. दूर दूर रहने वाले जाति के लोग जातीय पंचायतों में एक दूसरे के सम्पर्क बनाए रखते हैं. एक दूसरे की समस्याओं में सहायता करते हैं. शासन से अधिक से अधिक फायदा लेने के लिए अपनी जाति में एकता बनाए रखने का प्रयत्न करते हैं. इससे लोगों में सामाजिकता एवं एकता की भावना राष्ट्रीय सन्दर्भ में सकारात्मक प्रभाव पैदा करती हैं.
- जाति की राजनीति ने अधिक लोगों में राजनीतिक सक्रीयता पैदा की हैं. जाति में अपना दबदबा एवं अपने हितों की रक्षा के लिए राजनीति में सक्रिय होने लगे. सामाजिक सेवा का कार्य भी करने लगे. जातीय संगठनों में सक्रिय लोग राजनीति में भी सक्रिय हो जाते हैं.
- जातीय सक्रियता के कारण समाज में उन जातियों का महत्व भी बढ़ा जो पहले राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक रूप से शक्ति विहीन थी. उन्हें प्रजातंत्र में अपनी संख्या बल का फायदा मिलने लगा. ऐसी जातियों में भी जागरूकता आयी. शासन में उनकी सहभागिता बढ़ी हैं.
- जातिवाद के कारण सामाजिक संरचना में परिवर्तन आया. जाति की राजनीति ने समाज की संस्कृति को प्रभावित किया. समाज की सभी जातियों के खान-पान वेशभूषा, रहन सहन, आचार विचार में निम्न जातियों का अनुसरण करती हैं. अतः इन क्षेत्रों में समानता बढ़ती हैं. समाज में सांस्कृतिक एकता की स्थापना होती हैं.
- रुडोल्फ तथा रुडोल्फ के अनुसार जाति की राजनीति ने जातियों के मध्य मतभेदों को कम किया हैं. और विभिन्न जातियों के सदस्यों में समानता आई हैं.
भारत में जातिवाद क्या है pdf नकारात्मक पक्ष (Negative Impact Meaning Of Casteism In Hindi)
डी आर गाडगिल का मत है कि जाति का प्रभाव प्रजातंत्र के विकास में सहायक नहीं हैं. डॉ आशीर्वादम के अनुसार भूतकाल में जाति के चाहे जो भी लाभ हो, आज प्रगति में बाधक हैं.
जातिवाद से समाज में तनाव संघर्ष पैदा होता हैं. राष्ट्रीय हित का नुकसान होता है. रुढिवादिता को बढ़ावा मिलता हैं. सरकार दवाब में कार्य करती हैं.
जातिवाद लोकतंत्र के विरुद्ध है. जातिवाद स्वतंत्रता के बाद बढ़ा हैं. तथा सभी दल इसका सहारा लेते हैं. जातिवाद के भारतीय राजनीति पर निम्न नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं.
- बंधुत्व एवं एकता की भावना को हानि पहुचती हैं. अपने अपने जातीय हितों के संघर्ष के कारण वैमनस्यता पैदा होती हैं, समाज में तनाव एवं संघर्ष का वातावरण पैदा होता हैं. सामाजिक समरसता को चोट पहुचती हैं. गुर्जर आन्दोलन के दौरान गुर्जर व मीणा जाति के बीच कुछ क्षेत्रों में तनाव इसका उदाहरण हैं.
- समाज के वातावरण मे अमन, चैन एवं शान्ति की जगह संघर्ष एवं अशांति पैदा होती हैं. जातियां अपने हितों के लिए तो संघर्ष करती ही हैं कई बार सरकार के इस प्रकार के निर्णयों से भी देश एवं समाज में अशांति पैदा हो जाति हैं.
- जाति के आधार पर चुनाव लड़ना और जातिगत आग्रह के आधार पर मतदान करना जातिवाद का ही परिणाम हैं. जाति के आधार पर मतदान करने से योग्य व्यक्ति चुनाव हार जाते हैं. जीतने वाला व्यक्ति भी पूरे समाज के प्रति दायित्व बोध न समझकर जातीय वफादारी पर ध्यान देता हैं. यह देश एवं समाज दोनों के लिए घातक हैं. देश का शासन अयोग्य लोगों के हाथ में चला जाता है जो देश का भला नहीं कर सकते.
- जातिवाद की भावना के कारण नागरिकों की श्रद्धा एवं भक्ति बंट जाती हैं. देश के प्रति भक्ति कम हो जाती हैं. लोग राष्ट्रीय हितों के बजाय जातीय हितों को प्राथमिकता देने लग जाते हैं. ये प्रवृत्तियां देश की एकता, भाईचारे तथा विकास में बाधा पैदा करती हैं.
- जातिवाद के कारण से राजनीतिक दलों का निर्माण भी जाति के आधार पर होने लगता हैं. स्वस्थ लोकतंत्र के विकास के लिए राजनीतिक दलों का गठन आर्थिक एवं राजनीतिक विचारधारा पर होना चाहिए. जातिवादी भावना से सिद्धांत एवं विचार गौण हो जाते हैं.
- जातिवादी सोच रुढिवादिता को बढ़ावा देती हैं जिसमें वैज्ञानिक एवं प्रगतिशील दृष्टिकोण का विकास अवरुद्ध हो जाता हैं. जातिवाद परम्परावाद का बढ़ावा देती हैं.
- अल्प संख्यक जाति या समुदाय के लोगों में असुरक्षा की भावना का विकास होता हैं.
- सरकारें बड़ी एवं शक्तिशाली जातीय संगठनों के दवाब में कार्य करती हैं अतः स्वतंत्र एवं निष्पक्ष सम्पूर्ण समाज हित में निर्णय लेने से बचने का प्रयास करती हैं.
- कभी कभी जातीय संगठनों के आंदोलन या संघर्ष हिंसक रूप में ले लेते हैं. तोड़ फोड़ की जाती हैं तथा राष्ट्रीय सम्पति को नुकसान पहुचाया जाता हैं. औद्योगिक विकास एवं व्यापारी का भारी नुकसान होता हैं. सार्वजनिक सम्पति को नष्ट किया जाता हैं.
- जातिवाद लोकतंत्रीय भावना के विरुद्ध होता हैं. यह स्वतंत्रता समानता व बन्धुत्व जैसे लोकतंत्रीय मूल्यों को नुक्सान पहुचता हैं. समाज में फूट, विखंडन एवं संकीर्ण हितों को प्रोत्साहित करती हैं.
- वोट बैंक की राजनीति को बढ़ावा- राजनीतिक दल एवं नेता किसी जाति को अपने वोट बैंक बनाने हेतु उसकी उचित अनुचित बातों एवं मांगों का समर्थन करते रहते हैं. उन्हें प्रोत्साहित करते रहते हैं जो राष्ट्रीय हित के लिए घातक हैं. राष्ट्रीय हितों के बजाय जातीय हितों को अधिक महत्व दिया जाता हैं.
भारत में जातिवाद व्यवस्था का निष्कर्ष (Conclusion)
कहा जा सकता है कि आधुनिक भारतीय समाज में जातिगत भेदभाव केंसर एवं एड्स जैसे भयंकर रोगों की तरह सर्वत्र फ़ैल गया हैं. जिसका निदान असम्भव हैं. इसलिए भारतीय राजनीति में जाति की भूमिका का मूल्यांकन करना अत्यंत कठिन हैं.
यह केवल व्यक्ति व्यक्ति के बीच खाई ही पैदा नहीं करती अपितु राष्ट्रीय एकता के मार्ग में भी बाधा उत्पन्न करती हैं. आज राष्ट्रीय हितों की अपेक्षा जातिगत हितों को विशेष महत्व दिया जा रहा हैं. जिसके कारण हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था कमजोर हो रही हैं.
प्रसिद्ध समाजशास्त्री एम एन श्रीनिवास का मत है परम्परावादी जाति व्यवस्था ने प्रगतिशील और आधुनिक राजनीतिक व्यवस्था को इस तरह प्रभावित किया हैं कि ये राजनीतिक संस्थाएं अपने मूलरूप में कार्य करने में समर्थ नहीं रही हैं.
डी आर गाडगिल के शब्दों में क्षेत्रीय दवाबों से कही ज्यादा खतरनाक बात यह है कि वर्तमान काल में जाति व्यक्तियों को एकता के सूत्र में बाँधने में बाधक सिद्ध हुई हैं.
अतः जातिवाद देश समाज और राजनीति के लिए बाधक हैं. लोकतंत्र व्यक्ति को इकाई मानता हैं न कि किसी जाति या समूह को. जाति और समूह के आतंक से मुक्त रखना ही लोकतंत्र का आग्रह हैं.