नारीवाद पर निबंध

नारीवाद (Feminism) शब्द की उत्पत्ति अंग्रेजी भाषा के एक शब्द female से मानी जाती है. जिसका आशय है नारी अथवा नारी से सम्बन्धित. अतः इस तरह नारीवाद स्त्रियों के हितों की रक्षा को लेकर किये जाने वाले चिंतन / आंदोलन को नारीवाद कहा जाता है. नारीवाद की मत है कि हमारा समाज पुरुष सत्तात्मक है तथा स्त्रियों के हितों की उपेक्षा की जाती है. समाज में महिलाओं को पुरुषों के समान सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक अवसरों को दिलाना नारीवाद के प्रमुख लक्ष्यों में शामिल है.

परिभाषाएं (Definitions)

अलग अलग विद्वानों ने नारीवाद को लेकर अपने अपने विचार प्रस्तुत किए है. कुछ विद्वानों द्वारा नारीवाद को इस तरह से परिभाषित किया गया हैं.

  1. ऑक्स्फ़र्ड डिक्शनरी के अनुसार नारीवाद, महिलाओं के अधिकारों की मान्यता और उनकी उपलब्धियों व अधिकारों की पैरोकारी करना है.
  2. मेरी एवोस के शब्दों में नारीवाद महिलाओं की वर्तमान एवं भूतकाल के हालातों का आलोचनात्मक मूल्यांकन है. यह महिलाओं से सम्बन्धित उन मूल्यों के प्रति चुनौती है. जो स्त्रियों को दूसरों (पुरुष प्रधान समाज) द्वारा प्रस्तुत की जाती हैं.

विशेषताएं

महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार एवं हितों की पैरवी करने वाला नारीवाद आंदोलन एक विचारधारा का द्योतक है जिनकी अपनी कुछ मौलिकता और विशेषताएं है, जिन्हें हम यहाँ समझने का प्रयास करेगे.

स्त्रियाँ भी मानव प्राणी है– मूलतः हमारा सामाजिक विभाजन लैंगिक आधार पर होता है जिनमें स्त्री और पुरुषों को पृथक कर दिया जाता है. नारीवाद का बुनियादी मत इसके विपरीत है. नारीवाद के समर्थकों का मानना है कि स्त्री को केवल माता, पत्नी एवं बहन के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि उसे भी एक इंसान मानना चाहिए. स्त्रियों में पुरुषों के समान बुद्धि व योग्यता है. जो कार्य पुरुष कर सकते है उन्हें स्त्रियाँ भी कर सकती है इसलिए उन्हें पुरुषों के अधीन करने की बजाय विकास के समान अवसर प्रदान किए जाने चाहिए.

बराबर हक बराबर अधिकार – नारीवाद की वकालत करने वाले समर्थक महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक अवसरों में बराबर की भागीदारी के पक्षधर है. नारीवादियों के अनुसार महिलाओं को व्यवसाय चुनने की आजादी, सम्पति रखने, विवाह तलाक तथा राजनैतिक अधिकारों में स्त्रियों को बराबर का अधिकार मिलना चाहिए. सरकारी नौकरियों के मामलों में पुरुषों के समान महिलाओं को मौका मिलना चाहिए, अवसर की समानता के मामले में किसी तरह का भेदभाव लैंगिक समानता के खिलाफ है.

पितृ प्रधानता का विरोध – नारीवाद स्त्री शोषण व उत्पीडन का जिम्मेदार पुरुष सत्तात्मक को मानते है. पुरुष प्रधानता के चलते ही स्त्रियों के शोषण, दमन तथा उनके साथ दुर्व्यवहार होता है. पितृ प्रधान समाज में पुरुष स्त्री पर अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहता है. इस तरह के समाजों में स्त्रियों की दशा पुरुषों के मुकाबले दयनीय होती है उन्हें पग पग पर यह साबित किया जाता है कि तुम महिला हो इसलिए पुरुषों की बराबरी नहीं कर सकती तथा कमतर हो. नारीवाद इस तरह की पुरुष सत्तावादी सोच का पुरजोर विरोध करता है.

परिवार संस्था का विरोध- नारीवाद समर्थकों का उग्र पक्ष परिवारिक संस्थाओं की खिलाफत करता है. उनका मानना है कि स्त्री के शोषण और दमन उसके परिवार से होती हैं. परिवार में उसे पुरुष सदस्यों से कमतर आँका जाता है तथा उनकी परवरिश और सेवा चाकरी की जिम्मेदारी तक सिमित कर दिया जाता है. उनका कार्य घर की चारदीवारी तक सिमित कर दिया जाता है. स्त्री दमन की शुरुआत परिवार में लडकियों पर लड़कों को प्राथमिकता देने के साथ ही आरम्भ हो जाती हैं. अतः नारीवादी परिवार रूपी संस्था का विरोध करते हैं.

नारीवाद के रूप

स्त्रियों की स्थिति से सम्बन्धित अनेक प्रकार के विचारों का संयुक्त आन्दोलन नारीवाद कहा जाता हैं. इसके अनेक पक्ष और रूप है. समय के अनुसार इनका स्वरूप भी बदलता रहता हैं. महिलाओं की दशा सुधार निमित्त विद्वान एक राय नहीं है. भिन्न भिन्न विचारों के आधार पर नारीवाद के तीन रूप माने गये है जो इस प्रकार हैं.

उदारवादी नारीवाद – यह एक ऐसे विचार को समर्थन देते है जो समाज में स्त्री और पुरुषों की बराबरी पर बल देते हैं. इस विचारधारा के समर्थकों की बात करे तो जान लॉक, जे एस मिल, होलबाच, मारग्रेट फूलर इत्यादि है. उदारवादियो की मान्यता है कि समाज में लैंगिक विभाजन गलत हैं. समाज में महिलाओं की भूमिका का निर्धारण लिंग के आधार पर न होकर उन्हें मानव प्राणी के आधार पर समान अधिकार मिलने चाहिए.

समाजवादी नारीवाद – थैमसन, कार्ल मार्क्स, बेबल, जूलियट मिचल इत्यादि विद्वान समाजवादी नारीवाद के पक्षधर है. इनके मतानुसार उन संस्थाओं का खात्मा कर देना चाहिए जो महिलाओं की अधीनता के लिए उत्तरदायी हैं. इस मत के समर्थकों का मानना है कि स्त्रियों की दुर्दशा में बड़ा हाथ पूंजीवादी सोच का है. बाजार की प्रतिस्पर्धा में उन्हें पुरुष के मुकाबले कमतर आँका जाता है तथा शोषण की एक परिपाटी को जन्म दिया जाता हैं. इस विचारधारा के समर्थक महिलाओं को लैंगिक स्वतंत्रता देने के समर्थन में हैं.

उग्र नारीवाद – उग्र स्त्रीवाद के समर्थक पितृवाद को ही नारियों के शोषण की जड़ मानते है तथा लैंगिक समानता स्थापित करने के लिए इसे समाप्त करने का पक्ष लेते हैं. इस क्रांतिकारी स्वरूप के समर्थक विद्वानों में बेटी फ्राईडन, केट मिल्ट, एम डिली और फायरस्टोन का नाम शामिल है. उग्र नारीवाद के अनुसार विवाह तथा परिवार की संस्था का खात्मा कर देना चाहिए, क्योंकि परिवार ही वह संस्था है जहाँ से स्त्री अधीनता का प्रशिक्षण प्राप्त होता हैं.

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