राजस्थान के दुर्ग व किले | Rajasthan Forts List In Hindi | Rajasthan Ke Kile

Rajasthan Forts List In Hindi | Rajasthan Ke Kile: राजस्थान को राजा महाराजाओं की भूमि माना जाता हैं, यहाँ पर लम्बे समय तक राजपूत शासकों का शासन रहा हैं, राजस्थान के दुर्ग व किले इन राजाओं के निवास स्थान हुआ करते थे.

विभिन्न प्रकार के दुर्ग जिनमें वन दुर्ग, गिरी दुर्ग, जल दुर्ग, सैन्य दुर्ग, पारिख और पारिध व धान्वन श्रेणी में इन्हें विभक्त किया जा सकता हैं. 

मुख्य पहाड़ी दुर्ग व किलों में राज्य के आमेर दुर्ग, मेहरानगढ़, कुम्भलगढ़, जैसलमेर का किला, चित्तोड़ का किला, रणथम्भौर का किला, जूनागढ़ का किला, सिटी पेलेस, जन्तर मन्तर, हवामहल, गागरोंन का किला, जसवंत थड़ा, जयगढ़ का किला, पटवों की हवेली आदि मुख्य हैं.

राजस्थान के दुर्ग व किले | Rajasthan Forts List In Hindi

राजस्थान के दुर्ग व किले | Rajasthan Forts List In Hindi | Rajasthan Ke Kile

राजस्थान के दुर्ग (fort of rajasthan in hindi)

दुर्ग का अर्थ – वह क्षेत्र अथवा स्थान जिसके चारों और प्राचीर या परकोटा बना हुआ हैं. राजस्थान के दुर्ग मुख्य रूप से सामरिक व सुरक्षा की दृष्टि से बनाए जाते थे. सुरक्षा के लिहाज से दुर्ग की ऊँची पहाड़ियों, गहरी नदियों के किनारे अथवा मैदानी क्षेत्र में बनाए जाते थे.

जहाँ तक संभव हो दुर्ग के आस-पास एक या अनेक गहरी खाइया बनाई जाती थी, जिसमें पानी भरकर दुश्मन को रोका जा सके, indian forts history में मुख्य रूप से महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में सामरिक दृष्टि से दुर्ग बनाने की प्राचीन परम्परा दिखाई देती हैं.

मुख्य राजस्थान के दुर्ग (Rajasthan Ke Durg GK)

राजस्थान गड्ढों या दुर्गों वाला प्रदेश है यहां शायद ही कोई अंचल या ठिकाना ऐसा है जहां कोई छोटा या बड़ा गढ़ या दुर्ग ना हो इनको लेकर कभी न कभी किसी ना किसी लड़ाई झगड़े का अनुष्ठान ना हुआ हो यहां के हर दुर्ग या किले के साथ कोई न कोई ऐतिहासिक घटना का जुड़ाव रहा है

शुक्र नीति में भी दुर्ग को राज्य के 7 अंगों में प्रमुख स्थान दिया गया है जिसमें राज्य को शरीर मानते हुए दुर्ग को हाथ की संज्ञा दी गई है शुक्र नीति में दुर्गों के विभिन्न प्रकारों को बताते हुए इसके 9 प्रकार बताए गए हैं उदाहरण के लिए पारीख एरण पारिध वन जल तथा सैन्य दुर्ग

कौटिल्य ने भी राजाओं को अपने शत्रुओं से सुरक्षा के लिए राज्य की सीमाओं पर दुर्गों का निर्माण करवाने की बात कही है  कौटिल्य ने दुर्गों की चार श्रेणियां बताइ जलदुर्ग पर्वत दुर्ग धान्वन और वन दुर्ग.

ये राजस्थान के दुर्ग न केवल सामरिक द्रष्टि से वरण शासकों के आवास, सेना और सामान्य लोगों के रहने के लिए भी उपयुक्त थे. इसमें खाद्य भंडारण, कुंड, जलाशय आदि आवश्यक सुविधाएं होती थी.

दुर्ग में इतनी व्यवस्था थी कि कई महीनों बिना परेशानी, बिना समस्या के दुर्ग के अंदर लोग जब तक रह सकते थे, जब तक कि सेना दुश्मन को न हरा दे.

दुर्ग के प्रकार (rajasthan Ke Durg Aur mahal)

राजस्थान के दुर्ग pdf download

राजस्थान के किले व दुर्ग पीडीऍफ़ डाउनलोड इन हिंदी, यहाँ आपकों राजस्थान के टॉप टेन फोर्ट (राजस्थान के दुर्ग)के बारे में विस्तृत जानकारी दी जा रही हैं.

राजस्थान सामान्य ज्ञान के लिए इस लेख को परीक्षाउपयोगी बनाने के लिए हमारे द्वारा भरसक कोशिश की गई हैं. जो स्टूडेंट राजस्थान जीके में किले फोर्ट, मंदिर, मेले, त्यौहार की करना चाहते हे वों इस लेख को पीडीऍफ़ के रूप में भी डाउनलोड कर पढ़ सकते हैं.

राजस्थान की प्रमुख दुर्ग व किले

जून 2013 में राजस्थान के दुर्गों को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया जिसमें जैसलमेर का सोनार गढ़ किला झालावाड़ का गागरोन दुर्ग सवाई का रणथंभौर किला चित्तौड़गढ़ किला कुंभलगढ़ और आमेर का किला शामिल है.

तारागढ़ दुर्ग अजमेर (taragarh fort ajmer history in hindi)

अरावली पहाड़ी के उत्तर भाग में हाड़ा शासकों के कलात्मक महल बने हुए हैं. इन महलों को तारागढ़ दुर्ग के नाम से जाना जाता हैं. इस दुर्ग का निर्माण 1354 में राव बरसिंह ने करवाया था.

दुर्ग के चारो ओर दृढ दीवार का निर्माण किया गया हैं. बूंदी दुर्ग का स्थापत्य राजपूत व मुगल कला के समन्वय का सुंदर उदहारण हैं, इसे राजस्थान का जिब्राल्टर राजस्थान की कुजी’ भी कहा जाता हैं.

इस दुर्ग के छ्त्रशाल महल तथा यंत्रशाला को सुंदर भित्ति चित्रों से सजाया गया हैं. वही बादल महल व अनिरुद्ध महल की चित्रशाला में चित्रित भित्ति राजस्थान की भित्ति चित्र परम्परा के सुंदर उदहारण हैं.

भवनों की शानदार छतरियां व दरबार हॉल के अलंकृत स्तम्भ स्थापत्य कला के अद्भुत उदहारण हैं. बूंदी दुर्ग को समय समय पर दिल्ली सल्तनत व मुगल बादशाहों द्वारा आक्रमण कर इसे  क्षति पहुचाई गई, किन्तु हाड़ा राजाओं ने हमेशा कड़ा प्रतिरोध कर इसकी रक्षा की.

जैसलमेर दुर्ग Jaisalmer fort

जैसलमेर दुर्ग के उपनाम स्वर्ण गिरी सोनारगढ़ मरुस्थल का अंडमान निकोबार इत्यादि है इसे 99 बुर्जो वाला किला भी कहते हैं
इस दुर्ग का निर्माण जैसल भाटी ने करवाया जबकि अधिकांश निर्माण कार्य जैसल के पुत्र सालीवाहन २ ने करवाया.

यह पीले पत्थरों से निर्मित बिना सुने की सूखी सिनाई द्वारा इसका निर्माण किया गया है इसका परकोटा दोहरा है जो कमर कोट या पाडा कहलाता है

दूर से देखने पर यह अंगड़ाई लेते हुए शेर या लंगर डाले हुए जहाज की तरह दिखाई पड़ता है यह दुर्ग ढाई साको के लिए प्रसिद्ध है. इस दुर्ग में स्वांगिया माता का मंदिर सर्वोत्तम विलास महल इत्यादि स्थित है

यहां स्थित गज विलास जवाहर विलास पत्थर की बारीकी व जालियों के लिए प्रसिद्ध है. बादल महल प्राकृतिक दृश्यों के लिए प्रसिद्ध माना जाता है यहां स्थित पार्श्वनाथ संभव नाथ ऋषभदेव के मंदिर दिलवाड़ा मंदिर की याद दिलाते हैं.

यहां लक्ष्मी नारायण का मंदिर भी स्थित है जिन भद्र सूरी ग्रंथ भंडार नामक पुस्तकालय भी स्थित है जो जैन धर्म से संबंधित सबसे बड़ा पुस्तकालय संग्रहालय माना जाता है. अबुल फजल ने किस दुर्ग के बारे में कहा कि यहां केवल पत्थर या लोहे की टांगे ही ले जा सकती है

रणथम्भौर दुर्ग (ranthambore fort in hindi)

शिव पिण्ड पर रखे बिल्वपत्र की भांति पहाड़ी श्रंखलाओं में खोया हुआ रणथम्भौर देश का प्रसिद्ध दुर्ग हैं. यह दुर्ग उस अन्तर्यामी शिव की तरह हैं जो सब कुछ देखता हैं. पर स्वयं दिखाई नही पड़ता हैं. ऐसा अभिद्य और दुर्गम दुर्ग कदाचित् भारत में दूसरा नही हैं.

एक ऊँची पहाड़ी के शिखर पर रणथम्भौर का अभेद्य दुर्ग स्थित हैं. दुर्ग का नाम रणथम्भ पुर हैं. किले का निर्माण की निश्चित तिथि ज्ञात नही हैं, परन्तु ऐसा अनुमान लगाया जाता हैं कि इस दुर्ग का निर्माण चौहान वंशी राजाओं ने कराया था. जिन्होंने 600 वर्षों तक एकछत्र राज्य किया.

वर्तमान में यह दुर्ग व इसके आसपास का सघन वन क्षेत्र रणथम्भौर बाघ परियोजना के अंतर्गत आ गया हैं, जिससे इसके जीर्णोद्धार व संरक्षण का कार्य प्रगति पर हैं.

इसका निर्माण चौहान शासक महेश्वर ठाकुर रति देव ने करवाया यह रण वह थंब सहित सात पहाड़ियों से घिरा हुआ दुर्ग स्तूप के बारे में अबुल फजल ने कहा था कि यह दुर्ग बख्तरबंद है बाकी सब नंगे

1301 इसी में दुर्ग में प्रथम साका हुआ जब अलाउद्दीन खिलजी ने इस पर आक्रमण किया उस समय यहां के शासक हमीर थे और रंगा देवी के नेतृत्व में जोहर हुआ हमीर ने अपने पिता जय सिंह की स्मृति में 32 खंभों की छतरी का निर्माण भी करवाया.

इस दुर्ग में हमीर की कसारी हमीर महल रानी का महल नौलखा दरवाजा जोगी महल सुपारी महल संत सदुरूदीन और त्रिनेत्र गणेश मंदिर स्थित है

यह राष्ट्रीय बाघ परियोजना में भी स्थित है इसलिए यह वन गिरी दुर्ग है. इस दूर की खास बात यह है कि इसमें दरगाह मंदिर और गिरिजाघर तीनों स्थित है.

भटनेर दुर्ग Bhatner Fort

भटनेर दुर्ग हनुमानगढ़ जिले में स्थित है इसे उत्तर भड़ किवाड़ यानी उत्तरी सीमा का प्रहरी भी कहा जाता है. इसका निर्माण भूपत भाटी ने 290 ईस्वी के आसपास करवाया.

यह दुर्ग राजस्थान के प्राचीनतम दुर्गों में से एक है बीकानेर के शासक सूरत सिंह ने 1805 में इसका नाम हनुमानगढ़ कर दिया.

इस दुर्ग पर सर्वाधिक विदेशी आक्रमण हुए यह दुर्ग एकमात्र ऐसा दुर्ग है जिसमें मुस्लिम महिलाओं ने भी जौहर किया यहां बलबन के भाई शेर खान की कब्र भी स्थित है.

भैंसरोगढ़ जल दुर्ग Bhainsargarh Water Fort

चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित जलदुर्ग है जो चंबल और बामणी नदियों के संगम पर बना हुआ है इसका निर्माण भैसाशाह नामक व्यापारी तथा रोडा चारण ने मिलकर करवाया इसे राजस्थान का वेल्लोर भी कहा जाता है. ज्यादातर समय तक यह मेवाड़ शासकों के अधीन रहा.

मांडलगढ़ दुर्ग भीलवाड़ा (Mandalgarh Durg Bhilwara)

यह गिरी दुर्ग है कवि श्यामल दास द्वारा लिखित वीर विनोद के अनुसार इसका निर्माण अजमेर के चौहान शासकों ने करवाया तथा मंडल आकृति के कारण मांडल कहलाया.

जन श्रुति के अनुसार माडिया भील के नाम पर मांडलगढ़ पड़ा. 1576 का प्रसिद्ध हल्दीघाटी युद्ध के समय मान सिंह ने अपनी सेना को युद्ध से पहले इसी दुर्ग में तैयार किया था. राज सिंह ने इसको मुगलों से छीना था तथा बाद में किशनगढ़ के राठौड़ों की जागीर के रूप में रहा.

बाला किला अलवर (Bala Qila Alwar)

अलवर में स्थित यह गिरी दुर्ग है जो ऐतिहासिक व सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण स्थान रखता है. इसका निर्माण आमेर के शासक कोकिल देव के पुत्र अलघुराय ने करवाया तथा बाद में इस पर नरूका वंश का अधिकार हो गया खानवा युद्ध में भाग लेनेब वाला हसन खा मेवाती यही का शासक था.

सिवाना दुर्ग बाड़मेर (Siwana Durg Barmer)

इस दुर्ग को जालौर दुर्ग की कुंजी तथा मारवाड़ शासकों की संकटकालीन राजधानी भी कहा जाता है. इसका निर्माण वीर नारायण पवार ने करवाया तथा बाद में सोनगरा चौहानों का अधिकार हो गया. 1308 में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के कारण यहां पहला साका हुआ.

यहां के शासक सातल देव वीरगति को प्राप्त हुए तथा अलाउद्दीन ने इसका नाम खैराबाद कर दिया. मालदेव ने गिरी सुमेल युद्ध के बाद यही शरण ली तथा राव चंद्रसेन ने भी कुछ समय यहां पर शरण ली थी.

यहां पर दूसरा साका अकबर के समय मोटा राजा उदयसिंह ने जब सिवाना पर जब आक्रमण किया तो यहां का शासक कला राठौड़ वीरगति को प्राप्त हुआ.

जय नारायण व्यास आनंद लाल सुराना तथा भंवरलाल सर्राफ को भी मारवाड़ किसान आंदोलन के समय यहां पर बंदी बनाकर रखा गया तथा बाद में गांधी इरविन समझौते के तहत इन्हें रिहा किया गया था.

शेरगढ़ दुर्ग (Shergarh Fort)

कोशवर्द्धन पहाड़ी पर स्थित होने के कारण इसे कोशवर्द्धन दुर्ग भी कहा जाता है यह बारा जिले में स्थित है. शेरशाह ने इस पर अधिकार करके इसका नाम शेरगढ़ किया तथा बाद में मुगलों के अधीन रहा मुगल सम्राट फर्रूखसियर ने कोटा शासक को पुरस्कार स्वरूप में यह दुर्ग दिया.

जाला जालम सिंह ने यहां अनेक महलों का निर्माण करवाया जी ने झालओ की हवेली नाम से जाना जाता है इस दुर्ग में अमीर खान पिंडारी को शरण दी गई इस दुर्ग में लक्ष्मी नारायण मंदिर सोमनाथ मंदिर चारभुजा मंदिर अमीर खान का महल इत्यादि स्थित है.

भरतपुर दुर्ग (Bharatpur Fort)

इस दुर्ग को लोहागढ़ मिट्टी का दुर्ग अजयगढ़ राजस्थान का सिंह द्वार पूर्वी सीमा का प्रहरी इत्यादि उप नामों से भी जाना जाता है. इसका निर्माण महाराजा सूरजमल ने करवाया यह पारीख श्रेणी का दुर्ग है. अंग्रेज अधिकारी जनरल लेक ने कई आक्रमण किए परंतु वह जीत नहीं पाया इसी कारण इसका नाम लोहागढ़ पड़ा

इस दुर्ग का दरवाजा अष्टधातु से निर्मित है जो महाराजा जवाहर सिंह ने 1765 इसी में मुगलों के शाही खजाने से लूटकर लाल किले से इस दरवाजे को उतार कर लाए थे. 1807 ईस्वी में फतेह बुर्ज का निर्माण अंग्रेजों पर विजय के उपलक्ष में करवाया गया. इस संबंध में एक कहावत प्रसिद्ध है गोरा हट जा रे राज भरतपुर को.

कुंभलगढ़ दुर्ग (Kumbhalgarh Fort)

इसी मेवाड़ का सीमा प्रहरी मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी उप नामों से जाना जाता है. इस ग्रुप का निर्माण महाराणा कुंभा ने 1458 ईस्वी में अपनी पत्नी कुंभल देवी की स्मृति में करवाया, इसका शिल्पी मंडन है.

इस किले के चारों तरफ की दीवार की लंबाई लगभग 36 किलोमीटर है किले में कुंभा का निवास स्थान कटार गढ़ है उदयसिंह ने इस किले में जालियों का मालिया बनाया.

अबुल फजल ने कटार गढ़ दुर्ग के बारे में कहा यह दुर्ग इतनी बुलंदी पर स्थित है इसे देखने पर सिर की पगड़ी नीचे गिर जाए. महाराणा प्रताप का जन्म इसी कटार गढ़ दुर्ग में हुआ उदय सिंह का राज्याभिषेक भी इसी में हुआ था.

आमेर का दुर्ग (Fort of amer)

जयपुर में स्थित इस किले का निर्माण मानसिंह प्रथम ने करवाया, इस किले के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में शिला माता का मंदिर जगत शिरोमणि का मंदिर शीश महल सौभाग्य मंदिर स्थित है. इस दुर्ग में मावठा झील व दौलाराम बाग स्थित है.

मेहरानगढ़ दुर्ग जोधपुर (Fort of Mehrangarh Jodhpur)

इस दुर्ग के उपनाम चिड़ियाटूक तथा मयूरध्वज है यह गिरी दुर्ग है. इसकी नीव करणी माता ने रखी थी. इसका निर्माण राव जोधा ने 13 मई 1459 ईस्वी में करवाया ऐसी मेहरानगढ़ इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह दुर्ग विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है तथा म्यूर आकृति के समान होने के कारण यह मोरध्वज या मयूरध्वज कहलाता है.

गिरी सुमेल युद्ध के बाद शेरशाह ने इस पर अधिकार कर लिया परंतु 1545 ईस्वी में मालदीव ने इसे पुनः प्राप्त कर लिया
1564 ईस्वी में अकबर ने दुर्ग पर अधिकार किया 1678 में औरंगजेब ने अधिकार किया 1707 में औरंगजेब की मृत्यु तक यह मुगलों के अधीन रहा.

इस दुर्ग में प्रमुख दर्शनीय स्थल मोती महल फूल महल तख्त विलास अजीत विलास उमेद विलास मानसिंह पुस्तक प्रकाश पुस्तकालय श्रृंगार चौकी चौकी इत्यादि प्रमुख हैं. राव जोधा के द्वारा चामुंडा माता मंदिर का निर्माण करवाया गया जहां 2008 की नवरात्रि में मेहरानगढ़ दुखांतिका घटना घटित हो गई थी.

अचलगढ़ दुर्ग (Achalgarh Fort)

आबू का यह किला परमार शासकों के द्वारा निर्मित था परंतु 1452 में महाराणा कुंभा ने प्राचीन किले पर नया दुर्ग बनाया जो अचलगढ़ कहलाया. इस किले में अचलेश्वर महादेव मंदिर कपूर सागर सरोवर सावन भादो झील व ओखा रानी का महल स्थित है.

तारागढ़ का किला या बूंदी का किला

यह बूंदी में स्थित गिरी दुर्ग है इसमें उमेद सिंह के काल में निर्मित चित्रशाला बूंदी चित्र कला की अनुपम झांकी प्रस्तुत करती है
इस किले में छत्रमहल रतनमहल बादल महल फूल महल अनिरुद्ध महल तथा 84 खंभों की छतरी प्रमुख दर्शनीय स्थल है जो पर्यटकों के आकर्षण के केंद्र बने हुए हैं.

तारागढ़ का दुर्ग (Fort of Taragarh)

इसी अजयमेरू दुर्ग गढ़ बिठली और तारागढ़ नामों से जाना जाता है. कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार अजय राज ने इसका निर्माण करवाया. हरविलास शारदा ने इसे भारत का प्राचीन गिरी दुर्ग माना है.

रूठी रानी के नाम से प्रसिद्ध राव मालदेव की पत्नी उमा देव ने अपना निवास स्थान इसी दुर्ग को बनाया था. इस दुर्ग में मीरान साहब की दरगाह स्थित है.

बिशप हेबर ने इस दुर्ग के बारे में लिखा है कि यह दुर्ग अगर यूरोपीय शैली में निर्मित होता तो यह दूसरा जिब्राल्टर कहलाता इस कारण इसे राजस्थान का जिब्राल्टर भी कहा जाता है.

जयगढ़ का दुर्ग (Fort of Jaigarh)

जयपुर में स्थित इस दुर्ग का निर्माण मानसिंह प्रथम के द्वारा करवाया गया यह गिरी दुर्ग है कुछ इतिहासकारों जिसमें जगत सिंह गहलोत व गोपीनाथ शर्मा ने इस दुर्ग का निर्माता मिर्जा राजा जयसिंह को बताया है.

राजस्थान का यह एकमात्र दुर्ग है जिस पर कभी भी बाहरी आक्रमण नहीं हुआ. एशिया की सबसे बड़ी तोप जयबाण इसी किले में है राजा महाराजाओं के काल में किले के अंदर राजनीतिक कैदियों को रखने व खजाने को छुपाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता था भारत का यह एकमात्र दुर्ग है जहां तोप ढालने का कारखाना भी लगा हुआ था.

नाहरगढ़ का दुर्ग (Fort of Nahargarh)

इस दुर्ग का निर्माण मराठों से सुरक्षा के उद्देश्य से सवाई जयसिंह ने करवाया. यहां नाहर सिंह भोमिया की तपोस्थली होने के कारण इसका नाम नाहरगढ़ पड़ा.

माधो सिंह ने अपनी 9 पासवानो के लिए 9 महल बनवाए जो सूरज प्रकाश खुशहाल प्रकाश जवाहर प्रकाश ललित प्रकाश आनंद प्रकाश लक्ष्मी प्रकाश बसंत प्रकाश तथा फूल प्रकाश नाम से जाने जाते हैं.

जूनागढ़ का किला (Junagadh Fort)

बीकानेर में स्थित स्थल दुर्ग निर्माता बीकानेर के शासक रायसिंह को माना जाता है यह किला लाल पत्थरों से बना हुआ है राय सिंह ने जूनागढ़ की सूरजपोल पर राय प्रशस्ति खुदवाई जिसको लिखने का काम जयता ने किया.

इस दुर्ग में राय सिंह का चौबारा सूरत निवास सरदार निवास दलेल निवास कर्ण महल रतन निवास अनूप महल गज महल चंद्र महल फूल महल प्रमुख दर्शनीय स्थल है. राय सिंह ने जयमल फत्ता की वीरता से प्रभावित होकर इनकी पाषाण मूर्तियां इसी दुर्ग में लगाई थी.

जालोर दुर्ग (jalore fort history in hindi)

इस दुर्ग को सोनगढ़ जा बालीपुर तथा जलालाबाद नामों से जाना जाता है. राजस्थान के पश्चिमी भाग में अरावली में स्थित सोनगिरी पहाड़ी पर सुकड़ी नदी के किनारे स्थित यह गिरी दुर्ग है.

दशरथ शर्मा के अनुसार इसका निर्माण प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम ने करवाया गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने इस दुर्ग का निर्माता परमार शासकों को बताया. हसन निजामी ने इस दुर्ग का वर्णन करते हुए लिखा है कि ऐसा किला है जिसका दरवाजा कोई आक्रमणकारी नहीं खोल सका

अलाउद्दीन खिलजी ने 1311 में इस दुर्ग पर आक्रमण किया यहां के शासक कान्हङ देव वीरगति को प्राप्त हुए इसके बाद अलाउद्दीन ने इसका नाम जलालाबाद रखा तथा यहां पर अलाई मस्जिद का निर्माण करवाया. इस दुर्ग में चामुंडा माता का मंदिर जोगमाया के मंदिर व संत मलिकशाह की दरगाह प्रमुख दर्शनीय स्थल है.

पश्चिमी राजस्थान में सोनगरा चौहानों के अतुल शौर्य के लिए प्रसिद्ध जालोर दुर्ग देश में अपनी प्राचीनता व सुद्रढ़ता के लिए प्रसिद्ध हैं. वर्तमान गुजरात और राजस्थान सीमावर्ती पहाड़ी पर व्यापारिक सामरिक महत्व का क्षेत्र होने के कारण यह निरंतर हमलावरों का केंद्र रहा हैं.

पश्चिमी अरावली श्रंखला की सोनगिरी पहाड़ी पर समुद्रतल से 2408 फीट की ऊँचाई पर प्रसिद्ध जालोर का दुर्ग अभिमान से खड़ा हैं. पहाड़ी के शीर्ष पर 800 गज लम्बा और 400 गज चौड़ा समतल मैदान हैं. तीन दरवाजों को पार कर चौथा मुख्य द्वार से प्रवेश किया जाता हैं. इस दुर्ग का निर्माण परमार राजाओं धारावर्ष और मुंज ने 10 वी सदी में करवाया था.

दुर्ग में कई हिन्दू व जैन देवालय तथा बुर्ज बनाए गये हैं. दुर्ग पर मुस्लिम पीर मलिक शाह की दरगाह हैं. दुर्ग में अतुलित जल भंडार, कुँए, कुंड आदि बनाएं गये हैं.

जालोर दुर्ग पर लगभग 13 वी सदी तक परमार राजाओं का अधिकार था. यह दुर्ग प्राचीरों के कुछ भाग को छोड़कर अब भी अच्छी स्थति में हैं.

चित्तौड़गढ़ का दुर्ग (chittorgarh fort history in hindi)

मेवाड़ की राजनीति का केंद्र चित्तौड़गढ़ उदयपुर दिल्ली मार्ग पर उदयपुर से 120 किमी उत्तर पूर्व में स्थित हैं. इस किले का निर्माण मौर्य वंशी शासक चित्रांगद मौर्य द्वारा सातवी सदी में करवाया गया था. इसके बाद प्रतिहार, परमार और सिसोदिया शासकों द्वारा भी इसके निर्माण में अभिवृद्धि की गई.

चित्तौड़गढ़ का किला मेसा की पठार पर स्थित हैं जो एक सुद्रढ़ प्राचीर से घिरा हुआ हैं. इसमें राजमहल, कलात्मक मंदिर, जलाशय आदि निर्मित हैं. मेवाड़ के महाराणा कुम्भा द्वारा गढ़ में कई स्थलों का जीर्णोद्वार करवाया गया.

यहाँ अनेक भवन मंदिर, स्तम्भ आदि बनवाएं, जो भारतीय स्थापत्य कला के सुंदर उदहारण हैं. महाराणा कुम्भा ने अपने राज्य काल में लगभग 32 किलों का निर्माण करवाया जो कि कुम्भाकालीन भारतीय स्थापत्य का अद्भुत उदाहरण हैं.

चित्तौड़गढ़ के किले को चित्रकूट राजस्थान का गौरव मालवा का प्रवेश द्वार किलो का सिरमौर लिविंग फोर्ट प्रथम के नामों से भी जाना जाता है वीर विनोद ग्रंथ की माने तो इसका निर्माण मौर्य राजा चित्रांग मौर्य ने करवाया तथा इसका नाम चित्रकूट या चित्रकोट रखा

कालांतर में इस दुर्ग पर गुहिल शासकों ने आठवीं शताब्दी के आसपास अधिकार किया तथा 10 वीं शताब्दी में यह दुर्ग परमार शासकों के अधीन रहा वहीं 11वीं शताब्दी चालुक्य शासक जयसिंह सिद्धराज ने इस पर अधिकार कर लिया आगे चलकर 12 वीं शताब्दी में पुनः गुहिल वंश का इस पर अधिकार होता है परंतु 1303 ईस्वी में यह दिल्ली सल्तनत के अधीन चला गया जब अलाउद्दीन खिलजी ने इस पर किया.

इसी आक्रमण के दौरान रानी पद्मिनी के नेतृत्व में चित्तौड़गढ़ दुर्ग का प्रथम साका है दूसरा साका 1535 में गुजरात के शासक बहादुर शाह के आक्रमण के समय वही तीसरा साका 1567 में अकबर के आक्रमण के समय हुआ.

चित्तौड़गढ़ का यह दुर्ग रानी पद्मिनी रानी कर्मावती और जयमल फत्ता की पत्नियों की जोहर का साक्षी रहा है इसके साथ साथ यह दुर्ग गोरा बादल जयमल फत्ता और पन्नाधाय के त्याग बलिदान का गवाह है. इस किले के प्रमुख द्वारों में पांडनपोल भैरवपोल हनुमान पोल गणेश पोल जोड़ला पोल लक्ष्मण पोल तथा राम पोल है

इस दुर्ग में रानी पद्मिनी का महल कुंभ श्याम का मंदिर मीरा का मंदिर कालिका माता का मंदिर विजय स्तंभ कीर्ति स्तंभ नवलखा भंडार तुलजा भवानी का मंदिर और श्रृंगार चवरी स्थित है.

विजय स्तंभ जिसे हिंदू मूर्तिकला का शब्दकोश कहा जाता है का निर्माण महाराणा कुंभा ने मालवा विजय के उपलक्ष में करवाया था इस दुर्ग के बारे में कहा जाता है कि गढ़ तो चित्तौड़गढ़ बाकी सब गडैया. यह दुर्ग गंभीरी और बेङच नदियों के संगम पर मैसा के पठार पर स्थित है

विजय स्तम्भ, चित्तौड़गढ़ (vijay stambh history)

“राजस्थान के दुर्ग” में शुमार चित्तौड़गढ़ के अत्यंत प्राचीन तीर्थ स्थल गौमुख कुंड के उत्तर पूर्वी कोण पर कुम्भा द्वारा निर्मित विजय स्तम्भ 47 फीट वर्गाकार और 10 फीट ऊँची जगती (चबूतरा) पर बना हुआ हैं.

यह 122 फीट ऊँचा नौ मंजिला स्मारक अपनी कारीगरी का सुंदर उदहारण हैं. इस स्तम्भ पर प्रतिमाएं उत्कीर्णित हैं, इसे भारतीय मूर्तिकला का शब्दकोश कहना उचित होगा.

पुराविद श्री आर सी अग्रवाल ने विजय स्तम्भ के शिल्पियों के नामों की सूची प्रकाशित की हैं. इनके शिल्प जइता तथा उनके पुत्रों नापा, पोमा, पूजा, भूमि, चुथी, बलराज आदि का वर्णन हैं. इस स्तम्भ का निर्माण सन 1440 में प्रारम्भ होकर सन 1448 में पूर्ण हुआ.

‘राजस्थान के दुर्ग‘ में आमेर, बूंदी, बीकानेर, जोधपुर के किलों पर मुगल स्थापत्य कला का प्रभाव, बुर्ज, झरोखे, छतरियों, महराब आदि के रूप में दिखाई देता हैं.

गागरोन दुर्ग (Gagaron Fort)

इसके उपनाम डोड गढ़ डोड राजा बिजल देव द्वारा निर्माण के कारण धूसर गढ़ बिनानी  के स्थित होने के कारण तथा मुस्तफा गढ नाम अलाउद्दीन खिलजी ने रखा था.

यह एक जलदुर्ग है जो कालीसिंध आहू नदियों के संगम पर स्थित है. संत पीपा जिनका वास्तविक नाम प्रताप सिंह यहां के शासक थे अपना राज्य भतीजे अचलदास खींची को सौंपकर सन्यासी हो गए और आगे चलकर दर्जियों के आराध्य देव बने.

सत 1423 इसमें मांडू के साथ-साथ होशंग शाह के आक्रमण के समय इस दुर्ग में पहला साका हुआ जिसमें अचलदास खींची की मृत्यु हो गई आक्रमण की जानकारी शिवदास गाङण द्वारा रचित अचलदास खींची री वचनिक से  मिलती है.

मालवा के शासक महमूद खिलजी ने सन 1444 में आक्रमण किया तब  खिचियो की पराजय हुई और महिलाओं ने जौहर किया जिसे दूसरा साका माना जाता है.

कालांतर में इस पर राणा सांगा ने अधिकार किया तथा मेदिनी राय जो चंदेरी का शासक था को सौंप दिया 1532 ईस्वी में बहादुर शाह ने आक्रमण किया उसके बाद इस दुर्ग पर 1542 में शेरशाह ने 1562 में अकबर ने अधिकार किया तथा पृथ्वीराज राठौड़ को सौंप दिया पृथ्वीराज ने इसी दुर्ग में वैली कृष्ण रुक्मणी की रचना की थी.

शाहजहां ने इसे कोटा शासक मुकुंद सिंह को सौंपा. इस दुर्ग में असल दास खींची व रानियों के महल नकारखाना बारूद खाना टकसाल संत मीठे शाह की दरगाह औरंगजेब द्वारा निर्मित बुलंद दरवाजा इत्यादि स्थित है.

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