गुप्त काल का इतिहास और मुख्य शासक Gupta Empire History in Hindi: मौर्य सम्राज्य के पतन के बाद भारत में शुंग, सातवाहन, कुषाण आदि वंशो का शासन रहा.
कुषाण शासकों में सर्वाधिक प्रसिद्ध कनिष्क हुआ. कनिष्क का सम्राज्य भी विशाल था. चौथी शताब्दी में गुप्त राजवंश ने भारत मे सता संभाली.
इस वंश ने लगभग दो सौ वर्षों तक शासन किया. गुप्त वंश के शासनकाल में भारतीय सांस्कृतिक परम्परा अधिक सम्रद्ध हुई जिसकी शुरुआत मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त एवं आचार्य चाणक्य ने की.
गुप्त काल का इतिहास मुख्य शासक Gupta Empire History in Hindi
गुप्त वंश का प्रथम प्रतापी शासक चन्द्रगुप्त प्रथम था, जो सन 319 से 320 ई. में शासक बना. उसने सम्पूर्ण भारत को एक सूत्र में बांधकर विशाल सम्राज्य की स्थापना की थी, वह कुशल प्रशासक कला एवं साहित्य का संरक्षक और उदार शासक था.
गुप्त काल शासक समुद्रगुप्त (Samudragupta)-
चन्द्रगुप्त के बाद उसका सुयोग्य पुत्र समुद्रगुप्त मगध का शासक बना. समुद्रगुप्त की माता नाम कुमार देवी था. समुद्रगुप्त न केवल गुप्तवंश का बल्कि सम्पूर्ण भारतीय इतिहास के महानतम शासकों में से एक था.
वह पराक्रमी वीर एवं विद्वान था. राजा बनते ही उसने उतर भारत के सभी शासकों को पराजित कर दक्षिण और पूर्वोत्तर में भी अपना राज्य विस्तृत किया.
समुद्रगुप्त ने भारत के विशाल भू भाग को जीतकर अश्वमेघ यज्ञ किया और उसकी स्मृति में अश्व के चित्र अंकित सोने के सिक्के चलाए.
समुद्रगुप्त का शासनकाल राजनैतिक एवं सांस्कृतिक दोनों रूप से गुप्त सम्राज्य के उत्कर्ष का काल माना जा सकता है, उनके दरबार में अनेक कलाकार एवं विद्वान् थे.
हरिषेण उसका मंत्री एवं लेखक था, जिसने प्रयाग प्रशस्ति की रचना की थी. प्रयाग प्रशस्ति से समुद्रगुप्त के विजय अभियानों की जानकारी प्राप्त होती है.
समुद्रगुप्त स्वयं एक महान संगीतज्ञ था, वीणा वादन का शौक था, वह प्रजापालक एवं धर्म निष्ठ शासक था, जिसने वैदिक धर्म एवं परम्पराओं के अनुसार शासन किया था.
गुप्त काल शासक चन्द्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य)-
समुद्रगुप्त के बाद चन्द्रगुप्त द्वितीय शासक बना. वह अपने पिता समुद्रगुप्त की तरह योग्य एवं प्रतिभाशाली था. उसे कला, विद्या के संरक्षक एवं अद्वितीय यौद्धा में रूप में सर्वाधिक स्मरण किया जाता है.
उसने शक एवं कुषाण शासकों को पराजित किया था. चन्द्रगुप्त द्वितीय का साम्राज्य भी भारत के बहुत बड़े हिस्सें में विस्तृत था. विजय अभियानों के बाद उसने विक्रमादित्य की उपाधि धारण कर विक्रम संवत चलाया था.
चन्द्रगुप्त द्वितीय युद्ध क्षेत्र में जितना वीर (रणकुशल) था, शांतिकाल में उससे कही अधिक कर्मठ था. वह स्वयं विद्वान था एवं विद्वानों का आश्रयदाता था, उसके दरबार में नौ विद्वानों की एक मंडली थी, जिन्हें नवरत्न कहा जाता था.
विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्न (9 Gems (Navratnas) of Chandragupta Vikramaditya)
महाकवि कालिदास | धन्वन्तरी | क्षपणक |
अमरसिंह | शंकु | वेताल भट्ट |
घटकर्पर | वराहमिहिर | वररुचि |
चीनी यात्री फाह्यान चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में भारत आया था. फाह्यान ने चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन के बारे में लिखा है, कि उसकी प्रजा सुखी है. राजा न तो शारीरिक दंड देता है और न ही प्राण दंड.
चाण्डालो के अलावा कोई माँस एवं मदिरा का सेवन नही करता है. लोग घरों में भी ताला नही लगाते है. चन्द्रगुप्त द्वितीय का शासन काल प्रजा के लिए सुखमय एवं सम्पन्नता से भरा हुआ था.
गुप्तकाल में सुखी थी. राजा दयावान थे, धन वैभव की कमी नही थी. चारो ओर सम्रद्धि एवं उन्नति का बोलबाला था, सोने के सिक्के प्रचलन में थे.
इस काल में कला एवं साहित्य के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई है, इसलिए गुप्तवंश का शासन काल भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग माना जाता है.
गुप्तकालीन समाज एवं व्यवस्था
क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य और शुद्र यही वह 4 वर्ग हैं जो गुप्तकालीन समाज में डिवाइड थे। ऐसा कहा जाता है कि गुप्त काल के दरमियान जो स्त्रियां थी उनकी स्थिति ठीक नहीं थी क्योंकि स्त्रियों को कई अधिकार प्राप्त नहीं थे,
यहां तक कि उन्हें अपने पिता की प्रॉपर्टी में भी हिस्सा नहीं दिया जाता था। इसके साथ ही साथ उस टाइम पर बाल विवाह की प्रथा भी काफी जोरों पर थी जिसके अंतर्गत कई लड़के और लड़कियों की शादी बचपन में ही कर दी जाती थी।
जिस्म बेचने वाली जो महिलाएं होती थी उन्हें गुप्त काल के दरमियान गणिका कहा जाता था, साथ ही ऐसी महिलाओं को कुटनी कहा जाता था जो वेश्या थी, साथ ही जिनकी उम्र ज्यादा होती थी।
गुप्त काल के प्रसिद्ध मंदिर
- दशावतार मंदिर: देवगढ़ (झांसी)
- विष्णु मंदिर तिगवा: (जबलपुर, मध्य प्रदेश)
- शिव मंदिर : खोह (नागौद, मध्य प्रदेश)
- पार्वती मंदिर: नयना कुठार (मध्य प्रदेश)
- भीतरगाँव मंदिर: भीतरगाँव (कानपुर)
- शिव मंदिर : भूमरा (नागौद, मध्य प्रदेश)
गुप्त काल में शिक्षा और साहित्य
विशाखदत्त, भारवीं, भास, विष्णु शर्मा, शुद्रक और कालिदास जैसे कई महान कवि गुप्त काल के दरमियान ही थे, जिन्होंने गुप्त काल के दरमियान कई ग्रंथों का निर्माण किया था।
हिंदू धर्म के प्रसिद्ध ग्रंथ महाभारत और रामायण की अंतिम रचना भी इसी टाइम हुई थी। हम और आप आज जो पुरान पढ़ते हैं उसका सबसे ज्यादा विकास गुप्त काल के दरमियान किया गया था।
गुप्तकाल की प्रसिद्ध साहित्यिक रचनाएं
- मृच्छकटिकम
- मुद्राराक्षस, देवी चंद्रगुप्तम
- किरातर्जुनीयम
- रावण वधः
- स्वप्नवासवदतम्, चारुदत्त,
- उरुभंग, कर्णभा, पंचरात्रि
- कुमार संभवम्,अभिज्ञान शाकुंतलम्,
- विक्रमोर्वशीयम, मालविकाग्निमित्रम,
- मेघदूत, ऋतुसंहार
- पंचतंत्र
- अभिधर्म कोष
- प्राण समुच्चय
- सांख्यकारिका
- दशपदार्थशास्त्र
- अमर कोष
- न्यास
- शिशुपाल वध
गुप्त काल में कला
गुप्त काल के दरमियान गंधार शैली की मूर्ति कला का बिल्कुल पतन हो गया था क्योंकि गुप्त काल में इस प्रकार की शैली से भवन का निर्माण होना बंद कर दिया गया था।
ऐसा कहा जाता है कि गुप्त काल के दरमियान लोगों को चित्रकला यानी की पेंटिंग में बहुत ज्यादा इंटरेस्ट था क्योंकि गुप्त काल के दरमियान ऐसी कई मूर्तियों का निर्माण किया गया था जो देखने में आज भी काफी मनमोहक लगती है। आपने शायद अजंता की गुफा देखी ही होगी। यह गुप्त काल में ही बनी थी।
गुप्त काल के दरमियान निर्मित अजंता की गुफा की चित्रकारी
अजंता की प्रसिद्ध गुफाएं आज भी महाराष्ट्र राज्य में स्थित है जिसे अजंता की गुफा कहा जाता है। इसमें वर्तमान के टाइम में सिर्फ 6 गुफा का ही अस्तित्व बचा हुआ है।
हालांकि पहले इन गुफा की संख्या 29 थी। जो 6 गुफा अब बची हुई हैं उनमें से गुफा नंबर 16 और गुफा नंबर 17 का निर्माण गुप्त काल के दरमियान हुआ था।
इसमें से जो गुफा नंबर 17 है वह चित्रशाला के नाम से फेमस है। इस गुफा के अंदर भगवान बुद्ध के जीवन से संबंधित विभिन्न प्रकार के पहलुओं को दर्शाने वाली मूर्तियां स्थापित है।
गुप्त काल के दरमियान साइंस
आर्यभट्ट जैसे महान गणित के जानकार का जन्म भी गुप्त काल के दरमियान हुआ था। इसलिए गुप्त काल के दरमियांन गणित से संबंधित कई सिद्धांतों का अविष्कार हुआ। इसके साथ ही साथ आपको बता दें कि आर्यभट्ट के द्वारा गुप्त काल के दरमियान ही दशमलव पद्धति का भी आविष्कार किया गया था।
गुप्त काल के दरमियांन हीं लोगों को तब इस बात की जानकारी प्राप्त हुई जब आर्यभट्ट ने अपनी खोज के द्वारा इस बात को सिद्ध किया कि हमारी जो पृथ्वी है, यह अंतरिक्ष से देखने पर गोल दिखाई देती है। इसके साथ ही यह हमेशा अपनी धुरी पर लगातार घूमती रहती है परंतु हमें इसका एहसास नहीं होता है।
आर्यभट्ट के अलावा ब्रह्मगुप्त भी ऐसे गणित के महान जानकार थे जिनका जन्म गुप्त काल के दरमियान हुआ था। इन्होंने ब्रह्म सिद्धांत नाम के एक ग्रंथ को लिखने का काम किया था, साथ ही खगोलीय प्रॉब्लम की जानकारी को हल करने के लिए बीजगणित का आरंभ करने का काम भी ब्रह्मगुप्त ने हीं किया था।
बृहद संहिता, पंच सिद्धांतिका, नक्षत्र विज्ञान, वनस्पति शास्त्र, प्राकृतिक इतिहास, भूगोल जैसे ग्रंथों की रचना भी इसी काल के दरमियान हुई थी। इसके अलावा आयुर्वेद से संबंधित फेमस ग्रंथ अष्टांग संग्रह की रचना भी इसी काल के दरमियान बाग भट्ट ने की थी।
पारे से सोना बनाने की विधि का निर्माण करने वाले नागार्जुन भी इसी काल के दरमियान हुए थे। नागार्जुन ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने इस बात को बताया कि सोने को हाथों से बनाया जा सकता है और इसके लिए पारे का इस्तेमाल किया जाएगा।
इसके अलावा हीरे को शुद्ध करने की विधि तथा चांदी और सोने को शुद्ध करने की विधि के बारे में भी लोगों को जानकारी देने का काम नागार्जुन ने किया था।
नागार्जुन ने कई प्रसिद्ध ग्रंथों की रचना गुप्त काल के दरमियान ही की थी। इस प्रकार अनेक प्रकार की खोज और आविष्कार होने के कारण गुप्त काल को भारतीय इतिहास का गोल्डन युग कहते हैं।
गुप्त वंश के शासक
घटोत्कच (319)
जब गुप्त वंश के शासक श्री गुप्त की मौत हो गई तो उनकी मृत्यु के बाद इनका बेटा घटोत्कच गद्दी पर बैठा। जिसने तकरीबन 280 ईसवी से लेकर के 320 ईसवी तक शासन किया।
बता दें कि इस व्यक्ति का नाम घटोत्कच इसलिए पड़ा हुआ था क्योंकि इनके सर पर बाल नहीं थे। इस राजा को विभिन्न प्रकार की मायावी शक्तियां प्राप्त थी और इसीलिए हर कोई इससे थरथर कापता था।
कुमारगुप्त (415 – 455)
415 इसवी में कुमार गुप्त ने तब राजा की गद्दी को संभाला जब चंद्रगुप्त द्वितीय की मौत हो गई। राज गद्दी संभालने के बाद इन्होंने अश्वमेध यज्ञ के सिक्के को जारी करने का काम किया क्योंकि इनके दादा समुद्रगुप्त ने भी इसी प्रकार के सिक्के जारी किए थे।
कुमारगुप्त ने तकरीबन 40 सालों तक राज्य पर अधिकार जमाए रखा। ऐसा कहा जाता है कि कुमार गुप्त के शासन के दरमियान उनका राज्य लगातार प्रगति के पथ पर आगे बढ़ रहा था और लगातार उसकी उन्नति हो रही थी।
स्कन्दगुप्त (455-467)
इसवी सन 455 के बाद स्कंद गुप्त ने गुप्त शासक के तौर पर राजनीति को संभाला। ऐसा कहा जाता था कि यह बहुत ही बहादुर थे और इसीलिए अपनी बहादुरी के बल पर इन्होंने अपने राज्य का काफी ज्यादा विस्तार किया। जब स्कंद गुप्त ने राजगद्दी को संभाला तब
मलेच्छों का आक्रमण इनके राज्य पर हुआ। हालांकि इन्होंने अपनी प्रतिष्ठा और अपने पराक्रम से दुश्मन सेना का समूल नाश कर दिया। यही वह व्यक्ति जिन्होंने पुष्यमित्र को युद्ध में हराया था।