आज का आर्टिकल यदि परीक्षा न होती तो निबंध Agar Pariksha Na Hoti Essay In Hindi एक काल्पनिक विषय पर हैं, मगर कोरोना काल के चलते बच्चों को लगातार यह अनुभव करने का अवसर भी मिल चूका हैं.
स्कूल की बोर्ड परीक्षाएं या प्रतियोगी परीक्षा न हो तो पढ़ाई जैसे होगी, इसके लाभ हानि आदि पहलुओं पर यहाँ कुछ निबंध दिए गये हैं.
Yadi Agar Pariksha Na Hoti Essay In Hindi
(200 शब्दों में) Yadi Pariksha Na Hoti What would happen if there were no exams
विद्यार्थी जब क्लास की पढ़ाई करते-करते 1 साल गुजार देते हैं तो उनकी योग्यता का आकलन करने के लिए स्कूल के द्वारा परीक्षा का आयोजन किया जाता है। अधिकतर विद्यार्थी परीक्षा ना हो यही सोचते हैं जिसके पीछे कई कारण होते हैं।
अगर परीक्षा ना होती तो शायद ही किसी विद्यार्थी को यह पता चल पाता कि उसके अंदर कितना टैलेंट है या फिर कितना ज्ञान है और परीक्षा ना होती तो शायद ही किसी टीचर को इस बात की जानकारी प्राप्त हो पाती की उसकी क्लास में कितने बच्चे होशियार हैं और कितने बच्चे पढ़ाई करने में कमजोर हैं।
अगर परीक्षा ना होती तो एक विद्यार्थी अपना सारा समय खेलकूद में लगाता और अपना मनोरंजन करता। अगर परीक्षा ना होती तो बच्चों को एग्जाम में अच्छे अंक लाने के लिए रात भर जाकर पढ़ाई नहीं करनी पड़ती ना ही उन्हें माता पिता के द्वारा पढ़ाई करने के लिए प्रेसर दिया जाता।
जिस प्रकार परीक्षा ना होने के कुछ फायदे बच्चों को है उसी प्रकार कुछ नुकसान भी परीक्षा ना होने के हैं।परीक्षा ना होती तो बच्चे अगले क्लास में आगे नहीं बढ़ पाते। परीक्षा ना होती तो बच्चे के अंदर एक आदर्श नागरिक बनने के गुण विकसित ना हो पाते ना ही उसे सामाजिक व्यवहार की समझ होती।
250 शब्द यदि परीक्षा ना होती तो पर निबंध If There Was No Exams Essay In Hindi
किसी भी विद्यार्थी को आगे की क्लास में बढ़ने के लिए परीक्षा में शामिल होना ही पड़ता है और परीक्षा को पास करने के बाद ही उसे आगे की क्लास में शामिल होने का मौका मिलता है।
परीक्षा देकर के विद्यार्थी अपने टैलेंट का और अपने ज्ञान का प्रदर्शन करते हैं। जो विद्यार्थी पढ़ने में तेज होते हैं उनके लिए परीक्षा एक नॉर्मल वस्तु होती है परंतु जो विद्यार्थी पढ़ने में कमजोर होते हैं वह यही सोचते हैं कि काश परीक्षा ना होती।
अगर परीक्षा ना होती तो शायद ही किसी विद्यार्थी को यह पता चल पाता कि उसके अंदर कितना टैलेंट है अथवा वह पढ़ाई में कितना तेज है। परीक्षा ना होती तो टीचरों को स्टूडेंट के क्वेश्चन पेपर और आंसरसीट की चेकिंग करने से राहत की प्राप्ति होती।
परीक्षा ना होती तो परीक्षा देने के लिए इस्तेमाल होने वाले आंसर शीट की भी बचत होती जिसके कारण कुछ पेड़ कम कटते।अगर एग्जाम ना होती तो मिडिल क्लास परिवार के लोगों को अपने बच्चों की फीस भरने की टेंशन ना होती।
परीक्षा ना होती तो विद्यार्थियों को भी रात भर जागकर परीक्षा में अच्छे अंक लाने के लिए जी तोड़ पढ़ाई ना करनी पड़ती और अपनी आंखें ना दुखानी पड़ती।
परीक्षा ना होती तो विद्यार्थी टेंशन मुक्त होकर अपने पसंदीदा गेम या फिर खेल खेल सकते अथवा अपने नानी के घर घूमने जा सकते। परीक्षा ना होती तो विद्यार्थी के माता-पिता पर अनावश्यक खर्चे का बोझ नहीं पड़ता और वह अपने पैसों का इस्तेमाल किसी अन्य काम में कर सकते हैं।
परीक्षा ना होती तो विद्यार्थियों को अपने माता-पिता की पढ़ाई करने के लिए डांट भी नहीं सुननी पड़ती। परीक्षा ना होने पर विद्यार्थी दूसरे क्रियाकलापों में भाग लेते हैं जिसके कारण उनका सर्वांगीण डेवलपमेंट होता। परीक्षा ना होती तो विद्यार्थियों को मानसिक टेंशन का सामना नही करना पड़ता।
बच्चों के हिसाब से देखा जाए तो परीक्षा नहीं होना ही अच्छा है परंतु व्यावहारिक नजरिए से देखा जाए तो परीक्षा का होना जरूरी है ताकि विद्यार्थियों के टैलेंट का पता लगाया जा सके और योग्य विद्यार्थियों को आगे बढ़ने का मौका मिल सके, ताकि वह अपनी जिंदगी में एक जिम्मेदार और सफल नागरिक बन सकें।
400 शब्द यदि परीक्षा न होती तो Essay in Hindi
हम सभी उस दौर से निकले है जब परीक्षाओं के सीजन में पूरा दिन किताबों पर बैठे बैठे टेंशन में बीत जाया करता था. पास होने के लिए तथा फेल होने के डर तथा घर वालो की डांट से बचने के लिए परीक्षा में अच्छे अंकों से उतीर्ण होना हर विद्यार्थी चाहता हैं.
स्कूल तथा कॉलेज में अर्द्धवार्षिक तथा वार्षिक परीक्षाओं का आयोजन होता हैं बीच बीच में परीक्षणों का भी आयोजन होता रहता हैं.
हर बच्चा पास होने के लक्ष्य को ध्यान में रखकर सालभर पढ़ाई में जुटा रहता हैं प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से किताब और परीक्षा के बीच गहरा सम्बन्ध हैं.
यह परीक्षा का ही भय होता है जिसके चलते पढाई में कमजोर होने के नाते कोचिंग भी लेनी पड़ती हैं. तथा वह अपने परफोर्मेंस को सुधारने के प्रयत्न करता रहता हैं.
यदि परीक्षा ही न होगी तो बच्चों में पढ़ाई के प्रति न भय न होगा न ही कोई आकर्षण. वह परीक्षा पास करने या अगले वर्ष में प्रवेश के सम्बन्ध में कोई चिंता नहीं करेगा. यह भारत के भविष्य तथा बच्चों की शिक्षा पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा.
बच्चें खेलकूद में अपना अधिकतर समय बितायेगे वे शिक्षा से पूर्ण रूप से कटकर पिछड़ जाएगे. समय पर घर आना, पढ़ना, गृह कार्य करना, समय पर स्कूल जाना आदि छोड़ देगे.
यदि परीक्षा ना होती तो हमें कोई भी भय नहीं होता हर एक विद्यार्थी यह सोच कर पढ़ाई करता है कि आने वाले समय में उसकी परीक्षा हो और वह उतीर्ण हो लेकिन अगर परीक्षा ही ना होती तो उसे किसी भी तरह का भय नहीं होता और वह परीक्षा की तैयारी नहीं करता वाकई में परीक्षा का भय ही एक स्टूडेंट के लिए लाभप्रद साबित होता है.
यदि परीक्षा ना होती तो स्टूडेंट पढ़ाई नहीं करते और हमारा देश पिछड़ता जाता बच्चों को तरह तरह के खेल खेलने में बहुत ही अच्छा लगता है.
वह क्रिकेट,कबड्डी इस तरह के तरह तरह के खेल खेलते रहते हैं इनमें उनकी बहुत ही रुचि होती है यदि परीक्षा ना होती तो बच्चे दिन दिन भर खेलते रहते और इस वजह से ज्ञान प्राप्त करने के लिए वह ज्यादा समय नहीं लगाते और उनका भविष्य अंधकारमय हो सकता था इसलिए परीक्षा हर एक बच्चे स्टूडेंट्स के लिए बड़ी ही लाभदायक साबित होती है.
भारत को युवाओं का देश कहा जाता हैं और एक मिनट के लिए सोचिये यदि ऐसे बेफिक्र यूथ की फौज जो अपने करियर के प्रति बिलकुल भी फिक्रमंद नहीं रहते हैं.
आगे चलकर वे उच्च शिक्षा में दुनिया के अन्य देशों के बच्चों से कैसे कॉम्पीटिशन कर पाएगे हाँ इतना अवश्य है कि परीक्षा को लेकर बच्चों में बड़ा तनाव होता हैं यहाँ तक कि बच्चे खाना पीना तक भूल जाते हैं.
यदि परीक्षा ना हो तो बच्चें अवश्य बहुत खुश होंगे. मगर यह कोई समस्या का समाधान नहीं हो सकता, बल्कि कई समस्याओं को जन्म देनी वाली स्थिति हो सकती हैं. बच्चों को परीक्षा के तनाव से बचाने के लिए उनके पाठ्यक्रम को कम किया जा सकता हैं,
प्राथमिक कक्षाओं में फेल न करने की नीति अपनाई जा सकती हैं. मगर परीक्षा न हो यह कपोल कल्पना ही हैं. इससे न हमारे बच्चों, माता पिता देश या समाज किसी का फायदा नहीं होने वाला हैं.
Nice sai h sir