नमस्कार साथियों स्वागत है, आपका आज के हमारे इस आर्टिकल में साथियों आज हम मनुष्य जीवन के सबसे बड़े शत्रु यानि आलस्य मनुष्य का शत्रु निबंध | Alasya Manushya Ka Shatru Essay को विस्तृत रूप से अध्ययन करेंगे. किस प्रकार यह हमारे जीवन को प्रभावित करता है? इससे बचाव कैसे किया जाए? आदि पहलुओ को विस्तारपूर्ण ढंग से जानेंगे.
आलस्य मनुष्य का शत्रु निबंध | Alasya Manushya Ka Shatru Essay
आलस्य यानी जीवन रूपी संसार में कार्यरत व्यक्ति के समक्ष आने वाला वो विचार जो किसी भी कार्य को समय पर करने की इजाजत नहीं देता. आलस्य हमेशा कार्य को टालने की प्रवृति रखता है.
जहाँ जीवन की सफलता के लिए परिश्रम या अनुशासित होकर कार्य करना जरुरी है, वहीं आलस्य रूपी अवरोध आराम फरमाने की दृढ इच्छा जाहिर करता है, जो हमें उन्नति के राह पर चलने से पूर्व ही अपनी टांग खींच लेता है.
आलसी व्यक्ति अपने आप के लिए ही दुश्मन बन जाता है. हमेशा आराम करते रहना. अपने आप को निर्जीव अवस्था में डाल देना तथा किसी भी कार्य के लिए खुद को तैयार नहीं करना ये सब आलस्य के ही उदहारण है.
मनुष्य के जीवन में कई दोष पाए जाते है, जो खुद के साथ ही दुसरो को भी नुकसान देते है. जिसमे लालच, क्रोध, हिंसा, जलन इत्यादि सम्मलित है, पर आलस वह दोष है, जो अपने आप को अंदर से खोखला बना देता है. तथा खुद को भी इसकी भनक तक नहीं लगती.
आज के इस प्रतिस्पर्धा के युग में संघर्ष के मार्ग पर चलकर उज्ज्वल भविष्य की कामना की बजाय आज का युवा मेहनत की बजाय आलस या आराम को अपना सहारा बनाता है, जो उनके भविष्य के साथ खुद के द्वारा किया जा रहा खिलवाड़ मात्र ही है.
जब भी हम भारत जैसे समृद राष्ट्र की बात करते है, तो पाते है, कि यहाँ धन संपदा या कौशल की कमी नहीं है, पर यहाँ के लोग आलस को अपना मित्र मानकर उसको अपना जीवन सौंप देते है, जो उनके भविष्य की बर्बादी का कारण बनता है.
बढती बेरोजगारी और निर्धनता का बढ़ता ग्राफ देश की मुख्य चिंता बन चुकी है. ऐसे में युवाओ का एक्टिव होना बहुत जरुरी है. इसी देश में रहने वाले लोग जो अपने मेहनत को अपना हथियार बनाते है, वे इस देश की अर्थव्यस्था में अपने आप शीर्ष पर पाते है.
कहते है, देश में जनसँख्या ज्यादा है, जिससे स्पर्धा ज्यादा है, यही एक बहाना मात्र है. आज के समय में मेहनत के द्वारा व्यक्ति हर स्पर्धा को जीत सकता है. किसी भी फील्ड में देखे तो मेहनत को अपना हथियार बनाने वाले लोग ही सर्वोच्च स्थान पर मिलते है.
संघर्ष के लिए न धन की आवश्यकता होती है. और ना ही सुविधा की. रिंकू सिंह हो या यशस्वी या हो श्रीकांत बोल्ला सभी ने इसी स्पर्धा में अपनी मेहनत के दम पर परचम लहराया है. तथा सभी के लिए मिशाल कायम की है.
यह वो शख्सियत है, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष कर अपने आप की तराशा. कहते है, सूरज जैसा चमकने के लिए सूरज जैसा तपना पड़ता है. ऐसे कई हजारो उदहारण हमारे सामने है, जो हमें हर परिस्थिति में संघर्ष के राह पर चलने के लिए प्रेरित करते है.
श्रीकांत बोल्ला वो व्यक्ति है, जो अंधे होने के बावजूद इन्होने वो काम कर दिखाया जो हर किसी के वश की बात नहीं. साथियों ये उदारहण मात्र नहीं है, यह मिशाल है, मेहनत की. यह मिशाल है, कड़े संघर्ष की. आज संघर्ष के द्वारा हम हर मंजिल को अपना बना सकते है.
पर इन सब की प्राप्ति के लिए सबसे पहला त्याग आलस्य का ही करना होगा. कहते है, नदियों सा आदर पाना है, तो पर्वत छोड़ निकलना होगा. हमें ही ठीक इसी प्रकार अपने कम्पर्ट जॉन से बाहर निकलकर मेहनत करनी होगी. उन सभी दोषों से मुक्त होना होगा, जो हमें मेहनत करने से रोक रहे है, अपने संघर्ष में बाधक बन रहे है.
मंजिल उन्ही को मिलती है, जो संघर्ष को अपना हथियार बना लेते है. आराम शबनम की तरह है, थोड़ी देर देखती है, फिर ना जाने कहीं गायब हो जाती है. इसलिए मेहनत को अपने जीवन में जगह दें तथा आलस्य को भगाकर जीवन में सफलता के लिए एक पहल की शुरुआत करें.
जंगल का राजा कहा जाने वाला शेर भी अपने भोजन के लिए मेहनत करता है, वो आलस में आकर नहीं बैठता. उसी प्रकार व्यक्ति की आवश्यकताए कभी ख़त्म नहीं होती इसलिए मेहनत करना सीखना सबसे जरुरी है.
आज कई लोग ऐसे है, जो कहते है, कि इस फील्ड में अब मेहनत करने से कोई फायदा नहीं. इसमे सफलता नहीं मिलेगा. पर साथियों जब व्यक्ति कड़ी मेहनत करना सीख जाता है, तो उसे कोई नहीं हरा सकता.