क्रोध पर सुविचार | Anger Quotes In Hindi

क्रोध पर सुविचार | Anger Quotes In Hindi- क्रोध, गुस्सा, रोष इत्यादि जीवन के सबसे बड़े दुश्मन माने जाते हैं. Anger Quotes में हम आपके लिए क्रोध पर आधारित बेस्ट हिंदी उद्धरण, सुविचार, अनमोल वचन यहाँ साझा कर रहा हूँ. 

Anger Meaning का सीधा सा अर्थ होता है क्रोध मगर इसके अन्य हिंदी समानार्थी शब्दों के रूप में अप्रसन्नता, क्रोध, तामस, कोप, रोष, गुस्सा, प्रकोप, क्रोधित करना, खिजाना, गुस्सा दिलाना इत्यादि शब्द काम में लिए जाते हैं.

क्रोध पर सुविचार | Anger Quotes In Hindi

क्रोध पर सुविचार Anger Quotes In Hindi

क्रोध क्षणिक पागलपन हैं.


कोई भी व्यक्ति नाराज हो सकता हैं, यह आसान है, परन्तु सही व्यक्ति से, सही मात्रा में, सही समय पर, सही काम के लिए और सही ढंग से नाराज होना- आसान नही हैं.


क्रोध का सर्वश्रेष्ट उपचार हैं- विलम्ब करना.


क्रोध एक धनवान को घ्रणा का पात्र बना देता हैं और एक निर्धन को तिरस्कार का पात्र बना देता हैं.


क्रोध में जो कार्य आरम्भ किया जाता हैं, उसका अंत लज्जा में होता हैं.


जब क्रोध में हो, तो बोलने के पहले दस तक गिनती गिनें. यदि अधिक क्रोध में हो, तो सौ तक गिनें.


क्रोध द्वारा व्यक्ति अपने से हीन व्यक्तियों को अपने से अधिक श्रेष्ट बना देता हैं.


वह मुर्ख हैं जो क्रुद्ध नही हो सकता हैं, परन्तु वह ज्ञानी व्यक्ति हैं जो क्रुद्ध होगा ही नही.


एक क्रुद्ध व्यक्ति अपना मुहं खोलता है और अपनी आँखे बंद कर लेता हैं.


क्रोध मुर्खता में आरम्भ होता हैं तथा पश्चाताप में अंत होता हैं.


क्रोध के अंग्रेजी रूपांतरण anger में खतरा का द्योतक DANGER की अपेक्षा केवल आरम्भ का अक्षर D कम हैं.


क्रोध सर्वाधिक महत्वपूर्ण मनोवेग हैं. अपने लक्ष्य की अपेक्षा वह अपने धारणकर्ता की अधिक हानि करता हैं.


जो व्यक्ति एक पल के लिए क्रोध को रोक सकता हैं, वह एक पूरे दिन के दुख से बच सकता हैं.


शांत रहो और तुम प्रत्येक व्यक्ति पर शासन कर सकोगे.


क्रोध में होने पर किसी पत्र का उत्तर मत दीजिए.

क्रोध पर सुविचार

क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा दुर्गुण होता है जो मनुष्य के जीवन में अशांति फैला देता है। 


अत्यधिक क्रोध मनुष्य को अंदर से खोखला कर देता है और मानसिक व शारीरिक रूप से नुकसान पहुँचाता है।


मनुष्य कभी क्रोध से प्यार भरे रिश्ते नहीं बना सकता है क्योंकि क्रोध रिश्ते तोड़ने का काम करता है।


मनुष्य क्रोध भावना से ग्रस्त अपना ही जीवन तबाह कर लेता है।


क्रोध रिश्तों में अलगाव की स्थिति पैदा करता है।


ज़रूरी नहीं‌ की मनुष्य क्रोध से कुछ समझाए तो समझ आ जाए क्योंकि क्रोध से डराया जाता है अच्छे से समझाया नहीं जा सकता है।


क्रोध वो चिंगारी है जो अपना हाथ तो जलाती ही है साथ ही साथ अपनों को भी घायल कर देती है।


गलत बात पर क्रोध आना स्वाभाविक है लेकिन सही बात पर क्रोध व्यर्थ है।


क्रोधी मनुष्य से कोई दोस्ती नहीं करना चाहता है।


क्रोध से ईश्वर की आराधना नहीं की जा सकती है जिसके लिए मानव मन को शांत भाव को अपनाना होता है।


क्रोध वो अज्ञानता है जिसका मार्ग सिर्फ अंधकार से भरा होता है। क्रोध सही मार्ग का पथ प्रदर्शक नहीं होता है।


प्राचीन युग में कितने ऋषि-मुनि श्राप वश कभी किसी को आशीर्वाद नहीं देते थे बल्कि क्रोध में आकर दंड देते थे।


जहाँ क्रोध की उचित ज़रूरत हो वहाँ क्रोध कुछ हद तक कार्यरत रहता है लेकिन एक सीमा तक अन्यथा वह भी सीमा पार करने पर परेशानी का सबब बन जाता है।


क्रोध के वशीभूत कभी दोस्ती परवान नहीं चढ़ती है भले टूट जाती है।


जीवन में क्रोध का आदत, व्यवहार, सोच, विचारों में स्थायित्व होना जीवन को कभी खुशी व सुकून नहीं दे सकता है।


जीवन लक्ष्य की प्राप्ति में क्रोध सबसे बड़ी बाधा है।


क्रोध मनुष्य को उसकी अच्छाई से दूर ले जाती है।


क्रोध वो काँटा है जो फूलों के बीच रहकर भी चुभता है।


क्रोध में पड़ा इंसान कभी सही गलत के फैसले सुचारू रूप से नहीं ले पाता है।


क्रोध अगर अपनी सीमा लाँघ जाए तो सर्वनाश करता है।


क्रोध में इंसान कई बार अपनी मर्यादा लाँघ जाता है जो उसके अंत का सूचक हो सकती हैं।


क्रोध के वशीभूत अगर मनुष्य किसी का अहित करता है, किसी के प्रति अत्यधिक बुरा भला कहता है तो ईश्वर की कृपा प्राप्ति से दूर हो जाता है।


क्रोध कभी मन में शांति का संचार नहीं करता है।


क्रोध का वातावरण माहौल को अशांति से भर देता है फिर वहाँ ईश्वर का वास नहीं होता है।


क्रोध कभी भी मनुष्य को सही व उपयुक्त मार्गदर्शन नहीं देता है।


माता का क्रोध बच्चे को सुधारने के लिए किया जाए तो सही होता है लेकिन उसमें प्यार का पुट डालना पड़ता है तभी बच्चा सही रूप से सुधरता है।


अभिभावक अपने बच्चों में क्रोध से इतना भी डर न बिठायें कि बच्चा वयस्क होते-होते डर की भावना से पीड़ित हो जाए क्योंकि क्रोध से जीवन का उद्धार नहीं हो सकता है।


क्रोध मनुष्य को अपने जीवन में  सुमार्ग की ओर ले जाने से रोकता है।


क्रोध मनुष्य के उद्देश्यों की पूर्ति में बाधक सिद्ध होता है जो उद्देश्य पूर्ति में रुकावट ही डालता है।


असहायों पर, गरीब लोगों पर, अपाहिज लोगों पर क्रोध स्वरूप अत्याचार करना सबसे बड़ा महापाप है जिसका परिणाम मनुष्य को भुगतना ही पड़ता है।


पशु पक्षियों, जीव-जंतुओं पर क्रोध करना मनुष्य‌ की कमज़ोरी का परिचायक होती है जो बेज़ुबान जानवरों पर अपना क्रोध निकालते हैं।


क्रोध को नियंत्रित करके ही जीवन खुशी पूर्वक जिया जा सकता है वरना जीवन तो जिया जाएगा लेकिन खुशी नहीं मिलेगी।


क्रोध से मनुष्य अपने कार्यों को सही रूप से सफलता नहीं दे पाता है।


क्रोध में मनुष्य के दिल के भाव सामने आ जाते हैं। वास्तव में दिल के उद्गार क्रोध में व्यक्त हो जाते हैं।


क्रोध से जीवन में भलाई की उम्मीद नहीं की जा सकती है।


इतिहास गवाह है क्रोध से आपसी लड़ाई ही हुई है कभी शांति का वातावरण स्थापित या संधि नहीं हुई है।


क्रोध की भावना से ओत प्रोत मनुष्य कभी अच्छा, सच्चा, सही सोच नहीं पाता है बस क्रोध में अपना समय बर्बाद करता है।


क्रोध मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक होता है।


शिक्षा प्रदान करते वक्त क्रोध वश शिक्षकों को बच्चों को दंड देना एक नियंत्रित माहौल बना देता है लेकिन क्रोध का सही रूप से प्रयोग ही असरदार होता है अन्यथा बच्चे के मन में शिक्षक के प्रति दुर्भावना आ जाती है प्यार नहीं रह पाता है।


क्रोध से कभी मन को शांति प्राप्त नहीं हो सकती है। मनुष्य को अपनी इच्छा पूरी ना होने पर क्रोध आता है, मनुष्य की लालसा पूरी ना हो तो क्रोध आता है, मनुष्य जैसा चाहता है वैसा ना हो तो क्रोध आता है और जब अपनी इच्छा पूर्ति के संदर्भ का सिर्फ ख्याल आता है तो ये स्वार्थ को ही बढ़ावा देता है फिर जीवन में ना तो संतोष मिल पाता है और न दिल से सच्ची खुशी की प्राप्ति हो पाती है।


क्रोध मानव मन का विकार है जिसे गुण नहीं कहा जा सकता है।


क्रोध मनुष्य के जीवन की कठिनाईयों को बढ़ा देती है, रास्तों को मुश्किलों से भर देती है और जीवन सफर के मार्ग में शंका का पुट डाल देती है। मनुष्य क्रोध से दिशा भ्रमित हो जाता है व अपना जीवन लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पाता है।


क्रोध से अच्छे-अच्छे घर तबाह हो जाते हैं इसलिए क्रोध को कभी खुद पर व घर परिवार पर हावी नहीं होने देना चाहिए।


क्रोध के वक्त मनुष्य का मन मस्तिष्क उसके नियंत्रण में नहीं रहता है अतः क्रोध को शांत होने पर ही क्षति का आभास होता है।


क्रोध कभी मनुष्य को एक दूसरे के हृदय में बसा नहीं सकता है।


क्रोधी इन्सान समझदारी से अक्सर विरक्त हो जाते हैं जो समझ ही नहीं पाते है कि क्रोध उनके लिए अभिशाप समान है।


कई बार क्रोध में बोले गए शब्दों से मनुष्य इतना आहत हो जाता है कि प्यार भरी बातें भी उस दर्द के लिए मरहम साबित नहीं हो पाती हैं।


क्रोध मनुष्य को उसके जीवन लक्ष्यों में कभी कामयाब नहीं होने देती है।


अधिक क्रोध करने वाला मनुष्य सही गलत का स्वरूप पहचान नहीं पाता है।


क्रोध सबसे अधिक खुद का सर्वनाश करता है और दूसरों को परेशान ज्यादा करता है।


क्रोध जीवन के अंत में सिर्फ पश्चाताप का भाव अहसास कर पाता है।


मनुष्य जिस वक्त क्रोध में डूबा हो उस वक्त वो सत्य से कोसों दूर हो जाता है  वास्तविकता देख समझ नहीं पाता है सिर्फ क्रोध करता है।


क्रोध में इंसान की मति अक्सर पथ भ्रष्ट कर देती है।


मनुष्य जीवन में क्रोध के द्वारा कुछ भी महान लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पाता है।


मनुष्य क्रोध से अपने सपनों को कभी साकार रूप प्रदान नहीं कर पाता है।


मनुष्य की बुद्धिमत्ता क्रोध में दर्शनीय होती है जिसके स्वरूप कई लोग क्रोध में अपना नियंत्रण खो बैठते हैं तो कई लोग अपने क्रोध को नियंत्रित कर शांत हो जाते हैं।


मनुष्य क्रोध में अपना ही जीवन पल पल कष्ट की आग में डालता जाता है क्योंकि क्रोध कभी कष्ट का निवारण नहीं करता है।


मनुष्य क्रोध से अपना जीवन तो खराब करता ही है साथ ही साथ दूसरों के मन को भी चोट पहुँचाता है बिना सोचे समझे दिल को तोड़ देता है।


मनुष्य क्रोध से अपना जीवन का उद्धार नहीं करता बल्कि विनाश की ओर प्रस्थान करता है।

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