Biography Of Arunima Sinha In Hindi: अरूणिमा सिन्हा ऊँचे सपनों की उड़ान तथा साहसी महिला हैं. जो भारत की ओर से माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली पहली विकलांग महिला हैं.
सिन्हा राष्ट्रीय स्तर की वोलीबाल प्लेयर भी हैं. हाल ही में केंद्रीय अद्योगिक सुरक्षा बल में कास्टेबल के पद पर काम कर रही हैं. भारत की इस साहसी पर्वतारोही की जीवन संघर्ष की कहानी को जानते हैं.
Biography Of Arunima Sinha In Hindi | अरुणिमा सिन्हा जीवनी
जीवन परिचय बिंदु | Arunima Sinha Biography In Hindi |
पूरा नाम | अरुणिमा सिन्हा |
जन्म | 20 जुलाई 1988 |
जन्म स्थान | अम्बेडकर नगर |
पहचान | दिव्यांग एवरेस्ट विजेता |
आयु | 32 वर्ष |
रिकॉर्ड तिथि | 21 मई 2013 |
अक्सर कहा जाता हैं कि साहस की कोई सीमा नहीं है यह आप पर निर्भर करता हैं. आप ठान लो तो जीत है मान लो तो हार हैं, यह कहावत अरुणिमा सिन्हा के जीवन पर सटीक बैठती हैं. एक आम भारतीय महिला की तरह वह जीवन जी रही हैं.
वोलीबाल की अच्छी खिलाड़ी थी तो राष्ट्रीय स्तर पर चयन हुआ और अच्छा खेल खेला. अचानक जीवन में एक दिन आता हैं जब वह ट्रेन में सफर कर रही होती हैं तो कुछ अपराधियों द्वारा देकर उन्हें नीचे गिरा दिया जाता हैं.
चलती ट्रेन से गिरने से अरुणिमा सिन्हा की जान तो बच जाती हैं मगर वह अपना एक पैर गंवा देती हैं. उनके सामने एक लाचार जीवन खड़ा था. मगर हौसले बुलंद हो तो आप अपनी कमी को ताकत बना सकते हैं.
उसी समय कैंसर से जूझ कर युवराज सिंह ने नया जीवन शुरू किया था. युवी से प्रेरित होकर अरुणिमा ने जीवन में कुछ अद्वितीय करने की ठानी और पर्वतारोही बनने का संकल्प लेकर एवरेस्ट विजेता बछेंद्री पाल से मिलने गई. एक बार तो पाल ने सिन्हा के हालातों को देखकर साफ़ मना कर दिया.
मगर अरुणिमा सिन्हा की जिद्द और ललक के चलते पाल को उनकी जिद्द माननी पड़ी. वह लम्बे समय तक बछेंद्री पाल के मार्गदर्शन में ट्रेनिंग लेती रही. वर्ष 2013 में इन्होने आखिर वह कर दिखाया जो असम्भव था अकल्पनीय था.
एक पैर के बावजूद उन्होंने एवरेस्ट की चढ़ाई पूरी कर ली और ऐसा करने वाली पहली भारतीय दिव्यांग महिला बन गई. इस यात्रा के दौरान कई बार ऐसे अवसर आए जब पूरी टीम ने सिन्हा को लौट आने के लिए कहा पर वो नहीं मानी.
माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराना उसकी जिद्द थी जो अन्तः पूरी हुई और दिव्यांग होने के बावजूद मुशिबते उन्हें रास्ता बदलने पर विवश न कर सकी.
आरम्भिक जीवन
1988 में उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में Arunima Sinha का जन्म हुआ था. बाल्यकाल से ही इनकी खेलकूद में रूचि थी. वह वोलीबाल में अपना करियर बनाना चाहती थी. एक साधरण महिला की तरह जीवन व्यतीत करने वाली सिन्हा को एक रेल दुर्घटना ने अपाहिज बना डाला.
12 अप्रैल 2011 को लखनऊ से दिल्ली आ रही पद्मावती एक्सप्रेस में में बदमाशों ने उनके पहनी चेन छिनने की कोशिश की, आत्म सुरक्षा के प्रयास में सिन्हा ने ट्रेन रूकवाने की कोशिश भी की, मगर दरिंदों ने उसे चलती ट्रेन से बाहर फेक दिया, जिसके चलते उन्हें अपना एक पाँव गवाना पड़ा.
रेल हादसा
अरुणिमा सिन्हा के साथ घटित इस दर्दनाक हादसे ने उसके सारे सपनो को चूर चूर कर दिया. उसे जीने की उम्मीद भी नहीं बसी. पटरियों के बीच कटे पैर उसके दर्द और अपाहिज जीवन से इन्होने चार महीने तक एम्स में जीवन मृत्यु की लड़ाई लड़ी.
आखिर सिन्हा के साहस की विजयी हुई और उनके कृत्रिम पैर लगाया गया, जिसके सहारे उसने भावी जीवन जीने का संकल्प किया.
जीवन लक्ष्य
अरुणिमा सिन्हा को डॉक्टरों ने सलाह दी कि वे कोई कार्य न करके आराम करे, मगर सिन्हा को यह मंजूर न था. उसका साहस उन्हें कुछ ऐसा करने के लिए उद्देलित कर रहा था कि वो दिव्यान्गों के लिए प्रेरक बन जाए. उसने निश्चय किया कि वे संसार के सातों महाद्वीपों की ऊँची चोटियों पर चढ़ेगी तथा तिरंगा फहराकर आएगी.
उनके इस अभियान में अफ्रीका की किलिमंजारो और यूरोप की एलब्रुस चोटी का मिशन पूरा हो चुका था. 21 मई 2013 को इन्होने वो असाधारण कार्य कर दिखाया जिसकी किसी को कल्पना नही थी, सिन्हा ने विश्व की सबसे ऊँची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढाई का अभियान पूरा कर लिया था.
अद्भुत साहस और वीरता की प्रतिमूर्ति अरुणिमा अपने भाग्य भरोसे दर्द को देख देखकर रोने की बजाय अपने हौसलों को कभी पस्त नहीं होने दिया, जिसका परिणाम हम सभी के सामने हैं.
साहस की कहानी
भले ही व्यक्ति शारीरिक बल से कमजोर हो, मगर उसके हौसलें बुलंद है तथा आत्म विश्वास से परिपूर्ण है तो वह किसी कठिन कार्य को भी सरलता से कर सकता हैं.
सिन्हा की कहानी हम सभी भारतीयों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं. इस तरह की साहसी युवतियां न सिर्फ अपने देश का गौरव बढ़ा रही हैं. बल्कि वे हमारे समाज को नई प्रेरणा भी दे रही हैं. पूरा हिन्दुस्थान उनकी बहादुरी को सलाम करता हैं.
अरुणिमा सिन्हा को मिले हुए सन्मान – Arunima Sinha Awards
साहस और हौसले की जीती जागती मिसाल अरुणिमा सिन्हा को भारत सरकार ने वर्ष 2015 में पद्मश्री से सम्मानित किया. इस अवसर पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने सिन्हा की पुस्तक बोर्न अगेन ऑन द माउंटेन’ का अनावरण भी किया था.
उत्तर प्रदेश में सुल्तानपुर जिले के भारत भारती संस्था द्वारा सिन्हा को इस अद्भुत कार्य में सफलता पर सुल्तानपुर रत्न सम्मान से नवाजा गया हैं. सन 2016 में अरुणिमा सिन्हा को अम्बेडकरनगर रत्न देकर इन्हें सम्मानित किया जा चुका हैं.
अरुणिमा सिन्हा जी की कहानी भारत की हर एक महिला के लिए रियल होरी की प्रेरणादायक स्टोरी हैं. जीवन में परिस्थतियाँ कभी भी हमारे अनुकूल नहीं होती हैं. यदि हमारी लक्ष्य के प्रति स्पष्ट दृष्टि हो तो यकीनन रास्ते अपने आप निकल आते हैं.