Biography of Dayaladas in Hindi | दयालदास की जीवनी जीवन परिचय इतिहास ख्यात: बीकानेर रै राठौडा री ख्यात के रचनाकार दयालदास (1798-1891 ई) का जन्म 1798 ई में बीकानेर के कुड़ियां गाँव में हुआ था.
दयालदास ने बीकानेर महाराजा सूरतसिंह (1787-1828 ई), रतनसिंह (1828-51), सरदार सिंह (1851-72 ई) एवं डूगरसिंह (1872-87 ई) के काल में सम्मानित दरबारी, विश्वसनीय परामर्शक, निपुण राजनीतिज्ञ, गुणी लेखक एवं कवि के रूप में प्रशंसा प्राप्त की.
दयालदास की जीवनी | Biography of Dayaladas in Hindi
पूरा नाम | सिंढ़ायच दयाल दास |
जन्म | 1798 ई. |
स्थान | बीकानेर |
पहचान | कवि |
उपाधि | कविराजा |
प्रसिद्ध रचना | दयालदास री ख्यात |
मृत्यु | 1891 ई |
दयालदास को महाराजा रतनसिंह के साथ यात्राओं पर रहने का अवसर मिला. जिससे उन्हें बाह्य संस्कृति देखने परखने के साथ साथ तत्कालीन राजनीतिक वातावरण समझने का अवसर भी प्राप्त हुआ.
इतिहास में उनकी रूचि को देखते हुए महाराजा रतनसिंह और सूरजसिंह ने उन्हें अपने राज्य एवं वंश का विस्तृत और सही इतिहास लिखने का दायित्व सौपा.
दयालदास ने ख्यात के अतिरिक्त देश दर्पण, आर्याखयान, कल्पद्रुम और बीकानेर के पट्टा रै गांवा री विगत सहित यशोगान की दृष्टि से पद्मा में सुजस बावनी तथा पंवार वंशदर्पण की भी रचना की. दयालदास का निधन 1891 ई में हुआ.
दयालदास री ख्यात की हस्तलिखित प्रति में राठौड़ो की उत्पत्ति से लेकर महाराजा सरदारसिंह के राज्यारोहण 1851 ई तक का इतिहास लिखा गया हैं.
मारवाड़ी गद्य में लिखी गई ख्यात में गीत, कवित्त, निसाणी, वचनिका, दुहा आदि का प्रयोग भी प्रचुर मात्रा में किया गया हैं.
यह ख्यात बीकानेर राजवंश का विस्तृत विवरण जानने, मुगल राठौड़ो तथा मराठों के सम्बन्ध व्यक्त करने में, फ़ारसी के फरमान निशाँ आदि के राजस्थानी में अनुवाद, बीकानेर की प्रशासनिक व्यवस्था को समझने, राज्य दरबार के षड्यंत्रों की सूचना आदि के लिए महत्वपूर्ण हैं.
डॉ गोरीशंकर ओझा ने उसके इतिहास के बारे में लिखा हैं- वह मात्र बीकानेर राज्य के इतिहास का ही नहीं अपितु पड़ौसी राज्यों के इतिहास का भी ज्ञाता था.
जन्म
दयाल दास जी के जन्म के विषय में विद्वानों के अलग अलग मत हैं. सबसे प्रमाणित मत के अनुसार इनका जन्म 1885 विक्रम संवत् में वासी गाँव में बताया जाता हैं, अन्य मत के अनुसार इनका जन्म कुबिया गाँव में माना जाता हैं.
शिक्षा
दयालदास जी कितने पढ़े लिखे थे इस बारे में कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं हैं. सर्व मान्य मत के अनुसार इनकी शिक्षा अपने पिता खेतसिंहजी संढायच एवं दानसिंहजी से ही प्राप्त की. ये जाति से चारण थे तथा इनका दादा परदादा बीकानेर राजघराने के चारण कवि रहे हैं.
परिवार
दयालदास जी संढायच का विवाह लिछमा बीठवण के साथ हुआ, इनके ससुर जी का नाम मूलचंदजी बीठू था. इनके चार बेटे अजीतसिंहजी, बगसीरामजी, शिवबगसजी और अम्बादानजी तथा एक बेटी अनुबाई थी.
दयालदासजी के दो बेटों अजीतसिंह व शिवबगस जी की अल्पायु में ही मृत्यु हो गई थी. दयालदासजी के दो भाई जगरूपजी और मूळजी थे, इनकी माँ का नाम किसना किनियाणी था जो भाणै रो गांव के उदैराम जी की बेटी थी.
दयालदासजी की रचनाएँ
दयाल दास जी बेहद विद्वान कवि थे इन्होने आजीवन लेखनी कार्य किया. साहित्य और इतिहास जगत में इन्होने अपनी अमर रचनाओं से नाम अमर कर दिया,
इनकी सर्वाधिक लोकप्रिय रचना राठौड़ां री ख्यात अथवा दयालदास री ख्यात मानी जाती हैं. इसके अलावा इन्होने निम्न किताबें लिखी.
- राठौड़ो” री ख्यात : 394 पृष्ठों के इस ग्रन्थ में राठौड़ राजवंश के संस्थापक राव सीहाजी से लेकर महाराजा रतनसिंहजी तक का इतिहास दिया गया हैं.
- ख्यात देशदर्पण : दो भागों में विभक्त इस ख्यात में बीकानेर में राठौड़ राज की स्थापना से लेकर महाराजा रतनसिंह तक का इतिहास लिखा हैं.
- ख्यात आर्याख्यान कल्पद्रुम : इस रचना में दयाल दास ने सम्पूर्ण भारत के इतिहास को लिखने की कोशिश की थी.
- पंवार-वंश-दर्पण: पंवारों की उत्पति इनके इतिहास व कीर्ति योग्य गाथा को पद्य भाषा में रचा था.
- जस -रत्नाकर : रतनसिंहजी और इनके पूर्वजों के इतिहास को इस किताब में पद्य शैली में लिखा हैं.
- करनी- चरित्र: लोक पूज्य चारण देवी करनीजी का इतिहास इस पुस्तक में लिखा गया हैं.