बस यात्रा पर निबंध | Essay on Bus Journey in Hindi

प्रिय साथियो आपका स्वागत है Essay on Bus Journey in Hindi में आज हम आपके साथ बस यात्रा पर निबंध साझा कर रहे हैं.

कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 तक के बच्चों को मेरी पहली बस यात्रा पर निबंध कहा जाता हैं, तो आप सरल भाषा में लिखे गये इस हिन्दी निबंध को परीक्षा के लिहाज से याद कर लिख सकते हैं.

Essay on Bus Journey in Hindi

बस यात्रा पर निबंध | Essay on Bus Journey in Hindi

मैं जब ओडिशा की यात्रा पर गया था, तो भुवनेश्वर से कोणार्क पहुँचने के लिए मुझे बस से बेहतर साधन कोई नजर नहीं आया.

भुवनेश्वर से कोणार्क के लिए कई बसें चलती हैं. मैं अपने मित्रों के साथ एक बस में सवार होने के लिए बस अड्डे पहुंचा.

भुवनेश्वर बस अड्डे पर मुझे कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ा. बस अड्डा गंदगी से अटा पड़ा था. लोग यहाँ कोने किनारे खड़े होकर मूत्र त्याग करने से बाज नहीं आ रहे थे. सार्वजनिक स्थानों पर मूत्र त्यागना जैसे भारत की एक परम्परा बन चुकी हैं.

मेरी पहली बस यात्रा (Meri Pahli Bus Yatra)

मेट्रो स्टेशनों को छोड़कर भारत के सभी रेलवे स्टेशनों एवं बस अड्डों पर देश के नागरिकों की ऐसी हरकतें आपकों चेहरे पर रूमाल रखने के लिए अवश्य बाधित कर देगी.

किसी बस अड्डे या रेलवे स्टेशन पर यदि यह बदबू आपकों परेशान न करती हो तो समझ लीजिए कि आप किसी यूरोपीय देश में पहुँच चुके हैं.

मैं नाक पर रूमाल रखे, एक हाथ में अपना सामान लिए टिकट काउन्टर पर पहुंचा. काउन्टर पर काफी भीड़ थी. मैं भी पंक्ति में शामिल हो गया. लगभग एक घंटे तक पंक्ति में खड़ा रहने के बाद मैं टिकट लेने में कामयाब हो गया.

इस सफलता पर मैं कितना इतरा रहा था, मैं ही समझ सकता हूँ. एक घंटे तक खड़े होने के बाद यदि आपकों सफलता नसीब हो तो ऐसी ही ख़ुशी आपकों मिलेगी.

मेरे मित्रों ने बस से यात्रा को खतरनाक मानते हुए मुझे ऐसी मुर्खता करने से मना किया था, पर मुझे तो रोमांच की तलाश थी न, भला मैं कैसे मानता.

बस नियत समय से लगभग दो घंटे लेट थी. मैं बस में सवार होकर उस वक्त को कोस रहा था, जब मैंने बस से यात्रा करने का निर्णय लिया था. आखिर दो घंटे बाद बस ड्राईवर उपस्थित हुआ, मुझे अत्यंत ख़ुशी हुई.

थोड़ी देर में कन्डक्टर भी आ पहुंचा. बस के चलने के साथ ही मेरी बैचेनी भी थोड़ी कम हुई. भुवनेश्वर से कोणार्क तक बस से सफर करने में लगभग चार घंटे का समय लगता हैं. मैं दस बजे बस अड्डे पर पहुंचा था और अब दो बज चुके थे.

यदि मैं ट्रेन से चला होता तो अब तक पहुँच गया होता या फिर पहुँचने वाला होता.

खैर, अभी बस थोड़ी ही दूर चली थी कि कंडक्टर ने सूचना दी कि बस खराब हो गई हैं. इसे ठीक करने में लगभग तीन घंटे लग जायेगे. उसकी बात सुनकर मुझ समेत सारे यात्री परेशान हो गये.

सभी ने एक स्वर में कहा कि हमें दूसरी बस से कोणार्क भेजों. कंडक्टर एवं ड्राईवर ने कहा कि यदि दूसरी बस वाले तैयार हो जाएगे तो हम जरुर भेज देगे.

कंडक्टर हर बस को रोकने की कोशिश कर रहा था, लेकिन यात्रियों की संख्या को देखकर दूसरी बस का ड्राईवर बस रोकने के लिए तैयार ही नहीं था.

कंडक्टर ने किसी को फोन किया, उसके बाद कुछ लोग आए और बस को ठीक करने में जुट गये.

सभी यात्री अपनी किस्मत को कोस रहे थे. हम सभी को लगने लगा था कि तीन घंटे से पहले बस ठीक नहीं होगी. इसलिए हम लोग संतोष कर चुके थे चलो जो होना होगा, होगा.

विधाता के आगे किसकी चली हैं. कुछ स्त्रियाँ ऐसे वक्त में भगवान को याद करने लगीं. कुछ आराम पसंद लोग बस में ही खर्राटे भरने लगे. कुछ लोग अपने साथ ताश के पत्ते लेकर आए थे. अच्छा मौका देखकर वे भी उसी में मशगूल हो गये.

बच गया मैं और मेरे मित्र. हम अपनी अपनी किस्मत को कोस रहे थे. मैंने सोच लिया था कि फिर कभी बस से यात्रा नहीं करूँगा दिल्ली में रहते हुए वैसे मैं बस से ही अपने कार्यालय जाता हूँ. लेकिन उस बस यात्रा और इस बस में जमीन आसमान का फर्क हैं.

लम्बी दूरी की यात्रा मैंने पहली बार बस से की थी. लोग कहते हैं कि लम्बी दूरी की यात्रा के लिए बस ठीक नहीं होती. मैं उनकी इस बात से सहमत नहीं था. आज इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण मुझे मिल गया था.

मैं अभी सोच ही रहा था कि इस खाली समय में क्या करूँ कि कुछ सज्जन हमारे पास आए और पास ही स्थित एक पहाड़ी की गुफा की सैर पर चलने का न्यौता दिया. मैं उनके साथ चलने के लिए तैयार हो गया.

हम सभी बस ड्राईवर को एक घंटे के भीतर लौटने के बारे में बताकर वहां से चल दिए. लगभग पांच मिनट पश्चात हम गुफा के पास थे. गुफा के बाहर कुछ मूर्तियाँ बनी थी.

पत्थर की ये मूर्तियाँ इतनी खूबसूरत थी कि उनका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता. मैं अब सोचने लगा कि यदि मैं बस से सफर नहीं करता तो क्या मुझे इन्हें देखने का अवसर मिलता, मेरा सारा गुस्सा काफूर हो गया.

गुफा को देखकर जब हम लोग बस के समीप पहुंचे तो बस पूर्णत ठीक हो चुकी थी. ड्राईवर इस बार बड़ी तेजी से बस चला रहा था. खाने का समय हो गया था. इसलिए यात्रियों के कहने पर ड्राईवर ने एक होटल के समीप बस को रोक दिया.

जो यात्री अपने साथ खाना लेकर आए थे, वे बस में ही बैठकर खाने लगे. शेष यात्री होटल में खाना खाने के लिए चले गये. मुझे भी बहुत जोरों की भूख लगी थी, मैंने वेटर को कुछ लाने के लिए कहा.

सभी के खा चुकने के बाद बस ड्राईवर ने पुनः बस स्टार्ट की. कंडक्टर ने देखा कि कही कोई यात्री छूट तो नहीं गया हैं. जब उसे तसल्ली हो गई कि सभी यात्री बस में सवार हो चुके हैं, सिटी बजाकर ड्राईवर को इशारा किया और अगले ही पल बस ने अपनी रफ्तार पकड़ ली.

हम लोग शाम के करीब पांच बजे कोणार्क पहुंचे. बस यात्री आपस में बातें कर रहे थे. कि यदि हम पहले आ गये होते तो सूर्यास्त के समय कोणार्क के इस सूर्य मन्दिर को देखने का सौभाग्य हमें प्राप्त नहीं होता.

सूर्यास्त के समय इस मंदिर की ख़ूबसूरती देखने लायक होती हैं. बस में हमें थोड़ी तकलीफ अवश्य हुई लेकिन इस यात्रा में आनन्द भी कम नहीं आया. यह मेरी ऐसी बस यात्रा रही जिसके खट्टे मीठे पलों को याद कर आज भी मैं मंद मंद मुस्काता हूँ.

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