मकर संक्रांति पर निबंध Essay on Makar Sankranti Festival in Hindi: मकर संक्रांति हिन्दुओं का महत्वपूर्ण पर्व है जो वर्ष 2024 में 14 जनवरी के दिन मनाया जाना हैं.
यह उन पर्वों में गिना जाता है जो एक विशेष तिथि को ही मनाते हैं. भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में इस पर्व को मनाया जाता हैं. आज हम बच्चों के लिए मकर संक्रांति का निबंध बता रहे हैं.
जिन्हें कक्षा 1, 2, 3, 4, 5,6, 7, 8, 9, 10 के बच्चे 5 लाइन, 10 लाइन, 100, 200, 250, 300, 400, 500 शब्दों में मकर संक्रांति एस्से के रूप में उपयोग कर सकते हैं.
मकर संक्रांति पर निबंध Essay on Makar Sankranti Festival in Hindi
स्टूडेंट्स के लिए मकर सक्रांति उत्सव पर सरल जानकारी के लिए यहाँ कुछ अलग अलग शब्द सीमा में निबंध भी दिए गये हैं. आशा करते है यह कंटेट आपको सहायता प्रदान कर सकता हैं.
हिन्दी निबंध :2024 मकर संक्रांति 300 शब्द
हिन्दू धर्म में अपनी अपनी तरह के कई तीज त्यौहार एवं व्रत मनाए जाते हैं. सभी के पीछे अलग अलग मान्यताएं व प्रसंग जुड़े हुए हैं. मकर सक्रांति भी एक ऐसा ही उत्सव है. यह एकमात्र हिन्दू त्यौहार है जो हर साल अलग अलग दिन न मनाया जाकर एक ही तिथि को हर साल मनाते है वह है 14 जनवरी.
कई बार यह 13 अथवा 15 जनवरी को भी आता हैं. इस त्यौहार का सीधा सम्बन्ध भूगोल से हैं. अर्थात पृथ्वी और सूर्य की स्थिति को लेकर इसका निर्धारण होता हैं. इस दिन सूर्य उतरायन से होकर मकर रेखा से होकर गुजरता हैं.
भारत में इसे कही सक्रांति के रूप में मनाते है तो कही पोंगल, लोहड़ी और बिहू के रूप में भी मनाते हैं. इस दिन गुड़, तिल से बने व्यंजन भी बनाए जाते है, कई धार्मिक कार्य भी सम्पन्न होते है. मकर सक्रांति के उत्सव पर पतंगबाजी बच्चों के आकर्षण का एक मुख्य आयोजन भी हैं.
मकर संक्रांति पर निबंध 600 शब्द
भारत दुनियां का एकमात्र ऐसा देश है जहाँ वर्षभर में हजारों त्यौहार मनाए जाते हैं. हरेक पर्व त्योहार को मनाने का एक विशिष्ठ कारण और महत्व होता हैं.
मकर संक्रांति एक ऐसा ही पर्व है जो सूर्य के मकर राशि के प्रवेश पर मनाया जाता हैं. यह परिघटना 14 जनवरी को घटित होती हैं. संक्रांति के बाद से दिन बड़ा व रातें छोटी होना आरम्भ हो जाती हैं.
मकर संक्रांति की कथा व कहानी (Makar Sankranti story)
इस पर्व को मनाने के पीछे एक प्राचीन कथा का प्रसंग मिलता है जिसके अनुसार संक्रांति के दिन सूर्य भगवान शनि के पास जाते है. इस दिन शनिदेव मकर राशि के घर में होते हैं.
रिश्ते में शनि को सूर्य का पुत्र माना जाता हैं. मान्यता है कि इस दिन पिता पुत्र के मिलन से उनके सभी आपसी विवाद हल हो जाते हैं. तथा उनके जीवन में सम्रद्धि का आगमन हो जाता हैं.
एक अन्य कथा के अनुसार बताया जाता है कि जब महाभारत में भीष्म पितामह मृत्यु शैय्या पर थे तब उन्हें यह भी वरदान प्राप्त था कि जिस दिन वे मृत्यु की इच्छा से अपनी आँखे बंद करेगे उनकी मृत्यु हो जाएगी. वो मकर संक्रांति का ही दिन था जब उनहोंने मोक्ष को प्राप्त किया था.
मकर संक्रांति का त्यौहार क्यों मनाया जाता है
इस पर्व को मनाने के पीछे सामाजिक कारण यह है कि इस अवसर पर लोग रबी की फसल की कटाई करने लगते हैं. सर्द ऋतु के समापन के साथ ही बसंत का आगमन हो जाता है तथा सूर्य उतरायाण की तरफ बढने लगता हैं. यह पर्यावरण जागृति एवं लोगों में नवजीवन का संदेश देता हैं.
मकर संक्रांति पूजा विधि
मकर संक्रांति के दिन शुभ मुहूर्त लोग लोग अपने आराध्य की पूजा करते हैं. सूर्य भगवान को समर्पित इस दिन उनकी पूजा की जाती हैं.
चावल का आटा और हल्दी का मिश्रण, सुपारी, पान के पत्ते, शुद्ध जाल, फूल और अगरबत्ती 4 काली और 4 सफेद तीली के लड्डू के साथ पूजा की थाली में कुछ पैसे भी रखे जाते हैं.
यह सब चढाने के बाद सूर्य देव की आरती उतारी जाती हैं. पूजा के दौरान स्त्रियाँ अपना सिर ढककर रखती है तथा ‘ॐ हरं ह्रीं ह्रौं सह सूर्याय नमः के मंत्र का उच्चारण किया जाता हैं.
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार पौष मास महीने में जब सूर्य मकर राशि के घर में आता है तो इस पर्व को मनाया जाता है. इससे पूर्व वह धनु राशि में होता है तथा मकर संक्रांति के दिन से ही उतरायाण की तरफ धीरे धीरे गति करने लगता है इस कारण कुछ स्थानों पर इसे उत्तरायणी पर्व के नाम से भी जाना जाता हैं.
इस पर्व को दान का उत्सव भी माना जाता हैं. इस दिन माघ मेले व स्नान की शुरुआत होती है जो महाशिवरात्रि तक चलती रहती हैं.
दान को इस दिन विशेष महत्व दिया गया हैं. मुख्य पकवानों में लोग इस दिन खिचड़ी बनाते है तथा भूखे लोगों को इसका दान देकर पुन्य कमाते हैं.
मकर संक्रांति के पर्व की तिथि का सीधा सम्बन्ध सूर्य की स्थिति तथा पृथ्वी के भूगोल पर निर्भर करती हैं. कई वर्षों में यह पर्व 13 या 15 जनवरी को पड़ता है. मगर अधिकांश बार सूर्य 14 तारीख को ही मकर राशि में प्रवेश करता है तथा इसी दिन यह पर्व मनाया जाता हैं.
आंध्रप्रदेश, केरल और कर्नाटक में इसे संक्रांति तथा तमिलनाडु में इसे पोंगल पर्व के रूप में मनाया जाता हैं. वही पंजाब तथा हरियाणा जैसे राज्यों में इसे लोहड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता हैं,
पूर्वी भारत में मुख्य रूप से असम में बिहू के रूप में मनाया जाता हैं. इस प्रकार हम देखते है कि भारत के विविध प्रान्तों में मकर संक्रांति के पर्व को अलग अलग नामों तथा विविध तरीकों से मनाया जाता हैं.