मेरी प्रिय फिल्म
फ़िल्में एक स्वस्थ मनोरंजन का अच्छा तरीका है। फिल्मे न केवल समय काटने का जरिया है बल्कि इससे बहुत कुछ सीखने को भी मिलता है। मैं फिल्मों का इतना बड़ा कोई दीवाना नहीं हूँ, मगर खाली समय में कई बार फिल्म देख लेता हूँ। सिनेमा घर में दो से तीन घंटे बैठकर फिल्म देखना, सारी अपकमिंग मूवीज का रिकॉर्ड रखने का सामर्थ्य तो नहीं है मगर अच्छे अश्लील दृश्यों से मुक्त अच्छी कहानी पर फिल्माई गई फ़िल्में मुझे बहुत अच्छी लगती है।
मैंने आज तक विभिन्न फिल्म जगत की कई फिल्में देखी हैं। रजनीकांत, राजकपूर, देवानन्द एवं दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन जैसे पुराने अभिनेताओं से लेकर आज के अभिनेताओं इरफ़ान खान, अक्षय कुमार, सलमान खान तक की कई मूवीज देखी हैं। बच्चन साहब की फिल्म ‘दीवार और शोले’, सलमान खान की ‘सुलतान’, आमिर खान की ‘तारे जमीं पर’ ‘दंगल’, सैफ अली खान की ‘रेस’ जैसी अनेकों हिंदी फ़िल्में मुझे बहुत अच्छी लगती हैं।
इनके अलावा हाल ही की फिल्मों में ‘टॉयलेट एक प्रेमकथा’, ‘रुस्तम’, एवं ‘दृष्यम’ मूवीज ने भी मुझे बहुत प्रभावित किया हैं। मेरी प्रिय फिल्मों की लिस्ट बहुत लम्बी है। अब तक की देखी फिल्मों में सबसे पसंदीदा किसी एक फिल्म का नाम लेना मेरे लिए काफी कठिन है, मगर इन सभी मूवीज में फिल्म ‘शोले’ को मैं अपने पसंद की सबसे पहली फिल्म कहूँ, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। गोपाल दास सिप्पी द्वारा बनाई गई यह फिल्म कहानी, गीत-संगीत, अभिनय हर एक मापदंड पर खरा उतरती है।
‘शोले’ फिल्म वर्ष 1975 में रिलीज हुई थी। इसमें अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, संजीव कुमार, हेमा मालिनी, जाया भादुरी, अमज़द ख़ान इत्यादि कलाकारों ने अभिनय किया है। अमिताभ बच्चन एवं धर्मेन्द्र मुख्य भूमिका में हैं। इस फिल्म के गीत आनन्द बक्शी ने लिखे हैं तथा संगीत दिया था राहुल देव बर्मन ने। इस फिल्म का निर्देशन रमेश सिप्पी ने किया था।
फिल्म ‘दोस्ती’ की कहानी इस प्रकार है – शोले फिल्म दो अपराधियों, जय और वीरू (अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र) इन दो किरदारों के इर्द गिर्द घूमती है। फिल्म में उत्तर प्रदेश के एक गांव रामगढ़ की कहानी को फिल्म कथानक का मुख्य केंद्र बिंदु बनाया जाता है। रामपुर में रिटायर्ड पुलिस ऑफीसर बलदेव सिंह रहता है। रामगढ़ गाँव के लोग कुख्यात डाकू गब्बर सिंह के आतंक से बहुत दुखी थे रिटायर्ड पुलिस अधिकारी बलदेव सिंह उसके आतंक के खात्मे के लिए दो कैदियों जय और वीरू को चुनता है और गब्बर को जीवित या मृत पकड़ने के लिये आदेश देता है और ऐसा करने पर उन्हें पारितोषिक देने का वायदा भी करता है।
अपने इस मिशन की शुरुआत के लिए जय वीरू रामपुर आकर रहने लगते हैं जहां वे रामपुर वालों की समस्याओं से परिचित होते हैं। उन्हें ये परेशानियां अपनी लगने लगती हैं क्योंकि वाकई में रामपुर में गब्बर ने बहुत ही आतंक मचा रखा था। जय वीरू बेहद गम्भीरता से लेकर डाकू गब्बर को पकड़ने के तरीको पर काम करते हैं। इसी दरमियान वीरू को बसंती (हेमा मालिनी) से इश्क हो जाता है और इस इश्क की कहानी बहुत ही रोचक होती है।
करीब 50 वर्ष पहले बनी शोले फिल्म उस समय की सबसे ब्लॉकबस्टर मूवीज थी ही, मगर आज भी लोग इसे बड़े चाव से देखते है। फिल्म की कहानी दर्शकों के दिल में स्थापित सी हो जाती हैं। फिल्म में वैसे तो आठ गानें है मगर महबूबा मेहबूबा, कोई हसीना जब रूठ जाती है, ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे ये तीन गानें मानों अमर से हो गये है। एक्शन, इमोशन, ड्रामा, लव, ट्रेजडी सभी का एक कोम्बो पैकेज शोले फिल्म में देखने को मिलता है।
मैं इस फिल्म को करीब एक दर्जन बार देख चुका हूँ, हर बार जब इसे दुबारा देखता हूँ तो फिल्म में कुछ नया मिलता ही है। एक आम जीवन से जुडी घटना पर आधारित फिल्म, जो स्वस्थ अभिनय एवं संगीत के साथ फिल्माई जाए तो लोगों को अवश्य ही पसंद आती है। शोले न केवल भारत में बल्कि अहिन्दीभाषी देशों में भी बेहद लोकप्रिय हुई। फिल्म के तीन बड़े किरदार निभाने वाले अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र और हेमा मालिनी को अथाह ख्याति इस फिल्म ने दी।