गणगौर पर निबंध Gangaur Essay In Hindi

गणगौर पर निबंध Gangaur Essay In Hindi: गणगौर का उत्सव राजस्थान तथा मध्यप्रदेश का स्थानीय पर्व हैं, इस अवसर पर गणगौर पूजा गीत फेस्टिवल हिस्ट्री के बारे में इस गणगौर निबंध में जानकारी दी गई हैं.

चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तीज को यह त्योहार मनाया जाता हैं. इस दिन कुवारी तथा विवाहित महिलाओं द्वारा शिव पार्वती के अवतार इसर गौरी की पूजा कर गणगौर के गीत गाये जाते हैं.

गणगौर पर निबंध

गणगौर पर निबंध Gangaur Essay In Hindi

राजस्थान लोकपरम्पराओं एवं लोक संस्कृति को जीवित बनाए रखने में सदैव अग्रणी रहा हैं. यहाँ वर्ष भर उत्सव एवं त्योहार मनाये जाते हैं. इसलिए कहा जाता हैं- म्हारों रंग रंगीलो राजस्थान.

गणगौर मेले की परम्परा व इतिहास– गणगौर हमारी भारतीय संस्कृति से जुड़ी परम्परा का पर्व हैं. कुवारी कन्याओं एवं विवाहिताएं अपने सौभाग्य के लिए गौरी पूजन करती हैं.

गौरी पार्वती ने शिव को पति रूप में पाने के लिए यह व्रत किया था. इस मेले का सूत्र इसी पौराणिक लोककथा से जुड़ता हैं.

गौरी पार्वती को सौभाग्य की देवी माना जाता हैं. गौरी की मिट्टी की प्रतिमाएं बनाकर घर में रखी जाती हैं. तथा सोलह दिनों तक उस प्रतिमा का पूजन किया जाता हैं. इन प्रतिमाओं का विसर्जन करना ही गणगौर मेले का उद्देश्य हैं.

गणगौर मेले का स्थान और समय-गणगौर का प्रसिद्ध मेला जयपुर में लगता हैं. यह मेला राजस्थान का प्रसिद्ध मेला हैं.

यह मेला प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल तीज और चौथ को मुख्य मार्ग त्रिपोलिया बाजार , गणगौरी बाजार और चौगान में धूमधाम से लगता हैं.

गणगौर मेले का दृश्य- जयपुर के गणगौर मेले को देखने के लिए देशी विदेशी पर्यटक भी आते हैं. राजस्थान के विभिन्न गाँवों से लोग रंग बिरंगी पोशाक पहने हुए मेले में सम्मिलित होते हैं.

स्त्रियों की टोलियाँ लोकगीत गाते हुए चलती हैं. संध्या को निश्चित समय पर राजमहल के त्रिपोलिया दरवाजे से गणगौर की सवारी ऊंट, रथ होते हैं.

इनके पीछे पुलिस एवं बैंड चलते हैं. गणगौर की सवारी सुंदर ढंग से पालकी में चलती हैं. यह जुलुस त्रिपोलिया बाजार से गणगौरी बाजार तक जाता हैं. यहाँ अनेक प्रकार के मनोरंजन के साथ खाने पीने के सामान आदि रहते हैं.

गणगौर मेले का समापन-हीरे जवाहरात से सजी धजी गणगौर की प्रतिमा से युक्त सवारी जैसे जैसे आगे बढ़ती जाती हैं. वैसे ही मेला उमड़ता जाता हैं. सड़कों पर भीड़ की रेल पेल शुरू हो जाती हैं. लोह अपने अपने घरों को लौटना शुरू कर देते हैं.

उपसंहार– मेलों के आयोजनों से हमारी सांस्कृतिक परम्परा जीवित रहती हैं. हमें अपनी संस्कृति एवं लोकपरम्पराओं की जानकारी होती हैं. उनके प्रति हमारे मन में आस्था जाग्रत होती हैं.

यदपि आधुनिकता के प्रभाव से मेलों में कुछ बुराइयां देखने को मिलती हैं. फिर भी मेलों का आयोजन सामाजिक, व्यापारिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं.

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