गुरु तेग बहादुर पर कविता | Guru Teg Bahadur Ji Poem In Hindi

गुरु तेग बहादुर पर कविता Guru Teg Bahadur Ji Poem In Hindi: हिन्द ही चादर गुरुवर तेग बहादुर जी शहीदी दिवस के  उपलक्ष्य  में हम उन्हें शत शत नमन करते हैं.

सिक्खों के नौवे गुरु हरगोविंद जी के पुत्र व गुरु गोविन्दसिंह जी के पिताश्री guru tagbhader ji थे, 18 अप्रैल, 1621 को अमृतसर में जन्मे बचपन में इन्हें त्याग मल नाम से पुकारा जाता हैं.

वे न सिर्फ सिक्खों के बल्कि हिन्दुओं के भी गुरु व भगवान तुल्य थे जिन्होंने लाखों  हिन्दुओं के की गुहार पर  उनके धर्म की रक्षा के  लिए दिल्ली  की चांदनी चौक में अपना शीश कटवा लिया था.

शीशगंज गुरुद्वारा उनकी शहीदी का प्रतीक हैं. गुरु तेग बहादुर जी की कविताएँ हिंदी व पंजाबी में आपकों बता रहे हैं.

Guru Teg Bahadur Ji Poem In Hindi

गुरु तेग बहादुर पर कविता | Guru Teg Bahadur Ji Poem In Hindi

गुरु तेग बहादुर पर कविता

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बाते करते है लोग यहा
जीते-मरते रहे लोग यहा
निज प्राण दिया परमारथ मे
है धर्मवीर कोई और कहा

गुरुओं का मान रखा जिसने
इस हिन्द की शान रखी जिसने
निज मोह के छोह को त्याग दिया
स्वाभिमान का ज्ञान दिया जिसने

बालक के मुख पर तेज़ अपार
दुश्मन भी बैठे थे तैयार
पर गुरु-पिता की सीख थी सग
और तेज बड़ी उसकी तलवार

समय के साथ बढ़ा बालक
ली विद्या और बना पालक
सहृदय, प्रेम, त्याग बलिदान
थे गुण उसमे ये विद्यमान

तब देश में था बड़ा अत्याचार
पापी ने मचाई थी हाहाकार
कहता था बदल लो ईमान अगर
जीने का मिलेगा तब अधिकार

इससे बढ़कर भी थे कई दुःख
थे लोग भी धर्म से बड़े विमुख
थी नशाखोरी, दुखी था समाज
गुरु-ज्ञान से राह दिखी सम्मुख

बढ़ने लगा हद से जो दुराचार
सृष्टि में निकट थी प्रलय साकार
चिंतित समाज पहुंचा गुरुधाम
मुख से निकला फिर त्राहि-माम

ज्ञानवान, व्यवहार कुशल
देख कष्ट जनों के वह थे विकल
बलिदान की ठानी उन ऋषि ने
देख अत्याचार हुए विह्वल

बालक उनका भी वीर ही था
देख धर्म दशा वो अधीर भी था
कहा, राष्ट्र को देखो पितृ मेरे
तब आँख में सबके नीर ही था.

विधर्मी को गढ़ में चुनौती दिया
दिया ‘शीश’ व धर्म की रक्षा किया
जगे लोग तभी, बने वीर सभी
बलिदान के अर्थ को साध लिया

हो रहा है धर्म का आज अनादर
आते हो याद फिर राष्ट्र को सादर
ले पुनर्जन्म आओ पुण्यात्मा
एक बार बनो फिर ‘हिन्द की चादर’

Guru Teg Bahadur Ji Poems

अब तक की सबसे सुंदर कविता गुरु तेग बहादुर के जीवन, उनके जीवन, हिन्दू धर्म की रक्षा के कार्य तथा आज की पीढ़ी को उनके बलिदान का अज्ञान के बारे में अमित शर्मा जी की सुंदर रचना प्रस्तुत कर रहे हैं.

चार बेटों की बलिदान देकर स्वयं को न्यौछावर कर देने वाले सरदार गुरु पर पढ़िये कविता.

हमने कितने दाग लगाए सम्मानों की पगड़ी पर
सारे पुरूस्कार छोड़े है बलिदानों की पगड़ी पर
.
थोड़ी सी आबादी हैं पर सुविधा सारी न मांगी
आरक्षण की बैसाखी भी जिसने कभी नहीं मांगी
..
जो सप्ताह के सातों दिन बस मेहनत की खाता हैं
चाहे कोई ढाबा खोले या ट्रक चलाता हैं.
उन्हें सताने वाले लोगों मैं कहता धिक्कार तुम्हे
मुर्ख कहने वाले लोगों मैं कहता धिक्कार तुम्हे

आज चलों बलिदानी पगड़ी की बाते बतलाता हूँ
सिख धर्म के बलिदान की सारी कथा बताता हूँ.

सिक्खों के एहसान हैं इतने कैसे कलम चलाऊगा
सातों सागर स्याही कर दूर फिर भी लिख न पाउगा.

जिन बेटों ने बलिदानी इतिहास बनाकर डाल दिया
उन बेटों को बस हमने उपहास बनाकर डाल दिया.

गुरु नानक ने पगड़ी सौपी देश धर्म की रक्षा हो
दूर हटे पाखंडवाद यहाँ जन जन की रक्षा हो
गुरु तेगबहादुर को मिलने कुछ कश्मीरी आए थे
मुस्लिम अत्याचारों से वे सारे ही घबराएँ थे.

कश्मीरी बोले परेशान है गुरूजी दहशतगर्दी से
मुस्लिम सबकों बना रहा औरंगजेब नामर्दी से
सोचा गुरु ने और कहा भारी कीमत चुकानी हैं
भारत देश मांग रहा इस समय बड़ी क़ुरबानी हैं

सब शेरो से बोलों कि अब हाथों में हथियार रखे
और पिता से बोलो बेटो की अर्थी तैयार रखे
धन दौलत और सारी संपदा देश धर्म के नाम करे
माओं से बोलों कि अब निज बेटों का दान करे

एक पतंगा गुरु के दिल के भीतर तक चला गया
हुए रोगटे खड़े गुरु के हाथ कृपाण पे चला गया
पीकर गुस्सा तेग बहादुर हो गये मौन
लम्बी सांस खीचकर बोले बड़ी कुर्बानी देगा कौन

बात हुई ऐसी कुछ उस दिन, धरती अम्बर डौल गये
नौ साल के गुरु गोविन्द जी सबके सम्मुख बोल गये
कहा पिताजी उस शव पर भारत की नीव खड़ी होगी
औरंगजेब से आप लड़ो कुर्बानी बहुत बड़ी होगी.

मैं अब भी शीश झुकाता हूँ उस दिल्ली के गलियारे में
जहाँ गुरु का शीश गिरा था शीशगंज गुरुद्वारे में

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प्रिय मित्रों गुरु तेग बहादुर पर कविता Guru Teg Bahadur Ji Poem In Hindi में दी गई कविताएँ हमने इन्टरनेट से ली हैं,

हम आशा करते है तेग बहादुर जी जयंती में दी गई ये कविताएँ आपकों पसंद आई होगी. guru teg bahadur jayanti की आपकों बहुत बहुत बधाई देते हैं.

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