मधुमक्खी पालन पर निबंध Essay on Apiculture in Hindi: मधुमक्खी पालन (apiculture) आज के समय में बड़े स्तर पर किया जाने वाला कारोबार हैं,
यह उन न्यूनतम इन्वेस्टमेंट के साथ अधिक फायदे के लिए शुरू किए जाने उद्यमों में से एक हैं. मधुमक्खी पालन प्राकृतिक व कृत्रिम दोनों तरीकों से किया जाता हैं.
सभी अनुकूल परिस्थतियां व माहौल उपलब्ध होने पर शहद के लिए मधुमक्खी पालन बेहद कारगर व्यवसाय साबित हो सकता हैं. यदि आप मधुमक्खी पालन को शुरू करने के बारे में सोच रहे हैं.
मधुमक्खी पालन पर निबंध Essay on Apiculture in Hindi
मधुमक्खी से प्राप्त शहद का उपयोग मानव प्राचीनकाल से करता आ रहा हैं, शहद उच्च ऊर्जा युक्त खाद्य पदार्थ हैं. शहद में ग्लूकोज, फ्रक्टोज , सुक्रोज, खनिज लवण आदि उपस्थित होते हैं.
इसका उपयोग औषधियों तथा परिरक्षण के रूप में किया जाता हैं. मधुमक्खी के छतों से प्राप्त मोम को मधुमोम (Bee Wax) कहते हैं.
इस मोम का उपयोग क्रीम, फर्श, पॉलिश, बूट पॉलिश व मूर्तिकला में किया जाता हैं. वर्तमान में कृत्रिम मधुमक्खी पालन कर शहद प्राप्त किया जाता हैं.
सामाजिक कीट मधुमक्खी- मधुमक्खी के रूप व कार्य में भिन्नता पाई जाती हैं. मधुमक्खी के छतें में रानी, नर व श्रमिक तीन प्रकार की मक्खियाँ होती हैं. रानी मक्खी को लम्बे उदर के कारण तथा नर को बड़ी बड़ी आँखों के कारण पहचाना जाता हैं.
छतें में रानी मधुमक्खी का ही प्रभुत्व चलता हैं. रानी गंधयुक्त पदार्थ के स्रवण द्वारा छतें का नियंत्रण करती हैं. रानी हमेशा छतें में ही रहती हैं.
रानी मक्खी के साथ मैथुनी उड़ान भरकर नर मक्खियाँ रानी मक्खी को अपने जीवन काल तक के लिए शुक्राणु प्रदान कर देती हैं. इसके बाद नर मक्खियाँ स्वतः ही मर जाती हैं या उन्हें छतें से बाहर कर दिया जाता हैं.
रानी मक्खी दो प्रकार के अंडे देती हैं. निषेचित अण्डों से श्रमिक या रानी का बनना पोषक के अंतर पर निर्भर करता हैं. जिन लार्वा को रॉयल जैली नामक पोषक पदार्थ खिलाया जाता हैं, वे रानी मक्खियों में परिवर्तित हो जाती हैं.
सर्वप्रथम बनने वाली रानी मक्खी शेष परिवर्तित होती रानी मक्खियों को मार डालती हैं. अर्थात् एक छतें में एक ही रानी मक्खी बन पाती हैं. अनिषेचित अण्डों से नर बनते हैं.
मधुमक्खी की मुख्य जातियाँ एपीस मैलिफेरा, एपिस डोरसेटा, एपिस फ्लोरी तथा एपिस इन्डिका हैं. इनमें से मधुमक्खी पालन हेतु एपिस मैलिफेरा का उपयोग किया जाता हैं.
इस मधुमक्खी के छतें बड़े व मधुमक्खियाँ अधिक होती हैं तथा शहद अधिक मात्रा में प्राप्त होता हैं. एपिस डोरसेटा डंक वाली मधुमक्खी हैं.
कृत्रिम मधुमक्खी पालन हेतु बंद बक्सों के आकार के कृत्रिम छतें बनाए जाते हैं. कृत्रिम छतों में बड़े अंड कक्ष तथा धातु या प्लास्टिक की प्लेटे होती हैं.
प्लेटों पर मोम की परत होती हैं तथा ये छतें के निर्माण हेतु आधार का कार्य करती हैं. बंद बक्से में कई छिद्र होते हैं, जिनमें सेममधुमक्खियाँ आ जा सकती हैं.
मधुमक्खियों के कृत्रिम छतों को किसी उद्यान या खेतों के आस-पास रखा जाता हैं, जहाँ उन्हें मकरंद प्राप्त हो सके. श्रमिक मधुमक्खियाँ फूलों से मकरंद एकत्रित करती हैं, तथा उसे शहद में बदल देती हैं. शहद छतें के कोष्ठकों में एकत्रित होने पर छते से प्लेटों को निकाल कर शहद प्राप्त कर लिया जाता हैं.
मधुमक्खी पालन क्या है What Is Apiculture in Hindi
मधु, परागकण, मोम आदि के लिए मधुमक्खियों का पालन किया जाता हैं. यह एक कृषि उद्योग हैं. मधु मक्खी फूलों के रस को छत्ते में शहद के रूप में जमा करती है.
पुराने जमाने में घने जंगलों से मधु इकट्ठा करने की परम्परा थी. तेजी से बढ़ती शहद की मांग और जंगलों में इसकी कम उपलब्धता ने एक आकर्षक और लाभदायी व्यवस्था के रूप में मधुमक्खी पालन स्थापित उद्यम बन चूका हैं.
मधुमक्खी पालन के लाभ
आज के समय में मधुमक्खी पालन के बहुत सारे फायदे हैं. पुष्पों के रस, पराग, मोम, शहद, रायल जेली और मौनी विष के उत्पादन से रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं.
फलों, सब्जियों और फूलों की खेती के साथ इसे करने से कई गुना अधिक लाभ कमाया जा सकता हैं. बाजार में मधु की मांग निरंतर बढ़ती ही जा रही हैं. शहद तपेदिक, अस्थमा, कब्ज, खून की कमी और रक्तचाप की बिमारी को नियंत्रित करने में काम आता हैं.
मधुमक्खी पालन से प्राप्त मौनी विष से गाठिया, बताश और कैंसर के लिए दवाइयां बनाने में प्रयुक्त होता हैं. अन्य उत्पाद रोयल जेली ट्यूमर को खत्म करने स्मरण शक्ति और आयु वृद्धि में सहायक हैं.
कम समय, कम लागत के साथ मधुमक्खी पालन आरम्भ किया जा सकता हैं. कम आय वाले किसान परिवार अपनी खेतीबाड़ी के साथ साथ इस व्यवसाय को आरम्भ कर सकते हैं. पर्यावरण पर इस व्यवसाय के कोई हानिकारण प्रभाव भी नहीं पड़ते हैं.
विभिन्न फूलों और फलों के उत्पादन को बढ़ाने में भी मधुमक्खी पालन एक कारगर तरीका हैं. कोई भी व्यक्ति या समूह छोटे से सेटअप के साथ मधुमक्खी पालन के व्यवसाय की शुरुआत कर लाभ अर्जित कर सकता हैं.
मधुमक्खी पालन का इतिहास Apiculture History in Hindi
सदियों से वनों से शहद इकट्ठा करने की परम्परा रही हैं. जिसमें व्यवस्थित मधुमक्खी पालन न करके केवल शहद को इक्कठा करने का काम कुछ आदिवासी और जनजातियाँ पुशैतेनी रूप से किया करती थी.
संसार में हर जगह लगभग एक ही तरीके से यह कार्य किया जाता हैं. जंगल में धुआ करके मधुमक्खियों को भगाकर उनका शहद एकत्रित कर लिया जाता हैं. पारम्परिक तरीके से परिष्करण के पश्चात इसे बाजार में बेच दिया जाता था.
आधुनिक मधुमक्खी पालन के वैज्ञानिक तरीके की शुरुआत 18 वीं सदी के अंत में यूरोप से मानी जाती हैं. वर्ष 1789 में ह्यूबर नामक स्वीस नागरिक ने पहली बार मधुमक्खी पालन की दिशा में काम किया, इन्होने लकड़ी की एक फ्रेम बनाई तथा उसमें किताब के पन्नों की भांति खांचे बनवाएं.
1851 में एक अमेरिकी पादरी ने छत्ते के बीच 8 मिमी के रिक्त स्थान को छोड़कर एक फ्रेम बनाई जिसमें मधुमक्खी आसानी से छत्ता बना सकती थी.
इसके बाद 1857 में मोम का सत्ता अस्तित्व में आया. ऑस्ट्रिया में शहद को निकालने के एक यंत्र को 1865 में मेजर डी. हुरस्का द्वारा बनाया गया.
वर्ष 1882 में कौलीन ने एक अवरोधक जाली बनाई जो शहद उत्पादन के क्षेत्र में बेहद कारगर हुई. इस तरह विश्व के अलग अलग क्षेत्रों में एपिक्लचर के क्षेत्र में तकनीकें उन्नत होती गई और इसका आधुनिक स्वरूप विश्व भर में उपयोग किया जाने लगा.
भारत में मधुमक्खी पालन
प्राचीन वैदिक और बौद्ध ग्रंथों में भारत में मधुमक्खी पालन के बारे में उल्लेख मिलता हैं. कई पाषाणकालीन चित्रकारी में इसके चित्र देखने को मिलते हैं. देश में आधुनिक विधियों से मधुमक्खी पालन की शुरुआत 19 सदी के उत्तराद्ध में शुरू हुई.
19 वीं सदी के आरम्भ के कुछ अभिलेखों में युद्ध के लिए भी मधुमक्खियों के पालन के वर्णन देखने को मिलते हैं. आजादी के बाद से विभिन्न विकास कार्यक्रमों के जरिये मधुमक्खी पालन को प्रोत्साहन भी दिया गया.
देश में मोम और शहद के वाणिज्यिक उत्पादन के लिए पांच श्रेष्ठ प्रजातियाँ पाई जाती हैं. वर्ष 1938-39 में देश में अखिल भारतीय मधुमक्खी पालन संघ की स्थापना की गई. बाद में देश के कई शिक्षण संस्थानों में मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण भी आरम्भ किया गया.