Introduction Of Biology In Hindi: नमस्कार मित्रों आज हम जीव विज्ञान का परिचय जानेंगे. विज्ञान की महत्वपूर्ण शाखा जिसमें सभी जीवों के बारें में जानकारी दी जाती हैं.
क्या हैं जीव विज्ञान, अर्थ, परिभाषा, क्षेत्र, इतिहास आदि के बारें में जीवविज्ञान परिचय में सम्पूर्ण जानकारी दी गई हैं.
जीव विज्ञान का परिचय | Introduction Of Biology In Hindi
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परिचय (introduction)
जीव विज्ञान एक प्राकृतिक विज्ञान है जिसमें सभी प्रकार के जीवों की रचना एवं जैव प्रक्रमों का अध्ययन किया जाता हैं. इसके अंतर्गत जीवों की सरंचना, वृद्धि कार्य, विकास, वितरण वर्गिकी, नामकरण सहित जीवों के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया जाता हैं.
आधुनिक जीव विज्ञान की कई शाखा एवं उपशाखाएँ हैं. सामान्य रूप से जीव विज्ञान अध्ययनकर्ता को यह स्वीकार कराता है कि कोशिका जीवन की आधारभूत इकाई हैं तथा नई जाति का सृजन भी जीव विज्ञान के विकास को आगे बढाता हैं.
वर्तमान समय में यह भी स्पष्ट हो चूका है कि प्रत्येक जीव ऊर्जा तथा उसके रूपांतरण का उपयोग कर स्थाई व जैविक स्थिति को बनाए रखने के लिए अपने आंतरिक वातावरण को नियंत्रित कर जीवित रहता हैं.
जीव विज्ञान की उपशाखाएँ अध्ययन किये गये जीवों, उनके प्रकार एवं उनके अध्ययन की विधियों को परिभाषित करती हैं. उदाहरण के लिए जैव रसायन विज्ञान जीवों के मौलिक रसायनों के परीक्षण एवं उनके अध्ययन से सम्बन्धित हैं.
इसी प्रकार आण्विक जैव विज्ञान (Molecular biology) जैव अणुओं की जटिल अन्तः क्रियाओं एवं उनके प्रभावों का अध्ययन हैं. तथा वनस्पति विज्ञान पादपों से सम्बन्धित हैं.
जीव विज्ञान का इतिहास (History of biology)
जीव विज्ञान की उत्पत्ति ग्रीक शब्द बायोस (Bios) तथा लोजिआ (Logia) से मिलकर हुआ हैं. इस शब्द का ‘लैटिन’ रूप सर्वप्रथम 1736 में स्वीडिस वैज्ञानिक कार्ल लिनीयस ने अपने कार्य बिबलियोथिका बोटनिका में बायोलॉजी के रूप में किया.
इसके बाद इस शब्द का उपयोग माइकल क्रिस्टोफ हेनाव द्वारा उसके कार्य फिलोसोफी नेचुरेलिस सीव फिजीस टॉमस तृतीय में किया.
थियोडर जार्ज आउगस्त ने इस शब्द का उपयोग अपनी पुस्तक गुरुणडजुजे डर लेहरे वाँन डर लेबेन्सक्राफ्ट में किया. वर्ष 1800 में कार्ल फ्रिडरिच बुरडेच द्वारा इस शब्द का उपयोग मानव के आकारिकीय, कार्यिकीय एवं मनोविज्ञान के अध्ययन के रूप में तथा गोराफ्रिड रिनहोल्ड ट्रिवीरेनस द्वारा जीवों के अध्ययन के लिए किया गया.
प्राकृतिक दर्शनशास्त्र का अध्ययन प्राचीन मेसोपोटामिया, इजिप्ट, भारतीय उपमहाद्वीप व चीन की सभ्यता के साथ हुआ, यदपि आधुनिक जीव विज्ञान का प्राकृतिक रूप में अध्ययन का आरम्भ हिप्पोक्रेटस् में मिलता हैं.
यूनान निवासी अरस्तू ने जीव विज्ञान के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया. अरस्तू ने वनस्पति विज्ञान की कई पुस्तकों का लेखन कर मध्यकाल में जीव विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
अरस्तू को जीव विज्ञान के जनक के रूप में सम्मान दिया जाता हैं. अरस्तू के ही एक शिष्य युनानवासी थियोफ्रास्टल ने वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया.
उसने दो पुस्तकें इन्क्वारी ईंटो प्लांट्स और थे काउसेस ऑफ़ प्लांट्स लिखी. जिनमें 480 पौधों की सूची प्रस्तुत की गई हैं. थियोफ्रास्टल को वनस्पति विज्ञान का जनक (father of botany) का सम्मान दिया गया हैं.
एस्टोनी वाँन ल्यूवेनहोक द्वारा माइक्रोस्कॉप के कुछ सुधारों के साथ जीव विज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रगति हुई. इसके बाद शोध कर्ताओं ने स्परमेटोजोआ, जीवाणुओं, इन्फ्लूएंजा वायरस तथा सूक्ष्मजीवों के जीवन से सम्बन्धित अध्ययन किये.
इसी बीच प्राकृतिक वैज्ञानिकों का वर्गिकी व वर्गीकरण सम्बन्धित विषय अध्ययन का मुख्य केंद्र रहा. स्वीडन निवासी करोलस लिनीयस जिनको आधुनिक वर्गीकरण विज्ञान के जनक का सम्मान प्राप्त है, ने 1735 में बेसिक टेकसोनोमी फॉर द नेचुरल वर्ड तथा दो अन्य पुस्तकों जेनेरा प्लेंटरम तथा स्पीशीज प्लेंटरम का सृजन किया.
इन पुस्तकों में लिनीयस ने 7700 पादपों तथा 4300 जन्तुओं की कुल 12000 जातियों का उल्लेख किया. लिनीयस के दो महत्वपूर्ण योगदान हैं.
- सजीवों की द्विपदनाम पद्धति
- पादपों का लैंगिक वर्गीकरण
माइक्रोस्कोपी में प्रगति के साथ जीवविज्ञान के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व प्रगति हुई. माइक्रोस्कोपी की तकनीकी में प्रगति के साथ जीव विज्ञान की सोच पर गहरा प्रभाव पड़ा. इसी का परिणाम था कि 19 वीं शताब्दी में अधिकांश जैववैज्ञानिकों ने अपने शोध के आधार पर कोशिका के महत्व को समझाया.
इसके बाद 1938-1939 में शलीडन व श्वान ने यहाँ विचार दिया कि कोशिका जीवों की आधारभूत इकाई हैं. प्रत्येक कोशिका में एक जीव से सम्बन्धित सभी लक्षण होते हैं व प्रत्येक नई कोशिका पुरानी कोशिका के विभाजन से बनती हैं इसके इन तीन सूत्रों को अधिकांश वैज्ञानिक ने स्वीकार किया तथा इसी आधार पर कोशिका सिद्धांत प्रतिपादक माना जाता हैं.
इस बीच प्राकृतिक वैज्ञानिकों का वर्गिकी व वर्गीकरण से सम्बन्धित विषयों का अध्ययन मुख्य केंद्र रहा. कार्ल लिनीयस ने 1775 में बेसिक टेक्सोनोमी फॉर नेचुरल वर्ड नामक पुस्तक का लेखन किया. बाद में 1750 में इसमें पादप जातियों के सभी वैज्ञानिक नाम सम्मिलित किये गये.
विकासवाद के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण विचार जे बी लेमार्क के संसजन विकासवाद सिद्धांत के साथ आरम्भ हुआ. इस सिद्धांत के अनुसार जीवों का विकास वातावरणीय दवाब का परिणाम था.
इसके अनुसार सजीव के जिस अंग का अधिक उपयोग होता हैं वह अंग उतना ही जटिल व सक्षम होता हैं. लामार्क ने यहाँ तक माना कि इन अर्जित लक्षणों की एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक वंशानुगति भी होती है लेकिन बाद में इसे अस्वीकार कर दिया.
चार्ल्स डार्विन ने प्राकृतिक वरण का सिद्धांत प्रतिपादित किया. उनके अनुसार वातावरण द्वारा उन्ही लक्षणों का वरण किया जाता हैं जो वातावरण के उपयुक्त होते हैं. शेष लक्षण नष्ट हो जाते हैं.
इस सिद्धांत को सर्वाधिक मान्यता मिली. 1865 में ग्रेगर मेडल ने मटर के पौधों पर किये गये संकरण के प्रयोगों को प्रकाशित किया व अनुवांशिकता के नियम प्रतिपादित किये.
जेम्स वाटसन व फ्रांसिस क्रिक ने डीएनए का द्विकुंडलित मॉडल प्रस्तुत किया. रोबर्ट वुडवर्ड ने पर्णहरित का कृत्रिम संश्लेषण किया. वर्ष 1967 में जॉन गार्डन ने नाभिकीय ट्रांसप्लान्टेशन का उपयोग करके मेढ़क का क्लोन बनाया जो कशेरुकधारियों का पहला क्लोन था.
जीव विज्ञान की विभिन्न शाखाओं के जनक
• जीव विज्ञान:अरस्तू
• वनस्पति विज्ञान: थियोफ्रेस्टस
• जीवाश्मिकी :जार्ज क्यूवियर
• सुजननिकी: एफ. गाल्टन
• आधुनिक वनस्पति विज्ञान :लिनियस
• प्रतिरक्षा विज्ञान: एडवर्ड जैनर
• आनुवंशिकी: ग्रेगर जॉन मण्डल
• आधुनिक आनुवंशिकी: ग्रेगरी बेटसन
• कोशिका विज्ञान: रॉबर्ट हुक
• वनस्पति चित्रण: क्रेटियस
• पादप शारीरिकी: एन. गिऊ
• जन्तु विज्ञान: अरस्तू
• वर्गिकी: लीनियस
• चिकित्साशास्त्र:हीप्पोक्रेटस
• औतिकी: मार्सेलो मैल्पीगी
• उत्परिवर्तन सिद्धांत के जनक: ह्यूगो डी. ब्राइज
• तुलनात्मक शारीरिकी :जी. क्यूवियर
• कवक विज्ञान: माइकोली
• पादप कार्ययिकी:स्टीफन हेल्स
• जीवाणु विज्ञान: ल्यूवेनहॉक
• सूक्ष्म जीव विज्ञान; लुई पाश्चर
• भारतीय कवक विज्ञान: ई. जे. बुट्लर
• भारतीय ब्रायोलॉजी: आर. एस. कश्यप •भारतीय पारिस्थितिकी: आर.डी. मिश्रा
• भारतीय शैवाल विज्ञान: एम. ओ. ए. आयंगर •आधुनिक भ्रूण विज्ञान: वॉन बेयर
• एण्डोक्राइनोलॉपी: थॉमस ऐडिसन
जीवधारियों का वर्गीकरण
अरस्तु के द्वारा जितने भी जीव है उन्हें दो ग्रुप में बांटा गया था जिसमें पहला ग्रुप था जंतु ग्रुप और दूसरा ग्रुप था वनस्पति ग्रुप। जंतु ग्रुप को अंग्रेजी में एनिमल सेल और वनस्पति ग्रुप को अंग्रेजी में प्लांट सेल कहा जाता है।
इसके अलावा लिनियस साइंटिस्ट ने भी अपने द्वारा लिखी हुई किताब में सभी जीव धारियों को टोटल 2 सेक्शन में बांटा था जिसमें पहला सेक्शन था जंतु जगत और दूसरा सेक्शन था पादप जगत।
लीनियस के द्वारा वर्गीकरण की जिस प्रक्रिया की शुरुआत की गई थी उसी से मॉडर्न वर्गीकरण सिस्टम की भी नियुक्ति की गई। इसीलिए लीनियस साइंटिस्ट को आधुनिक वर्गीकरण का पिता कहकर भी बुलाया जाता है।
जीव धारियों का पांच जगत में वर्गीकरण
जितने भी जीव है उन्हें नीचे बताए हुए 5 खंडों में बांटा गया।
1) जंतु
2) कवक
3) पादप
4) प्रोटिस्टा
5) मोनेरा
1: जंतु
जंतु संसार में जितने भी बहुकोशिकीय जीव होते हैं उन्हें शामिल किया जाता है। इसे मोटोजोओ भी कह कर बुलाया जाता है। उभयचर,जेली फिश, मछली, क्रीमी, सितारा, सरीसृप, पक्षी तथा स्तनधारी जीव जंतु संसार के अंग माने जाते हैं।
2: कवक
कवक संसार में जितने भी यूकेरियोटिक तथा पर पोषित जीवधारी होते हैं उन्हें शामिल किया जाता है। यह ऐसे जीव होते हैं जिनमें पोषण की प्रक्रिया अवशोषण के द्वारा ही होती है। इन सभी जीव को इतर पोशी जीव भी कहा जाता है।
यह जीव या तो मृत्यु परजीवी होते हैं या फिर परजीवी भी होते हैं। इनकी जो कोशिका भित्ति होती है उसका निर्माण काइटिन नाम के पदार्थ के द्वारा हुआ होता है।
3: पादप
पादप संसार में सामान्य तौर पर सभी रंगीन और बहू कोशिकीय उत्पादक जीव शामिल होते हैं। उदाहरण के तौर पर मास, शैवाल, पुष्पीय और अपुष्पीय बीजीय पौधे।
4: प्रोटिस्टा
अलग-अलग प्रकार के एक कोशिका वाले जलीय यूकेरियोटिक जीव प्रोटिस्टा संसार में मौजूद होते हैं। इसके अलावा यूग्लीना भी इसी संसार में होता है।
5: मोनेरा
प्रोकैरियोटिक जीव की कैटेगरी में आने वाले जीवाणु, साइनोबैक्टीरिया और आरकी बैक्टीरिया मोनेरा संसार में शामिल होते हैं। इसके अलावा आपकी जानकारी के लिए बता दें कि तंतुमय जीवाणु भी मोनेरा संसार के ही अंश होते हैं।