जैनेन्द्र कुमार की जीवनी जीवन परिचय | Jainendra Kumar Biography in Hindi

जैनेन्द्र कुमार की जीवनी जीवन परिचय | Jainendra Kumar Biography in Hindi: हिंदी साहित्य के महान उपन्यासकार, निबंधकार, कहानी लेखक जैनेन्द्र कुमार की जीवनी आज हम पढेगे. 

हिन्दी कहानी में प्रेमचंद के बाद इनका नाम लिया जाता हैं. इस जीवनी, जीवन परिचय, इतिहास में हम जैनेन्द्र कुमार के जीवन, रचनाओं, भाषा शैली के बारें में विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगे.

जैनेन्द्र कुमार की जीवनी जीवन परिचय | Jainendra Kumar Biography in Hindi

जैनेन्द्र कुमार की जीवनी जीवन परिचय | Jainendra Kumar Biography in Hindi
जीवन परिचय बिंदुजैनेन्द्र कुमार जीवन परिचय
पूरा नामजैनेन्द्र कुमार/ आनंदी लाल
जन्म2 जनवरी, 1905, अलीगढ
मृत्यु24 दिसम्बर, 1988
ख्यातिलेखक, उपन्यासकार, कहानीकार
सम्मानसाहित्य अकादमी पुरस्कार (1966), पद्म भूषण (1971), साहित्य अकादमी फैलोशिप (1974)
मुख्य रचनाएँपरख व सुनीता उपन्यास बहूचर्चित

जैनेन्द्र कुमार की जीवनी बायोग्राफी इन हिंदी

हिंदी के मनोवैज्ञानिक कहानीकार जैनेन्द्र चौथे दशक के लोकप्रिय कथाकार हैं. इन्होने कहानी कला को एक नई दिशा की ओर मोड़ने का कार्य किया. एवं बाह्य घटनाओं की अपेक्षा पात्रों के अंतर्द्वंद्व द्वारा वस्तु विन्यास किया हैं. जैनेन्द्र का जन्म 1905 में अलीगढ़ जिले के कौड़ियागंज गाँव में हुआ.

इनकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में ही हुई. तत्पश्चात इन्होने गुरुकुल कागड़ी के आवासीय शिक्षण संस्थान में प्रवेश दिलाया गया. उच्च शिक्षा के लिए ये बनारस चले गये. वहां काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एम ए की परीक्षा उतीर्ण की और लेखन कार्य में जुट गये.

गांधीजी द्वारा देशव्यापी आंदोलन चलाने पर उनसे प्रभावित हुए और सत्य अहिंसा के सिद्धांतों को अपनाकर गांधीवादी विचार धारा के पोषक बने. उनकी कहानियों में दार्शनिकता झलकती हैं, किन्तु श्रद्धा और तर्क दोनों का मिश्रण हुआ हैं.

वे गौतम बुद्ध के करुणावाद से भी प्रभावित हुए हैं. क्रांतिकारी रचनाकार होने के कारण धारा से हटकर इन्होने परम्परागत नैतिक मूल्यों व वर्ज नाओं की उपेक्षा की हैं.

अतः कही कही ये गांधी दर्शन के व्यवहारिक पहलू से हटकर नजर आते हैं, तभी तो आचार्य नंददुलारे वाजपेयी ने लिखा है कि रचना के क्षेत्र में जैनेन्द्र न तो गांधीवादी है और न आदर्शवादी.

ये एकान्तिक भावुक एवं कल्पना जीवी लेखक हैं, जो वास्तवि-कता के प्रकाश में धूमिल दिखाई देते हैं. जहाँ तक जैनेन्द्र कुमार की दार्शनिक दृष्टि का प्रश्न है, वह व्यक्तिवादी है और उसका विश्लेषण उन्होंने मनोवैज्ञानिक धरातल पर किया हैं.

वस्तुतः जैनेन्द्र ने जो नया दर्शन अपनाया हैं तथा जिसमें अलौकिकता, मनोविज्ञानता और दर्शन आकर मिल गये हैं. उनके सम्बन्ध में स्वयं जैनेन्द्र ने लिखा है मैं किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं जानता जो मात्र लौकिक हो,

जो सम्पूर्णता से शारीरिक धरातल पर रहता हो, सबके भीतर ह्रदय है जो सपने देखता है. सबके भीतर आत्मा है, जो जगती हैं जिसे शस्त्र छूता नहीं, आग जलाती नही. सबके भीतर वह है जो अलौकिल है मैं वह स्थल नहीं जानता जो अलौकिक न हो.

जैनेन्द्र का व्यक्तित्व

उक्त कथन से जैनेन्द्र का व्यक्तित्व मुखरित हो गया हैं, वे ईश्वरवादी सिद्ध होते हैं. एक स्थान पर उन्होंने लिखा है वह कण कहाँ है, जहाँ परमात्मा का निवास न हो. रोज के जीवन में काम आने वाली चीजों और व्यक्तियों का हवाला नहीं हैं. तो क्या उन कहानियों में तो अलौकिक हैं.

जो तुम्हारे भीतर अधिक तहों में बैठा हैं. जो और भी घनिष्ठ और नित्य रूप में तुम्हारा अपना हैं. जैनेन्द्र के कथा साहित्य में एक ओर आस्थावादी विचार मिलते है तो दूसरी तरफ फ्रायड युग जैसे पश्चिमी विचारकों के अनुसार सुप्त कामभावना व वैयक्तिक अहंभावना का चित्रण भी हो गया हैं.

तभी तो आलोचकों के लिए वे एक समस्या बन गये हैं. उनके विचार और दृष्टि कोण में भिन्नता होते हुए भी उनके चमत्कारपूर्ण शिल्प विधान एवं अनुभूति की गहनता देख बरबस उनकी प्रशंसा करनी पड़ती हैं.

जैनेन्द्र कुमार में सूक्ष्मता है, अद्भुत कौशल है, निरीह सरलता है, दार्शनिक उलझने भी है, समाज से अलगाव के साथ साथ एक विचित्र मानवीय संवेदना भी हैं. व्यक्तित्व की ये विशेषताएं पाठकों को आकृष्ट भी करती है और पाठक कभी कभी क्षोम से भी भर उठता हैं.

जैनेन्द्र का कृतित्व रचनाएं

बहुमुखी गद्यकार, कहानीकार, उपन्यासकार जैनेन्द्र का रचना संसार व्यापक हैं. वे नई कहानी और प्रेमचंदयुगीन कहानीकारों के सेतु हैं. दोनों का कुछ कुछ सामंजस्य इनकी कहानियों में देखा जा सकता हैं, इनकी प्रमुख रचनाएं अधोलिखित हैं.

  • कहानी संग्रह– ध्रुवयात्रा, फांसी, एक रात, वातायन, दो चिड़ियाँ, नीलम देश की राजकुमारी, जैनेन्द्र की कहानियाँ दस भाग पाजेब, नई कहानियाँ, स्पर्द्धा, एक दिन तथा एक रात, मेरी प्रिय कहानियाँ.
  • उपन्यास– कल्याणी, सुनीता, त्याग पत्र, जयवर्धन, विवर्त, व्यतीत, मुक्तिबोध सुखदा आदि.
  • निबंध संग्रह– जैनेन्द्र के विचार, प्रस्तुत प्रश्न, जड़ की बात, संस्मरण, श्रेय और प्रेय, मंथन, काम, प्रेम और परिवार, समय और हम तथा इत्सतत. इनके अतिरिक्त पत्र पत्रिकाओं में आलोचनात्मक लेख भी मिलते हैं.

जैनेन्द्र की कुछ प्रसिद्ध कहानियों में जाह्नवी, सजा, ईनाम, मास्टरजी, पाजेब आदि उल्लेखनीय है. उपन्यासों में त्याग पत्र एवं सुनीता, सुखदा लोकप्रिय हुए हैं.

इस तरह जैनेन्द्र का समूचा साहित्य वैचारिक एवं कलात्मक दृष्टि से उत्कृष्ट कहा जा सकता हैं. जैनेन्द्र के परवर्ती कथाकार इलाचंद्र जोशी, अज्ञेय, यशपाल भी इनसे बहुत प्रभावित हुए हैं.

जैनेन्द्र की कहानी कला

मनोवैज्ञानिक कहानीकार जैनेन्द्र कहानी के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं. वे कहानी को मानव मन में उथल पुथल मचाने वाली समस्याओं की दिशा में समाधान का एक प्रयत्न मानते हैं.

इस सन्दर्भ में उनका एक कथन दृष्टव्य है कहानी तो भूख है जो निरंतर समाधान पाने की कोशिश करती हैं. हमारे अपने सवाल होते हैं, शंकाएं होती है और हम ही उनका उत्तर समाधान खोजने का निरंतर प्रयास करते रहते हैं, हमारे प्रयोग होते रहते हैं.

उदाहरणों एवं मिसालों की खोज होती रहती है, कहानी उस खोज के प्रयत्नों का एक उदाहरण हैं. वह एक निश्चित उत्तर ही नहीं देती, पर यह अलबत्ता कहती है कि उसे रास्ते मिले.

वह सूचक होती है, कुछ सूझा देती है और पाठक अपनी चिंतन प्रक्रिया से उस सूझ को ले लेते हैं. इस कथन से स्पष्ट है कि जैनेन्द्र मानवतावादी एवं जीवनवादी कहानीकार हैं.

वे अपने आस पास के जनजीवन से ही कहानी की वस्तु संकलित करते हैं. उन्होंने ऐतिहासिक, पौराणिक घटनाओं एवं पात्रों को लेकर भी कहानियाँ लिखी है,

परन्तु उनकी संवेदना धरातल सदैव लौकिक ही रहा हैं. पात्रों एवं घटना के चयन में उनकी दृष्टि सदैव जीवन जगत से सम्बद्ध रही हैं. उनकी कहानी कला की विशेषताएं निम्न हैं.

मनोवैज्ञानिकता

कहानी का शिल्प मनोविज्ञान से सम्बद्ध है. पूर्ववर्ती व अन्य समकालीन कथाकारों में भी मनोवैज्ञानिक विश्लेषण का गुण मिलता हैं. किन्तु वहां स्थूल रूप ही दिखाई देता हैं. जैनेन्द्र की दृष्टि सूक्षम मनोविश्लेषण पर अधिक रही हैं.

जैनेन्द्र ने अंतर में होने वाले मंथन, पीड़ा और उसकी घुमड़न के अज्ञात कारणों का पता लगाया है और एक सह्रदय मनोवैज्ञानिक कहानीकार के रूप में उनका चित्रण कर हिंदी कहानी को नूतन दिशा एवं दृष्टि प्रदान की हैं.

जैनेन्द्र की कहानियों का कथानक अल्प ही रहा है, पर उसमें मानवमन के रहस्यों का उद्घाटन एवं आंतरिक विश्लेषण का आग्रह ही प्रमुख रहा हैं.

उनकी कहानियों में भूमिका तथा उपसंहार हेतु अवकाश नहीं रहा है और न ही प्रासंगिक कथाओं के लिए कोई स्थान है. कहानी को एक्य एवं प्रवाहमय रखने के विषय में  वे कहते हैं. मैं समझता हूँ कि कहानी को एक्य प्रदान करने वाला, संघटित करने वाला जो भाव है, उस पर उसका ध्यान केन्द्रित रहे.

यदि ऐसा हो तो कहानी से सब अवयव दुरुस्त रहेंगे और सारी कहानी में एक्य तथा प्रवाह बना रहेगा. जिसे चरम उत्कर्ष कहते हैं. उसकी ओर कहानी बही जा रही है, यह बात स्वयं ही आ जायेगी.

दार्शनिकता

जैनेन्द्र की कहानियों का दूसरा सशक्त पहलू है दार्शनिकता. अधुना कहानी में जहाँ यथार्थवादी दृष्टिकोण अधिक रहा हैं, वहां जैनेन्द्र ने मानव की अलौकिक आत्मा को विषय का आधार बनाया हैं.

जिसमें ईश्वर का निवास है, आत्मा में अंतर्लीन उस अनंत की सहज प्रेरणा से उनकी कहानियों में विद्यमान दार्शनिकता ने कहानी जगत में जिस मौलिकता एवं क्रांति को जन्म दिया हैं, वह आलोचकों को रास नहीं आया हैं.

उनकी दार्शनिकता पौराणिक कहानियों में अधिक झलकती हैं. उसमें कल्पना के साथ धर्म, नीति एवं विविध मानव आदर्शों की प्रतिष्ठा की गई हैं. ये कहानियाँ भारतीय संस्कृति के उज्ज्वल पक्षों को उद्घाटित करती हैं. इससे उनकी गम्भीर चिंतन शैली व्यक्त हुई हैं.

जैनेन्द्र की कहानियों का शिल्प भी मौलिक है, भाव भाषा अद्वितीय है. जैसे जाह्नवी कहानी का कथानक अन्त र्मन्थन भी टिका हैं. जाह्नवी अपनी प्रेम पीड़ा को दो नैना मत खाइयों पिय मिलन की आस में व्यक्त करती हैं. इस तरह उनकी कहानी कला उत्कृष्ट एवं अनुकरणीय हैं.

पुरस्कार एवं सम्मान | Award and Honour

पद्म भूषण1971
साहित्य अकादमी पुरस्कार1979

जैनेन्द्र कुमार की मृत्यु | Jainendra Kumar Death

गांधी के विचारों से बेहद प्रभावित रहे जैनेन्द्र कुमार जी ने अपनी जीवन शैली अहिंसावादी बनाई. दर्शन में इनकी रूचि तथा ज्ञान कई रचनाओं में देखने को मिलता हैं.

लम्बे समय तक इन्होने दिल्ली में रहते हुए साहित्य लेखन किया और 24 दिसम्बर, 1988 ई. को इनका देहावसान हो गया.

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