कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन 1929 | Lahore Adhiveshan In Hindi: भारत के इतिहास की कई महत्वपूर्ण घटनाएं व निर्णय राष्ट्रीय कांग्रेस अधिवेशन से जुड़ी रही हैं.
1929 को लाहौर के रावी नदी के तट पर हुए कांग्रेस अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पास किया गया था. कई वर्षों बाद गांधीजी भी सक्रिय राजनीति में आए थे.
कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन 1929 | Lahore Adhiveshan In Hindi
Lahore session of Congress 1929: 1929 के लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस ने जवाहरलाल नेहरु की अध्यक्षता में रावी नदी के तट पर पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पारित किया.
26 जनवरी 1930 को स्वतंत्रता दिवस मनाने की घोषणा की और इस दिन प्रथम स्वतंत्रता दिवस मनाया गया. इस दिन की महत्ता को बनाए रखने के लिए भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया.
नेहरू को मिला लाहौर अधिवेशन की अध्यक्षता का मौका
पंडित जवाहरलाल नेहरु के द्वारा ही सबसे पहले पूर्ण स्वराज्य की डिमांड की गई थी और उनकी इस बात का समर्थन कांग्रेस पार्टी के अन्य लोगों के साथ ही साथ कई राष्ट्रवादी दलो और लोगों ने किया था।
इसके अलावा पंडित जवाहरलाल नेहरू के नाम की सिफारिश खुद महात्मा गांधी जी ने भी की थी और इस प्रकार गांधी जी ने नेहरू जी को अपना पूर्ण समर्थन दिया था। इस प्रकार सर्व सम्मति से नेहरू को ही लाहौर अधिवेशन की अध्यक्षता करने का मौका प्राप्त हुआ।
1929 के लाहौर अधिवेशन के प्रमुख बिंदु
पूर्ण स्वराज्य की घोषणा
इंडियन नेशनल कांग्रेस यानी की भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपनी लंबे समय वाली डोमिनियन स्टेटस की मांग को छोड़ दिया। और उसके बाद विदेशी शासन से अपने आप को पूरी तरह से आजाद करवाने के लिए अंतिम लक्ष्य पर अपना ध्यान लगाना चालू कर दिया।
प्रतीकात्मक स्वतंत्रता
बता दें की पहली बार राष्ट्रवादीयों के द्वारा तिरंगे को रावी नदी के तट के किनारे पर फहराया गया था। तिरंगे में कुल तीन रंग होते हैं और यहीं पर इस बात का डिसीजन लिया गया था कि भारत की जनता को स्वतंत्रता आंदोलन के साथ जोड़ने के लिए भारत में जितने भी कांग्रेसी पॉलिटिशियन हैं, वह सभी आजादी की शपथ लेंगे और साल 1930 में 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस अथवा गणतंत्र दिवस के तहत सेलिब्रेट करेंगे।
गोलमेज सम्मेलनों (RTC) का बहिष्कार
ब्रिटेन के प्राइम मिनिस्टर मैकडॉनल्ड ने गोलमेज सम्मेलन को आयोजित किया था और कुछ देशों अथवा लोगों ने गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने से मना कर दिया था,
क्योंकि उनका कहना था कि गोलमेज सम्मेलन साइमन कमीशन ने जो रिपोर्ट दी है, उसी के ऊपर आधारित है। इसलिए हम इसमें शामिल नहीं होंगे।
सविनय अवज्ञा आंदोलन का संकल्प
अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा भारतीय लोगों का जो शोषण किया जा रहा था, उसी का विरोध करने के लिए सामूहिक तौर पर लोग इकट्ठा हुए थे और उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन को चालू करने का संकल्प लिया था, साथ ही अपने आप को फिर से संगठित करने का प्रण लिया था।
समाजवादी विचारधारा की स्वीकृति
जब नेहरू जी अध्यक्ष के पद पर तैनात हो गए थे, तत्पश्चात अलग-अलग स्तर पर समाजवादी विचारधारा को कांग्रेस के नेतृत्व में अपनाया गया था।
इस प्रकार साल 1929 में आयोजित हुए लाहौर अधिवेशन में पॉलिटिकल संघर्ष की एक नई प्रक्रिया को चालू किया था।
देश के राष्ट्र वादियों ने पूर्ण स्वराज्य की डिमांड कर दी थी साथ ही विदेशी हुकूमत का बहिष्कार कर दिया था और स्वतंत्रता के लिए उन्हें कौन से सिद्धांतों का पालन करना पड़ेगा,
इसकी भी स्पष्ट तौर पर घोषणा कर दी थी। बता दे कि सविनय अवज्ञा आंदोलन होने से लोगों के बीच राष्ट्रवाद की प्रबल लहर पैदा हुई थी, जिसने लोगों को अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करने के लिए काफी जोश दिया था,
जो कि लगातार तब तक जारी रहा था, जब तक कि साल 1947 में हमारे देश को अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा आजादी नहीं प्राप्त हो गई थी।
लाहौर अधिवेशन में पारित अध्यादेश 1929 congress session
- पहली बार कांग्रेस ने नेहरु समिति द्वारा प्रस्तुत नेहरु रिपोर्ट को निरस्त कर दिया गया.
- कांग्रेस के इस अधिवेशन में पारित पूर्ण स्वराज्य के प्रस्ताव के मुताबिक यहाँ स्वराज्य का अर्थ पूर्ण स्वतंत्रता रखा गया साथ ही इसे राष्ट्रीय आंदोलन का उद्देश्य बनाया गया.
- पूर्ण स्वाधीनता के निर्णय के बारे में जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि अब हमारा लक्ष्य केवल पूर्ण स्वाधीनता हैं जिसका आशय ब्रिटिश सत्ता व साम्राज्यवाद से पूर्ण स्वतंत्रता.
- लाहौर अधिवेशन के दौरान ही गांधीजी के आगामी सविनय अवज्ञा आंदोलन की बात पर सहमति बनी तथा आगामी आंदोलनों के लिए नेतृत्व महात्मा गांधी को सौपा गया.
कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन 1929 की मुख्य बाते – lahore resolution notes
- 1934 में स्वराज दल ने आत्मनिर्णय के सिद्धांत को लागू करने के लिए भारतीय प्रतिनिधियों की एक संविधान सभा की मांग की.
- 1934 के कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में विधिवत रूप से संविधान सभा के गठन की मांग की.
- 28 दिसम्बर 1936 को फैजपुर में हुए कांग्रेस अधिवेशन में एक प्रस्ताव की मांग की गई कि भारतीय केवल एक ऐसे संविधानिक ढांचे को स्वीकार कर सकते हैं. जिसका निर्माण उनके द्वारा हुआ हो और जो एक राष्ट्र के रूप में भारत की स्वतंत्रता पर आधारित हो और लोगों को उनकी आवश्यकताओं और इच्छाओं के अनुसार विकास करने के अवसर देता हो इस सम्बन्ध में नेहरु ने कहा कि संविधान सभा की मांग आज की कांग्रेस की नीति का आधार स्तम्भ हैं.
- 1938 में जवाहर लाल नेहरू ने वयस्क मताधिकार के आधार पर संविधान सभा के गठन की मांग की.
- 14 सितम्बर 1939 को कांग्रेस ने अपनी संविधान सभा की मांग को पुनः दोहराया. 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस चाहती थी कि ब्रिटेन यह घोषणा करे कि भारत को स्वतंत्र राष्ट्र का दर्जा दे दिया जाएगा परंतु लार्ड लिनलिथगो ने ऐसा नहीं किया तो कांग्रेस ने 8 प्रान्तों के मंत्रिमंडलों ने त्याग पत्र दे दिया मुस्लिम लीग इससे बहुत खुश हुई. मुस्लिम लीग ने २२ सितम्बर 1939 को मुक्ति दिवस मनाया तथा पंजाब, सिंध और बंगाल में गैर कांग्रेसी मंत्रीमंडल काम करते रहे.
- 15 नवम्बर 1939 को चक्रवती राज गोपालचारी ने वयस्क मताधिकार के आधार पर निर्वाचित संविधान सभा की मांग की जिसका जिन्ना ने विरोध किया उन्होंने मुसलमानों को धार्मिक अल्पसंख्यक बताया और अचानक ही 24 मार्च 1940 को मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान का संकल्प पारित किया.