इस लेख के शीर्षक Mahabharat Abhimanyu Vadh में अर्जुन पुत्र की वीरतापूर्ण कहानी और कौरवो द्वारा छल-कपट से वीर बालक अभिमन्यु को महाभारत के युद्ध में मारने की कहानी प्रस्तुत की जा रही हैं. कौरवो और पांड्वो के बिच महाभारत युद्ध की कहानी कई हजार साल पूर्व की हैं. मगर आज भी प्रासंगिक हैं. अभिमन्यु वध इस घटनाक्रम का निरिशाजनक भाग हैं. इस घटना के कौरवों और उनके समर्थकों को सोच का पाठक परिचय कर पाएगे.
Mahabharat Abhimanyu Vadh Story
लगभग पांच हजार साल पुरानी बात हैं. कौरव सौ भाई थे. सैकड़ो उनके मित्र थे.
पांडव पांच थे उनके भी कई मित्र थे.कौरवो ने धोखा-धड़ी करके पांड्वो को उनके राज्य से वंचित कर दिया था.
वे कई बार उनकी हत्या का प्रयत्न भी कर चुके थे.
अंत में उनके बिच युद्ध की घोषणा हो गईं. जिसे इतिहास में महाभारत का युद्ध कहा जाता हैं.कैसा युद्ध था, भाई-भाई के विरुद्ध, भतीजे काका के विरुद्ध, भांजे मामा के विरुद्ध, पोते, दादा-नाना के विरुद्ध लड़ने मरने के लिए मैदान में आ डटे थे. पांड्वो में अर्जुन बेजोड़ तीरंदाज था. उनके कारण कौरवों का बहुत नुकसान हो रहा था.एक दिन कौरवो ने ऐसी योजना बनाई, कि अर्जुन को युद्ध के मैदान से दूर दक्षिण दिशा की ओर अकेले लड़ने में जाना पड़ा.युद्ध के दुसरे दिन कौरवों के सेनापति द्रोणाचार्य ने अपनी सेना को इस ढंग से चक्करदार तरीके से सजाई,
कि जो भी उसमे घुसे जरुर मारा जाए.
ऐसे तरीके को चक्रव्यूह कहते थे.
ऐसे चक्रव्यूह में घुसने और निकलने की विद्या केवल अर्जुन को ही आती थी.
और अर्जुन उस दिन युद्ध के मैदान से बहुत दूर चला गया था.
अब पांडव क्या करते. वे सब चिंतित थे.
उन्हें समझ नही आ रहा था कि इस चक्रव्यूह को भेदने के लिए आगे किसे करे.
वे समझ गये थे. कि आज पांड्वो में कोई भी जीवित नही बचेगा.
ऐसे में अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु ने कहा- ”तात आप चिंता ना करे. चक्रव्यूह को भेदने की कला मुझे आती हैं. मै आप लोगों को चक्रव्यूह भेदकर अंदर ले जा सकुगा. मगर बाहर आने की विद्या मुझे नही आती हैं. भीम ने कहा- ‘ बस बेटा, हमे इतना ही चाहिए, एक बार भीतर घुसकर तो हम प्रलय मचा देगे.” मगर बालक अभिमन्यु को खतरे में डाले. यह हमे शोभा नही देता.धर्मराज ने कहा. बालक हू तो क्या हुआ, समय आने पर बालक भी अपने समाज के लिए बलिदान कर देते हैं.
यदि मेरी विद्या इस समय काम न आई तो मेरा जीवन निअर्थक हो जाएगा.
आप मुझे आशीर्वाद दीजिए.
उस दिन अभिमन्यु ही पांड्वो की सेना का सेनापति बना. तीव्र शंखनाद के साथ उसने चक्रव्यूह पर आक्रमण किया.
उसके पीछे-पीछे युधिष्टर भीम नकुल सहदेव और दुसरे वीर चक्रव्यूह में घुसते गये.
मगर कोई भी वीर व्यूह के तीसरे घ्रेरे से आगे नही बढ़ सका. तीसरे घेरे में सब उलझकर रह गये.
अकेला अभिमन्यु सातो घेरे तोड़ता हुआ केंद्र में जा पंहुचा.कौरवो के सेनापति द्रोणाचार्य विसिम्त भी थे और प्रसन्न भी. सबके पितामह भीष्म भी विस्मय में थे. मगर दुसरे कौरव वीर भयभीत थे. कि अगर एक बालक चक्रव्यूह को तोड़कर निकल गया तो उनकी वीरता पर हमेशा-हमेशा के लिए कलंक लग जाएगा.
ऐसे योद्धाओ में कर्ण, जयद्रथ, दुश्सासन, अश्वत्थामा और दुर्योधन का पुत्र लक्ष्मण आदि थे.
उन्होंने प्रण किया कि चाहे जैसे भी हो, वे अभिमन्यु को चक्रव्यूह से बाहर नही जाने देगे.
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फिर क्या था. सभी महारथियों ने वीर बालक अभिमन्यु को घेर लिया.उस समय युद्ध का एक नियम होता था, जिनके पास हथियार ना हो और वह घायल हो तो उस पर वार नही किया जाता था. एक वीर से एक शत्रु वीर ही युद्ध किया करता था. मगर उस बालक पर सात-सात योद्धा टूट पड़े. आखिरी दम तक अभिमन्यु उनसे लड़ता रहा और अंत में वीरगति को प्राप्त हो गया.
अभिमन्यु वध की इस घटना कौरवों के नाम पर भरी कलंक बनी और अभिमन्यु का नाम अमर हो गया.