Mandalgarh Fort History In Hindi: वीर विनोद ग्रंथ के अनुसार अजमेर के चौहान शासकों ने मांडलगढ़ के गिरि दुर्ग का निर्माण करवाया. मंडलाकृति होने के कारण इसका नाम मांडलगढ़ पड़ा.
जनश्रुति के अनुसार मांडिया भील के नाम पर यह किला मांडलगढ़ कहलाया. यह अरावली की उपत्यकाओं में समुद्रतल से १८५० फीट की ऊँचाई पर बना हुआ हैं और लगभग एक किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत हैं.
मांडलगढ़ के किले का इतिहास | Mandalgarh Fort History In Hindi
मुगल बादशाहों ने मांडलगढ़ को मेवाड़ के प्रवेश द्वार के रूप में अपने सैनिक अभियानों का केंद्र बनाया. 1576 ई में हल्दीघाटी युद्ध से पूर्व मानसिंह ने एक महीने तक मांडलगढ़ में रहकर शाही सेना को तैयार किया था. महाराजा राजसिंह ने मुगलों से मांडलगढ़ को छीन लिया.
तत्पश्चात यह किला किशनगढ़ नरेश रूपसिंह राठौड़ की जागीर में रहा. किले के प्रमुख भवनों में ऋषभदेव का जैन मन्दिर, दो प्राचीन शिव मंदिर उड़ेशवर और जलेश्वर महादेव, सैनिकों के आवासगृह, अन्न भंडार महल आदि.
मांडलगढ़ के किले का इतिहास | Mandalgarh Fort History In Hindi
मांडलगढ़ राजस्थान के भीलवाड़ा जिले की एक पंचायत समिति हैं. इसकी जिला मुख्यालय से लगभग ५० किमी की दूरी पर स्थित यह स्थान ऐतिहासिक महत्व का रहा हैं.
पन्द्रहवी शताब्दी में मूह्मूद खिलजी ने इस किले पर आक्रमण किया, उसे दोनों आक्रमणों में सफलता हाथ लगी और किला उसके अधीन हो गया.
मुगल बादशाह शाहजहाँ ने इस किले को राजारूप सिंह को जागीर के रूप में दे दिया इसके बाद यह राणा राजसिंह के पास रहा. फिर औरंगजेब ने इस पर आक्रमण कर हथिया लिया. इसके बाद राणा अमर सिंह एवं उनके वंशजों के अधीन में यह किला रहा.
मांडलगढ़ क़िला एक ऊँची पहाड़ी पर बना हुआ हैं. तक़रीबन डेढ़ किलोमीटर दूरी पर किले का परकोटा बना हुआ हैं. समुद्र तल से इसकी ऊँचाई लगभग 1850 फुट हैं.
मांडलगढ़ किले का निर्माण किसने और कब करवाया, इसके इतिहास से जुडी कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं हैं. एक दंतकथा के अनुसार एक मांडिया भील नामक व्यक्ति पशु चराने का काम किया करता था.
एक दिन पशुचराते हुए उसे एक पारस का पत्थर मिला. उसने उस पत्थर को बाण घिसने के लिए काम में लिया तो वह सोने का हो गया. जब यह बात उसने अपने साथी चरवाहे चानणा को बताई तो वह इस पत्थर की हकीकत को समझ गया.
उसने वह पत्थर मांदिया से ले लिया. कुछ सालों बाद वह बहुत पैसे वाला हो गया तथा मांडिया भील के नाम का उसने एक किला बनवाया जो कालान्तर में मांडलगढ़ कहलाया.
इस किले के प्रांगण में दो बड़े तालाब है इनके नाम क्रमशः सागर’ और ‘सागरी हैं. बताया जाता है कि भीलवाड़ा में अक्सर अकाल पड़ते थे. ऐसे में लोगों को जल के संकट का सामना करना पड़ता था. जल संग्रहण के साधन के रूप में अगरचंद ने सागर में दो कुएँ बनवाएं जिनसे इस किले में जलापूर्ति होती रही.
इस किले में कई दर्शनीय स्थल भी हैं. जिनमें तीर्थंकर ऋषभदेव का एक जैन मंदिर, जलेश्वर के शिवालय, अलाउद्दीन नामक एक मुस्लिम शासक की कब्र भी बनी हुई हैं. इसके अलावा मांडलगढ़ में रूपसिंह का महल देखने लायक भवन हैं.
Mandalgarh किले पर आक्रमण
1567 ई. में मुगल शासक अकबर ने मांडलगढ़ किले पर विजय हेतु अपने दो सेनापतियों आजम खान तथा वजीर खान के नेतृत्व में एक विशाल सेना भेजी.
उस समय मांडलगढ़ पर बालानोत सोलंकी का अधिकार था. बड़ी आसानी से मुगल सेना ने किले पर विजय प्राप्त कर ली. मेवाड़ पर अकबर द्वारा किए गये अधिकतर आक्रमणों में मांडलगढ़ किले को केंद्र बनाया गया था.
1576 में हल्दीघाटी की ऐतिहासिक लड़ाई होने से पूर्व अकबर की सेना का सेनापति मानसिंह करीब एक माह तक शाही सेना के साथ मांडलगढ़ के किले में रहा तथा युद्ध की तैयारियां की थी.
मुगल बादशाहों ने मांडलगढ़ को मेवाड़ के प्रवेश द्वार के रूप में अपने सैनिक अभियानों का केंद्र बनाया. 1576 ई में हल्दीघाटी युद्ध से पूर्व मानसिंह ने एक महीने तक मांडलगढ़ में रहकर शाही सेना को तैयार किया था. यह बहुत ही रोचक जानकारी हैँ