शेरगढ़ के किले का इतिहास | Shergarh Fort History In Hindi

Shergarh Fort History In Hindi: कोशवृद्धन पर्वत शिखर पर निर्मित इस किले को शेरशाह ने शेरगढ़ का नाम दिया. किले के निर्माताओं के बारे में प्रमाणिक जानकारी नहीं मिलती हैं.

अकबर के शासनकाल से 1713 ई तक यह किला मुगलों के अधिकार में रहा. मुगल सम्राट फखरूसियर ने इसे कोटा महाराव भीमसिंह को पुरस्कार स्वरूप प्रदान किया था.

बारां जिले में स्थित इस शेरगढ़ किले का रहस्य और इसका इतिहास क्या हैं इसके बारे में आज हम संक्षिप्त में जानकारी प्राप्त करेगे.

शेरगढ़ के किले का इतिहास | Shergarh Fort History In Hindi

झाला झालिमसिंह ने शेरगढ़ का जीर्णोद्धार करवाया तथा किले में महल एवं अन्य भवन बनवाएं. इसने अपने रहने के लिए जो भवन बनवाया, वह झालाओं की हवेली के नाम से प्रसिद्ध हैं.

झालिमसिंह ने इस किले में अमीर खां पिंडारी को भी आश्रय दिया था. शेरगढ़ किले में सोमनाथ महादेव, लक्ष्मीनारायण मन्दिर, दुर्गा मन्दिर, एवं चारभुजा मन्दिर बने हुए हैं. भव्य राजप्रासाद, झालाओं की हवेली, अमीर खां के महल, सैनिकों के आवास गृह, अन्न भंडार आदि शेरगढ़ के वैभव का बखान करते हैं.

शेरगढ़ के किले का इतिहास | Shergarh Fort History In Hindi

सन् 1540 में हुमायूं और शेरशाह सूरी के मध्य युद्ध हुआ, जिसमें हुमायूं की हार हुई. फलस्वरूप दिल्ली की सत्ता पर सूरी का अधिकार हो गया.

उसने दिल्ली के पास ही एक किले का निर्माण करवाया जो वर्तमान में शेरगढ़ के किले के रूप में जाना जाता हैं. जब हुमायूं ने पुनः दिल्ली पर अधिकार किया तो उसका ध्यान इस किले की ओर भी गया.

उसने कई भवनों का निर्माण करवाया. दोनों शासकों ने इस किले के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया था. बताया जाता है कि किले की सीढियों से उतरते हुए हुमायूं की म्रत्यु हो गई थी. 

हुमायूं का मकबरा इसी किले में स्थित हैं. १८५७ की क्रांति के समय मुगल सम्राट के राज कुमारों को हुमायूं के इसी मकबरे में छिपाया गया था. मगर वे कैप्टन हडसन से बच नहीं पाए और उन्हें रंगून की जेल में कैद कर दिया गया.

शेरगढ़ का किला आज बुरे हालातों से गुजर रहा हैं. प्रशासन द्वारा इसके रखरखाव और मरम्मत की ओर ध्यान न दिए जाने के कारण यह समाप्त होने की कगार पर अपने अंतिम काल को गिन रहा हैं. सासाराम से ६० किमी दूरी चेनारी से १० किमी पर स्थित शेरगढ़ किला ८०० फीट ऊँची पर्वत पहाड़ियों पर स्थित हैं,

दुर्गावती नदी के किनारों को छुती हुई निकलती हैं. ६ वर्ग मील के धरातल पर किला फैला हुआ हैं. किले से होकर गुप्ताधाम और सीताकुंड के रास्ते निकलते हैं.

किले में कुल आठ बड़े बुर्ज थे जिनमें से अभी पांच ही हैं. किले के पास ही रानी पोखरा नामक तालाब बना हुआ हैं. शेरशाह द्वारा अपना नाम दिए जाने से पूर्व यह किला भुरकुड़ा का किला के नाम से जाना जाता हैं.

शेरगढ़ के इतिहास की जानकारी तारी़ख-ए-शेरशाही और ‘तबकात-ए-अक़बरी इन दो मुगलकालीन पुस्तकों में जानकारी मिलती हैं. फ्रांसिस बुकानन के अनुसार यहां भारी नरसंहार हुआ था।

इसी कारण यह किला अभिशप्त और परित्यक्त हो गया था. जिसके बाद से कोई शासक यहाँ नही रहा तथा यह एक वीरान किले में तब्दील हो गया जो आज खंडहर बनने की कगार पर हैं.

शेरगढ किला राजस्थान के धौलपुर शहर से महज 7 किमी की दूरी पर दक्षिण में चम्बल नदी के तट पर अवस्थित हैं. यह नेशनल हाइवे से दो किमी की दूरी पर हैं. पर्यटकों के लिए शेरगढ़ किला एक अच्छा पिकनिक स्पॅाट हैं.

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