सरोजिनी नायडू का जीवन परिचय | Sarojini Naidu Biography in Hindi

Sarojini Naidu Biography in Hindi सरोजिनी नायडू का जीवन परिचय: भारत की बुलबुल, तथा भारत की कोकिला के उपनाम से जानी जाने वाली सरोजिनी नायडू स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं महान कवियत्री थी.

जिन्होंने लेखन के साथ साथ सक्रिय राजनीति में भी भाग लिया. वे कांग्रेस की अध्यक्ष भी रही स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया तथा अपनी कलम से भी लोगों को जागृत करती रही.

गांधीजी के साथ उनकी पहली मुलाक़ात लंदन में हुई ये उनके विचारों से प्रभावित होकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाने लगी.

Sarojini Naidu Biography in Hindi सरोजिनी नायडू का जीवन परिचय

सरोजिनी नायडू का जीवन परिचय | Sarojini Naidu Biography in Hindi
पूरा नामसरोजिनी नायडू (Sarojini Naidu)
जन्म 13 फ़रवरी, 1879,हैदराबाद, आंध्र प्रदेश
मृत्यु 2 मार्च, 1949, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
पतिडॉ. एम. गोविंदराजलु नायडू
संतानजयसूर्य, पद्मजा नायडू, रणधीर और लीलामणि
शिक्षामद्रास विश्वविद्यालय, किंग्ज़ कॉलेज गर्टन कैम्ब्रिज
नागरिकताभारतीय

Sarojini Naidu Biography

सरोजिनी नायडू जिन्हें भारत कोकिला / नाइटिंगल ऑफ इंडिया के रूप में याद किया जाता हैं. स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में भारतीय राजनीति की धुरंधर राष्ट्रवादी महिला नेता के रूप में याद की जाती हैं. सरोजिनी चट्टोपाध्याय का जन्म 1879 में हुआ था. और वह अपने समय की अपनी कक्षा की सबसे मेधावी छात्रा थीं.

उन्होंने बहुत कम आयु में ही भिन्न भिन्न आयामों पर भावपूर्ण कविताओं की रचना शुरू कर दी थी. उनकी पहली पुस्तक द गोल्डन थ्रोशोल्ड 1905 में प्रकाशित हुई. द फीदर ऑफ़ द डॉन व द बर्ड ऑफ टाइम 1912 में प्रकाशित हुई तथा द ब्रोकेन विंग 1917 में प्रकाशित हुई.

मद्रास प्रेसिडेंसी में अपना अध्ययन समाप्त करने के बाद वह स्कालरशिप प्राप्त करते हुए आगे अध्ययन हेतु लंदन के किंग्स कॉलेज गई.

1893 में डॉ गोविंदराजुलू नायडू से शादी होने के बाद उन्होंने जरूरतमंद लोगों की आवश्यकतानुसार सेवा पर बल दिया. उन्होंने लोगों और दूसरे जरूरतमंद लोगों के लिए एक अनाथाश्रम की स्थापना की तथा स्कूलों का निर्माण किया जहाँ पर लडकियाँ शिक्षा प्राप्त कर सकें.

सरोजिनी नायडू ने 1902 में गोपाल कृष्ण गोखले के सहयोग से राजनीति में प्रवेश किया. वे उनके मार्गदर्शन में भारत को आजादी दिलाने के कार्य में सक्रिय रूप से भाग लेने गई.

इस प्रकार वह राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने वाली पहली महिला थी. महात्मा गांधी के साथ काफी घनिष्ठतापूर्वक कार्य करते हुए वह प्रायः सभी आंदोलनों में भाग लेती रहीं और इस तरह उनमें काफी परिपक्वता व प्रौढ़ता आ गई.

वह 1925 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष नियुक्त की गई. 1947 में उन्होंने एशियन रिलेशन कांफ्रेंस की अध्यक्षता की, आजादी प्राप्ति के बाद सरोजिनी नायडू उत्तरप्रदेश की राज्यसभा पद पर नियुक्त की गई. देश को आजादी दिलाने में सरोजिनी नायडू द्वारा किये गये अविस्मरणीय कार्यों के परिणामस्वरूप उन्हें सदैव याद किया जाता रहेगा.

जिस तरह लता मंगेशकर को स्वर कोकिला के नाम से जानते है उसी तरह सरोजनी नायडू भारत कोकिला और भारत की बुलबुल उपनाम से जाना जाता था. अपने मधुर कंठ से उनका कविताओं का सस्वर वाचन सभी के दिलों को छू जाता था. उनके कंठ व वाणी की मधुरता के कारण भारत कोकिला कहा जाता हैं.

सरोजनी नायडू की रचनाएं – Sarojini Naidu Books

सरोजनी नायडू न सिर्फ एक सक्रिय राजनेता व समाज सुधारक थी बल्कि उनकी एक अन्य पहचान अच्छी हिंदी लेखिका व कवियित्री के रूप में भी थी. नायडू की कविताओं व रचनाओं में क्रांति के विचारों की जागृति के साथ ही भारतीय संस्कृति की प्रशंसा में बाल साहित्य में भी अहम योगदान दिया.

उनकी इन्ही साहित्यिक विशेषताओं के चलते इन्हें भारत की कोकिला भी कहा गया. गोल्डन थ्रेसहोल्ड इनका पहला काव्य संग्रह था जो वर्ष 1905 में प्रकाशित हुआ था,

इसके बाद दी बर्ड ऑफ़ टाइम और दी ब्रोकन विंग्स की रचना की. अंग्रेजी में लिखी गई इन पुस्तकों को न सिर्फ भारत में पसंद किया जाने लगा बल्कि इंग्लैंड में भी इन्हें खूब ख्याति मिली थी.

राष्ट्रगान का पहली बार सस्वर गायन

भारत के लिए स्वतन्त्रता संग्राम की लड़ाई लड़ने वाली महिलाओं में सरोजनी नायडू का नाम प्रमुखता से लिया जाता हैं, इन्हें केसर ए हिन्द उपनाम से भी जाना जाता हैं.

जब ये 1925 में कानपुर में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्ष बनी तो इन्होने जन गण मन राष्ट्र गान का सस्वर गायन किया, जिस पर महात्मा गांधी ने इन्हें भारत कोकिला का उपनाम दिया था.

नायडू के पिता शिक्षाशास्त्री थे जबकि उनकी माँ बंगाली कवयित्री थी. काव्य लेखन की परम्परा उनके परिवार में थी ही साथ ही इनके आठ भाई बहिनों में एक भाई क्रांतिकारी, एक कथाकार भी थे.

सरोजनी नायडू ने मात्र 12 वर्ष की आयु में ही श्रेष्ठ अंकों के साथ बाहरवीं की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी, उन्हें बचपन से कविताएँ लिखने का शौक था.

जब ये 13 साल की हुई तो करीब डेढ़ हजार पदों की अंग्रेजी कविता लेडी ऑफ़ दी लेक और दो हजार पंक्तियों के एक नाटक की रचना अंग्रेजी में कर दी थी, इससे उनके श्रेष्ठ बौद्धिक स्तर का अंदाजा लगाया जा सकता हैं.

कांग्रेस अध्यक्ष

सरोजनी नायडू 1905 के बंगाल विभाजन के कारण भारतीय राजनीति में आई और मुखर वक्ता होने के नाते ये बड़े बड़े राज नेताओं के साथ नियमित रूप से मुलाकाते करती रही. इसी दौरान वह कांग्रेस सदस्य बनी तथा कई यूरोपीय देशों की यात्रा पर भी गई.

वर्ष 1925 में नायडू सर्वसम्मति से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनी गई. अब तक के दस वर्षों के राजनैतिक अनुभव और अध्यक्ष की गरिमा ने इन्हें राष्ट्रीय नेत्री के रूप में स्थापित किया.

उत्तर प्रदेश की राज्यपाल

स्वाधीनता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाने वाली नायडू को आजादी के बाद शासकीय जिम्मेदारी के रूप में उत्तर प्रदेश के गर्वनर का कार्यभार मिला. उस समय यूपी देश का आबादी के लिहाज से सबसे बड़ा राज्य था और इसे सूबे की पहली गर्वनर नियुक्त किया तो इनके शब्द थे.

मैं स्वयं को कैद किये गये वन के पक्षी की तरह महसूस कर रही हूँ मगर पंडित नेहरू की इच्छा को टाल नहीं सकती हूँ. सरोजनी नायडू ने अपने जीवन के आखिरी दौर में लखनऊ में रहते हुए राजनैतिक दायित्वों का पालन किया.

सरोजिनी नायडू की मृत्यु

जब भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हो गया तब इन्हें देश के सबसे अहम राज्य उत्तरप्रदेश की राज्यपाल नियुक्त की गई, 2 मार्च 1949 को वे इस पद पर कार्यरत थी कार्यालय में काम करते वक्त ही इन्हें दिल का दौरा पड़ा व इस तरह भारत कोकिला का स्वर्गवास हो गया.

वह भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन की महान वीरांगना थी वे युगों युगों तक भारतीय नारीशक्ति की आदर्श बनी रहेगी.

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