शनि भगवान की कहानी Shani Bhagwan story in Hindi: पौराणिक कथाओं में हिंदू धर्म के अनेक देवी-देवताओं की कहानियों का उल्लेख किया गया है।
यह कहानियां हमेशा ही बच्चों से लेकर बड़ों तक के मन को उत्साह से भर देती हैं। सभी भगवानों में शनि भगवान का भी विशेष स्थान है।
शनि भगवान मनुष्यों के कर्म के अनुसार उन्हें दंड या न्याय करते है। प्रकोप और दया की कई सारी कहानियां है। आज हम आपको शनि भगवान से जुड़ी कुछ रोचक कहानियां सुनाने वाले हैं।
शनि भगवान की कहानी Shani Bhagwan story in Hindi
शनि देव के जन्म की कहानी
भगवान शनि देव सूर्य देव और छाया के पुत्र हैं। सूर्य देव की पत्नी का नाम संध्या था। सूर्य देव और संध्या की दो संतान थी, उनके पुत्र का नाम यम और बेटी का नाम यमी था।
संध्या अपने दोनों बच्चे और पति का बहुत ख्याल रखती थी लेकिन सूर्य देव का तेज बहुत ज्यादा होने के कारण संध्या से यह बर्दाश्त नहीं होता था।
इसीलिए 1 दिन संध्या ने एक मूर्ति को अपनी परछाई दे दी और उससे बिल्कुल अपने जैसा बना दिया। इस मूर्ति का नाम छाया था जो देखने में बिल्कुल संध्या की तरह थी और उसी की तरह ही उसके बच्चों का ध्यान रखती थी।
छाया को अपनी जगह पर छोड़कर संध्या कुछ समय के लिए तपस्या करने के लिए चली जाती है और उसकी गैरमौजूदगी में संध्या ने छाया को मना किया था कि वह किसी को यह न बताए की वह संध्या नहीं बल्कि छाया है।
इसीलिए सूर्य देव के साथ सभी लोग छाया को संध्या ही समझते थे। संध्या ने छाया को भी आदेश दिया था कि वह सिर्फ बच्चों का ख्याल रखेगी लेकिन सूर्य देव के करीब नहीं जाएगी।
छाया संध्या के द्वारा दिए गए हर आदेश का पालन बहुत अच्छे से कर रही थी। लेकिन सूर्य देव ने छाया को अपनी पत्नी समझ कर छाया के साथ पति पत्नी का रिश्ता बना लिया।
जिसके बाद सूर्य देव और छाया के मिलन से शनिदेव का जन्म हुआ। शनिदेव को देखते ही सूर्यदेव समझ गए थे कि वह औरत संध्या नहीं है।
क्योंकि संध्या की पहले दो संतान यम और यमी दोनों गोरे थे लेकिन शनि देव का रंग सांवला था। संध्या को जब शनि देव के बारे में पता चला तब संध्या वापस अपने घर चली आई।
संध्या को छाया के ऊपर बेहद क्रोध आया और वह छाया व शनिदेव दोनों से ही नफरत करने लगी। सूर्यदेव भी शनि को अपना पुत्र नहीं मानते थे क्योंकि शनि देव सूर्य देव से अलग थे।
शनिदेव का जन्म भिन्न परिस्थिति में होने के कारण उन्हें हमेशा ही सूर्य देव और संध्या से नफरत ही मिली थी।
लेकिन शनिदेव की मां छाया शनिदेव को बहुत प्यार करती थी। यही कारण है कि शनि देव हमेशा मां को सबसे ऊंचा स्थान देते हैं।
शनिदेव की टेढ़ी चाल की कहानी
शनिदेव के प्रकोप से इंसान तो इंसान देव और दानव भी डरते हैं। शनि देव बचपन से ही बहुत गुस्सैल थे उन्हें हर छोटी छोटी बात पर बहुत तेज गुस्सा आता था।
चूंकि शनि देव के पिता सूर्य देव और सौतेली मां संध्या शनिदेव से बहुत ज्यादा नफरत करते थे। पर एक बार की बात है शनि देव यम और यमी के साथ खाना खाने के लिए बैठे थे।
शनिदेव को बहुत तेज भूख लगी थी इसलिए उन्होंने जब संध्या से खाना मांगा तो संध्या ने कहा कि पहले मैं अपने बच्चों को खाना खिलाऊंगी और फिर अगर कुछ बच गया तो मैं तुम्हें दे दूंगी।
इतना कहने के बाद संध्या ने शनिदेव की बुराई करनी शुरू कर दी और उन्हें कोसना शुरू कर दिया था।
संध्या की बातों को सुन सुनकर शनिदेव तंग हो चुके थे और उनका गुस्सा बहुत अधिक बढ़ गया था। इसलिए शनिदेव ने संध्या के पेट में एक लात मारी।
शनि की इस हरकत से संध्या को बहुत तेज गुस्सा आ गया जिसके कारण संध्या ने गुस्से में आकर शनिदेव को श्राप दे दिया कि जिस पैर से तुमने संध्या को लात मारी है वह पैर टूट जाए।
जिसके बाद शनिदेव का पैर टूट जाता है सूर्यदेव अपने बेटे से जितना चाहे उतना नफरत क्यों ही ना कर ले अपने बेटे की इस हालत को देखकर सूर्य देव को शनि पर दया आ गई।
इसलिए सूर्यदेव ने शनि को कहा कि मैं तुम्हारे श्राप का असर पूरी तरह तो खत्म नहीं कर सकता लेकिन हां इसे ठीक जरूर कर सकता हूं।
जिसके बाद सूर्य देव ने शनिदेव का पैर ठीक कर दिया लेकिन श्राप का असर उनके पैर पर रह जाने के कारण वह लंगड़ा कर टेढ़ी चाल चलने लगे।
इस दिन के बाद शनिदेव को अपनी गलती का एहसास हुआ और शनिदेव ने कहा कि हर वह इंसान जो झूठ बोलेगा या अन्याय करेगा उसे मेरी टेढ़ी चाल का सामना करना पड़ेगा। तब से लोग शनिदेव की टेढ़ी चाल से डरते हैं।
शनिदेव की आंखों में देखने के प्रकोप की कहानी
सदैव क्रोध में रहने वाले शनि देव को कभी भी शादी करने की इच्छा नहीं थी। इसलिए उन्होंने शादी करने से साफ मना कर दिया था।
लेकिन शनि देव के पिता सूर्य देव शनि की शादी कराना चाहते थे इसीलिए उन्होंने शनि देव का विवाह एक गंधर्व कन्या धामिनी से कर दिया।
अपने पिता की आज्ञा मानने के लिए शनि देव ने भी शादी कर ली लेकिन उन्होंने धामिनी को मन से अपनी पत्नी स्वीकार नहीं किया था।
धामिनी शनिदेव के साथ खुशी–खुशी रहने लगी। काफी समय बीत गया। एक दिन धामिनी शनिदेव के पास गई और उन्होंने उससे कहा कि मुझे पत्नी की तरह ही इज्जत चाहिए! मुझे एक पुत्र चाहिए।
धामिनी की इन बातों को सुनकर शनि देव उनसे कहते हैं कि कैसा पुत्र! मैं तो तुम्हें अपनी पत्नी भी नहीं मानता हूं। यह कहकर शनि देव धामिनी को बुरा भला कहने लगते हैं।
जिसके बाद धामिनी क्रोध में आ जाती हैं और शनिदेव को श्राप देती है कि जिस तरह आपने मुझे किसी से नजरें मिलाने योग्य नहीं छोड़ा है ठीक उसी तरह आप भी किसी से दृष्टि नहीं मिला पाएंगे।
जो व्यक्ति शनिदेव की आंखों में देखेगा उसे शनिदेव के प्रकोप का सामना करना पड़ेगा। धामिनी के श्राप को सुनने के बाद सभी देवगण घबरा जाते हैं और धामिनी को श्राप वापस लेने के लिए कहते हैं।
सभी देवताओं की विनती सुन कर धामिनी भी मान जाती हैं। लेकिन श्राप को वापस ले पाना नामुमकिन था इसलिए वे कहती हैं कि महादेव का नाम लेते हुए जो भी शनिदेव की आंखों में देखेगा तब शनिदेव का प्रकोप कम हो जाएगा।
यही कारण है कि शनिदेव की पूजा अन्य देवताओं से काफी अलग होती हैं और शनि देव के भक्त उनकी आंखों में नहीं देखते हैं।
शनिदेव सभी देवताओं से भिन्न हैं और उनकी कथाएं जो सुन लेता है उनके सभी दुख दूर हो जाते हैं। आशा करते हैं कि शनिदेव के जीवन पर आधारित यह कहानी आपको पसंद आई होगी। ऐसी ही कहानियां पढ़ने के लिए हमारे ब्लॉग से जुड़े रहे।