Short Essay On Ashoka In Hindi सम्राट अशोक पर निबंध आज हम अपने इतिहास की परम्परा एवं विरासत के नाम पर दम्भ भरते हैं.
इतिहास बनाने में कई शासकों का योगदान रहा जिसमें एक थे सम्राट अशोक महान. मौर्यवंश के प्रतापी शासक अशोक ने 273 ई पू में अपने पिता बिन्दुसार के बाद मगध की सत्ता संभाली तथा अगले ४० वर्षों तक कुशलता से शासन किया.
इस निबंध में अशोक के इतिहास जीवन परिचय कहानी को समझेगे आखिर उनमें वो क्या ख़ास बात थी जिसके चलते आज हम और आप Essay on Emperor Ashoka में उनके बारे में जानने के लिए ललायित हैं.
सम्राट अशोक पर निबंध Short Essay On Ashoka In Hindi
महान शक्तिशाली और लोकप्रिय चंद्रगुप्त मौर्य के शासन के बाद मगध के राज सिंहासन पर उसका पुत्र बिंदुसार आसीन हुआ. इसका राज्यकाल २६९ ई पू से २८९ ई पू तक बीस वर्ष रहा.
बिंदुसार के चार पुत्र थे- सुमन, अशोक तिष्य और महेंद्र महाराज बिंदु सार शिव के उपासक व महान दानी थे. अशोक बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि, उदंड और होनहार बालक था. एक ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की थी. यह बालक एक यशस्वी सम्राट बनेगा.
महाराज बिंदुसार ने अशोक की दिन प्रतिदिन बढ़ती हुई प्रतिभा को देखकर मन ही मन यह निश्चय किया कि वह अपने ज्येष्ठ पुत्र सुमन को अपना उत्तराधिकारी न बनाकर अशोक को ही राज्य देगे.
अतः उन्होंने अशोक के युवा होते ही अपने मंत्रियों से परामर्श करके उसे युवराज घोषित कर दिया. युवराज होते ही पिता की अधीनता में अशोक ने उज्जयिनी और तक्ष सिला का शासन खुद सम्भाल लिया.
अशोक एक वीर और प्रवीण सेनापति था, एक बार तक्षशिला में विद्रोह हो जाने पर अशोक सेना लेकर वहां पंहुचा और उसने विद्रोह का दमन करके वहां पूर्ण रूप से शांति स्थापित की. एक बार फिर तक्षशिला में विद्रोह हो गया.
उसे शांत करने के लिए बिंदुसार ने अपने ज्येष्ठ पुत्र सुमन को भेजा. पीछे बिंदुसार का देहांत हो गया. इस अवसर का लाभ उठाकर अशोक ने प्रधान अमात्य राधागुप्त की मन्त्रणा से राजसिंहासन पर अधिकार कर लिया.
सुमन को जब पता चला तो वह एक बड़ी सेना लेकर पाटलीपुत्र पर चढ़ गया किन्तु सुमन मारा गया. अशोक ने मगध का शासन तो हथिया लिया, किन्तु उसके राज्याभिषेक में अनेक बाधाएं उत्पन्न होती रही, जिसका अशोक ने डटकर मुकाबला किया.
महाराज बिन्दुसार की मृत्यु के चार वर्ष बाद ई पू 269 में अशोक का बड़ी धूमधाम से राजतिलक हुआ. राजा बनते ही वे अपने पिता के समाज नित्य हजार ब्राह्मणों को दान देते, पुण्यकार्य और धर्मपूर्वक आचरण करते रहे.
इस राज्य की सुव्यवस्था में चन्द्रगुप्त मौर्य की योग्यता, चाणक्य की नीति और बिंदुसार के सुप्रबंध के सारे गुण थे. राज्या भिषेक के आठवें वर्ष एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना घटी, जिसने अशोक के जीवन को ही नहीं, अपितु भारत के इतिहास को भी बदल दिया.
अशोक अब अपनी निपुणता से एक बड़े राज्य का अधिकारी थे. उसे शत्रुओं का भय नहीं था. राज्य में सर्वत्र शांति का साम्राज्य था. परन्तु अशोक को अपनी राजधानी से कुछ ही दूर एक छोटा सा स्वतंत्र राज्य खटकता रहता था.
उस राज्य का नाम था कलिंग. वह पहले कभी नंद साम्राज्य के अधीन था. किन्तु उसने अपनी शक्ति द्वारा उस पराधीनता से मुक्ति पा ली थी. अशोक के पराक्रम, सैन्य बल तथा नीति निपुणता से कई राज्यों ने मगध की अधीनता स्वीकार कर ली थी.
किन्तु कलिंग ने मगध की अधीनता स्वीकार नहीं की थी. यहाँ तक कि बिन्दुसार ने भी अपने दक्षिण के आक्रमण काल में कलिंग को छेड़ना उचित न समझा.
उसने कलिंग के तीन ओर के प्रदेशों को जीतकर उसे घेर अवश्य रखा था. अशोक ने प्रतिदिन बढ़ते हुए शक्तिशाली कलिंग को जीतने का निश्चय किया.
अशोक के संकेत पर मगध की विशाल सेनाओं ने पूरे जोश से कलिंग पर आक्रमण कर दिया. उधर से कलिंग राज की शक्ति शाली सेनाएं समरभूमि में आ डटी. महान नर संहार हुआ, कलिंग की ओर से कलिंगराज स्वयं अपनी सेना के सेनापति बने.
यह महायुद्ध कई महीने चला, कलिंग सैनिकों ने मगध सेना का डटकर मुकाबला किया. कलिंग की सेना संख्या में कम थी कलिंग राज के युद्ध में मारे जाने से इसकी हार हो गई.
इतिहास के अनुसार इस युद्ध में एक लाख कलिंगवासी वीरगति को प्राप्त हुए, डेढ़ लाख बंदी बनाएं गये, लगभग इतने की मगध सैनिक युद्ध में काम आए, हजारों की संख्या में हाथी और घोड़े मारे गये.
युद्ध स्थल पर जहाँ तक दृष्टि जाती थी, शवों के ढेर ही ढेर थे अथवा कराहते हुए आहत सैनिकों की दर्द चीखें सुनाई देती थी, घायल हाथियों का चिंघाड़ना और अधमरे घोड़ो को हिन हिनाना दृश्य को और अधिक करुण बना रहा था.
कलिंग का पतन और अपनी विजय का द्रश्य देखने के लिए अशोक स्वयं रण भूमि में पंहुचा परन्तु इ स भीषण नरसंहार को देखकर अशोक का ह्रदय काँप उठा उसने मन मे विचारा इतनी हत्याएं इतनी सामग्री और धन का नाश किसलिए. केवल इसलिए कि एक स्वतंत्र शासक को अपने अधीन किया जाए.
इस विचार से अशोक के मन में ग्लानी उत्पन्न हुई. उसका ह्रदय उस दिन करुणा से पिघल गया. उसके ह्रदय में मानव के प्रति सद्भाव उत्पन्न हो गया.
उसने पर्ण किया कि वह भविष्य में कभी रक्तपात नहीं करेगा, अपितु प्राणिमात्र के हित के लिए आजीव न प्रयत्न करेगा, अशोक की इस मानसिक क्रांति ने उसे भक्षक से रक्षक बना दिया.
यह वह घटना हैं, जिसने अशोक को हिंसा के छोर से उठाकर अहिंसा के छोर पर ला खड़ा किया. दिग्विजयी अशोक अब प्रियदर्शी और देवानापिय अशोक बन गया.
उसने निश्चय किया कि किसी को शस्त्र कि शक्ति से जीतने की अपेक्षा उसे हार्दिक प्रेम से जीतना कहीं श्रेष्ठ हैं पशुबल की अपेक्षा धर्म बल इसमें कही अधिक सहायक हो सकता हैं.
इस घटना के बाद अशोक का ध्यान महात्मा बुद्ध व बौद्ध धर्म की ओर गया. युद्ध से विरक्त और उदास मन को शांति का संदेश बौद्ध धर्म से प्राप्त हो सकता था, इसलिए उन्होंने बौद्ध धर्म में दीक्षा ली.
युद्धों की ओर प्रवृत होने वाला मन अब अहिंसा के पाठ से निर्लिप्त होकर दान पुण्य और धार्मिक कार्यों में प्रवृत होने लगा. युद्ध के प्रायश्चित के रूप में एकांतवास व् धार्मिक कार्यों में अशोक के दो वर्ष बीत गये.
दो वर्ष बाद उन्होंने आचार्य उपगुप्त का शिष्यत्व स्वीकार किया. इसके बाद शासन की ओर से बौद्ध धर्म के प्रचार के अथक प्रयत्न किये जाने लगे.
सम्राट अशोक बौद्ध धर्म के नियमों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी सारी शक्ति अहिंसा और इस धर्म की उन्नति और प्रचार प्रसार में लगा दी.
Essay on Emperor Ashoka in Hindi (सम्राट अशोक पर निबंध)
अशोक की गिनती भारत के महान सम्राटों में की जाती हैं. उसका शासनकाल मौर्य साम्राज्य का एक स्वर्णिम युग था.
उसने अपनी उपलब्धियों, उच्च आदर्शों, अपनी चारित्रिक विशेषताओं आदि के कारण प्राचीन भारत के इतिहास में अपना विशिष्ट स्थान बना लिया हैं. अतः उसे भारत के महान सम्राट की संज्ञा देना नयोचित हैं.
सम्राट अशोक को महान कहने के कारण-
महान विजेता- गद्दी पर बैठते ही अशोक ने अपने पितामह चन्द्र्गुप्त मौर्य की भांति साम्राज्यवादी नीति अपनाई. कल्हण की राजतरंगीणी से ज्ञात होता हैं कि अशोक ने कश्मीर को जीतकर मौर्य साम्राज्य में सम्मिलित कर दिया.
अशोक के अभिलेखों से ज्ञात होता हैं. कि उसने कलिंग को जीतकर अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर दिया. इस प्रकार अशोक ने अपने पूर्वजों से प्राप्त मौर्य साम्राज्य को सुरक्षित ही नहीं रखा, बल्कि उसका विस्तार भी किया.
योग्य शासक– अशोक केवल एक विजेता ही नहीं अपितु एक योग्य शासक भी था. वह एक प्रजावत्सल सम्राट था. वह अपनी प्रजा को संतान के तुल्य समझता था. तथा उसकी नैतिक और भौतिक उन्नति के लिए सदैव प्रयत्नशील रहता था.
उसने प्रशासनिक क्षेत्र में अनेक सुधार कार्य किये और अपनी प्रशासनिक प्रतिभा का परिचय दिया उसने धम्म के प्रचार के लिए धम्म महामात्रों को नियुक्त किया.
उसने अपने प्रतिवेदकों को आदेश दिया कि वे किसी भी समय उससे मिल सकते हैऔर प्रजा के बारें में सूचनाएं दे सकते हैं.
उसने दंड विधान में अनेक सुधार किये, उसने यज्ञ में दी जाने वाली पशु बलि को बंद करवा दिया. उसने अनेक सड़कों, धर्मशालाओं, कुओं, तालाबों, नहरों, अस्पतालों आदि का निर्माण करवाया.
धम्म विजेता– कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने साम्राज्यवादी एवं युद्धवादी नीति का परित्याग कर दिया. उसने युद्ध घोष के स्थान पर धम्म घोष की नीति अपनाई.
उसने धम्म के प्रचार के लिए अपना तन मन धन समर्पित कर दिया. अपनी प्रजा की नैतिक और भौतिक उन्नति करना ही उनके जीवन का लक्ष्य बन गया.
बौद्ध धर्म को संरक्षण देना– बौद्ध धर्म के प्रचारक एवं संरक्षक के रूप में भी प्राचीन भारतीय इतिहास में अशोक का अहम स्थान हैं. उसने बौद्ध धर्म के प्रसार प्रचार के लिए अनेक उपाय किये.
उसने अनेक बौद्ध तीर्थस्थलों की यात्रा की. उसने बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को शिलाओं स्तम्भों पर उत्कीर्ण करवाया. उसने भारत के विभिन्न प्रदेशों तथा विदेशों में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अनेक धर्म प्रचारक भेजे.
कला का संरक्षक– अशोक कला प्रेमी था. उसने अनेक राजाप्रसादों स्तम्भों, स्तूपों, विहारों आदि का निर्माण करवाया.
उसके द्वारा निर्मित पाषाण स्तम्भ मौर्यकालीन कला के सर्वोत्कृष्ट नमूने हैं. इसके समस्त पाषाण स्तम्भों में सारनाथ का पाषाण सबसे अधिक सुंदर हैं.
बौद्ध ग्रंथों के अनुसार अशोक के ८४००० स्तूपों का निर्माण करवाया, इन स्तूपों में साँची तथा भरहुत के स्तूप अधिक प्रसिद्ध हैं.
अशोक ने बराबर पहाड़ियों में अनेक गुहाओं का निर्माण करवाया. अशोक द्वारा निर्मित पाषाण स्तंभों पर बनी हुई पशु पक्षियों की मूर्तियाँ बड़ी सुंदर हैं.
अशोक की चारित्रिक विशेषताएं– अशोक के अभिलेखों का अध्ययन करने वाले इतिहासकारों को यह प्रतीत हुआ हैं कि अन्य राजाओं की अपेक्षा अशोक एक बहुत ही शक्तिशाली तथा परिश्रमी शासक था. इसके अतिरिक्त वह बाद के उन राजाओं की अपेक्षा विनीत भी था.
जो अपने नाम के साथ बड़ी बड़ी उपाधियाँ जोड़ते थे. इसलिए बीसवी सदी के राष्ट्रवादी नेताओं ने अशोक को प्रेरणा स्रोत माना हैं.
एच जी वेल्स ने लिखा हैं कि इतिहास के प्रष्टों को भरने वाले राजाओं सम्राटों, धर्माधिकारियों संत महात्माओं आदि के बीच अशोक का नाम प्रकाशमान हैं और यह आकाश में प्रायः एकाकी तारे की भांति चमकता हैं.