सुकरात का जीवन परिचय Socrates Biography In Hindi

सुकरात का जीवन परिचय Socrates Biography In Hindi यूनान के महान दार्शनिक सोक्रेटस जिसे हम सुकरात के नाम से जानते हैं. सोक्रेटिस को यह नाम अरबों ने दिया था.

सुकरात का जन्म आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पहले एथेंस में हुआ था. एथेंस यूनान का एक समृद्ध राज्य था. सुकरात के माता पिता बहुत गरीब थे.

सुकरात का जीवन परिचय Socrates Biography In Hindi

सुकरात का जीवन परिचय Socrates Biography In Hindi
पूरा नामSocrates सुकरात
जन्म469 ईस्वी पूर्व
जन्म स्थानएथेंस नगर
पहचानमहान दर्शनशास्त्री
पत्नीएन्थिपे
पुत्रलैंपक्राॅल्स, सोफ्रोनिसस और मेनेक्सेनस
शिष्यप्लेटो
मृत्यु399 ईसा पूर्व (उम्र करीब 71)

पिता मूर्तियाँ बनाने का काम करते थे. बालक सुकरात भी पिता के काम में थोड़ी बहुत मदद करता रहता था. घर में भोजन के लिए भी लाले थे तब अच्छे कपड़ो और पढ़ने लिखने का सवाल ही नहीं था. परन्तु सुकरात को बचपन में सीखने की और बहुत कुछ जानने की ललक थी.

संयोग की बात क्रोटो नामक एक धनी व्यक्ति ने बालक सुकरात के इस गुण को परख लिया उसने सुकरात की शिक्षा की समुचित व्यवस्था की. सोचा होगा कि पढ़ लिखकर कुछ न कुछ कर ही लेगा. जीवन में संयोगों का बड़ा महत्व हैं. कुछ संयोग ऐसे होते हैं जो व्यक्ति की जीवन धारा को प्रसिद्धि के मार्ग की ओर मोड़ देते हैं.

सुकरात का क्रीटों से मिलना भी एक ऐसा ही सुखद संयोग था. समुचित शिक्षा से सुकरात की बुद्धि चमक उठी वह हर बात को गहराई से सोचने लगा. और हर चीज का अर्थ खोजने लगा. थोडा बड़ा होते ही वह विद्वानों से तर्क वितर्क करने लगा. जब वे कोई बात कहते तो सुकरात उन पर प्रश्न पर प्रश्न करते हुए बाल की खाल निकालने लगता.

उन दिनों एथेंस में ऐसे तथाकथित विद्वानों की कमी न थी, जो तरह तरह के विषयों की जानकारी का ढोंग करके आम लोगों पर अपनी विद्वता का सिक्का जमाने का प्रयत्न करते थे. सुकरात के प्रश्न उन्हें चुनौती लगते वे निरुत्तर हो जाते और बौखला उठते, आम लोग विशेषकर नवयुवक इस बहस का आनन्द उठाते और सुकरात के प्रति प्रशंसा से भर उठते.

सच तो यह हैं कि सुकरात ने उन ढोंगी विद्वानों की कलई खोलकर रख दी, वे सुकरात के प्रति इर्ष्या से भर उठे. सुकरात की प्रसिद्धि दिनों दिन बढ़ने लगी, लोग उसकी बात को ध्यान से सुनते उन्हें उसकी बातों में सच्चाई की झलक दिखाई देती, फलस्वरूप विद्वानों की मजलिसे उखड़ गई.

सुकरात का बात करने का ढंग भी अनोखा था. वह एक ऊंची जगह खड़ा हो जाता और अपने आस पास खड़े लोगों से किसी विषय को लेकर प्रश्न करता. वे उत्तर देते, तो उसी उत्तर के आधार पर प्रश्न करता. बात आगे बढ़ती इस प्रकार सवाल जवाब का एक सिल सिला शुरू हो जाता.

वह हर प्रश्न का उत्तर देता अंत में निष्कर्ष के रूप में सच्चाई सामने आ जाती. लोगों को इस बात की प्रसन्नता होती कि सच्चाई के उद्घाटन में उनका भी हाथ हैं. श्रोताओं में अधिकतर सुकरात के हमउम्र नवयुवक होते थे. देखते ही देखते सुकरात नवयुवकों का चहेता नेता बन गया.

सुकरात की बातचीत के विषय थे ईश्वर, सृष्टि, धर्म, राज्य, राजा, प्रशासन, राजधर्म, प्रजाधर्म आदि. साधारणतया लोग भी इन विषयों पर बात करते कतराते क्योंकि इन विषयों में निश्चित रूप से कहना कठिन था. सुकरात उनसे कहता ईश्वर एक हैं. ईश्वर के स्थान पर नाना प्रकार के देवी देवताओं को पूजना नासमझी हैं. इससे बुद्धि भ्रमित होती हैं.

सच्चा धर्म है अपनी बुद्धि से काम लेना और अपने प्रति अपने परिवार के प्रति समाज और देश के प्रति कर्तव्य का पालन करना. देश व्यक्ति से बढ़कर हैं राजा से भी बढ़कर. अतः हमारा पहला कर्तव्य हैं कि हम देशभक्त हो. राजा तो प्रशासक है वह ईश्वर नहीं हैं जैसा कि हमारे मन में बैठा दिया गया हैं.

राजा तभी तक अच्छा हैं जब तक वह प्रजा की, जनता की ईमानदारी से सेवा करता हैं. हाँ जनता का भी कर्तव्य हैं कि वह भलाई के कामों में राजा का सहयोग दे. सांसारिक सुखों के पीछे मत दौड़े. धर्म की राह पर चले. ज्ञान की कमाई करें ताकि सत्य के दर्शन हो.

सुकरात की बाते सुनकर लोग उससे प्रभावित हुए बिना न रहते. सुकरात ज्ञान का भंडार था. परन्तु वह लोगों पर अपने ज्ञान का आतंक नहीं जमाता था. वह कहता था किसी बात को इसलिए स्वीकार मत करलो कि वह किसी बड़े आदमी ने कही हैं तुम स्वयं उसके बारे में गहराई से सोचकर उसके गुण अवगुण की परख करो. अच्छी जसती है तो मानों अन्यथा नहीं.

वह ज्ञान का संग्राहक था तो निर्लोभ भाव से उसका वितरण भी करता था. यही कारण है कि शिष्य परम्परा बढ़ती रही. उसके बाद उसके शिष्य प्लेटो अफलातून ने और प्लेटो के बाद उसके शिष्य अरस्तू ने उसके विचारों को आगे बढ़ाया. सुकरात, प्लेटों और अरस्तू इन तीनों की गिनती संसार के महान दार्शनिकों में होती हैं.

समय अंतराल के बावजूद उनके विचार आज भी मान्य हैं. चिन्तन की परम्परा को आगे बढ़ाने में विश्व इनका ऋणी रहेगा. सुकरात आजीवन ज्ञान का उपासक रहा. वह न धन के पीछे भागा न यश के. उसकी पत्नी बहुत क्रोधित स्वभाव की थी परन्तु उसने अपनी पत्नी की क्रोध भरी हरकतों को नितांत सहजता से लिया.

सुकरात संतोषी इतना था एक विदेशी राजा ने उसे लालच देकर अपने दरबार में बुलाना चाहा पर उसने विनम्रता पूर्वक यह कहकर इनकार कर दिया कि मैं आपकी कृपा के ऋण का भार उठा नहीं सकता, मैं अपने देश में ही सुखी हूँ.

दो वक्त की रोटी मिल जाती है झरने के पानी से प्यास बुझ जाती हैं तन ढकने के लिए एक लबादा काफी हैं, सच तो यह है कि उसे एथेंस और एथेंस की जनता से असीम प्यार था.

वैवाहिक जीवन

एक क्रांतिकारी विचारों वाले इंसान के जीवन उथल पुथल रहती हैं. पश्चिमी सभ्यता को राज्य, सत्ता, धर्म, नागरिक आदि विषयों पर ज्ञान देने वाले सुकरात का वैवाहिक जीवन उतना अच्छा वर्णित नहीं किया गया हैं. इनके जीवन के इतिहास को लिखने वाले विद्वानों के अनुसार सुकरात का विवाह एन्थिपे से हुआ था.

एन्थिपे स्वभाव से बेहद क्रोधित महिला थी, जो कभी भी सुकरात से संतुष्ट नहीं होती थी. इन्होने तीन पुत्रों (लैंपक्राॅल्स, सोफ्रोनिसस और मेनेक्सेनस) को जन्म दिया.

सुकरात से उनके एक शिष्य ने विवाह के बारे में राय पूछते हुए प्रश्न किया, कि क्या मुझे विवाह करना चाहिए अथवा नहीं. अपने उत्तर में सुकरात कहते हैं हर व्यक्ति को विवाह करना चाहिए अगर अच्छी पत्नी मिलती है तो.

सुकरात का विरोध

सुकरात के समय एथेंस नगर को पेलोपोनेशियन युद्ध में करारी हार मिली और जिल्लत उठानी पड़ी. लोग राष्ट्रीय भावनाओं को लेकर काफी जागरूक और संवेदनशील बन चुके थे. उधर सुकरात स्वयं को एक विश्व नागरिक मानते थे. जो कोई उनसे मिलता या सवाल करता वे उनके सामने सामजिक रूढ़ीवाद, आडम्बर और राजनेताओ के चरित्र की आलोचना करते थे.

शुरुआत से ही स्वयं को प्रबुद्ध मानने वाला एक समूह इनका दुश्मन बन चूका था, धीरे धीरे इस संख्या में बढ़ोतरी हो रही थी. लोगों ने इन्हें शत्रु और भेदिया तक कहना शुरू कर दिया. आखिर में सुकरात को युवाओं को दिग्भ्रमित करने के आरोप में जेल में बंद कर दिया गया.

मृत्यु

399 ईसा पूर्व में में विरोधियों को आखिर सुकरात को सजा देने का अवसर मिल ही गया. उन पर तीन आरोप लगाए गये पहला आरोप देवी देवताओं का अपमान करना था, दूसरा राष्ट्रीय देवताओं के स्थान पर कल्पित ईश्वर को स्थापित करने का अपराध और तीसरा आरोप युवाओं को दिग्भ्रमित करने का था.

राज दरबार में सुकरात के मुकदमे की सुनवाई के लिए ज्यूरी बैठी. इन पर राजद्रोह का आरोप सिद्ध किया जाना था. सुकरात ने अपनी तरफ से स्वयं वकालत करते हुए कहा कि मेरे पास जो कुछ था मैंने नगर वासियों की सेवा में अर्पित कर दिया, मेरे जीवन का उद्देश्य साथी नागरिकों के जीवन को समृद्ध करना था. मैंने इस कार्य को परमात्मा के आदेश की तरह लेकर काम किया.

अगर आप मुझे इस शर्त पर छोड़ दे कि मैं सत्य की खोज बंद कर दूँ तो मैं यह नहीं कर सकता. आप लोगों को लज्जा आदि चाहिए जो तुम सत्य को जानने या आत्मा के उत्थान की बजाय धन दौलत जमा करने में लगे हो. मैं समाज के कल्याण के लिए कार्य कर रहा हूँ, आप लोगों को मुझे सम्मानित करना चाहिए.

ज्यूरी ने सुनवाई के साथ ही मतदान कराया, सुकरात को 221 मतों के विरुद्ध 280 मत से राजद्रोही ठहराया और जहर के प्याले को पीने की सजा हुई. इस तरह एक विचारक की 71 वर्ष की आयु में जीवन यात्रा पर पूर्ण विराम लग गया.

इन्होने अपने विचारों को लेखनी में ढालने की बजाय श्रुति के जरिये अपने शिष्यों को सुनाया और यह परम्परा यूँ ही चलती रही.

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