स्वावलम्बन पर प्रेरक कहानी | Story on self dependent in Hindi

स्वावलम्बन पर प्रेरक कहानी | Story on self dependent in Hindi self-reliance अर्थात स्वावलंबन को दूसरे शब्दों में आत्मनिर्भर होना कहा जाता हैं, अपने पैरों पर खड़ा होने का मतलब है जीवन में गजब का आत्म विश्वास और साहस का जगना.

आज के आर्टिकल में स्वावलंबी जीवन पर आधारित कुछ अच्छी व प्रेरणादायी कहानियों को हम कवर कर रहे हैं, ये स्टूडेंट्स के लिए विशेष तौर पर उपयोगी हैं.

Story on self dependent in Hindi- स्वावलम्बन पर प्रेरक कहानी

स्वावलम्बन पर प्रेरक कहानी | Story on self dependent in Hindi

प्राचीन समय की बात हैं. इस्लामिक देशों के लोगों में हातिमताई अपनी दानशीलता के लिए दूर दूर तक विख्यात था. वह सबको खुले मन से दान देता था. सब उसकी वाहवाही करते थे.

एक दिन उसने सभी के लिए सामूहिक भोज का आयोजन करवाया, कोई भी राज्य का व्यक्ति उसमें आ सकता था. हातिमथाई अपने मंत्रियों व सैनिकों के साथ अपने ख़ास रिश्तेदारों को न्यौता देने जा रहा था.

राह चलते चलते उसने पाया कि एक लकड़हारे ने लकड़ियों का एक गट्ठा तैयार कर रखा था. वह अपनी आजीविका उन लकड़ियों को बेचकर चलाता था. वह पसीने से लथपथ और थक कर निढ़ाल अवस्था में बैठा था.

हातिमताई उससे बोला- ओ महाशय जब हातिमताई सामूहिक भोज देता है, तो तुम इतनी मेहनत क्यों करते हो, क्यों न तुम भी उस भोज में आ जाते हो.

लकड़हारा भारी स्वर में बोला- जो अपनी मेहनत की खाते हैं उसे किसी हातिमताई की उदारता की जरूरत नहीं हैं. हातिमताई भौछ्क्का होकर उसे देखता ही रह गया.

स्वावलंबन पर एक प्रेरक कहानी

हमीरगढ़ राज्य के महाराजा संजय सिंह बहुत ही प्रतापी राजा थे और इन्हीं के प्रताप का कारण हमीरगढ़ राज्य चारों तरफ काफी प्रसिद्ध था।‌ महाराजा संजय सिंह के बारे में कहा जाता था कि यह बहुत ही वीर थे, साथ ही प्रजा का ध्यान रखते थे।

महाराजा संजय सिंह के दरबार में बड़े-बड़े दूरदर्शी मंत्री भी थे जो समय समय पर महाराजा संजय सिंह को राज्य से संबंधित समस्याओं के बारे में अवगत कराते थे और उनका निदान प्राप्त करते थे। 

महाराजा संजय सिंह की वीरता के कारण शत्रु इनका नाम सुनकर के ही भय से थरथर कांपने लगते थे परंतु महाराजा संजय सिंह के दरबार में उपलब्ध एक मंत्री के चेहरे पर हमेशा चिंता की लकीरें रहती थी और उनकी चिंता का कारण एक दिन सामने आ भी गया।‌ 

कुछ दिनों के बाद हमीरगढ़ राज्य में डाकुओं के एक गिरोह ने भयंकर आतंक मचाना चालू कर दिया और डाकुओं के भय के कारण प्रजा में त्राहिमाम मच गया। हर कोई बेचैन रहने लगा।

डाकुओं के आतंक की खबर मंत्री को लगी तो उनकी चिंता बढ़ गई और मंत्री जी ने जगह-जगह पर अपने भरोसेमंद सैनिकों को तैनात कर दिया परंतु डाकुओं का गिरोह बड़ा होने के कारण डाकू हमेशा राज्य में कहीं ना कहीं डाका डालने में सफल हो जाते थे।

और लोगों की धन संपत्ति लूट करके ले जाते थे। अंत में थक हार कर के जब मंत्री से डाकुओं का आतंक कंट्रोल नहीं हुआ तो मंत्री ने इसकी सूचना हमीरगढ़ राज्य के महाराजा संजय सिंह को दी। उसके बाद उन्होंने अपने विश्वसनीय सैनिकों को डाकुओं के आतंक को खत्म करने का आदेश दिया।

परंतु इसके बावजूद डाकू किसी के काबू में नहीं आ रहे थे। एक दिन तो डाकुओं ने राज महल के सामने मौजूद साहूकार सेठ के यहां पर ही डाका डाल दिया और जब तक राजा के सैनिक वहां पर पहुंचे, तब तक डाकू डाका डाल कर के छूमंतर हो गए।

यह देखकर के राज्य में जगह-जगह पर भारी मात्रा में सैनिकों को लगा दिया गया परंतु डाकू लगातार बिना किसी डर के डाका डालते रहे।

 इस बात से राजा काफी क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने विश्वसनीय मंत्री को बुला करके यह आदेश दिया कि डाकू को किसी भी हाल में पकड़ा जाए चाहे जिंदा या फिर चाहे मुर्दा और इसके लिए मंत्री को जो करना है वह करें।

इसके बाद मंत्री ने राज्य में स्थित हर गांव के लोगों को अपने अपने इलाके में हथियार लेकर के रक्षा करने का आदेश दिया और हर व्यक्ति को इसके पहले अच्छी खासी ट्रेनिंग भी दी गई।

 ट्रेनिंग पाकर के गांव के लोगों में एक अजीब सा साहस पैदा हो गया और वह बारी-बारी से अपने अपने इलाके में पहरा देने लगे। ऐसा करने पर कुछ दिन तो डाकूओ ने डाका नहीं डाला परंतु एक दिन डाकू ने फिर डाका डाला परंतु सभी गांव वालों ने मिलकर के डाकू को घेर लिया और उन्हें आत्मसमर्पण करने पर मजबूर कर दिया। 

इसके बाद सभी डाकुओं को रस्सी से बांधकर के गांव वाले राजा के दरबार में लेकर के गए और जब राजा को यह पता चला कि डाकू पकड़ में आ गए हैं तो राजा को काफी शांति का अनुभव हुआ।

रस्सी से बांधे गए डाकुओं को देखने के लिए दरबार में लोगों की भीड़ लग गई। सभी डाकुओं ने अपना चेहरा ढका हुआ था परंतु नीच डाकू को देखने के लिए राजा के आदेश पर डाकुओं के सरदार के चेहरे पर से कपड़े को हटाया गया और कपड़ा हटाते ही राजा सहित सभी प्रजा आश्चर्यचकित हो गई।

 राजा ने डाकू का चेहरा देखते ही कहा नीच कपटी तुमने प्रजा के साथ विश्वासघात किया है। अगर तुम्हें धन चाहिए था तो मुझसे मांग लेते।

तुम प्रजा के रक्षक नहीं बल्की भक्षक हो। राजा की सभी बातों को डाकू का सरदार बड़े ध्यान से सुन रहा था और यह देख कर के राजा का गुस्सा और भी तेज हो गया। 

वह बोले कि बताओ तुम्हें क्या दंड चाहिए। इसके पहले की डाकू कुछ बोलता वहां पर मौजूद लोग कहने लगे कि इसे मृत्यु दंड दिया जाए महाराज।

इस पर राजा ने वहां पर मौजूद लोगों से शांत होने के लिए कहा और फिर राजा ने डाकू से कहा कि तुम्हें कुछ कहना है अथवा नहीं तो मंत्री ने कहा कि महाराज मैंने जनता की भलाई के लिए ही यह सब किया है।

 अगर मैं यह सब नहीं करता तो इनमें अपने आपकी रक्षा करने की शक्ति नहीं आ पाती। इस पर वहां मौजूद एक दरबारी ने हैरानी से पूछा कि मंत्री जी यह आप क्या कह रहे हैं। इस पर मंत्री जी ने कहा कि मैं बिल्कुल सही कह रहा हूं‌।

बिना सैनिकों की सहायता लिए हुए डाकुओं को कैसे पकड़ पाते, पूरे राज्य में सैनिक रखना संभव नहीं है इसलिए मैंने सोचा कि क्यों ना लोग खुद ही अपनी सुरक्षा का जिम्मा उठाएं और मैं अपने इस काम में सफल हुआ और आप देखिए आज हमीरगढ़ का हर नौजवान सैनिक है।

कोई हमीरगढ़ के किसी भी परिवार के ऊपर आंख उठा कर के भी नहीं देख सकता। अगर आपको लगता है कि मैंने गलती की है तो आप मुझे अवश्य मृत्युदंड दे दे।

इतना सुनते ही राजा ने अपने सिंहासन से उठकर के मंत्री के पास जाकर के मंत्री को गले लगा लिया और सभी लोग राजा और मंत्री की जय जय कार करने लगे।

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